रविवार, 15 मार्च 2009

सैलानियों को दूर से ही आकर्षित करता है शान से इतराता भितरवार का किला

सैलानियों को दूर से ही आकर्षित करता है शान से इतराता भितरवार का किला

ग्वालियर 15 मार्च 09। पार्वती नदी के किनारे एक मनोरम पहाड़ी पर बना भितरवार का किला दूर से ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। किले की तराई में पार्वती पर बने घाट, मंदिर और कल-कल बहती नदी का निर्मल पानी ऐसा मंजर पैदा करते हैं, जिससे इस स्थल पर पहुँचने वाले सैलानी सुकून के साथ अपना कुछ वक्त यहाँ जरूर बिता कर आते हैं। जिला मुख्यालय ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर स्थित भितरवार के किले का निर्माण ईसवी सन की सत्रहवी व अठाहरवी शताब्दी के मध्य कभी हुआ था। कहा जाता है इसे भेराजशाह नामक एक जाट सरदार ने बनवाया था। इतिहासविद टीफेनथेलर ने इस किले के स्थापत्य के बारे में काफी लिखा है। यह किला पत्थर का बना हुआ है। किले में तीन अलग अलग आवेष्टन हैं, जो एक पंक्ति में विभिन्न आधारों पर बने हुए हैं।दक्षिणी आवेष्टन नदी से लगा हुआ है, जिसमें एक बावडी है और चट्टान को काटकर बनाई गई नहर द्वारा इसमें पानी लाया गया है। उत्तरी आवेष्टन सबसे ऊंचे स्थान पर है जो तत्कालीन लड़ाइयों में क्षतिग्रस्त  हो गया था। मध्य आवेष्टन में रिहायशी इमारतें हैं, जो समय के साथ नष्ट भ्रष्ट अवस्था में पहुंच गईं हैं। किले के अंदर पहले एक हाथीनुमा आकृति थी। कहा जाता है इसमें बैठकर तत्कालीन शासक आम जनता की शिकायतें सुना करते थे। किले में एक अंध कुंआ भी था जो नीचे से सुरंगनुमा सीढ़ियों से जुड़ा था, इसका इस्तेमाल कैदियों के बंदीगृह के रूप में किया जाता रहा। बताया जाता है कि पार्वती नदी से सटे किले के भाग में बनीं गुर्ज में रानियों का स्नानागार भी था। पहाड़ी की दूसरी ओर एक अन्य किला है। लक्ष्मणगढ नाम से जाने वाले इस किले का निर्माण भी संभवत: उसी जाट सरदार ने कराया था, जिसने भितरवार का किला बनवाया था। किले के दक्षिणी ओर पर एक स्नान घाट है और वहाँ एक दुमंजिला मंडप बना हुआ है।

      ग्वालियर जिले के गजेटियर में उल्लेख है कि भितरवार की स्थापना लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व किरारों  ने की थी, इस अंचल में आज भी किरार समुदाय की बहुतायत है। भितरवार कस्बे का जो भाग पार्वती नदी और पहाडी के बीच स्थित है वह भीतर और पहाड़ी के दूसरी ओर वाला भाग बाहर कहलाता है। भितरवार सन् 1904 में तत्कालीन नरवर जिले की तहसील रही है। सन् 1934 में भितरवार को ग्वालियर जिले की गिर्द तहसील में शामिल कर लिया गया। आजादी के बाद सन् 1983 तक भितरवार ग्राम पंचायत रही और 1984 में इसे नगर पंचायत का दर्जा दिया गया। सन् 1985 में भितरवार पुन. तहसील बनाई गई और विधानसभा क्षेत्रों के लिये हुए परिसीमन के बाद भितरवार को विधानसभा क्षेत्र भी बना दिया गया है।  वर्तमान में यहाँ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश व अनुविभागीय दण्डाधिकारी का कार्यालय भी स्थापित है। ग्वालियर व शिवपुरी जिले से बहने वाली पार्वती नदी को भितरवार अंचल की जीवनरेखा कहा जाता है। इस नदी पर बने हरसी बाँध से यहाँ के किसानों के समृध्दि के द्वारा खुले हैं। मोहिनी बाँध से भी इस अंचल में सिंचाई होती है। यह अंचल गन्ने का बड़ा उत्पादक क्षेत्र रहा है। वर्तमान में यहां खरीफ में प्रमुख रूप से धान व सोयाबीन उगाई जाती है। रबी में गेंहूं व तिलहनी फसल में सरसों एवं दलहनी फसल में चना व उड़द की फसलें प्रमुख हैं।

      भितरवार अंचल के लोग आपसी प्रेम व सामाजिक सद्भाव के साथ रहते आये हैं। यहां की सामाजिक समरसता व सामुदायिक सहभागिता के उदाहरण भी दिये जाते रहे हैं। यहां के बारे में कहावत हैं -

      '' भीतरवार के नाम पर टीका भए अनेक, भीतरवार उसे कहें जो भीतर बाहर एक''

 

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