रहति लटपट काटि दिन, बरू घामें मां सोय । छांह ना बाकी बैठिये, जो तरू पतरो होय ।। जो तरू पतरो होय, एक दिन धोखा दैहे । जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहे ।। कह गिरधर कविराय, छांह मोटे की गहिये । पाती सब झरिं जांय, तऊ छाया में रहिये ।। पतले वृक्ष अर्थात कमजोर राजा की शरण या राज्य में नहीं रहना चाहिये, ऐसे राजा के राज्य की शरण में रहने से एक दिन तगड़ा धोखा होता है और जिस दिन भी तेज हवा या आंधी चलती है, कमजोर और पतले वृक्ष जिस तरह जड़ से उखड़ कर उड़ जाते हैं, उसी तरह ऐसा राजा भी कुनबे सहित भाग निकलता है और लुप्त व गुप्त हो जाता है । भारत के प्रसिद्ध गिरधर कवि ने इस कुण्डली में कहा है कि सदा ही मोटे वृक्ष और भारी राजा (जिसका साम्राज्य पुख्ता हो और प्राचीन हो तथा विश्वसनीय कुल का हो) की ही शरण व राज्य का आसरा लेना चाहिये । ऐसा वृक्ष सारी पत्तियां झड़ जाने के बावजूद भी छाया और सुख प्रदान करता है, ऐसा राजा व उसका राज्य भी सब कुछ व्यतीत हो जाने या नष्ट हो जाने पर भी सुख व समृद्धि देता है । अन्यथा भीषण लपट और घाम (तेज धूप) रहते हुये भी बिना वृक्ष के खुले में बैठकर कष्ट भोगना उत्तम है- गिरधर कवि की कुण्डली भारत के अति मान्य प्राचीन कवि
शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
कमजोर राजा और पतले वृक्ष की शरण कभी न लें ये अवश्य धोखा देते हैं
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