सोमवार, 8 दिसंबर 2008

हमारे देश के बड़बोले राजनेता

हमारे देश के बड़बोले राजनेता

निर्मल रानी 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा nirmalrani@gmail.com

       महानगर मुम्बई में 26 नवम्बर को हुए आतंकवादी आक्रमण को लेकर जहां इससे जुड़े और कई पहलू चर्चा का विषय बने रहे तथा बने हुए हैं, वहीं देश के इस सबसे बड़े आतंकवादी हमले ने बड़बोले राजनेताओं को भी बुरी तरह नंगा कर डाला है। यह एक कड़वा सच है कि मुम्बई हादसे को लेकर देश के आम लोगों का जितना क्रोध आतंकवादियों तथा आतंकवाद के संभावित स्रोतों के प्रति था शायद उससे भी अधिक ंगुस्सा अपने ही देश के ंगैर ंजिम्मेदार, बड़बोले, अक्षम तथा भ्रष्ट नेताआें के विरुद्ध देखने को मिला। होटल ताज मुम्बई, इंडिया गेट दिल्ली सहित देश के और कई प्रमुख नगरों व महानगरों में लाखों की तादाद में इकट्ठा हुए आम लोगों ने अपने हाथों में जो तख्तियां उठा रखी थीं उनपर जहां आतंकवाद विरोधी अनेक नारे लिखे हुए थे, वहीं देश के ंगैर ंजिम्मेदार नेताओं के प्रति ऐसी टिप्पणियां भी लिखी गईं थीं जिनकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

              आंखिर जनता का ंगुस्सा फूटे भी क्यों न? कहने को तो देश को स्वतंत्र जनतंत्र बने हुए 61 वर्ष बीत गए। परन्तु देश की जनता जनतांत्रिक व्यवस्था के बावजूद कहीं न कहीं स्वयं को असहाय महसूस करती आ रही है। नेताओं का सत्ता प्रेम, उनके झूठे चुनावी वादे, झूठे आश्वासन, वोट बैंक की राजनीति, मंदिर-मस्जिद की घटिया सियासत, साम्प्रदायिकता व जातिवाद की राजनीति, क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीति, राजनीतिज्ञों में फैला भ्रष्टाचार, नेताओं का धन संग्रह करने का बड़ा नेटवर्क आदि जैसी तमाम नकारात्मक बातों ने शायद राजनेताओं के प्रति आम लोगों का मोह बिल्कुल भंग कर दिया है। रही-सही कसर इन नेताओं की ंगैर ंजिम्मेदराना टिप्पणियों तथा इसमें प्रयोग में आने वाली घटिया शब्दावली ने पूरी कर दी है। अब तो बिल्कुकल स्पष्ट दिखाई देने लगा है कि आम लोग राजनेताओं को विश्वास की नंजरों से देखने के बजाए संदेह एवं नंफरत की नंजरों से देख रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसे ंगैर ंजिम्मेदार व बड़बोले नेताओं को भविष्य में आम लोगों के ऐसे आक्रोश का भी सामना करना पड़े जिसकी वे कल्पना भी न कर पा रहे हों।

              मुम्बई हादसे में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों में एक नाम ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे का भी था। हेमंत करकरे उसी दबंग तथा निष्पक्ष कार्य करने वाले अधिकारी का नाम था जिसने मालेगांव ब्लास्ट की जांच के बाद इसकी दिशा ही बदल कर रख दी थी। ज्ञातव्य है कि देश में कट्टरपंथी राजनीति करने वाले लोगों ने करकरे को अपनी आलोचना का केंद्र बना लिया था। इस जांबांज अंफसर को संदेह की नंजरों से देखा जाने लगा था। करकरे को जान से मार देने की धमकियां तक मिलने लगी थीं। परन्तु इन सब की परवाह किए बिना वह जांबांज अंफसर अपने ंफंर्ज को निभाता हुआ 26 नवम्बर को आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में सबसे पहले शहादत पाने वाले पुलिस अधिकारियों की सूची में सर्वोपरि रहा। कल तक हेमंत करकरे की आलोचना करने वाले राजनैतिक संगठन भाजपा के हीरो समझे जाने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने करकरे की शहादत पर उनके परिजनों के आंसू पोंछने की कोशिश की। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात सरकार की ओर से एक करोड़ रुपए की धनराशि शहीद के परिजनों को देने की कोशिश की। परन्तु शहीद हेमंत करकरे की पत्नी को नरेन्द्र मोदी की दरियादिली के निहितार्थ को समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने मोदी की सहायता लेने से इन्कार कर दिया। इस घटना से सांफ ंजाहिर है कि सरकारी धन के बल पर राजनेताओं द्वार शहीदों की लाशों पर अर्जित की जाने वाली झूठी लोकप्रियता के प्रयासों से शहीद परिवार भी बंखूबी वाकिंफ हो चुका है।

              कुछ ऐसा ही दृश्य बैंगलोर में मुम्बई हादसे में शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के घर पर देखने को मिला। केरल के मुख्यमंत्री वी एस अच्यूतानन्द मेजर संदीप की शहादत के तीन दिन बाद जब मेजर की शहादत पर शोक व्यक्त करने के उद्देश्य से उनके निवास स्थान पर पहुंचे, उस समय शहीद के पिता ने बड़े ही अपमानजनक तरींके से मुख्यमंत्री को अपने घर से बाहर निकाल दिया। स्वयं को अपमानित महसूस कर मुख्यमंत्री ने इस घटना पर एक और सख्त टिप्पणी कर डाली। मुख्यमंत्री ने  कहा कि यदि संदीप मेजर न होता तथा आतंकवादियों से मुठभेड़ में शहीद न हुआ होता तो उनके घर पर कुत्ता भी झांकने न जाता। मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी ने देश के राजनैतिक हल्कों में एक हंगामा खड़ा कर दिया। अन्ततोगत्वा मुख्यमंत्री को अपने इस वक्तव्य के लिए मांफी भी मांगनी पड़ी। मुम्बई हादसे को लेकर की गई ऐसी ही एक अभद्र टिप्पणी के लिए देश की जनता ने भाजपा के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नंकवी को ंखूब कोसा। लगभग पूरी दुनिया में यह देखा जाता है कि शोक व्यक्त करने हेतु प्राय: आम लोग किसी स्थान विशेष पर पुष्प अर्पित करते हैं, मोमबत्तियां जलाते हैं तथा शोक गीत इत्यादि गाकर अपनी श्रद्धांजलियां अर्पित करते हैं। मुम्बई हादसे के बाद भी यही हो रहा था। देश की शोकग्रस्त आम जनता जिनमें पुरुष, महिलाएं, युवा-युवतियां, वृद्ध एवं बच्चे सभी शामिल थे, सबने मोमबत्तियां जलाकर सामूहिक रूप से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसी दौरान शोक व्यक्त करने वाले आम लोग मीडिया के समक्ष सरकार व सरकार चलाने वाले नेताओं के प्रति अपने ंगुस्से का भी इंजहार कर रहे थे। परन्तु भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नंकवी को आम लोगों द्वारा राजनेताओं की आलोचना किया जाना पसंद नहीं आया। फिर क्या था। पहले से ही अपनी बेसुरी और बेसिर पैर की बातों के लिए प्रसिद्ध भाजपा प्रवक्ता रह चुके नंकवी ने एक बार फिर बंगैर कुछ सोचे समझे अपना मुंह खोल डाला। इस बार इस 'महान दार्शनिक' ने ंफरमाया कि लिप्सटिक व पाऊडर लगाकर मोमबत्तियां जलाकर जो लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं तथा राजनेताओं को गालियां दे रहे हैं, वे पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं। तथा एक नाटक कर रहे हैं। नंकवी के इस कथन की समीक्षा कोई दूसरा तो क्या शायद नंकवी स्वयं भी कर सकें। परन्तु वे भी बेचारे क्या करें। आंख बंदकर मुंह खोल देना तो उनका पुरानी आदत है।

              नंकवी साहब भले ही अपनी ंखसंखसी दाढ़ी तथा भारी भरकम मुस्लिम नाम की वजह से भाजपा के लिए एक मुखौटारूपी नेता के रूप में स्वागत योग्य व्यक्ति क्यों न हों। परन्तु अपने ऐसे ही बड़बोलेपन के लिए इनकी स्वयं इन्हीं की बिरादरी के लोगों द्वारा इलाहाबाद में बुरी तरह धुनाई तक की जा चुकी है। परन्तु बिना सोचे-समझे बे सिर पैर की बातें बोल देना तो गोया इनकी आदतों में शामिल हो चुका है। इन्हीं मुम्बई हादसों को लेकर ंगैर ंजिम्मेदाराना टिप्पणी के शिकार हुए एक और नेता महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री व उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल को भी बिहार के एक युवक राहुल राज की मुम्बई पुलिस द्वारा की गई हत्या पर उनकी तल्ंख टिप्पणी को आम लोग भुला भी नहीं पाए थे कि मुम्बई मे हुए देश के इस सबसे बड़े आतंकवादी हमले पर इनकी ंगैर ंजिम्मेदाराना टिप्पणी ने बवाल खड़ा कर दिया। यह बवाल इतना बढ़ा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के त्यागपत्र देने से पहले ही आर आर पाटिल को महाराष्ट्र के गृहमंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा।

              आर आर पाटिल ने मुम्बई की घटना पर कहा कि बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं तो होती ही रहती हैं। सोचने का विषय है कि एक ओर तो 26 नवम्बर के मुम्बई हादसे को देश के सबसे बड़े आतंकी हमले के रूप में देखा जा रहा है तो दूसरी ओर महाराष्ट्र के गृहमंत्री पद पर बैठा हुआ पाटिल जैसा नेता इस हादसे को छोटी मोटी घटना बता रहा है। ंजाहिर है गृहमंत्री के ऐसे ंगैर ंजिम्मेदाराना बयान पर आम आदमी का ंगुस्सा ही फूटेगा। कुछ ऐसी ही ंगैर ंजिम्मेदाराना बयानबांजी समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह द्वारा भी बटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए शहीद इन्सपेक्टर मोहन चन्द शर्मा की मौत को लेकर की गई थी। परिणामस्वरूप स्वयं को अपमानित महसूस कर शहीद इन्सपेक्टर के परिजनों ने भी अमर सिंह द्वारा दिए गए 10 लाख रुपए के चेक को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था।

              बहरहाल कल तक इसी देश में पूरे आदर व सम्मान की नंजरों से देखे जाने वाले इन्हीं नेताओं ने अपने ंगैर ंजिम्मेदाराना बयानों, बड़बोलेपन तथा अपनी चालबांजी भरी हरकतों से स्वयं को इतना बेनंकाब कर दिया है कि आम लोग अब इनको सम्मान व आदर की नंजरों से देखने के बजाए इनसे नंफरत करने लगे हैं। यहां दु:ख की बात तो यह है कि ऐसे बड़बोले व ंगैर ंजिम्मेदार नेताओं की ंगैर ंजिम्मेदाराना हरकतों व बयानों के परिणामस्वरूप एक ंजिम्मेदार व सूझबूझ रखने वाला नेता भी आम लोगों की नंजरों में खटकने लगा है। ंजाहिर है यह सब कुछ राजनीति में अयोग्य, अक्षम तथा अभद्र लोगों के प्रवेश का ही परिणाम है।  (nirmalrani@gmail.com)          निर्मल रानी  

 

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