मलेरिया से बचाव के रामबाण उपाय, इलाज से बचाव बेहतर होता है
मादा एलाफिलीज से फैलता है जानलेवा मलेरिया
ग्वालियर 24 मार्च 09। मलेरिया एक संक्रामक रोग है। यह रोग एक सूक्ष्म जीवाणु की वजह से होता है, जिसे मलेरिया परजीवी कहते हैं। इस बीमारी मे ठंड लगकर बुखार आता है एवं पसीना होकर बुखार उतर जाता है। जब मलेरिया के रोगी को मादा एनॉफिलीज मच्छर काटती है, तब रक्त के साथ मलेरिया के परजीवी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अपनी संख्या में वृध्दि करने लगजाते हैं। यह संक्रमित मादा मच्छर जब एक स्वस्थ व्यक्ति को काटती है, तब मलेरिया के परजीवी स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं परजीवी के विकास और संख्या में वृध्दि होने लगती है। संक्रमित मच्छर के काटने के 10 से 14 दिन के बाद मलेरिया के लक्षण दिखाई देते हैं व मनुष्य बीमार हो जाता है।
मलेरिया के रोगी को तेज बुखार आता है और ठंड लगती है, जी मचलता है, उल्टी होती है, सिरदर्द होता है, जो धीरे-धीरे तेज होता जाता है। यह बुखार 102 से 106 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंचजाता है। मरीज को कभी-कभी बेहोशी भी आ जाती है। मलेरिया से मरीज के खून में न केवल कमी आती है, बल्कि उसमें कमजोरी भी आ जाती है तथा जिगर और तिल्ली भी बढ़ जाती है। समय उपचार न मिलने पर मलेरिया जानलेवा भी हो सकता है। मलेरियाजन्य एनीमिया से गर्भवती महिलाओं का गर्भपात भी हो सकता है।
मादा एनाफिलीज मच्छर अपने अण्डे रूके हुए पानी जैसे पोखर, तालाब, झील के किनारे, कुएं, नदी, नाले, टंकी आदि में देते हैं। ये अण्डे छोटे होते हैं और पानी की सतह पर तैरते रहते हैं। सामान्यत: पानी के किनारे पर पौधे व घास उगी होती है, जहां अण्डों व लार्वा को रूकने का स्थान मिलता है। अण्डे देने के 24 से 48 घण्टे बाद अण्डे से लार्वा निकलते हैं, ये लार्वा 5 से 6 दिन में प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो पानी में डुबकी लगाते रहते हैं। प्यूपा से 2 से 3 दिन में वयस्क मच्छर बनकर उड़जाता है। वयस्क मच्छर सतह से 45 डिग्री कोण पर विश्राम करता है। इस प्रकार अण्डे से मच्छर बनने में 9 से 11 दिन का समय लगता है। पानी की सतह में इनके शत्रु गम्बूशिया मछली होते हैं, जो इनको अण्डा, लार्वा, प्यूपा अवस्था में ही खा जाते हैं।
मच्छर छत पर रखी पानी की खुली टंकी, बेकार फेंके हुए टायर में जमा पानी, कूलर में, किचन गार्डन में रूके हुए पानी में, सजावट के लिये बने फव्वारों में, गमले व फूलदान में, टूट बर्तन, मटके, कुल्हड़, गमले, बिना ढके वर्तन में पैदा होते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हैण्डपंप के आसपास रूके हुए पानी में, प्रयोग में न आने वाले पानी में, पशुओं के पानी पीने वाले के हौद में, खुरों की छाप में जमा पानी में, धान के खेतों के पानी में, घरों के आसपास एक सप्ताह से अधिक तक रूके हुए पानी में, वर्षा ऋतु में पेड़ों के खोखल और छेदों में रूके हुए पानी में, घास से घिरे तालाब या दलदली जगह में, नालियों के ठहरे हुए पानी में, नहरों में रूके हुए पानी में मच्छर पनपते हैं।
मलेरिया से बचने का रामबाण उपाय यह है कि रात को सोते समय मच्छरदानी जरूर लगायें, अपने घरों में खिड़की और दरवाजों में मच्छरप्रूफ जालियां जरूर लगवायें, नारियल व सरसों के तेल में नीम का तेल मिलाकर या मच्छर भगाने वाले क्रीम को शरीर के खुले हिस्से में लेप करें, शरीर पर ऐसे कपड़े पहनें, जिससे पूरा शरीर ढक जाये। इसके अलावा मलेरिया से बचाव करने के लिये छत पर रखी पानी की टंकी को ढंक दें। टूटे-फूटे बर्तन पानी जमा होने दें, कूलर का पानी हर सप्ताह बदलते रहें, घरों के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें, तालाबों में लार्वा भच्छी गम्बूशिया मछली डालें। यह मछली स्वास्थ्य विभाग मुफ्त में देता है।
मलेरिया का बुखार आने पर खून की जांच अवश्य करायें। इसके अलावा एक साल के बच्चे को क्लोरोक्विन की आधी गोली दूध के साथ पिलायें, बड़े बच्चों को एक गोली तथा वयस्क को दो से 4 गोली प्रतिदिन खिलाने से मलेरिया ठीक हो सकता है। इसके अलावा आजकल दवायुक्त मच्छरदानी भी बाजार में मिलती है, जिससे मच्छर पास नहीं आते गर्भवती माताओं और बच्चों को मलेरिया से बचाने का विशेष उपाय करना चाहिए।
मच्छरों से डेंगू बुखार और फाइलेरिया (हाथीपांव) की बीमारी भी हो सकती है। देश में हर साल सैकड़ों लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं। फायलेरिया या हाथी पांव की बीमारी क्यूलेक्स नामक मच्छर से होती है। ठीक ही कहा गया है कि ''इलाज से बचाव अच्छा होता है।''