शनिवार, 25 अप्रैल 2009

शनि अमावस्या पर शनि मन्दिर में बड़ी संख्या में श्रध्दालुओं ने शनि देव के दर्शन किये

शनि अमावस्या पर शनि मन्दिर में बड़ी संख्या में श्रध्दालुओं ने शनि देव के दर्शन किये

सुविधा की दृष्टि से प्रशासन की व्यवस्था चाक चौबन्द

ग्वालियर 25 अप्रैल 09। शनि अमावस्या शनिवार के दिन होने से इसका विशेष महत्व है। इस दिन शनि महाराज का तेल से अभिषेक फलदायी होता है। मुरैना जिले के ग्राम एेंती में स्थित देश के प्राचीन शनि मन्दिर में आज शनिदेव के लोगों ने दर्शन किये। इस मन्दिर में दर्शनों के लिये उमड़ी भीड़ इस बात का प्रमाण है कि भक्तों की मनोकामना, सिध्दि एवं उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

       ग्वालियर जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर मुरैना जिले के एेंती ग्राम में स्थित शनि मन्दिर में बड़ी संख्या में श्रृध्दालुओं ने शनिदेव के दर्शन किये तथा प्रतिमा की प्रतिकृति पर तेल चढ़ाया। पूरा शनिचरा पर्वत सिध्दस्थल होने से श्रृध्दालुओं ने मुण्डन करवाया एवं शनिदेव का दर्शन लाभ लिया। दर्शन के बाद लोगों ने अपने पुराने वस्त्र, जूते एवं चप्पल का त्याग किया, जो यत्र तत्र विखरे पड़े थे। शनिदेव के दर्शन का सिलसिला कल रात्रि से प्रारंभ हुआ जो आज शाम तक निरन्तर चला। इस सिध्द स्थान पर दर्शन लाभ लेने के लिये आसपास के जिलों के अलावा राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं देश के विभिन्न प्रदेशों से बड़ी संख्या में श्रृध्दालु आते हैं।

ज्योतिष एवं धर्मग्रन्थों के अनुसार ....

शनिदेव सूर्य की द्वितीय पत्नी छाया के पुत्र हैं । ज्योतिष की अवधारणा के अनुसार शनि एक राशि पर तीस माह तक भ्रमण करते हैं । शनि भगवान शंकर के शिष्य हैं । भैंसा शनि का वाहन है । कहते हैं कि हनुमान जी ने घायल शनि के जख्मों पर तिल्ली तथा सरसों के तेल के फोहे रखे जिससे उन्हें आराम मिला । तभी से शनिवार को शनिदेव के तैलाभिषेक की परम्परा प्रारंभ हुई ।

       ज्योतिषविद्ों का मानना है कि शनि न तो पीड़ादायक ग्रह और न ही भयभीत करने वाला। शनि वस्तुत: भक्तों को सौम्यता, शालीनता , न्याय प्रियता और अध्यात्मपरक मानसिकता का दाता है । शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है । मिथुन , कन्या, तुला और वृष राशियां इसकी मित्र हैं । गृहों में बुध और शुक्र शनि के मित्र गृह माने जाते हैं । शनि को नीलम, लोहा, काली उड़द, काले तिल, नमक, शीशम , काले रंग की वस्तुएं, तेल, नाग व भैंस आदि का स्वामी भी माना जाता है । शनि कल कारखानों व मशीनरी आदि सहित रहस्य विद्या और सफलता का द्योतक भी माना जाता है। 

 

खगोलविदों के अनुसार...

खगोलविदों के अनुसार शनि सौर मण्डल का सबसे सुन्दर और मनोरम पिण्ड है। शनि के चारों तरफ नीले वलय घूमते रहते हैं। पृथ्वी से 700 गुना विशाल गृह व 75 गुना भारी शनि मन्दगति से सूर्य की परिक्रमा करता है। एक शनि वर्ष पृथ्वी के 25 हजार दिन जितना लम्बा होता है।

 

 

      जनश्रुति एवं महन्त शिवराम दास त्यागी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार शनि पर्वत क्षेत्र मे विश्व प्रसिध्द शनिदेव महाराज का मन्दिर अति प्राचीन काल से स्थापित है। इसकी स्थापना त्रेताकालीन मानी जाती है। किवदंतियों के अनुसार सृष्टि रचना के समय शनि पर्वत की भी रचना हो चुकी थी। संवत 1734 में शनि की शिला अहमदनगर गई थी, जहां अनंतगंगा में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे शिंगणापुर कहते हैं। महंत शिवराम दास त्यागी बताते है कि शनि मंदिर की देखरेख का जिम्मा अनेक तत्कालीन शासकों का रहा। इनमें कुंतलपुर नरेश, कछवाहा, तोमर, गोहद के राजा हुकुमसिंह, राजस्थान के जाट शासक आदि शामिल हैं। वर्तमान में मॉफी औकाफ के पास मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी है। शनि मंदिर अब भव्य रूप ले चुका है तथा आगे इसे और भी भव्यता प्रदान करने की योजना है।

      शनि के पिता सूर्यदेव व माँ छाया तथा यमराज के बड़े भाई हैं। शरीर विशालकाय एवं श्यामरंग का है, जो शिवजी को अत्यंत प्रिय है। शनि ग्रहों में प्रधान न्यायाधीश माने जाते हैं, जो हाथों में लोहे का बना त्रिशूल, धनुष-वाण लिये हुये एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में भक्तों को अभयदान देने वाले है। शनि की बहन-यमुना, गुरू -शिवजी, गोत्र -कश्यप, रूचि -अध्यात्म, कानून, कूटनीति, राजनीति, जन्मस्थान -सौराष्ट्र, स्वभाव- गंभीर, त्यागी, तपस्वी, हठी, क्रोधी, अन्य नाम- कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, सौरी, शनैश्चर, कृष्णमंद, रौद्र, आतंक व यम, प्रिय सखा-कालभैरव, हनुमान जी, बुध, राहु, प्रिय राशि-कुंभ, मकर, अधिपति-रात, कार्यक्षेत्र-धरती का न्यायदाता, प्रियदिन-शनिवार-अमावस, रत्न-नीलम, प्रिय वस्तुयें-काली बस्तुयें, काला कपड़ा, कड़वा तेल, गुड़, उड़द, खट्टा, कसैले पदार्थ एवं प्रिय धातु लोहा व इस्पात है।

      शनि पर्वत पर शनिदेव के दर्शन के लिये आने वाले श्रध्दालुओं को कोई अवुविधा न हो, इसके लिये प्रशासन द्वारा चाक चौबंद व्यवस्थायें की गईं। दर्शन के समय व तेल चढ़ावे के समय अधिक लोग एक साथ इकठ्ठे नहीं होने पायें, इसके लिये लोहे का मजबूत बेरीकेटिंग किया गया है। बेरीकेटिंग में श्रध्दालु फब्बारों से स्नान भी कर सकते हैं। पीने के लिये शीतल पेयजल एवं छाया के लिये जगह-जगह टेंट लगे हुये थे। साथ ही ठहरने के लिये धर्मशालायें भी बनीं है। शनि मेला में आने वालों के लिये स्वयंसेवी संगठनों की ओर से पेयजल एवं प्रसाद की नि:शुल्क व्यवस्था थी। हरियाणा राज्य के सिरसा के स्वयंसेवी संगठन द्वारा श्रध्दालुओं के लिये नि:शुल्क भोजन व्यवस्था की गई थी। मेला स्थल पर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नूराबाद के शासकीय चिकित्सक डॉ. एल आर. किसनियाँ के मार्गदर्शन में चिकित्सा दल श्रध्दालुओं के उपचार में सेवारत है। चिकित्सा दल के पास आवश्यक दवायें, एम्बुलेंस एवं चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। मेला में आयुर्वेदिक उपचार की सुविधा भी सुलभ है।

       मेला में कानून व्यवस्था की दृष्टि से चाक चौबंद बन्दोवस्त किये गये हैं।  जगह-जगह कार्य पालिक मजिस्ट्रेट तथा पुलिस अधिकारी तैनात है। साथ ही यातायात की दृष्टि से भी बेहतर इन्तजाम किये गये हैं। मेला स्थल पर मुंडन करने वाले नाइयों का पंजीयन कराया जा रहा है तथा प्रसाद की दुकानें व्यवस्थित तरीके से लगाई गई हैं।

 

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