मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

राजनीति माफिया के विरुद्ध कड़े अदालती रुख

राजनीति माफिया के विरुद्ध कड़े अदालती रुख

निर्मल रानी

       उत्तर प्रदेश के लखमीपुर खीरी जिले के सत्र न्यायाधीश जस्टिस आब्दी द्वारा कुछ समय पूर्व इण्डियन ऑयल के एक ईमानदार एवं प्रतिभाशाली इंजीनियर मंजुनाथन की हत्या के बदले में जब बाहुबली हत्यारे दोषियों को संजा-ए-मौत सुनाई गई थी, उसी समय जन-साधारण को यह एहसास होने लगा था कि सम्भवत: अदालत अब धन बल की परवाह किए बिना न्याय का साथ देने का पूरा मन बना चुकी है। परन्तु इन्हीं बाहुबलियों में राजनीति से सीधे तौर पर जुड़े मांफिया सरगनाओं का भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शासन प्रशासन, कानून व्यवस्था तथा अदालत सभी को धत्ता बताते हुए समूची शासन व्यवस्था को ही अपनी उंगलियों पर नचाने के प्रयास में लगा है। ऐसे लोगों ने बाकायदा सफेद कपड़े धारण कर लिए हैं। कैमरे के समक्ष हाथ जोड़े हुए विनम्र स्वभाव के दिखाई देने वाले भारत में ऐसे सैकड़ों ढोंगी नेता हैं, जिन्हें पुलिस व कानून का न तो कोई भय है, न इसकी परवाह। इनमें अनेक लोग तो ऐसे हैं जो या तो वर्तमान सांसद अथवा विधायक हैं या पूर्व विधायक अथवा पूर्व सांसद हैं। राजनीति में ऐसे लोगों का उनके अपने क्षेत्रों में केवल दंखल ही नहीं है बल्कि ऐसे लोग अपने क्षेत्र की राजनीति पर पूरी तरह से हावी भी हैं।

             जाहिर है ऐसे दहशतपूर्ण वातावरण में एक निष्पक्ष सोच रखने वाली जनता इसी निषकर्ष पर पहुंचती है कि सम्भवत: महात्मा गांधी व भगत सिंह की अपार कुर्बानियों के परिणामस्वरूप स्वाधीन हुआ भारतवर्ष एक बार फिर राजनीति मांफिया के चंगुल में उलझकर रह गया है। परन्तु पिछले कुछ समय से देश के जाने-माने राजनीति मांफियाओं को भारतीय अदालतों द्वारा जिस प्रकार दण्डित किए जाने का सिलसिला शुरु हुआ है, उससे आम जनता को अब यह यह महसूस होने लगा है कि वास्तव में अदालत की नंजर में सभी अपराधी समान हैसियत रखते हैं। इन तांजातरीन अदालती फैसलों ने आम जनता की उस सोच पर भी विराम लगा दिया है जोकि यह सोचती रहती थी कि कहीं अदालती फैसले अपराधी की ऊंची हैसियत, उसकी ऊंची पहुंच व उसके बाहुबल को मद्देनंजर रखकर तो नहीं दिए जाते?

              उदाहरण के तौर पर गत् दिनों गोपालगंज बिहार के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रामकृष्ण राय ने ऐसा ही एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।  5 दिसम्बर 1994 को गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की एक उग्र भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। बिहार के पूर्व सांसद आनन्द मोहन, विधायक विजय कुमार शुक्ला, आनन्द मोहन की पत्नी लवली आनन्द सहित अन्य कई लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 307, 147 तथा 427 के आरोप में मुंकद्दमा दर्ज किया गया था। 13 वर्ष पूर्व शुरु हुए इस मुंकद्दमे में फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश रामकृष्ण राय ने बाहुबली एवं पूर्व सांसद आनन्द मोहन को संजा-ए-मौत, उसकी पत्नी लवली आनन्द को आजीवन कारावास, विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, अखलाक अहमद पूर्व विधायक तथा एक और बाहुबली नेता अरुण कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जिन्हें सजा सुनाई गई है उनके रुतबे व दबंगई को देखते हुए यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि अदालत इनके विरुद्ध ऐसी सजा सुनाए जाने का साहस कर सकेगी। परन्तु न्यायाधीश रामकृष्ण राय के फैसले ने फिलहाल तो यह साबित कर ही दिया कि कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं है अथवा बाअसर या बेअसर नहीं है। कानून की नजर में सभी बराबर हैं।

              इसी प्रकार कुछ समय पूर्व बिहार में ही एक अन्य बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को भी संजा सुनाई गई थी। इसी वर्ष 30 अगस्त को दिए गए एक अदालती फैसले में शहाबुद्दीन  को 10 वर्ष की कैद की संजा सुनाई गई है। इस बाहुबली सांसद पर आरोप था कि इसने 3 मई 1996 को सीवान के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक एस के सिंगल पर जानलेवा हमला किया था। इसी प्रकार बिहार के ही एक और सफेदपोश बाहुबली पप्पु यादव भी इन दिनों जेल की सलाखों के पीछे है। इन सभी बाहुबली नेताओं पर दुर्भाग्यवश केवल यही आरोप नहीं है जिनके आधार पर वे इस समय जेल की सलाखों के पीछे हैं। इन बाहुबलियों पर तो इन आरोपों के अतिरिक्त और भी कई आपराधिक मामले विचाराधीन हैं, जिनपर फैसला आना अभी बाकी है।

              बावजूद इसके कि उक्त बाहुबलियों को निचली अदालतों के द्वारा फैसला सुनाए जाने से आम जनता में अदालत के प्रति विश्वास व सम्मान में वृद्धि हुई है। परन्तु इस विषय को लेकर भी आम जनमानस में गहन चिन्ता व्याप्त है कि क्या निचली अदालतों द्वारा इन बाहुबलियों के विरुद्ध दिए गए फैसलों को उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय भी उसी प्रकार बहाल रख सकेगा? अथवा उच्च न्यायालय के निर्णय निचली अदालतों के फैसलों पर पानी फेर देंगे? अब शिबु सोरेन के मामले में ही देखा जाए तो आम जनता दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले से आश्चर्यचकित है जिसके तहत शिबु सोरेन को सादर बरी कर दिया गया है। 1994 मे अपने ही सचिव शशिनाथ झा की हत्या के आरोप में शिबु सोरेन को आजीवन कारावास की संजा सुनाई गई थी। गत् वर्ष 28 नवम्बर से वे जेल में आजीवन कारावास की संजा काट रहे थे। इस बीच निचली अदालत के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में शिबु सोरेन द्वारा चुनौती दी गई। आंखिरकार दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोरेन को बरी कर दिया तथा शिबु सोरेन उर्फ गुरुजी 9 महीने तक जेल में रहने के बाद रिहा कर दिए गए।

             भारतवर्ष में ऐसे सैकड़ों मुकद्दमे विचाराधीन हैं अथवा अपील में हैं जिनमें कि संफेदपोश बाहुबलियों पर कई-कई हत्याओं, अपहरण, लूट, डकैती, फिरौती वसूलना, दंगा फसाद बलवा करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कुछ मुंकद्दमों पर तो निचली अदालतों के फैसले आ चुके हैं, कुछ पर आने हैं, कई मामले उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में सूचीबद्ध हैं तथा अपनी सुनवाई की प्रतीक्षा में हैं। भले ही किसी बाहुबली सफेदपोश को सजा सुनाए जाने से उसके मुट्ठी भर समर्थक कुछ समय के लिए विचलित क्यों न हो जाते हों परन्तु आखिरकार जल्दी ही उन्हें यह ज्ञान भी हो जाता है कि जिस अपराधिक प्रवृत्ति के नेता के प्रति वे आस्थावान थे दरअसल वही उनकी गलती थी। वे समर्थक यह भी शीघ्र ही समझ जाते हैं कि उनकी ही गलतियों ने अमुक बाहुबली को एक शक्तिशाली नेता बना डाला। इस प्रकार के आंशिक जनसमर्थन से ही ऐसे बाहुबली एक शक्तिशाली नेता के रूप में स्वयं को आसानी से स्थापित कर लेते हैं।

              बहरहाल भले ही शिबु सोरेन उच्च न्यायालय से बरी क्यों न हो गए हों परन्तु जनता यह कैसे भूल सकती है कि उनके सचिव शशिनाथ झा की हत्या भी हुई थी। उच्च न्यायालय ने भले ही सोरेन को बरी क्यों न कर दिया हो परन्तु आम जनता उन्हें अपनी आत्मा की अदालत से बरी नहीं कर पा रही है। अत: यदि भारतीय अदालतें चाहे वे छोटी मुन्सिंफ अदालतें हों अथवा देश का सर्वोच्च न्यायालय, इन सभी अदालतों के मध्य इस बात को लेकर पूरी सहमति व तालमेल होना चाहिए कि बाहुबलियों के विरुद्ध सुनाए जाने वाले फैसलों पर किस प्रकार की नीति अपनाई जानी चाहिए। उच्च अदालतों को खासतौर पर यह महसूस करना चाहिए कि निचली अदालत द्वारा सजा पाया हुआ व्यक्ति यदि ऊपरी अदालत से राहत पा गया तो वही बाहुबली बरी होने के पश्चात न सिर्फ निचली अदालत के विरुद्ध आक्रामक रुख अपना सकता है, उसके विरुद्ध साजिश रच सकता है बल्कि ऊंची अदालतों के बाहुबलियों को राहत पहुंचाने वाले फैसले जनता के मध्य भी अदालत के प्रति संदेह उत्पन्न करते हैं। अत: जरूरी है कि अदालतें उन सफेदपोश बाहुबली नेताओं के विरुद्ध कड़ा रुख अख्तियार करें जोकि देश की शांति तथा विकास के लिए बाधक सिद्ध हो रहे हैं।

निर्मल रानी 163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-98962-93341  

 

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