मंगलवार, 4 अगस्त 2009

इश्क के बहाने 'सेलेब्रिटींज' की अय्याशी

इश्क के बहाने 'सेलेब्रिटींज' की अय्याशी

निर्मल रानी ,163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-98962-93341 email: nirmalrani@gmail.com nirmalrani2000@yahoo.co.in nirmalrani2003@yahoo.com

       मान मर्यादा का पालन करना, सामाजिक बंधनों एवं मान्यताओं का आदर करना, समाज का लिहांज करना तथा उससे डरना लगता है केवल ंगरीब या मध्यम ंगरीब परिवार के लोगों के लिए ही सीमित होकर रह गया है। कम से कम चन्द्रमोहन व अनुराधा बाली उंर्फ चांद मोहम्मद बनाम ंफिंजा जैसे तथाकथित प्रेम-बिछोह प्रकरण को देखकर तो ऐसा ही लगता है। कल्पना कीजिए कि चन्द्रमोहन की जगह कोई साधारण व्यक्ति अपने ऐसे ही कथित प्रेम प्रपंच को लेकर इतने प्रकार के रंग बदलता तो समाज उस व्यक्ति का क्या हश्र करता। कितने आश्चर्य की बात है कि कल तक सांफ-सुथरी, ईमानदार तथा मधुर स्वभाव के स्वामी की छवि रखने वाले हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चन्द्रमोहन ने केवल अपनी अय्याशी के चलते कौन-कौन सा पाखंड नहीं रचा। अपने पिता व भाई के परिवार से रिश्ता तोड़ा, अपने बीवी बच्चों का त्याग किया, उपमुख्यमंत्री जैसे विशिष्ट पद एवं पार्टी से हाथ धोया, हद तो यह कि अपने कथित इश्ंक को हासिल करने के लिए धर्म परिवर्तन तक कर डाला। और इन सबके बाद अय्याशी की बुनियाद पर पड़े इस रिश्ते में कितने उतार-चढ़ाव आए तथा नित्य नए समाचार इस प्रकरण को लेकर अब भी सुनाई दे रहे हैं।

              ंखबर है कि हिन्दू धर्म से मुसलमान धर्म अपनाने के बाद चन्द्रमोहन एक बार फिर विधिवत रूप से हिन्दू धर्म में वापस चले गए हैं। चन्द्रमोहन जैसे कथित 'विशिष्ट' व्यक्ति से कोई पूछने वाला नहीं है कि आंखिर किन परिस्थितियों में उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार किया था और अब पुन: इस्लाम धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म में जाने के पीछे कौन सी मजबूरी थी? क्या यह कहना ंगलत है कि अपनी अय्याशी की भूख मिटाने मात्र के लिए चन्द्रमोहन जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति द्वारा आशिंकी का यह पूरा पाखंड रचा गया? अनुराधा उंर्फ ंफिंजा की भूमिका भी इस प्रकरण में चन्द्रमोहन से कम नहीं रही। उसे भी एक उच्च शिक्षित तथा उच्च पद पर नियुक्त होने के कारण ऐसे घिनौने खेल में पड़ना ही नहीं चाहिए था। चांद और ंफिंजा जैसी कहानी समाज के आम परिवारों में घटित हो तो ंजरा सोचिए हमारा समाज ऐसे परिवारों को चैन से जीने देगा? शायाद हरगिंज नहीं। परन्तु यही घटना चांद व ंफिंजा जैसे विशिष्ट पात्रों के साथ बेशर्मी, बेहयाई की कितनी ही हदें क्यों न पार कर जाए परन्तु इनके कथित आशिंकी से जुड़े हुए हर ंकदम मीडिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। वजह सांफ है कि यह 'सेलेब्रिटींज' की आशिंकी है, ंगरीबों का 'आवारापन' नहीं।

              यदि ंफिंजा के स्थान पर किसी साधारण परिवार की लड़की के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा होता तो कल्पना कीजिए कि उस भुक्तभोगी लड़की का अपना तथा उसके माता-पिता व परिजनों का क्या हश्र होता। उनकी परेशानी का, उनका चिंताओं का अंदांजा भी नहीं लगाया जा सकता। परन्तु ंजरा ंफिंजा मैडम की दिलेरी तथा उनका हौसला तो देखिए। स्वयं को भारतीय सभ्य समाज की शिक्षित महिला बताने वाली ंफिंजा अपने आशिंकी-माशूकी के मुद्दे पर प्रत्येक मोड़ पर बार-बार मीडिया से रूबरू होती हैं। यदि उन्हें चांद मोहम्मद नहीं भी मिला तो कम से कम इसी बहाने बेशंकीमती शोहरत तो नि:शुल्क मिल ही गई। ंफिल्म में काम करने का ऑंफर मिल गया। मुंबई से नए नवेले निर्देशक कमाल ंखान चण्डीगढ़ भी आ धमके तथा ंफिंजा मैडम के साथ पत्रकार सम्मेलन भी संबोधित कर गए। ंफिंजा मैडम इसी कथित आशिंकी से मिली शोहरत को भुनाते हुए एक टीवी रियैलिटी शो में काम करने मलेशिया तक जा पहुंचीं। मुझे नहीं लगता कि एक आम हिन्दुस्तानी महिला परिवार के ऐसे ंखतरनाक उतार-चढ़ाव के दौरान इतनी बेंफिक्र होकर मौज मस्ती तथा अपना शौंक पूरा करने जैसे कामों में दिलचस्पी लेगी। क्या चन्द्रमोहन तथा ंफिंजा ने अपनी कारगुंजारियों से समाज के समक्ष कोई ऐसा आदर्श पेश किया है जिसका कि आज के युवा या युवतियां अनुसरण कर सकें?

              'सेलेब्रिटींज' की ऐसी ही एक अय्याशीपूर्ण घटना का अक्सर टीवी सीरियल, कॉमेडी शो तथा व्यंग्य अदि में मंजाक उड़ाते देखा जा रहा है। मंजाक उड़ाने की यह पात्र हैं प्रसिद्ध ंफिल्म अभिनेत्री करीना कपूर। ंगौरतलब है कि यह उस कपूर घराने की अभिनेत्री हैं जिस घराने के बारे में यह मशहूर था कि इस परिवार की महिलाएं ंफिल्मी पर्दे पर काम नहीं किया करतीं। इस मिथक को रणधीर कपूर ने उस समय तोड़ा जबकि वे बबीता नामक नायिका से विवाह रचाकर उसे कपूर परिवार की बहु के रूप में ले आए। उसके पश्चात रणधीर कपूर-बबीता की दोनों ही बेटियां करिश्मा कपूर व करीना कपूर ंफिल्मी चकाचौंध से स्वयं को दूर न रख सकीं। करिश्मा कपूर ने तो जीवन के हल्के-फुल्के झटके सहकर अपना घर बसा लिया। परन्तु करीना कपूर के विषय में जो कुछ देखने व सुनने को मिल रहा है, उसे जानकर आम आदमी केवल अंफसोस ही कर सकता है। कुछ वर्ष पूर्व करीना कपूर और शाहिद कपूर के बीच प्रेम प्रसंगों की ंखबरें सुनी गई थीं। दोनों दिन रात साथ-साथ रहने लगे थे। देश विदेश की यात्राएं भी करने लगे थे। इन कलाकारों की दीवानी जनता भी इस उभरती जोड़ी को दुआएं दे रही थी तथा इनके उावल भविष्य की आस लगाए बैठी थी कि इसी बीच ंफिल्मी कहानियों की ही भांति करीना के जीवन में नवाब पटौदी के सुपुत्र सैंफ अली ंखान आ टपके। बावजूद इसके कि सैंफ अली, करीना से लगभग 10 वर्ष बड़े भी थे तथा शादीशुदा होने के अलावा दो बच्चों के पिता भी थे। परन्तु पटौदी सल्तनत का जो शाही महल, दौलत, सम्पत्ति आदि का जो ंखंजाना सैंफ के पास था, ंजाहिर है वह शाहिद कपूर के पास ंकतई नहीं था। फिर क्या था। करीना ने शाहिद कपूर से किनारा कर सैंफ अली के साथ प्रेम पींगें बढ़ा लीं। अब ंफिलहाल इन दिनों चर्चा ंजोरों पर है कि सम्भवत: इन दोनों की शादी भी होने वाली है।

              उपरोक्त घटना भी भले ही एक साधारण परिवार के इंज्ंजतदार लोगों के लिए शर्म से डूब मरने वाली घटना क्यों न हो परन्तु इन तथाकथित सेलेब्रिटींज के लिए तो ऐसी घटनाएं भी शोहरत का एक उचित माध्यम बन जाती हैं। यानि 'बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा'। बदनामी की कुछ ऐसी ही राह पर चलते हुए शोहरत की तलाश करने वाली एक और आज की चर्चित अभिनेत्री का नाम है राखी सावंत। आईटम गर्ल के नाम से मशहूर तथा आमतौर से अतिसीमित लिबासों में लिपटी रहने वाली इस अभिनेत्री ने अपना स्वयंवर आप रचने का एक नया स्टंट खड़ा किया है। 'राखी का स्वयंवर' नाम से चलने वाले इस टीवी शो में राखी अपना स्वयंवर आप तलाश रही हैं। जिस स्वयंवर शब्द का प्रयोग राखी अपना वर ढूंढने में कर रही है, उस स्वयंवर की शुरुआत कहां से हुई थी, उसका वास्तविक अर्थ, मर्यादा तथा नीति आदि क्या होती है, शायद राखी को इस बात का अंदांजा नहीं है। ंजरा सोचिए कि राखी के स्वयंवर के जो नियम व तरींके हैं, उसके अनुसार आज की कोई साधारण परिवार की युवती अपने लिए इसी अंदांज से कोई वर तलाश कर सकती है? क्या विवाहपूर्व किसी लड़की का अपने संभावित पति के घर जाना तथा वहां कई-कई दिन बिताना और एक दो नहीं बल्कि अनेक संभावित पतियों के साथ इसी प्रकार विवाह पूर्व अलग-अलग रहना क्या यह भारतीय सभ्य समाज की किसी आम महिला के लिए संभव है। ंजरा सोचिए कि राखी सावंत जैसी 'हिम्मत' साधारण समाज की कोई लड़की जुटाए तो उसे हमारे समाज में कौन-कौन सी उपाधियों से नवांजा जाएगा। क्या ऐसी लड़की के माता-पिता अपने समाज व बिरादरी में मुंह दिखाने योग्य भी रह पाएंगे? परन्तु 'राखी का स्वयंवर' सिर चढ़कर बोल रहा है। राखी बड़े आत्मविश्वास के साथ यह कहती सुनाई दे रही हैं कि विवाह पूर्व 'टेस्ट ड्राईव' का होना बहुत ंजरूरी है। राखी को उसके इस ंकदम के लिए कोसने वाले लोग भी आंखें बचाकर इस टीवी शो को देख ही लेते हैं। उधर राखी सावंत भी इस बात से बेंफिक्र है कि कोई उसके बारे में क्या कह रहा है या क्या सोच रहा है। राखी से पूछें तो शायद वही अपने आप को सच्ची भारतीय नारी तथा भारतीय नारियों के लिए अपने आपको एक महान आदर्श के रूप में ही बताना चाहेगी।

              कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि 'सेलेब्रिटींज', अमीरों, विशिष्ट व्यक्तियों तथा ंफिल्मी लोगों के लिए इश्ंक और प्यार-मोहब्बत जैसी चींजें इतनी मायने नहीं रखतीं जितना कि इसी के बहाने यह लोग अपनी अय्याशी, अपनी शोहरत तथा अपनी हवस को मिटाने के लिए ंफिक्रमंद रहते हैं। हमारे देश के वे युवक या युवतियां जो देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तथा अपना जीवन भी शांतिपूर्ण व मर्यादापूर्ण तरींके से गुंजराना चाहते हों, उन्हें चाहिए कि वे ऐसे लोगों के ग्लैमर से या इनके जीवन में घटने वाली घटनाओं से प्रभावित होने के बजाए इनसे सबंक लें तथा कोशिश करें कि बदनामी एवं अपमान भरे ऐसे चरित्रों की छाया भी उनपर न पड़ने पाए।                                                                       निर्मल रानी

 

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