भिण्ड विधायक हत्या काण्ड – गालिब दिल बहलाने को ख्याल अच्छा है
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
चुनाव चर्चा-2
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं प्रचार भी अपनी जवानी पर आता जा रहा है । जहॉं तक ग्वालियर चम्बल की बात है अंचल की चारों सीटों पर परिणाम तकरीबन साफ और परिदृश्य एकदम स्पष्ट दीवार पर लिखी इबारत के मानिन्द सुपाठ्य है ।
भिण्ड संसदीय सीट पर जहॉं कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. भागीरथ भारी भरकम विजय परचम फहराने जाते दीख रहे हैं तो वहीं बिल्कुल ऐसा ही मुरैना सीट पर विकट जातीय ध्रुवीकरण के चलते भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर भी ऐतिहासिक जीत (रिकार्ड मतों के साथ) अंकित करने जा रहे हैं । मेरे विश्लेषण और आकलन के मुताबिक इन दोनों ही सीटों पर चुनाव लगभग एक चक्षीय से हो गये हैं । मुरैना में हालांकि जातीय और सामाजिक माहौल भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर के एकदम खिलाफ था और अंचल के मतदाता तोमर से एकदम खफा थे लेकिन जातीय ध्रुवीकरण (जो कि होना ही था) और एकमात्र दलीय राजपूत प्रत्याशी होने का लाभ न केवल नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहा है अपितु मजबूरी में मिले वोट ( लोगों का कहना है क्या करें मजबूरी में वोट देना पड़ रहा है ) भी रिकार्ड होंगें तथा यह भी कि इसमें केवल राजपूत वोट ही नहीं बल्कि अन्य तकरीबन सभी जातियों के वोट भी नरेन्द्र सिंह तोमर को मिलने जा रहे हैं (सभी वोट मजबूरी के वोट हैं) ।
भिण्ड में भी ऐसे ही हालात हैं लेकिन एकदम उल्टे यानि यहॉं इस संसदीय सीट पर कॉंग्रेस की यही स्थिति है ( यहॉं मजबूरी का वोट नहीं बल्कि मनपसन्द प्रत्याशी के लिये वोट होगा) । गोहद विधायक स्व. माखन लाल जाटव की हत्या के बाद डॉ भागीरथ की जीत पुख्ता और पुष्ट हो गयी है, यह जीत तो हत्या से पहले ही लगभग एकदम सुनिश्चित थी । भिण्ड सीट पर भाजपा चुनाव प्रचार की शुरूआत से ही प्रभावहीन थी । ऊपर से माखन लाल जाटव की हत्या से भाजपा का चुनाव प्रचार एकदम कोमा में पहुँच गया है और भाजपाई डरते दुबकते चुनाव की बात करते हैं । बचे खुचे भाजपा कार्यकर्ता मुरैना और गुना पलायन कर गये हैं ।
अशोक अर्गल (भाजपा प्रत्याशी) को जो जिल्लत भिण्ड में उठानी पड़ रही है वह स्वाभाविक ही थी, चम्बल की इन दोनों सीटों पर जो भी हो रहा है उसमें किंचित भी कुछ भी विस्मयकारी नहीं है ।
गुना ग्वालियर में सीधे मुकाबले भाजपा और कांग्रेस के बीच हैं और ग्वालियर में मामूली (अधिक भी संभव है) अन्तराल पर कांग्रेस तथा गुना में लम्बे अन्तराल पर कांग्रेस का विजयी होना लगभग तय माना जा रहा है ।
मुरैना में सीधा मुकाबला भाजपा बसपा के बीच होगा , कांग्रेस और माकपा तीसरे व चौथे स्थान के लिये संघर्ष करेंगे । भिण्ड में त्रिकोणीय कहिये या एक पक्षीय कहिये कांग्रेस की विजय के साथ भाजपा और बसपा दूसरे व तीसरे स्थान के लिये संघर्ष करेंगीं । मुरैना में हालांकि भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर को बड़ी आसानी से हराया जा सकता है लेकिन प्रतिद्वंदी प्रत्याशी इसका लाभ नहीं उठा पा रहे । अव्वल तो नरेन्द्र सिंह तोमर के कमजोर पक्ष (वीक पाइण्टस) से वे पूरी तरह या तो अज्ञान या अनजान हैं या फिर उठा नहीं पा रहे या उठाना नहीं चाह रहे । अन्य प्रत्याशीयों की तुलना नरेन्द्र सिंह तोमर का नकारात्मक पक्ष अधिक स्पष्ट व प्रबल था लेकिन यह नरेन्द्र सिंह तोमर का भाग्य या मुकद्दर है कि उनकी टक्कर में कांग्रेस और बसपा ताकतवर प्रत्याशी न देकर कमजोर प्रत्याशीयों को लेकर आयीं जो कि चुनाव प्रचार की सामान्य और बारीक कैसी भी रणनीति और रीति नीति से सर्वथा नावाकिफ हैं ।
मुरैना 23 करोड़ और विदिशा 37 करोड़ में बिके
मुरैना में हालांकि यह अफवाह भी है कि कांग्रेस ने मुरैना और विदिशा सीट क्रमश: 23 करोड़ और 37 करोड़ रू. में भाजपा को बेची हैं । अब इस अफवाह में कितनी दम है या कितनी सच्चाई है यह तो भाजपाई जानें या कांग्रेसी बन्धु जानें ।
पार्टीयां बेअसर
भिण्ड और मुरैना तथा गुना और ग्वालियर चारों सीटों पर राजनीतिक पार्टीयां पूरी तरह बेअसर हो गयीं है इन सीटों पर प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि और जातीय ध्रुवीकरण एवं सामाजिक समीकरणों पर चुनाव आध्धरित हो गये हैं ।
माखनलाल हत्याकाण्ड- डेमेज कण्ट्रोल बेअसर
भाजपा और पुलिस द्वारा गोहद विधायक माखन लाल जाटव की हत्या से बनी स्थिति और हुये डेमेज के कण्ट्रोल के लिये खेले गये सर्कस और सीरीयल चुनावी अर्थों में बेअसर हो गये हैं । हत्याकाण्ड में कांग्रेसी नेताओं को लपेटना लोगों के गले नहीं उतर रहा जबकि हत्या की सुपारी के लिये पैसे कहॉं से आये किसने दिये, किसको दिये कब दिये कहॉं दिये जैसे सवाल अभी तक अधर में हैं, पैसे बरामद क्यों नहीं हुये, कई सवाल पुलिस की भूमिका और भाजपा नेताओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं । इसमें एक अहम सवाल यह भी है कि जो व्यक्ति 32 लाख रू. की सुपारी लेकर हत्या कर सकता है, क्या वही व्यक्ति ज्यादा रकम मिलने पर झूठा गुनाह नहीं कबूल कर सकता ( संभव है कि झूठा गुनाह कबूल करने के लिये भी पैसे मिले हों) अभी सवाल कई इस हत्याकाण्ड पर उठ रहे हैं और पुलिस की भूमिका दिनोंदिन संदिग्ध ही होती जा रही है ।
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