रविवार, 19 जुलाई 2009

भौगोलिक संकेत - किसानों तथा हस्तशिल्पकारों के लिए रास्ता

भौगोलिक संकेत - किसानों तथा हस्तशिल्पकारों के लिए रास्ता

 

राजीव जैन, निदेशक (मीडिया एवं संचार), पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्ली

भारत की विशाल जैव-विविधता तथा कृषि जलवायु स्थितियों ने विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में कृषि उत्पादों की अनेक किस्मों तथा स्थानीय संसाधनों एवं कौशल के अनोखेपन के लिए मंच तैयार किया है। भारतीय किसान तथा ग्रामीण शिल्पकारों को वस्त्र, हस्तशिल्प तथा अन्य पारंपरिक उत्पादों जैसे बनारसी साड़ी और मुजपऊफरपुर की लीचियों के उत्पादन में विशेषज्ञता हासिल है । अब चिन्ता का विषय यह है कि इन उत्पादों के उत्पादकों को अन्य क्षेत्रों व दूसरे देशों के मुकाबले उनके अनूठे उत्पादों का वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है । परिणामस्वरूप वास्तविक किसान अपने अनूठे उत्पाद के वाणिज्यिक लाभ से वंचित हो जाता है ।

       उत्पादों के अनूठेपन में और वृध्दि करने का एक प्रभावी रास्ता भौगोलिक संकेत (जीआई) प्राप्त करना है, जो कि एक बौध्दिक संपदा अधिकार है । जीआई किसी विशेष क्षेत्र में उत्पन्न उत्पाद की पहचान करता है । भौगोलिक उत्पत्ति के लिए गुणवत्ता, धारणा, छवि या अन्य लक्षण इस उत्पाद के अनिवार्य गुण होंगे । एक जीआई को उत्पाद के भौगोलिक मूल उद्गम को सूचित करने में सक्षम होना चाहिए,  जैसे प्रत्यक्ष रूप से दार्जिलिंग और अप्रत्यक्ष रूप से बासमती ।

       अन्य बौध्दिक संपदा अधिकारों की अपेक्षा, भौगोलिक संकेत (जीआई) उत्पादों के उत्पादकोंशिल्पकारों द्वारा स्थापित विधिक संगठन की संपदा है । अन्य क्षेत्रों में जो उत्पादक समान वस्तुओं का उत्पादन करते हैं उन्हें जीआई के उपयोग से अलग रखा जाना चाहिए ताकि वे उत्पादक जीआई के तहत संरक्षित उत्पादों की खूबी का अवैध रूप से फायदा न उठा सकें ।

       जीआई उत्पादों के अनूठेपन तथा उनकी गुणवत्ता के प्रति भी आश्वस्त करता है जिसके लिए उपभोक्ता तथा व्यापारी सामान्यतया भुगतान करते हैं । इसलिए जीआई अनूठे उत्पादों के उत्पादन में लगे उत्पादकों तथा शिल्पकारों की आय में वृध्दि कर सकता है ।

       यद्यपि भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 को लागू कर दिया है लेकिन सामान्यत: गरीब किसान तथा शिल्पकार जीआई के लाभों के बारे में नहीं जानते और न ही उत्पादक अपने उत्पादों के लिए जीआई पंजीकरण संख्या ही लेते हैं । अनूठे भौगोलिक उत्पादों के संरक्षण के लिए जीआई सुरक्षा के अभाव में उत्पादक तथा शिल्पकार अन्य क्षेत्रों में उनके अनोखे उत्पादों की छवि का मुक्त रूप से लाभ उठाने से रोकने के लिए कानूनी उपाय करने में अक्षम होते हैं । अधिकतर मामलों में ये लोग जीआई के लिए आवेदन पत्र भरने के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई पूरा करने में अक्षम होते हैं ।

       भारत में जीआई पंजीकरण के लिए उपयुक्त उत्पादों के अधिकतर उत्पादक ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं जो कम शिक्षित और समाज के गरीब तबके से संबंध रखते हैं । उनके पास संसाधनों तथा क्षमताओं की कमी होती है । वे नहीं जानते कि कैसे जीआई पंजीकरण के लिए उत्पाद की भौगोलिक उत्पत्ति के आवश्यक गुणों का दस्तावेजीकरण किया जाए जो कि पंजीकरण के लिए मूलभूत अनिवार्यता है ।

       गरीब किसानों को छोड़ दें तो यह बेहद ही असामान्य बात है कि सक्षम जीआई उत्पादों के उत्पादक वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण तथा संरक्षण) अधिनियम, 1999 से लाभ उठाने में सक्षम होंगे । इसके परिणामस्वरूप हो सकता है कि वे उच्च आय प्राप्त करने के लिए अपने उत्पादों की वाणिज्यिक वृध्दि के अवसर ही गंवा दें । गरीब उत्पादकों तथा शिल्पकारों के समुदाय द्वारा अपने अनूठे उत्पादों के लिए जीआई सुरक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग से जीआई जागरूकता के लिए अनेक उपाय लागू किए हैं ।

       सरकार के हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप उत्पादकों तथा शिल्पकारों ने कुछ उत्पादों जैसे बनारसी साड़ी, उड़ीसा की पिपली एपलीक हथकरघा वस्तुएं तथा लखनऊ की चिकनकारी के लिए जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन पत्र जमा कराए हैं । मुजपऊफरपुर की शाही लीची और भागलपुर सिल्क के कपड़ों के जीआई पंजीकरण के लिए भी कार्य आरंभ कर दिया गया है ।

       जीआई पंजीकरण के लाभों, विधिक पहलुओं तथा उत्पादनों के पंजीकरण तथा ब्राण्ड तैयार करने के लिए जीआई का उपयोग तथा इससे प्राप्त वाणिज्यिक लाभ के बारे में राज्य सरकार तथा अन्य हितधारकों के लिए एक जन चेतना अभियान की तत्काल जरूरत है । इसके लिए सरकारी अधिकारियों, कानूनी विशेषज्ञों तथा उत्पादकों को निकट लाने तथा इनके बीच संपर्क स्थापित करने की सख्त जरूरत है जिसके बिना हम सब नुकसान उठाते हैं ।

       उपर्युक्त चुनौतियों तथा अन्य चुनौतियों से निपटने के लिए उचित रणनीतियां जीआई में मौजूद वाणिज्यिक तथा आर्थिक क्षमता के दोहन में मील का पत्थर साबित हो सकती है । मध्यम तथा दीर्घ अवधि के लिए एक सतर्क एवं योजनाबध्द रणनीति की तत्काल जरूरत है ।  

 

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