मुरैना जेल में मना रक्षा बन्धन, बहिनों ने किया तिलक, बांधी राखी और भईया से लिया रक्षा वचन
अतर सिंह डण्डोतिया, तहसील संवाददाता मुरैना
मुरैना 16 अगस्त 08, आज जहॉं भाई बहिन के प्रेम व स्नेह का प्रतीक परम पावन पुण्य पर्व रक्षा बन्धन समूचे भारतवर्ष में जोश और उमंग के साथ मनाया जा रहा है वहीं । जेल में बन्द अपने भाईयों की सूनी कलाई को सजा कर और प्यारे भईया के भाल को रोली चावल के तिलक से सुसज्जित कर बहिने फूलीं नहीं समा रहीं थीं । वहीं जेल का वातावरण भी इस सारे भावनात्मक दृश्य से द्रवित हो उठा था और मौसम ने भी ताल मिलाते हुये मानों सुर मिला कर आसमान की ऑंखों में भी ऑंसू भर दिये । कुछ खुशी के तो कुछ गम के ऑंसू, कभी अनायास ही वातावरण बोझिल सा हो जाता और कभी अचानक ही खिलखिलाहट व हँसी के बीच हर्ष व उमंग के आस के आसमान भी गूंजने लगते ।
भाई बहिनों के बीच इस अटूट व पावन रिश्ते की डोर और आस के आसमान पर टिकी इस अनूठी दृश्यावली को देख इस संवाददाता की ऑंखों से भी बरबस ही ऑंसूओं की धार बह निकली ।
कुछ कई दिन से तो कुछ कई कहीनों से, कुछ कई बरस से मुरैना उपजेल की दीवारों और लोहे के भारी दरवाजों के पीछे कैद बन्दी अपने भविष्य के फैसले के लिये अदालत की चौखट पर ठोकरें खातें अतिशय बूढ़े वृद्ध व जर्जर होकर कृशकाय हैं तो कई अभी किशोरावस्था उलांघ कर जवानी की चौखट पर कदम रखते ही जा रहे हैं, कई लोग तो भरी जवानी सारी की सारी ताउम्र इन सींखचों के पीछे गुजार चुके हैं । आज सबकी ऑंखें नम थीं, वे भी जिनको पाप बोध है, प्रायश्चित से हृदय में हाहाकार है और वे भी जो खुद को पूरी तरह निर्दोष और जबरन फंसाया गया मानते हैं । आज सब अपना अपना गम अपनी अपनी कहानी भूल कर बस एकटक अपनी बहिनों को निहार रहे थे और बहिनों की ऑंखों में उमड़ी ममता, स्नेह व प्यार को मानों ताजिन्दगी सहेज कर रख लेना चाहते हों । कुछ की ऑंखे बार बार जेल के दरवाजे की ओर टकटकी लगायें थीं कि बस अब बहिन आती ही होगी, कुछ के कान खड़े थे और इंतजार कर रहे थे कब पता नहीं उनके नाम की पुकार हो जाये ।
जिसकी बहिन आती थी उसे नाम लेकर पुकारा जाता, और सब छोड़ छाड़ कर बस दौड़ता भागता गिरता पड़ता चला आता । ओर मिलाई स्थल पर दौड़ कर राखी बंधवाने तिलक लगवाने बैठ जाता ।
जिनकी बहिनों को पहुँचने में विलम्ब हो रहा था । बकाया कैदी उसकी बहिन का इन्तजार करते और जैसे ही उसका आना होता सभी एक समवेत स्वर में उसका नाम लेकर हर्ष से प्रफुल्लित हो पुकारने लगते ।
कई बहिनें मिठाई के डिब्बे लेकर आतीं, तो कई केवल राखी कुछ गरीब बहिनें सकुचाती हुयीं सूती धागे (कलावा) मात्र लेकर ही किसी आड़ तले अपनी गरीबी को छिपाने का भरसक प्रयास करतीं नजर आतीं । कई दही बड़ अपने भइर्या के लिये बना कर लायीं तो कई चनों को ही उबाल छौंक कर स्वादिष्ट बना लाईं ।
कई कलाई ऐंसी भी रहीं जिनकी बहिनें नहीं थीं वे केवल दूसरे कैदीयों को उनकी बहिनों से मिलवा कर ही रक्षा बन्धन का पूरा सुख ले रहे थे । लेकिन कई बहिने ऐसी भी थीं जो एक साथ राखीयों के गुच्छे उठा लायीं थीं और जिनकी बहिनें नहीं थीं उन्हें अपना रक्षा सूत्र बांध कर भाई बना रहीं थीं और अपने नये भईया से रक्षा वचन मांग रहीं थीं । वे नये भईया भी फूले नहीं समा रहे थे और अपनी नयी बहिना को ऑंख मूंद कर वचन भर रहे थे ।
जेल का स्टाफ भी आज कुछ सहृदयता बरत रहा था, वे भी इस पावन भाई बहिन के मिलना को देख आनन्द के अतिरेक से डूबे थे । जेल के परम पावन व याद्गार इस रक्षा बन्धन के चित्र वेबसाइट पर प्रसारित किये जा रहे हैं ।
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