सोमवार, 9 मार्च 2009

लोकसभा चुनाव: इंसांफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के

लोकसभा चुनाव: इंसांफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के

निर्मल रानी, 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-09729229728 

      लोकसभा के आम चुनावों का शंखनाद हो चुका है। राजनैतिक दलों द्वारा अधिक से अधिक सीटें हथियाने के मद्दनेंजर गठबंधन, जोड़तोड़ तथा 'योग्य' प्रत्याशियों की सूची जारी करने का सिलसिला जारी है। लगभग 71 करोड़ 41 लाख मतदाता दुनिया के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र भारतवर्ष का भविष्य आगामी 5 वर्षों के लिए तय करने जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार इस बार लगभग 10 करोड़ मतदाता ऐसे होंगे जो पहली बार मतदान में अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे अर्थात् 18 वर्ष पूरे कर चुके नव मतदाता। इन युवा मतदाताओं पर सभी राजनैतिक दलों की निगाहें टिकी हुई हैं। सभी दल चाहते हैं कि देश का भविष्य समझे जाने वाले यह युवा मतदाता उन्हीं की ओर आकर्षित हों। इन युवा मतदाताओं पर सबसे अधिक अधिकार कांग्रेस पार्टी द्वार पेश किया जा रहा है। कांग्रेस का मानना है कि चूंकि पूर्व में 21 वर्ष की आयु के युवा ही मतदान में भाग ले सकते थे। परन्तु युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में 18 वर्ष तक की आयु के युवाओं को मतदान के अधिकार उपलब्ध कराए जाने का अवसर प्रदान किया। यह राजीव गांधी की ही सोच थी कि भारतीय युवा 18 वर्ष की आयु में मतदान करने की सूझ रखता है।

              इसके अतिरिक्त राहुल गांधी जैसे युवा नेतृत्व को आगे रखकर भी कांग्रेस पार्टी यह दर्शाना चाह रही है कि देश अब युवा नेतृत्व की मांग कर रहा है तथा युवा मतदाताओं को नए एवं विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए युवा नेतृत्व की अवधारणा को ही स्वीकार करना चाहिए। कांग्रेस के इस दावे के अतिरिक्त पार्टी द्वारा तीस प्रतिशत युवाओं को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने के भी संकेत हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के अतिरिक्त और भी कई दल युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की लुभावनी बातें कर रहे हैं। प्रश् यह है कि क्या इन दस करोड़ नव मतदाताओं को भी किसी राजनैतिक षडयंत्र का हिस्सा बनते हुए अपने मत का दुरुपयोग कर देना चाहिए अथवा इस बहुमूल्य मत के महत्व को समझते हुए अपने विवेक एवं सूझबूझ का प्रयोग करते हुए मतदान में भाग लेना चाहिए? युवा मतदाताओं को बहुत गंभीरता से देश के राजनैतिक हालात, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की तेंजी से बढ़ती हुई हैसियत, देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता, देश में बढ़ता आतंकवाद, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं राजनीति का होता अपराधीकरण, देश की आर्थिक स्थिति, कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र में होने वाली उपलब्धियों एवं कमियों आदि विषयों को मद्देनंजर रखते हुए किसी भी प्रत्याशी को अपना मत देना चाहिए।

              हमें यह याद रखना चाहिए कि चुनावी महापर्व प्राय: 5 वर्ष में एक ही बार आता है। हमारे द्वारा एक बार चुना गया उम्मीदवार अपने दल, पेशे, स्वभाव, चरित्र तथा इच्छाओं के अनुरूप न केवल हमारे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि वह निर्वाचित सदस्य पूरे देश व दुनिया में हमारे निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि की हैसियत से भी स्वयं को प्रस्तुत करता है। उस निर्वाचित सदस्य की प्रत्येक गतिविधि का सीधा संबंध उसके निर्वाचन क्षेत्र तथा उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं से जोड़ा जाता है। ंजाहिर है ऐसे में मतदाताओं विशेषकर देश का भविष्य समझे जाने वाले युवा मतदाताओं को बड़ी सूक्ष्मता से इस बात का निरीक्षण एवं परीक्षण सब कुछ कर लेना चाहिए कि उनके द्वारा चुना जाने वाला उम्मीदवार वास्तव में कौन है, कैसा है और किन विशेषताओं का स्वामी है। प्रिय मतदाताओं, याद रहे कि यह सुनहरा अवसर 5 वर्षों में मात्र एक ही बार आता है, बार-बार नहीं। अत: बड़ी सूझबूझ का परिचय  देते हुए तथा बहुत ठोक बजाकर मतदान करना चाहिए। हमें जिन मुख्य बिन्दुओं पर किसी भी प्रत्याशी के विषय में सोच विचार करना चाहिए उनमें सर्वप्रथम तो उस प्रत्याशी का शिक्षित होना यहां तक कि उच्च शिक्षा प्राप्त होना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षित सदस्य होने के अनेकों कारण हैं। एक तो आपके निर्वाचन क्षेत्र की प्रतिष्ठा बनी रहती है कि आपने एक शिक्षित सांसद को ही निर्वाचित किया। दूसरे यह कि शिक्षित सांसद अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व बड़े ही गरिमापूर्ण तरींके से कर सकता है। यदि उसके मंत्री बनने का अवसर आए तो वह शिक्षित होने के नाते अपने मातहतों के    हाथों का खिलौना बनने के बजाए अपने विवेक से तथा अपने ज्ञान के बल पर अपने मंत्रालय के कामकाज को न सिंर्फ बंखूबी अंजाम दे सकता है बल्कि अपने विभाग को नई योजनाओं से भी रूबरू करवा सकता है।

              आपके द्वारा निर्वाचित प्रतिनिध साम्प्रदायिक, जातिवाद, क्षेत्रवाद तथा वर्गवाद जैसे नासूर रूपी मुद्दों को हवा देने वाला अथवा इन्हें संरक्षण देने वाला ंकतई नहीं होना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत एक ऐसा महान देश है जो पूरी दुनिया में अनेकता में एकता की एक अनूठी मिसाल पेश करता है। इस भारत महान में अनेक धर्म, सम्प्रदाय व जातियों के लोग रहते हैं। इस भारत महान में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। यहां विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं तथा हमारा महान देश नाना प्रकार के रीति-रिवाजों का देश है। परन्तु इन सभी विभिन्नताओं के बावजूद हम सबसे पहले एक भारतीय हैं और एक ही विशाल देश के नागरिक हैं। ऐसे में यदि कोई वैचारिक रूप से कमंजोर प्रत्याशी अपनी वैचारिक कमंजोरी का ठीकरा हमारे सिर पर फोड़ने के लिए हमें साम्प्रदायिकता, जातिवाद अथवा क्षेत्रवाद की सीमाओं में बांधते हुए हमें गुमराह करना चाहे तथा संकीर्णता के जाल में फंसा कर हमारे वोट झटकना चाहे तो हमें ऐसे प्रत्याशियों से भी होशियार रहने की ंजरूरत है। संभव है कि धर्म, जाति, क्षेत्र अथवा भाषा जैसी सीमाओं में हमें ंकैद करने वाला वह प्रत्याशी शिक्षित भी हो। परन्तु ऐसे तथाकथित शिक्षित उम्मीदवार के विषय में हमें अपने पूर्ण विवेक से यह निर्णय लेना होगा कि यह प्रत्याशी वास्तव में शिक्षित होते हुए भी पूर्णतय: अशिक्षित है। अत: ऐसा प्रत्याशी भी हमारे मतों का अधिकारी हरगिंज नहीं होना चाहिए। हमें उन प्रत्याशियों में से एक को चुनना होगा जो यह नारा दे कि- गर्व से कहो हम हिन्दुस्तानी हैं।

              भ्रष्टाचार भी एक दानव की तरह राजनीति की छाती पर सवार हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कल तक जिन सांसदों के पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी आज मात्र एक या दो चुनाव जीतने के बाद ही वे थोड़े बहुत पैसों के नहीं बल्कि अच्छे ंखासे 'साम्राज्य' के मालिक तक बन चुके हैं। भारतीय मीडिया विशेषकर खोजी पत्रकारिता में लगे टी वी कैमरे गत् एक दशक से देश को बेचकर खाने वाले ऐसे भ्रष्ट नेताओं को नंगा करते आ रहे हैं। जब भी कोई नेता रिश्वत की रंकम हाथों में लेकर टी वी कैमरे में ंकैद होता है, आम भारतीय सबसे पहले यही प्रश् करता है कि यह सांसद महोदय आंखिर किस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधत्व करते हैं? ंजाहिर है ऐसे में बदनामी का शिकार पूरा का पूरा निर्वाचन क्षेत्र ही होता है। अत: यह सभी मतदाताओं विशेषकर देश का भविष्य समझे जाने वाले नव मतदाताओं का परमर् कत्तव्य है कि वे किसी भ्रष्ट, रिश्वतंखोर अथवा मात्र धनार्जन को ही अपने जीवन का सर्वोच्च सरमाया समझने वाले प्रत्याशियों को अपना बहुमूल्य मत देने से बांज आएं।

              आतंकवाद भी इस समय हमारे देश की एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। इसका सामना भी हम सभी भारतवासियों को मिलजुलकर करने की ंजरूरत है। कुछ तांकतें आतंकवाद के नाम पर साम्प्रदायिकता फैलाने का प्रयास करती हैं। ऐसे प्रयास करने वाले लोग दरअसल आतंकवाद का विरोध नहीं करते बल्कि यह आतंकवादियों की मंशा को ही परवान चढ़ाते हैं। अत: मतदान करते समय हमें यह भी ंजरूर देखना चाहिए कि आतंकवाद के विषय से निपटने में हमारा प्रत्याशी अपने क्या विचार रखता है। हमारा प्रत्याशी जब योग्य, शिक्षित, भ्रष्टाचार मुक्त, साम्प्रदायिक सौहार्द्र तथा सर्वधर्म की बात करने वाला कोई सान एवं योग्य व्यक्ति होगा, वही व्यक्ति न सिंर्फ हमारे निर्वाचन क्षेत्र का नाम रौशन कर सकेगा बल्कि हमारे क्षेत्र के विकास की भी उसी को ंफिक्र होगी। वैसा ही वास्तविक समाजसेवी निर्वाचित व्यक्ति बेरोंजगारों, युवाओं, महिलाओं के उत्थान के विषय में सोच सकेगा। सड़क, बिजली, पानी जैसी विकास की बुनियादी ंजरूरतों को भी ऐसा ही सांसद पूरा कर सकेगा। स्वास्थय, शिक्षा आदि का भी वही व्यक्ति ंखयाल रख सकेगा। कृषि तथा उद्योग के क्षेत्र में भी वही सांसद आपके क्षेत्र को आगे ले जा सकेगा। परन्तु इन सबके लिए सबसे बड़ी और सबसे ंजरूरी शर्त यही है कि आपके द्वारा चुना जाने वाला सांसद पूर्णतय: योग्य एवं योग्यता के सभी मापदंडों पर खरा उतरना चाहिए। यदि पूरे देश के मतदाता इन सभी योग्यताओं को मद्देनंजर रखते हुए अपने मतदान का प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से न तो भारत को विकसित राष्ट्र बनने से दुनिया की कोई तांकत रोक सकेगी और न ही भारत की एकता व अखंडता की ओर देश की कोई भीतरी या बाहरी शक्ति आंख उठाकर देख सकेगी।

 

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