शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

टूटने लगा है नरेन्द्र मोदी का तिलिस्म

टूटने लगा है नरेन्द्र मोदी का तिलिस्म

निर्मल रानी email: nirmalrani@gmail.com nirmalrani2000@yahoo.co.in nirmalrani2003@yahoo.com 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-98962-93341

 

       लोकसभा के हाल में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के एक वर्ग द्वारा जिस प्रकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में उछाला गया था, उससे कम से कम इस बात का अंदांजा तो लगाया ही जा सकता है कि भाजपा नरेन्द्र मोदी पर कितना भरोसा करती है। निश्चित रूप से 2002 में गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी भाजपा के एक आक्रामक एवं करिश्माई नेता के रूप में उभरे थे। खांटी हिन्दुत्व की विचारधारा के समर्थक भाजपा नेता, नरेन्द्र मोदी को भाजपा के भविष्य के रूप में देख रहे थे। परन्तु लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा के इस करिश्माई नेता का तिलिस्म अब टूटने लगा है। अत्याधिक आत्मविश्वास से भरे मोदी समर्थक जो कल तक उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री समझने जैसी ंगलतंफहमी का शिकार थे, वही लोग अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि मोदी की गुजरात सरकार का भविष्य अब क्या होगा।

              वास्तव में नरेन्द्र मोदी की कथित लोकप्रियता पर ग्रहण लगना तो उसी समय शुरु हो या था जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के बिहार में चुनाव प्रचार में आने पर अपनी अनिच्छा ंजाहिर की थी। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाईटेड की बिहार में सहयोगी पार्टी होने के कारण भाजपा को मजबूरन नीतीश कुमार की बात माननी पड़ी थी तथा मोदी, नीतीश की इच्छा के विरुद्ध चुनाव प्रचार हेतु बिहार नहीं जा सके। इसका परिणाम भी बिहार के चुनाव परिणामों पर सकारात्मक पड़ा। इसके पश्चात जब कुल चुनाव परिणाम घोषित हुए, तब यह देखने को मिला कि भाजपा के इस ंफायरब्राण्ड नेता ने पूरे देश में जिन लगभग 200 संसदीय सीटों के लिए जनसभाएं की थीं, उनमें से भाजपा केवल 18 सीटों पर ही विजयी हो सकी। पूरे देश में मोदी के प्रचार के ंफायदे की बात ही क्या करनी। स्वयं उनके अपने राज्य गुजरात में भी भाजपा को वैसे नतीजे नहीं मिल सके जिसकी कि पार्टी उम्मीद लगाए बैठी थी। पार्टी में प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी को राज्य की गांधीनगर सीट से पिछली बार की तुलना में कम वोट प्राप्त हुए तथा कुल विजयी मतों की संख्या भी पिछली बार से कांफी कम रही। पूरे गुजरात राज्य में भाजपा के पक्ष में हुए मतदान में लगभग 2 प्रतिशत मतों की गिरावट आई अर्थात् इन लोकसभा चुनावों में यह सांफ हो गया कि भाजपा के जो नेता मोदी से कुछ करिश्मा करने की आस पाले हुए थे, उन्हें मोदी की हंकींकत तथा जनता के मध्य मोदी के प्रति लगाव या दुराव का भली-भांति अंदांजा हो गया। चुनावों के बाद स्वयं मोदी मीडिया से यह कहते दिखाई दिए कि वह तो गुजरात के ही नेता बने रहने में संतुष्ट हैं। मीडिया ने स्वयं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निकलकर प्रचार करने हेतु बाध्य किया था। अर्थात् मोदी बैकंफुट पर जाते दिखाई दे रहे हैं।

              लोकसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता के बजाए जब करारी हार का सामना करना पड़ा तो निश्चित रूप से पार्टी के नेताओं ने पार्टी की दुर्दशा के कारणों तथा उसके निवारण पर स्वाभाविक रूप से चर्चा, चिंतन तथा मंथन शुरु किया। इस मंथन में देखा गया कि महाराष्ट्र में भी पार्टी का प्रदर्शन पहले की तुलना में कम अच्छा था। यहां भी नंजर डाली गई तो नरेन्द्र मोदी को महाराष्ट्र में पार्टी के चुनाव इंचार्ज के रूप में पाया गया। पार्टी ने तत्काल नरेन्द्र मोदी के स्थान पर महाराष्ट्र के ही गोपीनाथ मुंडे को राज्य का प्रभारी बना दिया। इसे भी मोदी के टूटते तिलिस्म का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है।

              पिछले दिनों गुजरात राज्य में ंजहरीली शराब पीने से लगभग 150 लोग काल की गोद में समा गए। पूर्ण श्राबबंदी वाले गुजरात राज्य में पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं परन्तु इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक साथ मरना वास्तव में चिंता का विषय है। इस हादसे ने नरेन्द्र मोदी को परेशानी में डाल दिया है। मीडिया ने इस हादसे के बाद जब गहनता से मामले की पड़ताल की, उससे   जो तथ्य सामने निकलकर आ रहे हैं, वे बड़े चौंकाने वाले हैं। कहा जा रहा है कि पूर्ण शराबबंदी वाले गांधी के इस गृहराज्य में शराब की कोई कमी नहीं है। कोई भी व्यक्ति घर बैठे जब चाहे अपनी मनपसंद ब्राण्ड की शराब मंगवा सकता है। देसी व कच्ची शराब बनाने का भी व्यापक नेटवर्क पूरे राज्य में सक्रिय है। अधिक पैसा कमाने की लालच में ंजहरीले रसायन की मिलावट का काम भी शराब मांफिया द्वारा शुरु किया जा चुका है जिसके परिणामस्वरूप इतना बड़ा हादसा गुजरात में देखना को मिला। कहा जा रहा है कि शराब के इस उत्पादन व पड़ोसी राज्यों से शराब तस्करी जैसे अवैध धंधे में शराब मांफिया की पुलिस तथा सत्तारूढ़ नेताओं से सीधे सांठगांठ है। यदि गुजरात के कांग्रेस नेताओं की बात मानी जाए तो शराब का यह पूरा नाजायंज धंधा भाजपा के लोग धनार्जन के उद्देश्य से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के संरक्षण में उनके इशारे पर ही कर रहे हैं। यह आरोप कितना सही है और कितना ंगलत तथा ंजहरीली शराब प्रकरण के लिए मोदी सरकार व प्रशासन कितना ंजिम्मेदार है, यह भविष्य में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों में ही पता चल सकेगा। परन्तु इतना ंजरूर है कि इस घटना से मोदी की साख को गहरा धक्का लगा है।

              नरेन्द्र मोदी के तिलिस्म को एक और करारा झटका उनके राज्य गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के मुख्य नगर जूनागढ़ में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों से लगा है। यहां 51 सदस्यीय नगर पालिका में कांग्रेस को 26 सीटें प्राप्त हुई जबकि भाजपा को मात्र 21 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इन चुनावों में भाजपा ने कुछ नए प्रयोग भी किए थे। इसके अन्तर्गत कांग्रेस की तंर्ज पर भाजपा ने भी 30 वर्तमान सभासदों के टिकट काटकर उनके स्थान पर 24 नए तथा युवा चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। पार्टी ने इस बार जूनागढ़ में 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी चुनाव लड़ाया था। परन्तु यह सभी उम्मीदवार कांग्रेस के उम्मीदवारों से बुरी तरह पराजित हुए। जूनागढ़ के स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों के विषय में भी विशेषकों का यह मानना है कि यहां भी नरेन्द्र मोदी का अहंकार तथा अत्याधिक आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा। नरेन्द्र मोदी का नाम कुछ लोगों द्वारा भावी प्रधानमंत्री के तौर पर क्या उछाल दिया गया गोया मोदी स्वयं को एक ऐसा ंकद्दावर नेता समझने लगे कि उन्होंने जूनागढ़ नगरपालिका चुनावों में प्रचार हेतु जाने की ंजहमत ही गवारा नहीं की। पार्टी को अत्यधिक आत्मविश्वास था कि नरेन्द्र मोदी के नाम, उनके चित्र तथा उनके मुखौटों मात्र से ही वे जूनागढ़ निकायों का चुनाव जीत लेंगे। परन्तु आंखिरकार यहां भी मोदी का तिलिस्म चकनाचूर होते दिखाई दिया।

              मोदी के इस टूटते व बिखरते तिलिस्म को न तो संघ परिवार बचा पा रहा है, न ही वाईब्रेंट गुजरात। यहां तक कि लोकसभा चुनावों से पूर्व टाटा की नैनो कार जैसी देश की अतिमहत्वपूर्ण परियोजना को गुजरात में स्थापित कराने के बावजूद मोदी को जनता द्वारा कोई सकारात्मक संदेश नहीं दिया जा रहा है। हां यदि मोदी को आसमान पर चढ़ाने वाले अथवा देश का भावी प्रधानमंत्री बताने वाले कुछ लोग हैं तो वे या तो देश के कुछ इक्का-दुक्का उद्योगपति हैं जो या तो ंगलती से उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री बता चुके हैं अथवा किसी भूल या ंगलतंफहमी के चलते या फिर समय व अवसर की विवशता के कारण उन्हें ऐसा कहना पड़ा हो। परन्तु ऐसा भी संभव है कि यह उद्योगपति आज स्वयं अपने दिए गए बयानों पर पछता रहे हों। और या तो भाजपा के ही कुछ ऐसे लोग जो हमेशा ही आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसे न जाने कौन-कौन से सपने देखते रहते हैं, वे मोदी को पार्टी या देश का भविष्य मान रहे हों।

              जहां तक देश की आम जनता व मतदाताओं का प्रश् है तो उसने तो मोदी के प्रति अपने रुंख का इंजहार कर ही दिया है तथा जूनागढ़ जैसे चुनाव परिणामों के माध्यम से करती ही जा रही है। अब देखना यह है कि अपने चिर-परिचित ंफायरब्राण्ड तेवर, अपनी आक्रामक शैली, शब्दबाण छोड़ने की उनक पारंपरिक कला आदि पर वे बरंकरार रहते हैं या फिर समय की नब्ंज को पहचानते हुए वर्तमान केंचुल को उतार फेंकने व नए केंचुल में जा बसने की जुगत भिड़ाते हैं, यह ंगौर करने योग्य होगा। जहां तक वर्तमान समय का प्रश् है तो इस समय तो निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी का तथाकथित करिश्माई तिलिस्म दिन-प्रतिदिन टूटता व बिखरता ही जा रहा है। और यह इबारत केवल जूनागढ़ या गुजरात शराब कांड से ही नहीं बल्कि स्वयं मोदी के चेहरे पर भी लिखी देखी जा सकती है।               निर्मल रानी

 

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