मंगलवार, 23 अक्टूबर 2007

अम्‍बाह पोरसा काण्‍ड के शहीदों को असामाजिक तत्‍व कहना बन्‍द अब कहा सामाजिक तत्‍व

अम्‍बाह पोरसा काण्‍ड - जांच आयोग प्रतिवेदन के निष्कर्षो पर विचार के लिये मंत्रिपरिषद समिति का गठन

अम्‍बाह पोरसा काण्‍ड के शहीदों को असामाजिक तत्‍व कहना बन्‍द अब कहा सामाजिक तत्‍व

राज्य शासन ने पोरसा जिला मुरैना में पुलिस एवं सामाजिक तत्वों के बीच हुई मुठभेड़ की घटना के संबंध में जांच के लिये गठित जांच आयोग के प्रतिवेदन के निष्कर्षो, सुझावों और अनुशंसओं पर विचार के लिये मंत्रिपरिषद समिति का गठन किया है।

इस समिति के अध्यक्ष गृह एवं परिवहन मंत्री श्री हिम्मत कोठारी है। इसके अलावा संसदीय कार्य और नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा तथा अनूप मिश्रा इस समिति के सदस्य हैं। अपर मुख्य सचिव गृह विभाग इस समिति के संयोजक होंगे। यह समिति अपना प्रतिवेदन शीघ्र प्रस्तुत करेगी।

 

सोमवार, 22 अक्टूबर 2007

क्षत्रिय राजपूत समाज की वेबसाइट शुरू हुयी

क्षत्रिय राजपूत समाज की वेबसाइट शुरू हुयी

मुरैना 23 अक्‍टूबर 2007 । दशहरे के अवसर पर भारत के केन्‍द्र स्‍थल चम्‍बल घाटी के मुरेना में भारत के क्षत्रिय राजपूत समाज की वेबसाइट का आधिकारिक शुभारम्‍भ कर दिया गया ।

इस वेबसाइट के लिये संदर्भ सामग्री कई पूर्व प्रकाशित ऐतिहासिक पुस्‍तकों, इतिहासकारों द्वारा लिखित रचित इतिहास पुस्‍तकों, सन्‍दर्भ ग्रन्‍थों के अलावा इण्‍टरनेट पर उपलब्‍ध सामग्री, के साथ शोध व अनुसंधानों की सामग्री और विशिष्‍ट रूप से क्षत्रियों की वंशावली तथा अन्‍य प्रमाणिक व राजपूत घरानों में सर्वमान्‍य प्रतिपादित व स्‍वीकृत सामग्री को शामिल किया गया है ।

सामग्री संकलन और शोध में सहायक कई क्षत्रिय राजपूत घरानों के लोग रहे जिसमें श्री दिग्विजय सिंह ने ई मेल द्वारा, श्री हरी सिंह सिकरवार एडवोकेट (पूर्व जिलाध्‍यक्ष जिला अभिभाषक संघ मुरैना), डॉ. शकर सिंह तोमर प्रतिष्ठित साहित्‍यकार व सेवानिवृत प्राध्‍यापक शास. स्‍नातकोत्‍तर महा विद्यालय मुरैना, प्रो. आर.एस. तोमर सेवानिवृत प्राचार्य शास. विधि महाविद्यालय मुरैना, श्री राकेश सिंह धाकरे वरिष्‍ठ कॉंग्रेस नेता ग्‍वालियर, स्‍व. राजा रतन सिंह परमार की व्‍यक्तिगत लाइब्रेरी, रविन्‍द्र सिंह सिकरवार सम्‍पादक क्षत्रिय टुडे, अनिल तोमर दैनिक भास्‍कर मुरैना ब्‍यूरो, यदुनाथ सिंह तोमर, केशव सिंह सिकरवार, स्‍व. वृन्‍दावन सिंह भदौरिया की व्‍यक्तिगत लायब्रेरी,  वंशावली लेखन में संलग्‍न जगाओं द्वारा उपलब्‍ध कराई गयी है । वेबसाइट अपने मूल स्‍वरूप में दीपावली पर उपलब्‍ध हो जायेगी ।

क्षत्रिय राजपूत समाज की बृहद वेबसाइट का शुभारम्‍भ दशहरे पर 21 अक्‍टूबर को ग्‍वालियर टाइम्‍स वेबसाइट समूह द्वारा किया गया है । उल्‍लेखनीय है कि इण्‍टरनेट पर क्षत्रिय राजपूत समाज के बारे में काफी भ्रामक, असत्‍य व त्रुटिपूर्ण जानकारीयां उपलब्‍ध हैं, जिससे न केवल अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भ्रान्तियां उत्‍पन्‍न हो रहीं हैं , बल्कि क्षत्रियों की ऐतिहासिक जानकारीयां भी मनमाने तरीके से तोड़ मरोड़ कर राजपूतों के इतिहास को विकृत कर दिया गया है ।

राजपूत क्षत्रियों के बारे में प्रमाणिक व सत्‍य इतिहास व तथ्‍यों के विश्‍वव्‍यापी प्रसारण व प्रकाशन का बृहद कार्य ग्‍वालियर टाइम्‍स वेबसाइट समूह द्वारा प्रारंभ किया जा रहा है ।

इस वेबसाइट में क्षत्रियों व राजपूत राजघरानों व ठिकानेदारों, जागीरदारों, जमीन्‍दारों व प्रमुख क्षत्रिय राजपूत अग्रणी व्‍यक्तित्‍वों की जानकारी प्रकाशित होगी बल्कि राजपूत क्षत्रिय वंशावलियों को भी प्रकाशित किया जायेगा ।

अभी तक इस वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये ग्‍वालियर चम्‍बल सम्‍भाग के लगभग साढ़े तीन हजार क्षत्रियों की जानकारी प्राप्‍त हो चुकी है । वेबसाइट पर ऑन लाइन फार्म भी उपलब्‍ध रहेगा जिसमें क्षत्रिय राजपूत अपना ब्‍यौरा अपने घर से ही भर कर डाल सकेगें । इसमें क्षत्रिय राजपूत नौजवानों के लिये विवाह मंच, रोजगार मार्गदर्शन, नियुक्ति सूचनायें, और किसानों व महिलाओं के लिये भी उपयोगी जानकारीयां संकलित रहेंगीं ।

वेबसाइट का निर्माण व डिजायनिंग मशहूर वेब विशेषज्ञ नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' द्वारा किया जा रहा है, उनके द्वारा डिजायनिंग व वेब मैण्‍टीनेन्‍स सुविधा क्षत्रिय राजपूत समाज के लिये पूर्णत: निशुल्‍क दी जायेगी, ग्‍वालियर टाइम्‍स वेब साइट समूह द्वारा इस वेबसाइट को निशुल्‍क वेब स्‍पेस और सबडोमेन दिया जा रहा है, क्षत्रियों की प्रसिद्ध पत्रिका ''क्षत्रिय टुडे'' द्वारा निशुन्‍क डाटाबेस और सामग्री प्रदाय की जा रही है, प्रसिद्ध राजपूत पत्रिका आगरा से प्रकाशित ''चेतक'' और अन्‍य राजपुत्र में प्रकाशित सामग्रीयां भी इस वेबसाइट पर उपलब्‍ध होंगीं । क्षत्रियों के गौरव और प्रतिष्‍ठाओं को भी वेबसाइट पर प्रमुखता से प्रकाशित किया जायेगा ।

वेबसाइट को चन्‍द्रवंश के महराजा यदुकुल श्रेष्‍ठ भगवान श्री कृष्‍ण, भरत, दुष्‍यंन्‍त, अनंगपाल सिंह तोमर, मान सिंह तोमर, और अन्‍य तोमर राजाओं की स्‍मृति में समर्पित किया जा रहा है । यह वेबसाइट पर http://www.rajput.gwaliortimes.com उपलब्‍ध है ।

 

ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन भी अब ग्‍वालियर टाइम्‍स की सदस्‍य मित्र

ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन भी अब ग्‍वालियर टाइम्‍स की सदस्‍य मित्र

चम्‍बल की आवाज के जरिये जुड़ीं ग्‍वालियर टाइम्‍स परिवार से

मुरैना 23 अक्‍टूबर 2007 । मशहूर फिल्‍म अभिनेत्री एवं सुपर स्‍टार अमिताभ बच्‍चन की बहू ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन भी अब ग्‍वालियर टाइम्‍स डॉट कॉम की सदस्‍य मित्र हो गयीं हैं । श्रीमती ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन ने ग्‍वालियर टाइम्‍स की प्रसिद्ध वेब प्रकाशन एम.एस.एन. लाइव स्‍पेस पर प्रकाशित होने वाली लाइव स्‍पेस ''चम्‍बल की आवाज'' के जरिये, अपना सदस्‍य मित्रता का संदेश ग्‍वालियर टाइम्‍स वेब साइट समूह के मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी श्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' को व्‍यक्तिगत तौर पर 19 अक्‍टूबर को भेजा था, जिसे श्री तोमर ने आत्‍मीयता से स्‍वीकार कर 23 अक्‍टूबर को ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन को ग्‍वालियर चम्‍बल के सदस्‍य मित्र के रूप में स्‍वीकार और शामिल कर लिया । साथ ही श्री तोमर ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन के व्‍यक्तिगत मित्र भी बन गये हैं ।

उल्‍लेखनीय हे कि श्री अमिताभ बच्‍चन और उनके बेटे अभिषेक व बहू ऐश्‍वर्या का ग्‍वालियर चम्‍बल में जबर्दस्‍त आकर्षण व क्रेज है , ग्‍वालियर चम्‍बल वासीयों को ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन के ग्‍वालियर टाइम्‍स के जरिये ग्‍वालियर चम्‍बल से व्‍यक्तिगत मित्रता का रिश्‍ता बनाने पर बेहद गौरव और प्रसन्‍नता हुयी है । चम्‍बलवासीयों ने ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन के लिये उनके भावी सुखमय व मंगलमय जीवन के लिये ईश्‍वर से कामना की है ।

ऐश्‍वर्या राय का व्‍यक्तिगत वेब स्‍पेस का प्रकाशन स्‍थल का पता -   http://aishwaryaraibachchan.spaces.live.com/   है । जहॉं लॉग करके ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन का वेब प्रकाशन पढ़ा जा सकता है । इसे पूर्व कई अन्‍य फिल्‍म अभिनेता / हाई प्रोफाइल राजनेता/ मंत्रीगण एवं हाई प्रोफाइल अधिकारी ग्‍वालियर टाइम्‍स से पहले से ही जुड़े हुये हैं ।

 

रविवार, 21 अक्टूबर 2007

बराड़ा में स्थापित होगा देश के सबसे ऊंचे रावण दहन का कीर्तिमान

बराड़ा में स्थापित होगा देश के सबसे ऊंचे रावण दहन का कीर्तिमान

रामलीला क्लब, बराड़ा, जिला अम्बाला

संस्थापक अध्यक्ष- तेजिन्द्र सिंह चौहान

फोन- 09416552200

 

       अम्बाला, (20अक्तूबर) अम्बाला जिले के बराड़ा कस्बे में इस वर्ष आयोजित किया जाने वाला दशहरा अपने आप में कई मायने में अनूठा होगा। रामलीला क्लब बराड़ा के संस्थापक अध्यक्ष तेजिन्द्र सिंह चौहान के निर्देशन तथा संरक्षण में आयोजित किए जाने वाले रामलीला के इस दस दिवसीय आयोजन में इस वर्ष उच्च स्तरीय मंचन के दृश्य तो देखने को मिले ही हैं, इसके अतिरिक्त रामलीला की स्टेज की साज-साा भी इतनी आकर्षक, भव्य तथा सुन्दर रही कि हरियाणा तथा आसपास के राज्यों में इसका मुंकाबला नहीं किया जा सकता था।

             21 अक्तूबर को विजयदशमी के दिन बराड़ा में फूंके जाने वाले विशालकाय रावण के विषय में तेजिन्द्र सिंह चौहान का कहना है कि जैसे-जैसे देश में बुराई, आतंकवाद व साम्प्रदायिकता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे हम प्रत्येक वर्ष बुराई के प्रतीक रावण की ऊंचाई को भी बढ़ा देते हैं। गत् वर्ष बराड़ा में चौहान के निर्देशन में तैयार किया गया रावण देश में दूसरे स्थान का सबसे ऊंचा रावण था। गत् वर्ष इसकी ऊंचाई लगभग 95 फुट थी। परन्तु बीते वर्ष में पानीपत (समझौता एक्सप्रेस), हैदराबाद तथा अजमेर में हुए बम विस्फोटों से फिर यह जाहिर हुआ कि आतंकवाद अभी भी निरंतर बढ़ता ही जा रहा है अत: इस वर्ष रावण अर्थात् बुराई के प्रतीक की ऊंचाई और भी बढ़ा दी गई है। चौहान का दावा है कि इस वर्ष बराड़ा में तैयार होने वाला रावण देश का सबसे ऊंचा रावण होगा तथा देश में रावण की ऊंचाई के लिहांज से एक राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करेगा।

             बराड़ा का यह रावण जहां लगभग 110 फुट से अधिक की ऊंचाई से राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाने का प्रयास करेगा, वहीं साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापित करने में भी इस रावण की कम भूमिका नहीं है। तेजिन्द्र चौहान के निमंत्रण पर इस बार पहली बार आगरा से बारह मुस्लिम कारिगरों का एक जत्था रावण बनाने हेतु बराड़ा आया था। मोहम्मद उस्मान के नेतृत्व में आए मुस्लिम कारिगरों का कहना है कि बराड़ा में आकर उन्हें कला के प्रति जो प्रेम तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का जो दृश्य देखने को मिला, उन्होंने पहले कभी कहीं नहीं देखा। यह सभी मुस्लिम कारिगर तेजिन्द्र चौहान के समर्पण व कला प्रेम के भी ंकायल हैं तथा उनका कहना है कि चौहान के इसी प्रेम के चलते हम सभी बराड़ा आ सके। जहां बराड़ा में देश का सबसे ऊंचा रावण बनाया गया है, वहीं रावण के साथ मेघनाथ व कुम्भकर्ण की भी विशालकाय आकृतियां इन्हीं मुस्लिम कारिगरों के हाथों तैयार की गई हैं।

              बराड़ा का यह रावण मात्र ही इस वर्ष अकेले राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित नहीं करेगा बल्कि इसके अतिरिक्त इस अवसर पर आतिशबांजी के भी वह जबरदस्त नंजारे इस अवसर पर देखे जा सकेंगे जो पूरे देश में रामलीला के समापन पर नहीं देखे गए।

             तेजिन्द्र सिंह चौहान का मानना है कि दशहरा सहित सभी ऐसे त्यौहार जोकि बुराईयों पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप मनाए जाते हों अथवा वे जो साम्प्रदायिक एकता व सद्भाव की मिसाल पेश करते हों, उन समस्त त्यौहारों को चाहे वे किसी भी धर्म एवं सम्प्रदाय के क्यों न हों, सामाजिक त्यौहार के रूप में मनाया जाना चाहिए। ऐसा करने से हर धर्मों के लोग हर धर्मों के त्यौहारों में आसानी से शरीक हो सकेंगे तथा देश में साम्प्रदायिक सद्भाव मंजबूत होगा ।

                                                          रामलीला क्लब

 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2007

भारतीय त्यौहार धार्मिक कम सामाजिक अधिक

भारतीय त्यौहार धार्मिक कम सामाजिक अधिक

तनवीर जाफरी (सदस्‍य, हरियाणा साहित्‍य अकादमी)

       भारत में इन दिनों चारों ओर त्यौहारों की धूम नंजर आ रही है। भारत में रहने वाले सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोग अपने-अपने धर्मों के पारम्परिक त्यौहारों को मनाने में व्यस्त हैं। भारत दुनिया का एक ऐसा निराला देश है जहां सबसे अधिक संख्या में पर्व मनाए जाते हैं। इसका भी मुख्य कारण यही है कि यहां अनेक धर्मों व विश्वासों के लोग सदियों से सामूहिक रूप से रहते चले आ रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण से परिपूर्ण इस देश में अनेकों स्थान व अनेकों त्यौहार ऐसे हैं जोकि सभी सम्प्रदायों के लोगों द्वारा या तो सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं अथवा उसके आयोजन में सभी समुदायों के लोगों का अहम सहयोग व योगदान होता है। दशहरा, ईद, दीवाली, गणेश उत्सव, डाण्डिया, दुर्गापूजा, होली तथा मोहर्रम आदि प्रमुख त्यौहारों को साम्प्रदायिक सद्भाव पेश करने वाली ऐसी ही श्रेणियों में रखा जा सकता है।

              इन दिनों भारत में दशहरा पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। पूरे देश में लगभग प्रत्येक नगरों व कस्बों में अनेक स्थानों पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है तथा 21 अक्तूबर को विजय दशमी के दिन पूरे भारत में विशालकाय रावण एवं कुम्भकरण व मेघनाद जैसे आसुरी शक्तियों के प्रतीक, विशालकाय पुतले जलाए जाएंगे। दशहरा पर्व तथा इसके अन्तिम दिन रावण दहन का आयोजन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में किया जाता है। यह त्यौहार जहां अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में हमारे समक्ष भगवान श्री राम के उच्च आदर्शवादी जीवन चरित्र को प्रस्तुत करता है तथा दुराचारी, अत्याचारी व अहंकारी शक्तियों के समक्ष घुटने न टेकने की प्रेरणा देता है, वहीं यही त्यौहार देश के वर्तमान संदर्भ में भी साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश करता है। उदाहरण के तौर पर भारत में अनेक स्थानों पर आयोजित होने वाली रामलीला में मुस्लिम व सिख धर्म के लोग रामलीला के मंचन में किसी न किसी पात्र के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं। ऐसा करते समय किसी प्रकार का रूढ़ीवादी पूर्वाग्रह उनके आड़े नहीं आता। इस वर्ष तो दशहरे के शुरुआती दिनों में रमंजान का पवित्र महीना समाप्त हो रहा था, उसके बावजूद दशहरा में भाग लेने वाले मुस्लिम लोगों की संख्या, उत्साह तथा उनकी सहभागिता में कोई कमी नहीं आई।

              भारत में तैयार होने वाले रावण के अधिकांश पुतले अथवा रामलीला से जुड़े सांजो सामान व स्टेज आदि को सजाने व उसके रख रखाव में भी मुस्लिम समुदाय का बड़ा योगदान रहता है। भारत के हरियाणा राज्य के बराड़ा कस्बे में इस वर्ष रावण का एक ऐसा पुतला तैयार किया जा रहा है जो साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम करने के साथ-साथ एक राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करने की तैयारी में भी जुटा हुआ है। रामलीला क्लब बराड़ा के संस्थापक अध्यक्ष तेजिन्द्र सिंह चौहान के संरक्षण व निर्देशन में तैयार होने वाला रावण का यह विशालकाय पुतला इस वर्ष देश का सबसे ऊंचा पुतला होने का दावा पेश करेगा। तेजिन्द्र सिंह चौहान ने 110 फीट से अधिक ऊंचाई वाले रावण के इस पुतले की तैयारी हेतु 12 मुस्लिम कारीगरों का एक दल विशेष रूप से ताज नगरी, आगरा से आमंत्रित किया है। कारीगरों के इस दल ने एक माह से अधिक समय तक बराड़ा में रहकर तथा दिन रात मेहनत कर इस विशाल पुतले को तैयार किया है। मोहम्मद उस्मान के नेतृत्व में मुस्लिम कारीगरों ने रमंजान में रोंजा (व्रत) रखकर यह सभी पुतले तैयार किए हैं। दरअसल त्यौहारों को इसी प्रकार से मिलजुल कर मनाने से तथा परस्पर सहयोग से भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव मंजबूत होता है। अत: इन त्यौहारों को धार्मिक त्यौहारों का नाम देना ही गलत है। ऐसे पर्वों को धार्मिक पर्व के बजाए सामाजिक पर्व का नाम दिया जाना चाहिए।

              भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला डाण्डिया पर्व भी एक ऐसा पर्व है जिसमें सभी समुदायों के लोग सामूहिक रूप से शरीक होते हैं तथा विशेष पारम्परिक डाण्डिया नृत्य में हिस्सा लेते हैं। इसी प्रकार भारत में विशेषकर महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाने वाला गणेश पूजा महोत्सव भी एक ऐसा आयोजन है जिसमें सभी समुदायों के लोग भाग लेते देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके कि गणेश महोत्सव हिन्दू धर्म से जुड़ा एक पर्व है तथा भगवान गणेश की पूजा केवल हिन्दू धर्म में ही की जाती है। फिर भी भारत में अनेक स्थानों पर मुस्लिम परिवारों द्वारा गणेश प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करने से लेकर पूजा अर्चना करने तक उन्हें देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि गणेश पूजा के अन्तिम दिन अर्थात् गणेश प्रतिमा के विसर्जन के समय लाखों गणेश भक्तों के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ इस कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं। इस वर्ष तो प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी मुम्बई स्थित उनके घर में गणेश प्रतिमा स्थापित करते तथा उनके द्वारा प्रतिमा का विसर्जन करते भी दिखाया गया। सलमान खान के घर गणेश महोत्सव के इस आयोजन में उन्हें अपने पूरे परिवार का सहयोग प्राप्त था।

             इसी प्रकार रंग बिरंगी संस्कृति के इस महान देश भारत में हिन्दुओं को पवित्र रमंजान के दिनों में रोंजा रखते व दरगाहों व मस्जिदों में बिना किसी धार्मिक भेदभाव के श्रद्धा से आते जाते हुए देखा जा सकता है। मोहर्रम, हालांकि खुशी का नहीं बल्कि गम मनाने का वह त्यौहार है जिसमें मुस्लिम समुदाय हंजरत मोहम्मद के नवासे हंजरत हुसैन व उनके परिजनों की करबला (इरांक) में लगभग 1400 वर्ष पूर्व हुई शहादत को याद करता है। कितने आश्चर्य की बात है कि सैकड़ों वर्षों से भारत में हिन्दू समुदाय के न सिंर्फ आम लोगों द्वारा बल्कि कई हिन्दू राजा महाराजाओं द्वारा भी मोहर्रम के आयोजन कराए गए हैं। हिन्दू समुदाय अब भी भारत में अनेक स्थनों पर हंजरत हुसैन की याद में तांजिये रखता है तथा हंजरत हुसैन का गम मनाता है। इतना ही नहीं बल्कि कई गैर मुस्लिम कवि करबला की घटना से प्रभावित होकर मरसिए, नौहे व सोंज आदि लिखते व पढ़ते हैं।

              इसी प्रकार ईद, दीपावली तथा होली जैसे त्यौहारों में भी सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोग मिलजुल कर खुशी का इंजहार करते हैं तथा एक दूसरे को मिठाईयां देते व खुशियां मनाते हैं। धार्मिक समरसता के इस विशाल देश में त्यौहारों के अवसर पर सरकारी कार्यालयों में होने वाले अवकाश भी धर्म के आधार पर नहीं होते बल्कि सभी समुदायों के लोग समस्त सम्प्रदायों के त्यौहारों के अवसर पर होने वाले अवकाश का भी सामूहिक रूप से आनन्द लेते हैं। यदि व्यवसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भी यह सभी भारतीय त्यौहार एक दूसरे के समुदाय के लोगों को निकट लाने में तथा उनकी रोंजी-रोटी चलाने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

             उक्त परिस्थितियां यह समझ पाने के लिए पर्याप्त हैं कि वास्तव में अधिकांश भारतीय त्यौहारों को यदि धार्मिक त्यौहार कहने के बजाए इन्हें सामाजिक पर्व की संज्ञा दी जाए तो अधिक उचित होगा। भारत में बावजूद इसके कि कई सम्प्रदायों में रूढ़ीवादी एवं कट्टरपंथी सोच के लोग एक दूसरे के बीच नंफरत फैलाने के अपने अपवित्र मंसूबों में लगे रहते हैं, फिर भी एक दूसरे सम्प्रदायों से जुड़े पर्वों में समस्त सम्प्रदायों के लोगों के शरीक होने की लगातार बढ़ती हुई प्रवृत्ति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतवर्ष में साम्प्रदायिक एकता व साम्प्रदायिक सद्भाव की जड़ें दिन-प्रतिदिन और गहरी होती जा रही हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव के ऐसे उदाहरण न केवल देश को भीतरी तौर पर मंजबूत करने में सहायक सिद्ध होंगे बल्कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की साख और मंजबूत होगी तथा दुनिया में भारत को एक ऐसे मंजबूत राष्ट्र के रूप में देखा जाएगा जोकि किसी एक धर्म व सम्प्रदाय का नहीं बल्कि केवल भारतवासियों का भारत है।                                                        

तनवीर जांफरी 22402, नाहन हाऊस अम्बाला शहर, हरियाणा फोन : 0171-2535628 मो: 098962-19228

 

राजनीति माफिया के विरुद्ध कड़े अदालती रुख

राजनीति माफिया के विरुद्ध कड़े अदालती रुख

निर्मल रानी

       उत्तर प्रदेश के लखमीपुर खीरी जिले के सत्र न्यायाधीश जस्टिस आब्दी द्वारा कुछ समय पूर्व इण्डियन ऑयल के एक ईमानदार एवं प्रतिभाशाली इंजीनियर मंजुनाथन की हत्या के बदले में जब बाहुबली हत्यारे दोषियों को संजा-ए-मौत सुनाई गई थी, उसी समय जन-साधारण को यह एहसास होने लगा था कि सम्भवत: अदालत अब धन बल की परवाह किए बिना न्याय का साथ देने का पूरा मन बना चुकी है। परन्तु इन्हीं बाहुबलियों में राजनीति से सीधे तौर पर जुड़े मांफिया सरगनाओं का भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शासन प्रशासन, कानून व्यवस्था तथा अदालत सभी को धत्ता बताते हुए समूची शासन व्यवस्था को ही अपनी उंगलियों पर नचाने के प्रयास में लगा है। ऐसे लोगों ने बाकायदा सफेद कपड़े धारण कर लिए हैं। कैमरे के समक्ष हाथ जोड़े हुए विनम्र स्वभाव के दिखाई देने वाले भारत में ऐसे सैकड़ों ढोंगी नेता हैं, जिन्हें पुलिस व कानून का न तो कोई भय है, न इसकी परवाह। इनमें अनेक लोग तो ऐसे हैं जो या तो वर्तमान सांसद अथवा विधायक हैं या पूर्व विधायक अथवा पूर्व सांसद हैं। राजनीति में ऐसे लोगों का उनके अपने क्षेत्रों में केवल दंखल ही नहीं है बल्कि ऐसे लोग अपने क्षेत्र की राजनीति पर पूरी तरह से हावी भी हैं।

             जाहिर है ऐसे दहशतपूर्ण वातावरण में एक निष्पक्ष सोच रखने वाली जनता इसी निषकर्ष पर पहुंचती है कि सम्भवत: महात्मा गांधी व भगत सिंह की अपार कुर्बानियों के परिणामस्वरूप स्वाधीन हुआ भारतवर्ष एक बार फिर राजनीति मांफिया के चंगुल में उलझकर रह गया है। परन्तु पिछले कुछ समय से देश के जाने-माने राजनीति मांफियाओं को भारतीय अदालतों द्वारा जिस प्रकार दण्डित किए जाने का सिलसिला शुरु हुआ है, उससे आम जनता को अब यह यह महसूस होने लगा है कि वास्तव में अदालत की नंजर में सभी अपराधी समान हैसियत रखते हैं। इन तांजातरीन अदालती फैसलों ने आम जनता की उस सोच पर भी विराम लगा दिया है जोकि यह सोचती रहती थी कि कहीं अदालती फैसले अपराधी की ऊंची हैसियत, उसकी ऊंची पहुंच व उसके बाहुबल को मद्देनंजर रखकर तो नहीं दिए जाते?

              उदाहरण के तौर पर गत् दिनों गोपालगंज बिहार के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रामकृष्ण राय ने ऐसा ही एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।  5 दिसम्बर 1994 को गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की एक उग्र भीड़ द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। बिहार के पूर्व सांसद आनन्द मोहन, विधायक विजय कुमार शुक्ला, आनन्द मोहन की पत्नी लवली आनन्द सहित अन्य कई लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 307, 147 तथा 427 के आरोप में मुंकद्दमा दर्ज किया गया था। 13 वर्ष पूर्व शुरु हुए इस मुंकद्दमे में फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश रामकृष्ण राय ने बाहुबली एवं पूर्व सांसद आनन्द मोहन को संजा-ए-मौत, उसकी पत्नी लवली आनन्द को आजीवन कारावास, विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, अखलाक अहमद पूर्व विधायक तथा एक और बाहुबली नेता अरुण कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जिन्हें सजा सुनाई गई है उनके रुतबे व दबंगई को देखते हुए यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि अदालत इनके विरुद्ध ऐसी सजा सुनाए जाने का साहस कर सकेगी। परन्तु न्यायाधीश रामकृष्ण राय के फैसले ने फिलहाल तो यह साबित कर ही दिया कि कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं है अथवा बाअसर या बेअसर नहीं है। कानून की नजर में सभी बराबर हैं।

              इसी प्रकार कुछ समय पूर्व बिहार में ही एक अन्य बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को भी संजा सुनाई गई थी। इसी वर्ष 30 अगस्त को दिए गए एक अदालती फैसले में शहाबुद्दीन  को 10 वर्ष की कैद की संजा सुनाई गई है। इस बाहुबली सांसद पर आरोप था कि इसने 3 मई 1996 को सीवान के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक एस के सिंगल पर जानलेवा हमला किया था। इसी प्रकार बिहार के ही एक और सफेदपोश बाहुबली पप्पु यादव भी इन दिनों जेल की सलाखों के पीछे है। इन सभी बाहुबली नेताओं पर दुर्भाग्यवश केवल यही आरोप नहीं है जिनके आधार पर वे इस समय जेल की सलाखों के पीछे हैं। इन बाहुबलियों पर तो इन आरोपों के अतिरिक्त और भी कई आपराधिक मामले विचाराधीन हैं, जिनपर फैसला आना अभी बाकी है।

              बावजूद इसके कि उक्त बाहुबलियों को निचली अदालतों के द्वारा फैसला सुनाए जाने से आम जनता में अदालत के प्रति विश्वास व सम्मान में वृद्धि हुई है। परन्तु इस विषय को लेकर भी आम जनमानस में गहन चिन्ता व्याप्त है कि क्या निचली अदालतों द्वारा इन बाहुबलियों के विरुद्ध दिए गए फैसलों को उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय भी उसी प्रकार बहाल रख सकेगा? अथवा उच्च न्यायालय के निर्णय निचली अदालतों के फैसलों पर पानी फेर देंगे? अब शिबु सोरेन के मामले में ही देखा जाए तो आम जनता दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले से आश्चर्यचकित है जिसके तहत शिबु सोरेन को सादर बरी कर दिया गया है। 1994 मे अपने ही सचिव शशिनाथ झा की हत्या के आरोप में शिबु सोरेन को आजीवन कारावास की संजा सुनाई गई थी। गत् वर्ष 28 नवम्बर से वे जेल में आजीवन कारावास की संजा काट रहे थे। इस बीच निचली अदालत के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में शिबु सोरेन द्वारा चुनौती दी गई। आंखिरकार दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोरेन को बरी कर दिया तथा शिबु सोरेन उर्फ गुरुजी 9 महीने तक जेल में रहने के बाद रिहा कर दिए गए।

             भारतवर्ष में ऐसे सैकड़ों मुकद्दमे विचाराधीन हैं अथवा अपील में हैं जिनमें कि संफेदपोश बाहुबलियों पर कई-कई हत्याओं, अपहरण, लूट, डकैती, फिरौती वसूलना, दंगा फसाद बलवा करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कुछ मुंकद्दमों पर तो निचली अदालतों के फैसले आ चुके हैं, कुछ पर आने हैं, कई मामले उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में सूचीबद्ध हैं तथा अपनी सुनवाई की प्रतीक्षा में हैं। भले ही किसी बाहुबली सफेदपोश को सजा सुनाए जाने से उसके मुट्ठी भर समर्थक कुछ समय के लिए विचलित क्यों न हो जाते हों परन्तु आखिरकार जल्दी ही उन्हें यह ज्ञान भी हो जाता है कि जिस अपराधिक प्रवृत्ति के नेता के प्रति वे आस्थावान थे दरअसल वही उनकी गलती थी। वे समर्थक यह भी शीघ्र ही समझ जाते हैं कि उनकी ही गलतियों ने अमुक बाहुबली को एक शक्तिशाली नेता बना डाला। इस प्रकार के आंशिक जनसमर्थन से ही ऐसे बाहुबली एक शक्तिशाली नेता के रूप में स्वयं को आसानी से स्थापित कर लेते हैं।

              बहरहाल भले ही शिबु सोरेन उच्च न्यायालय से बरी क्यों न हो गए हों परन्तु जनता यह कैसे भूल सकती है कि उनके सचिव शशिनाथ झा की हत्या भी हुई थी। उच्च न्यायालय ने भले ही सोरेन को बरी क्यों न कर दिया हो परन्तु आम जनता उन्हें अपनी आत्मा की अदालत से बरी नहीं कर पा रही है। अत: यदि भारतीय अदालतें चाहे वे छोटी मुन्सिंफ अदालतें हों अथवा देश का सर्वोच्च न्यायालय, इन सभी अदालतों के मध्य इस बात को लेकर पूरी सहमति व तालमेल होना चाहिए कि बाहुबलियों के विरुद्ध सुनाए जाने वाले फैसलों पर किस प्रकार की नीति अपनाई जानी चाहिए। उच्च अदालतों को खासतौर पर यह महसूस करना चाहिए कि निचली अदालत द्वारा सजा पाया हुआ व्यक्ति यदि ऊपरी अदालत से राहत पा गया तो वही बाहुबली बरी होने के पश्चात न सिर्फ निचली अदालत के विरुद्ध आक्रामक रुख अपना सकता है, उसके विरुद्ध साजिश रच सकता है बल्कि ऊंची अदालतों के बाहुबलियों को राहत पहुंचाने वाले फैसले जनता के मध्य भी अदालत के प्रति संदेह उत्पन्न करते हैं। अत: जरूरी है कि अदालतें उन सफेदपोश बाहुबली नेताओं के विरुद्ध कड़ा रुख अख्तियार करें जोकि देश की शांति तथा विकास के लिए बाधक सिद्ध हो रहे हैं।

निर्मल रानी 163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-98962-93341  

 

शनिवार, 13 अक्टूबर 2007

राष्ट्रीय मीडिया की नजरो से ओझल बदलाव की बयार.................

राष्ट्रीय मीडिया की नजरो से ओझल बदलाव की बयार.................
दीपक शर्मा, रामनगर, मुरैना (म.प्र)

13 अक्टूबर- अपने अधिकारों के लिये उनका हर कदम आत्म विश्वास से लवरेज आजादी के बाद के साठ सालों का लोखा जोखा लेने दिल्ली सल्तनत की ओर बड़ रहे है। उनके बढ़ते कदमों को रास्ते भर में मिले सहयोग एवं समर्थन ने दो गुनी ताकत दे दी है। उनका अंदाज बताता है कि वे शायद अब आजीविका के अधिकारों से कम पर समझौता नही करेगे। हाले बंया उन मुसाफिरों का है जो एकता परिषद का झंण्डा थामे संगठन के संस्थापक अध्यक्ष पी.व्ही. राजगोपाल के नेतृत्व में गांधी जयंती के दिन ग्वालियर से दिल्ली तक की पदयात्रा पर निकले है। यात्रा नायक राजगोपाल को देश एवं दुनिया सहित रास्ते भर के राजनैतिक सामाजिक सरोकारों के लिये काम कर रहे संगठनों तथा व्यक्तियों द्वारा न केवल वंचितों की वेदना को समझने एवं उनकी आवाज को मुखरित करने के लिये सराहा जा रहा है, अपितु गरीब एवं बंचित वर्ग के अधिकारों के लिये सरकार से मोर्चा लेने के लिये गांधीवाद के अस्त्र को आजमाने एवं गांधीवाद एवं उनके सत्याग्रह को पुर्न:जीवित कर उसके क्रियात्मकता के दर्शन कराने के लिये भी साधुवाद दिया जा रहा है। कदम - कदम पर मिल रहे जन सहयोग एवं समर्थन से यह एक जनान्दोलन का रूप लेता जा रहा है। लेकिन अफसोस जनक बात है कि इसको स्थानीय प्रिन्ट मीडिया ने तो ग्वालियर से लेकर अदयतन भरपूर कवरेज दिया है कुछ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अखबारों तथा चैनलो में भी इसका जिक्र है लेकिन आम आदमी की बेदना से जुड़ा महत्वपूर्ण जन आन्दोलन जिसे राष्ट्रीय एवं अर्तराष्ट्रीय समर्थन के साथ जन जन का सहयोग एवं समर्थन हासिल है राष्ट्रीय समाचार पत्र एवं चैनलों की नजरों से ओझल है हालांकि आन्दोलन का मकसद ना तो कोई प्रचार हासिल करना है और ना ही यात्रा के नायक पी.व्ही. राजगोपाल को ही इसकी कोई चाह है। लेकिन फिर भी देश की सत्तर फीसदी आवादी के अधिकारों से जुडे इस सत्याग्रह की उपेक्षा छोटी छोटी घटनाओं को तिल का ताड़ बनाकर प्रस्तुत करने वाले चैनलो एवं राष्ट्रीय समचार पत्रों के समक्ष एक गहरा सवाल छोड़ती है।
लगभग एक माह तक 25 हजार लोगों की भागीदारी के साथ पूरे व्यवस्थित ढंग से चलने वाली देश व दुनिया की इस विशालतम पदयात्रा को जिसने भी देखा इसमें शामिल लोगो के अनुशासन एवं संकल्पशीलता को सराहे बगैर नही रह सका। रोज सुबह जल्दी-जल्दी तैयार होकर पदयात्रा शुरू करना दोपहर नहा धोकर आराम कर शाम को चर्चा, सामूहिक, नृत्य गीत की महफिलों से अपनी थकान दूर कर सो जाना अब इनकी दिनचर्या बन चुका हैं।
इन हजारों सत्याग्रहियों के कदम हर सुबह पूरे आत्म विश्वास के साथ अपनी मंजिले को बड़ जाते है। इस बात से बेखबर कि उनके कदमों से सरकार कितनी विचलित हैं। मौसम ने भी पहले तेज धूप और अब रात में सर्दी होने से खुले आसमान में सड़क पर ही सोने बाले इन मुसाफिरों की परीक्षा लेना जारी रखा है। लेकिन अपने नायक राजगोपाल के प्रति अटटू आस्था एवं अपने अधिकार पाने की लालसा लिये ये हर बाधा का पार करके आगे बढ़ रहे है।
एकता परिषद के इस कारवां में ज्यादातर वे गरीब फटेहाल लोग है। आन्दोलन में कुछ लोग नंगे पांव चल रहे है तो किसी के पास पूरे कपड़े नही है फिर भी आन्दोलन से जुड़े किरदारो की प्रतिबध्दता न केवल सराहनीय है अपितु प्रेरणादायी भी है जो हमेशा से अपने अधिकारों से बंचित रहे है, तथा स्वंतत्र भारत में सरकार की नीतियो से इन्हे आज तक कुछ भी हासिल नही हुआ कदाचित विकासीय सभ्यता एवं आंकड़ो की चकाचौंध मे जीने वाले लोग पहली बार समाज के उस अन्तिम व्यक्ति की व्यथा से रूबरू हुआ है। शहरी सभ्यता के लोगों ने पदयात्रा में शामिल लोगों के माध्यम से उस असली भारत के दर्शन किये है। पदयात्रियों का मौन एवं अनुशासन ही उनकी अभिव्यक्ति है उनकी हालत देख लोग हैरान रह जाते है। कि आजादी साठ साल बाद भी इस देश में गरीबी किस भयावह स्वरूप में मौजूद है। पदयात्रियों की हालत एवं फक्कड़पन ही उनका मुकम्मल बयान है
सत्याग्रह को स्थानीय स्तर पर प्रिन्ट मीडिया ने इसे पर्याप्त महत्व दिया है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बी.बी.सी चैनल सहित कई समाचार पत्रों में तबज्जो मिली है। लेकिन देश के राष्ट्रीय समाचार पत्र एवं चैनलों ने बंचितों के इस सत्याग्रह को उतनी तबज्जो नही दी जितनी उन्हे देना चाहिये आमजन की इस गहरी पीड़ा एवं आजादी के बाद असली अजादी की लड़ाई को इन्होने किसी चश्मे देखा है क्या जाने। लेकिन ट्रेफिक हवलदार की पिटाई या अन्य एसी ही तमाम हिंसक घटनाओं को चटपटी बनाकर घंटो अपने चैनलों पर परोसने बाले चौथे स्तम्भ के इन आधार स्तम्भो में जनादेश सत्याग्रह के उददेश्यों को मामूली तौर पर समझकर इस वर्ग की पीड़ा को तनिक संवेदनशील होकर अभिव्यक्ति दी होती तो उनकी टी.आर.पी नही बढ़ती लेकिन यह देश के उन बहुसंख्यक वर्ग की अभिव्यक्ति होते जिसे जिन्दा रहने के लिये एवं अदद रोटी की जरूरत है। और इसके लिये वह पिछले छह दशकों से सियासतदारों से छला जाता रहा है।

सोमवार, 8 अक्टूबर 2007

संयुक्त वन प्रबंधन

संयुक्त वन प्रबंधन

श्रीमती कल्पना पाल्कीवाला, वरिष्ठ मीडिया एवं संचार अधिकारी, पीआईबी, दिल्ली

भारत में भूमि उपयोग की दृष्टि से कृषि के बाद दूसरा स्थान वानिकी का है। देश के 7,74,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं, जो कुल भूमि उपयोग का 23.57 प्रतिशत हैं। सकल घरेलू उत्पाद में वन क्षेत्र का योगदान 1 प्रतिशत से कुछ अधिक है। किंतु, पारिस्थितिकी प्रणाली सेवाओं के रूप में इस क्षेत्र का अनौपचारिक योगदान कई गुणा अधिक है। भारत में करीब 27.5 करोड़ ग्रामीण निर्धन अपनी आजीविका के लिए आंशिक रूप से वनों पर निर्भर हैं। 8.9 करोड़ जनजातीय आबादी और 47.1 करोड़ मवेशियों के वनों में रहने और 30 करोड़ घनमीटर ईंधन की लकड़ी वनों से निकाले जाने के कारण वनों पर भारी जीवीय (वाइऑटिक) दबाव बढ़ गया है। ग्रामीण लोग ईंधन की लकड़ी, चारा, लट्ठा और अनेक गैर-इमारती वन उत्पादों, जैसे फल, फूल और औषधीय पौधों से धन कमाते हैं।  ग्रामीण भारत की 70 प्रतिशत आबादी घरेलू उर्जा की जरूरतें पूरी करने के लिए ईंधन की लकड़ी की जरूरत पूरी करने के लिए वनों पर निर्भर है। भारत के 8.9 करोड़ जनजातीय लोगों में से आधे वन क्षेत्रों में रहते हैं।

मानव वन संबंध

       मानव और वनों का संबंध सदियों पुराना है। वर्तमान परिस्थितियों में वनों के संरक्षण और उन्हें स्थायित्व प्रदान करने के लिए सक्षम प्रबंधन एवं प्रभावकारी दीर्घकालिक योजना तैयार करना अनिवार्य है। पश्चिम बंगाल में अराबारी जंगलों, हरियाणा में सुखोमाझड़ी परियोजना और चुहापुर हर्बल नेचर पार्क, कर्नाटक में चित्रदुर्ग रेंज में जोगीमाटी आरक्षित वन क्षेत्र, उड़ीसा में अंगुल घुम्सर और भांजानगर वन क्षेत्र, राजस्थान में चंदेलकलां और भानपुरकलां के जंगल, उत्तरांचल में चोपड़ा गांव, कर्नाटक में बीदर, छत्तीसगढ़ में कटांडिह आदि वन परियोजनाओं की सफलताओं और साथ ही देश के कई भागों में स्वयं पहल करने वाली संस्थाओं, स्वयंसेवी वन संरक्षण समितियों के प्रयासों के रूप में भागीदारी पूर्ण प्रबंधन सिध्दांतों की आवश्यकता को समझा गया है। औद्योगिक वानिकी पर प्रारंभिक ध्यान केन्द्रित किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए वनों के संरक्षण, प्रबंधन और विकास के तौर तरीकों में परिवर्तन की आवश्यकता है। 80 के दशक में सामाजिक वानिकी के अनुभवों से धीरे धीरे स्थानीय लोगों की भूमिका को औपचारिक रूप से समझा गया और ''देखभाल एवं हिस्सेदारी'' के सिध्दांतों पर आधारित प्रबंधन को अपनाया गया। राष्ट्रीय वन नीति (एनएफपी) 1988 में संशोधित की गयी, जिसमें वन प्रबंधन लक्ष्यों में व्यापक बदलाव किए गए। ईंधन की लकड़ी, चारा और लघु इमारती लकड़ी संबंधी ग्रामीण और जनजातीय आबादी की जीविका की आवश्यकताओं के संबंध में नीति में प्रथम परिवर्तन किया गया। 1990 में राज्य वन विभागों को निर्देश दिए गए थे कि वे वन प्रबंधन व्यवस्थाओं में स्थानीय समुदायों को प्रत्यक्ष रूप से शामिल करें।

      इस पध्दति को आम तौर पर संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) का रूप दिया गया।

संयुक्त प्रयास

      सरकार समय समय पर दिशा-निर्देश जारी करती है। वह प्रारंभ में बुनियादी ढांचा प्रदान करती है, जिसके अंतर्गत वन भूमि तक पहुंच, वृक्षों की बिक्री से होने वाले लाभ में हिस्सेदारी, फलों से संबध्द वृक्षों, झाड़ियों, घासों और औषधीय पौधों के रोपण पर बल देने जैसे उपाय शामिल हैं। इन प्रयासों की परिणति आज महिलाओं की भागीदारी, संयुक्त वन प्रबंधन के बेहतर क्षेत्रों में विस्तार और संसाधनों के पुन: सृजन में योगदान के रूप में हुई है।

      सभी राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों ने केन्द्रीय रणनीति के रूप में संयुक्त वन प्रबंधन की नीति को अपनाया है। वन विभागों और ग्राम समितियों को गांवों के स्तर पर संयुक्त वन प्रंबंधन समितियों में भागीदार बनाया गया है। संयुक्त वन प्रबंधन के अंतर्गत फिर से हरे-भरे बनाए गए वन क्षेत्रों से प्राप्त होने वाले अंतिम एवं आवर्तक उत्पादों के संदर्भ में निश्चित हिस्सा प्रदान किया जाता है। यह हिस्सा सदस्यों को राजस्व बंदोबस्त पर मूल वनों के अंतर्गत उनकी परंपरागत हकदारी के रूप में मिलने वाली हिस्सेदारी से कहीं अधिक होता है।

      देश में आज 16,000 जेएफएम समितियां हैं, जो 2.2 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र का प्रबंधन करती हैं।

      संयुक्त वन प्रबंधन का अर्थ है, स्थानीय समुदायों और वन विभागों द्वारा संयुक्त रूप से प्रयास करना। इस पध्दति में प्रबंधन लक्ष्यों में बदलाव दिखायी देता है, जिनमें राजस्व अर्जित करने की बजाय पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सुरक्षा पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इससे लोगों और वनों के बीच संबंध बहाल करने में मदद मिलती है। सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह व्यवस्था कानूनी सहायता प्रदान करती है।

      संयुक्त वन प्रबंधन समिति ग्राम स्तरीय लोकतांत्रिक संस्थान का प्रतिनिधित्व करती है। समिति के सामान्य सभा में गांव के सभी इच्छुक व्यस्क सदस्य शामिल होते हैं, और उसकी अध्यक्षता बहुमत के आधार पर चुने गए अध्यक्ष द्वारा की जाती है। संयुक्त वन प्रबंधन समिति की रोजमर्रा की कार्यप्रणाली के लिए सदस्यों द्वारा कार्यकारिणी का चुनाव किया जाता है। सामान्य सभा का अध्यक्ष कार्यकारिणी का भी अध्यक्ष होता है। महिलाओं और समाज के अन्य कमजोर वर्गों की प्रभावकारी एवं सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नीति-दिशा निर्देशों में प्रचुर प्रावधान होते हैं। विभिन्न राज्यों में संयुक्त वन प्रबंधन समिति को अलग अलग नाम से जाना जाता है, जैसे वन संरक्षण समिति (एफपीसी), ग्राम वन समिति (वीएफसी), वन संरक्षण समिति (वीएसएस) आदि।

      जेएफएमसी द्वारा एक बृहत् योजना तैयार की जाती है, जिसमें एक दस्तावेज प्रस्तुत किया जाता है। इसमें गांव के बारे में बुनियादी आंकड़े शामिल होते हैं और अलग पांच या दस वर्षों में प्रस्तावित गतिविधियों का उल्लेख किया जाता है। यह दस्तावेज स्थानीय समुदायों द्वारा चुनी गयी गतिविधियों के अनुसार तैयार किया जाता है।

संयुक्त वन प्रबंधन समिति संरक्षण, संरक्षा, वनरोपण के विभिन्न मॉडल, नर्सरी तैयार करने, मृदा एवं नमी संरक्षण कार्य, जागरूकता पैदा करने संबंधी कार्य, वन संरक्षण से संबध्द प्रबंधन प्रवेश बिंदु गतिविधियां, आजीविका सुधार ओर वनों के विकास जैसी विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का संचालन करती है।

संवर्ध्दनात्मक गतिविधियां

      प्रवेश बिंदु गतिविधियों का संबंध संवर्ध्दनात्मक गतिविधियों के साथ है, जिनकी शुरूआत लोगों का विश्वास प्राप्त करने के साथ की जाती है। इन गतिविधियों में सिंचाई, पेयजल की आवश्यकता के लिए रोकबांध जैसे जल संरक्षण ढांचों का निर्माण, मृदा नमी क्षेत्र में सुधार, पेयजल आपूर्ति के लिए कुओं की खुदाई, सड़कों और पुलियों का निर्माण, सहायक ढांचे का निर्माण, स्कूल भवन, सामुदायिक भवन बनाना और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना, आदि शामिल हैं।

लाभ

संयुक्त वन प्रबंधन से बड़े पैमाने पर लोगों को अनेक लाभ हुए हैं। ईंधन की लकड़ी और इमारती लकड़ी की जरूरतें पूरी करना आसान हो गया है। इससे होने वाले अन्य फायदों में पारिस्थितिकी के प्रत्यक्ष लाभ, दिहाड़ी कार्य के जरिए रोजगार के अवसर, परिसंपत्तियों का निर्माण, गरीबी उन्मूलन और आजीविका के विकल्प उपलब्ध कराना शामिल है। इसके अतिरिक्त फूलों, फलों का उत्पादन और अंतिम उत्पादन में 50 से 100 प्रतिशत तक भागीदारी का प्रावधान भी इसमें शामिल है।

      परोक्ष फायदों में पारिस्थितिकी संतुलन बहाल करना प्रमुख है। इससे वन आच्छादित क्षेत्र में वृध्दि होती है और मृदा नमी क्षेत्र में निरंतर सुधार होता है। वन क्षेत्रों के आसपास के खेतों में फसल के संरक्षण और भूमि कटाव रोकने में भी मदद मिलती है।

      संयुक्त वन प्रबंधन के जरिए आजीविका सुरक्षित करने में मदद मिलती है। जेएफएमसी के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जाता है, ताकि आजीविका में सुधार के लिए सदस्यों के कौशल और संसाधनों का भलीभांति दौहन किया जा सके। कई गांव में पत्तों की प्लेटें बनाने, रेशम कीट पालने, बांस से टोकरियां और अनुषंगी वस्तुएं बनाने, वर्मी कम्पोस्टिंग और पारिस्थितिकी-पर्यटन जैसी गतिविधियां संचाािलत की जा रही हैं।

वरिष्ठ मीडिया एवं संचार अधिकारी, पीआईबी, दिल्ली