गुरुवार, 6 अगस्त 2009

लिफ्टइरीगेशन ने बना दिया हर्री के काश्तकारों को लखपति- जे.पी. धौलपुरिया

लिफ्टइरीगेशन ने बना दिया हर्री के काश्तकारों को लखपति- जे.पी. धौलपुरिया

प्रस्‍तुतकर्ता : जे.पी. धौलपुरिया, उपसंचालक जनसम्‍पर्क कार्यालय शहडोल म.प्र. हैं

शहडोल 6 अगस्त 2009. किसान के बेटे श्री मोहन लाल राठौर के लिए सफलता की सीढ़ियां चढ़ना बहुत मुश्किल, लेकिन फलदायी रहा । शहडोल संभागीय मुख्यालय से करीब 65 कि. मी. दूर अनूपपुर जिले के डेढ़ हजार की आवादी वाले गांव हर्री में अस्तित्व बचाने के लिए शुरू हुए संघर्ष की पराकाष्ठा उनके समृध्द किसान बनने के रूप में हुई ।

वर्षा पर निर्भर इस गांव के काश्तकारों के बारे में कौन सोच सकता है कि काम के सिकुड़ते बाजार में तमाम लोग तो रोजगार के लिए अन्य गांवों की ओर रूख कर गए थे । अवर्षा के कारण उनकी सिर्फ खेती ही नहीं जा रही थी, बल्कि आमदनी भी खत्म हो रही थी । खासकर पूरी तरह खेती पर निर्भर छोटे काश्तकारों की, क्योंकि ये लोग दूसरों के खेतों में मिलने वाले काम पर ही अधिक निर्भर होते हैं । गांव में काम की संभावनाएं न देख, कई अपने दूसरे दोस्तों की तरह अन्य स्थानों की ओर जाने की सोच रहे थे । काम के सिकुड़ते आसार ने गांव की नई पीढ़ी पर भी बुरा असर डाला था। अधिकतर नई पीढ़ी गांव में ही रहकर खेती पर काम की उम्मीद कर रहे थे । गांव में कृषि योग्य भूमि 500 एकड़ है । लेकिन काश्तकारों के लिए इसका उपयोग तभी था, जब वर्षा होती ।

इस बीच सरकार के नुमाइन्दों ने सिंचाई की इस समस्या को काफी करीब से देखा और भारतीय स्ेटट बैंक की मदद से सोन नदी और तिपान नदी से पानी लिफ्ट करके काश्तकारों के खेतों तक पानी पहुंचाने की राह खोज निकाली । फिर राज्य सरकार ने ग्राम हर्री में लिफ्टइरीगेशन  तकनीक अपनाने के लिए काश्तकारों को नौ लाख रूपये का अनुदान दिया और भारतीय स्टेट बैंक ने भी नौ लाख रूपये का ऋण सुलभ कराया । कुल 18 लाख रूपये की लागत से सोन नदी और तिपान नदी से पानी लिफ्ट करके औसत सात कि. मी. की पाइप लाइन का जाल बिछाकर खेतों तक पानी पहुंचाया गया । इसके दायरे में 100 काश्तकारों की 300 एकड़ जमीन आई, जिसमें गांव के पूर्व सरपंच मोहनलाल राठौर की 6 एकड़ जमीन भी शामिल है ।

 अल्प समय में ही लिफ्टइरीगेशन ने न केबल गांव की तस्वीर बदली, बल्कि काश्तकारों की तकदीर भी बदल दी । इसकी बदौलत गांव के अधिकांश काश्तकार लखपति बन गए । काश्तकारों ने दो वर्ष के भीतर हीे बैंक का ऋण भी पटा दिया । लिफ्टइरीगेशन के बेहतर परिणाम मिलना आरंभ हो गए । छोटे किसान तथा कृषि मजदूर वर्ग की आमदनी में इजाफा होता गया और ये लोग अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की दिशा में दिन-ब-दिन आगे आते रहे । ग्रामीण क्षेत्र में आई सम्पन्नता का प्रमाण आधुनिक साधन जैसे टे्रक्टर व अन्य छोटे-मोटे कृषि यंत्रों के उपयोग वहां देखे जा सकते हैं । एक दौर यह भी आया कि जब गांव के अधिकांश घरों के सामने मोटर साइकिलें खड़ी हुई देखी जाने लगीं । लिफ्टइरीगेशन के बाद अब तक सफलता की कई गाथाएं रच चुकने के बाद श्री मोहन लाल राठौर सब्जी की विक्री से ढाई लाख रूपये कमाते हैं । उन्हें धान से दो लाख रूपये और गेहूॅ-चने से एक लाख रूपये की आमदनी होती है । उनके परिवार सहित उनके दो भाइयों के परिवार के लिए भी अनाज और सब्जी का इंतजाम उन्हीं के खेतों से होता है ।

सात वर्षों तक गांव के सरपंच रहे श्री राठौर इसके पूर्व अपने परिवार के सालभर के खाने के लिए ही बमुश्किल अन्न उगा पाते थे । वर्षा न होने पर ईंट भट्टा लगाकर या दूध बेचकर उन्हें परिवार के खाने का इंतजाम करना पड़ता  था। लेकिन आज श्री राठौर की कामयाबी की कहानी हर्री और आसपास के इलाकों के कृषि क्षेत्र में अलग ही नजर आती है । उनके खेतों में ही अधिया में काम करके पांच मजदूर परिवार पल रहे हैं। दो परिवारों ने मोटर साइकिल खरीद ली है । श्री राठौर ने अपनी खेती की कमाई से अनूपपुर में एक मकान बनवा लिया है और चार मोटर सायकिलें खरीद ली हैं तथा एक बच्चे और एक बच्ची की धूमधाम से शादी कर दी है तथा एक बच्चा उच्च शिक्षा की पढ़ाई कर रहा है । उन्होंने जमीन का सुधार भी करा लिया है। सब्जी के मामले में हर्री गांव प्रमुख सब्जी उत्पादक गांव बन गया है । श्री राठौर कहते हैं, '' आज हमारा सब्जी और धान का उत्पादन फलते-फूलते कारोबार में तब्दील हो गया है ।''

       श्री मोहन लाल राठौर की तरह ही गांव के अनेक काश्तकार हैं, जिनकी फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी सिंचाई की बदौलत जीवन संवारने की  गवाह बनी हुई है । गांव के ही श्री दादूराम राठौर को पहले दूसरों के यहां मजदूरी करने जाना पड़ता था । लेकिन आज वे अपने खेतों में दूसरों को मजदूरी दे रहे हैं । उन्होंने टे्रक्टर और मोटर सायकिल खरीद ली है और मकान भी बनवा लिया है । वह बताते हैं, '' लिफ्टइरीगेशन आने के बाद गांव में मजदूर नहीं मिलते । दूसरे गांवों से मजदूरों को यहां लाना पड़ता है ।''

 

 

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