राजनीति, : स्मिता ठाकरे का पलायन- राकेश्ा अचल
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महाराष्ट्र की शिवसेना के प्रमुख बालां साहबठाकरे का लिाातोश्री नाम की इमारत का तिलस्म अब ठाकरे की सत्ता को सम्हालने में नाकाम नजर आ रही है। मातोश्री से बालासाहब ठाकरे की पुत्रवधु श्रीमती स्मिता ठाकरे का पलापन इस पराभव की पुष्ठि करता दिखाई दे रहा है। बालासाहब ठाकरे के पुत्र जयदेव की पत्नी स्मिता ठाकरें को पूरा महाराष्ट्र षिवसेना की महारानी की तरह मान देता रहा है। स्मिता ने षिवसेना के पार्ष्व में खड़े होकर मुक्ति नाम के स्वयंसेवी संगठन के जरिए सक्रिय रहकर खूब धन और सुर्खियां बटोरी। उन्हे जो भी मिला वह बालठाकरे और मातोश्री की महिमा के कारण मिला। बावजूद इसके अब स्मिता को मातोश्री षिवसेना काटने लगी है। स्मिता के मातोश्री से पलायनन को स्मिता की बगावत माना जा रहा है। हकीकत में ऐसा है नही। खबर तो ये है कि स्मिता को प्रतिनियुक्ति पर कांग्रेस में भेजा जा रहा है, ठाकरे साहब खुद इसकी पहल कर रहे है। ठाकरे ने अपनी जरावस्था में षिवसेना का तिलस्म टूटते हुए देख लिया है, वे नही चाहते कि उनके बाद उनकी पुत्रवधु की फजीहत हो।
महाराष्ट्र की सत्ता से लगातार पुत्र उध्दव और भतीजे राज की चिंता नही सताती राज ने अपना स्वतंत्र संगठन बनाने के साथ ही स्वयं को एक नायक के रूप् में स्थापित कर लिया है। उध्दव के पास जैसी भी है, षिवसेना है। अकेली स्मिता ठाकरें के पास कुछ नही है। न षिवसेना, न महाराष्ट्र नव निर्माण सेना। इसलिए उन्हे अपनी पसंद के किसी भी राष्ट्रीय दल में जाने की छूट दे दी गई।
स्मिता ठाकरे के कांग्रेस में शामिल होने का फैसला चौकाने वाला कतई नहीं है। स्मिता ने भाजपा, राकंपा और कंाग्रेस के राजनीतिक भविष्य का आवकन करे के बाद ही कांग्रेस की और कदम बढ़ाया है। महाराष्ट्र में भाजपा की ताकत लगातार कम हुई है, और राकापा, कांग्रेस की बैषाकी के सहारे सत्ता में है। स्मिता जानती है। कि अब उन्हे कांग्रेस की छत्रछाया में खड़े होकर ही मातोश्री पैसा मान-सम्मान मिल सकता है।
यहां प्रसंग लंका में हुए राम-रावण संग्राम से मेल खाने लगा है, लंकाधीष को पराभव की ओर बढ़ते देख, एक-एक कर उस के परिजन श्रीराम की शरण मे आ गए थे, ठीक ऐसा ही महाराष्ट्र में हो रहा है षिवसेना प्रमुख अपना पराभव स्वीकर करने को तैयार नहीं है और निज भुजबल में बैर बढ़ावा का दावा कर सभी को फटकार रहे है।
कांग्रेस के लिए स्मिता ठाकरे को स्वीकार करना कोई बड़ा काम नही है। कांग्रेस में सभी के लिए स्थान है। यहां जब बागी और दागी अंगीकार हो जाते है। तब स्मिता ठाकरें तो शरणार्थी है। उन्हे तो श्रीमती सोनिया गांधी की और से अभय दान मिलेगा ही।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को राकांपा की लेक में लिंग से बचने के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने के लिए अभी काफी श्रम करना है। शरद पवार का जादू काटने के लिए स्मिता जैसे पात्र कांग्रेस के काम आ सकते है। कांग्रेस स्मिता ठाकरे को संरक्षण देकर षिवसेना के साथ ही मनसे और राकापा का भी मुकाबला कर सकती है। अर्थात एकतार से तीन निषाने साधे जा सकते है।
यह तय है कि स्मिता ठाकरे मातोश्री से बाला साहब ठाकरे का आर्षीवाद लिए बिना तो बाहर नही निकल रहीं। लगातार क्षीण हो रहे बाला साहब ठाकरे के पास अपनी पुत्रवधु को स्वतंत्र करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प है भी नही। अब वे उध्दव को भी डाट-फटकार नहीं सकते। उनमें स्मिता को संरक्षण देने की पहले जैसी सामर्थ भी नही रही। स्मिता का बेटा भी अभी छोटा है। इसलिए बाला साहब उसे भी स्थापित नहीं कर सकते ।
लगता है कि बाला साहब की इच्छा के अनुरूप ही स्मिता ठाकरे कांग्रेस में अपनी जगह बनाने के लिए आगे बढ़ी है। यदि कांग्रेस स्मिता को स्वीकार कर लेती है तो बालासाहब से ज्यादा प्रसन्न और कोई नहीं होगा। कम से कम उन्हे अपने बाद स्मिता के भविष्य की चिंता तो नहीं सताएगी।
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