रविवार, 17 मई 2009

पशुओं को बीमारी से बचाने के लिये पशुपालकों को सलाह

पशुओं को बीमारी से बचाने के लिये पशुपालकों को सलाह

ग्वालियर 17 मई 09। ग्वालियर-चंबल संभाग के पशु पालकों को संयुक्त संचालक पशु चिकित्सा सेवाओं ने पशुओं को मौसमी बीमारियों से बचाने के लिये सलाह दी है। उन्होंने पशुओं के घावों में कीड़े पड़ने, कुत्ता के काटने, सांप काटने, पशु को जूँ तथा किलनी लगने, अफरा या पेट फूलने तथा पशु पालन के लिये ध्यान रखने योग्य सामान्य बातों के बारे में पशु पालकों को सलाह दी है।

पशु टीकाकरण

दुधारू जानवरों को खुरपका-मुंहपका, गलघोंटू,लंगड़ा बुखार और संक्रामक गर्भपात (ब्रूसेल्लोसिस) जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिये आवश्यक है कि पशुओं को नियमित रूप से टीके लगवाये जायें।

रक्षा ओवैक (खुरपका-मुँहपका) बीमारी के लिये पहला डोज चार माह की उम्र में उसके बाद नौ माह की उम्र में तथा प्रत्येक वर्ष में एक बार दिया जाना चाहिये। रक्षा-एचएस(गलघोंटू) के लिये छ: माह एवं प्रत्येक वर्ष, रक्षा-बीक्यू (लंगड़ा-बुखार) के लिये छ:माह तथा प्रत्येक वर्ष दिया जाना चाहिये। एक से अधिक बीमारियों के संयुक्त टीके में रक्षा एच एस बीक्यू के लिये छ: माह तथा प्रत्येक वर्ष, इसीप्रकार रक्षा बायोवैक के लिये चार माह, नौ माह तथा प्रत्येक वर्ष, रक्षा-ट्रायोवैक के लिये चार माह तथा प्रत्येक वर्ष एवं ब्रूवैक्स (संक्रामक गर्भपात) के लिये 4-8 महीने के उम्र के केवल बछियों को (जीवन में एक बार) दिया जाना चाहिये।

 

       पशुओं का समय पर इलाज न करवाने पर या घाव पुराना होने पर कभी-कभी उनमें कीड़े पड़ जाते हैं। उसे पोटाश (लालदवा) डिटाल या सेवलान के घोल से अच्छी तरह साफ करके थोड़ा तारपीन का तेल लगाना चाहिये। इससे कीड़े मर जाते हैं। बाद में कोई कीटाणुनाशक मलहम जैसे लोरेक्सीन या सल्फानिलामाइड का चूर्ण डालकर पट्टी बांधनीं चाहिये जिससे घाव भर जायें। इसी प्रकार पशु को अगर कुत्ता काट ले तो घाव को तुरन्त काफी देर तक नल के पानी की धार में धोना चाहिये। यदि नल न को तो किसी बर्तन से पानी डालें। नहाने के साबुन (जैसे लाईफ बॉय) को घाव पर लगाकर धीरे-धीरे मलें और फिर धोयें। तत्पश्चात टिंचर आयोडीन लगवायें तथा पास के पशु चिकित्सक से आगे के इलाज के लिये सलाह लें।

       पशु को जिस स्थान पर सांप ने काटा हो, तुरंत ही उसके 3-4 इंच ऊपर पतली डोरी कसकर बांध दें। सांप के काटे हुये स्थान पर ब्लेड से छोटा चीरा लगाकर छोड़ दें जिससे धीरे धीरे खून बहेगा और साथ ही विष भी। ऐसा करने के साथ ही पशु चिकित्सक को तत्काल बुलायें। यदि पशु को जूँ तथा किलनी हो गई है, तो पशु को पोटाश (लालदवा) के पानी से अच्छी तरह नहलायें। प्रभावित स्थान के बाल काटकर वहां कीटनाशक दवा जैसे डीडीटी/गैमक्सेन चूर्ण को खड़िया के चूरे या राख में मिलाकर लगायें। कटे बालों को इधर-उधर न फैंकें, बल्कि जला दें दवा लगाने के पहले पशु को खूब पानी पिलायें जिससे वह कीटनाशक दवा न चाट ले। पशु द्वारा अधिक बरसीम, लूसर्न आदि हरे चारे या अनाज खा लेने से गैस बनती है और पेट फूल जाता है। ऐसे में पानी बिल्कुल न पिलायें और पशु को बैठने न दें। 100 ग्राम काला नमक, 30 ग्राम हींग, 100 मिली लीटर तारपीन का तेल व 500 मिलीलीटर अलसी का तेल मिलाकर पशु को पिलायें और पशु चिकित्सक से सलाह लें।

यदि पशु अस्वस्थ है तो उसके स्वस्थ होने के पश्चात ही बीमारियों के टीके लगायें जाना चाहिये। यदि पशु गर्भावस्था में है तो टीके लगाने में कोई परेशानीं नहीं होती है, किन्तु गर्भावस्था के अन्तिम माह में सामान्यत: टीका नहीं लगवाना चाहिये क्योंकि पशु को पकड़ते समय उसको चोट लग सकती है जिससे उसके बच्चे को खतरा हो सकता है। पशुओं में कई बीमारियों के संयुक्त टीके उपलब्ध हैं जिनको लगवाने से एक ही टीके से कई बीमारियों का बचाव किया जा सकता है जैसे, गलघौंटू, एकटंगिया, खुरपका मुँहपका का संयुक्त टीका उपलब्ध है। पशुओं में दूध उतारने के लिये ऑक्सीटोसिन की सुई लगाने से पशु की आन्तरिक जैविक क्रियाओं में असंतुलन हो जाता है जिससे पशु में गर्भधारण की समस्यायें आ सकती हैं साथ ही ऐसे पशु का कच्चा दूध पीने से मनुष्य को भी हानि हो सकती है। दूध उतारने के लिये बिना चिकित्सक की सलाह के ऑक्सीटोसिन का प्रयोग हानिकारक है।

 

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