मंगलवार, 24 मार्च 2009

मलेरिया से बचाव के रामबाण उपाय, इलाज से बचाव बेहतर होता है

मलेरिया से बचाव के रामबाण उपाय, इलाज से बचाव बेहतर होता है

मादा एलाफिलीज से फैलता है जानलेवा मलेरिया

ग्वालियर 24 मार्च 09। मलेरिया एक संक्रामक रोग है। यह रोग एक सूक्ष्म जीवाणु की वजह से होता है, जिसे मलेरिया परजीवी कहते हैं। इस बीमारी मे ठंड लगकर बुखार आता है एवं पसीना होकर बुखार उतर जाता है। जब मलेरिया के रोगी को मादा एनॉफिलीज मच्छर काटती है, तब रक्त के साथ मलेरिया के परजीवी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अपनी संख्या में वृध्दि करने लगजाते हैं। यह संक्रमित मादा मच्छर जब एक स्वस्थ व्यक्ति को काटती है, तब मलेरिया के परजीवी स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं एवं परजीवी के विकास और संख्या में वृध्दि होने लगती है। संक्रमित मच्छर के काटने के 10 से 14 दिन के बाद मलेरिया के लक्षण दिखाई देते हैं व मनुष्य बीमार हो जाता है।

       मलेरिया के रोगी को तेज बुखार आता है और ठंड लगती है, जी मचलता है, उल्टी होती है, सिरदर्द होता है, जो धीरे-धीरे तेज होता जाता है। यह बुखार 102 से 106 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंचजाता है। मरीज को कभी-कभी बेहोशी भी आ जाती है। मलेरिया से मरीज के खून में न केवल कमी आती है, बल्कि उसमें कमजोरी भी आ जाती है तथा जिगर और तिल्ली भी बढ़ जाती है। समय उपचार न मिलने पर मलेरिया जानलेवा भी हो सकता है। मलेरियाजन्य एनीमिया से गर्भवती महिलाओं का गर्भपात भी हो सकता है।

       मादा एनाफिलीज मच्छर अपने अण्डे रूके हुए पानी जैसे पोखर, तालाब, झील के किनारे, कुएं, नदी, नाले, टंकी आदि में देते हैं। ये अण्डे छोटे होते हैं और पानी की सतह पर तैरते रहते हैं। सामान्यत: पानी के किनारे पर पौधे व घास उगी होती है, जहां अण्डों व लार्वा को रूकने का स्थान मिलता है। अण्डे देने के 24 से 48 घण्टे बाद अण्डे से लार्वा निकलते हैं, ये लार्वा 5 से 6 दिन में प्यूपा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो पानी में डुबकी लगाते रहते हैं। प्यूपा से 2 से 3 दिन में वयस्क मच्छर बनकर उड़जाता है। वयस्क मच्छर सतह से 45 डिग्री कोण पर विश्राम करता है। इस प्रकार अण्डे से मच्छर बनने में 9 से 11 दिन का समय लगता है। पानी की सतह में इनके शत्रु गम्बूशिया मछली होते हैं, जो इनको अण्डा, लार्वा, प्यूपा अवस्था में ही खा जाते हैं।

       मच्छर छत पर रखी पानी की खुली टंकी, बेकार फेंके हुए टायर में जमा पानी, कूलर में, किचन गार्डन में रूके हुए पानी में, सजावट के लिये बने फव्वारों में, गमले व फूलदान में, टूट बर्तन, मटके, कुल्हड़, गमले, बिना ढके वर्तन में पैदा होते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हैण्डपंप के आसपास रूके हुए पानी में, प्रयोग में न आने वाले पानी में, पशुओं के पानी पीने वाले के हौद में, खुरों की छाप में जमा पानी में, धान के खेतों के पानी में, घरों के आसपास एक सप्ताह से अधिक तक रूके हुए पानी में, वर्षा ऋतु में पेड़ों के खोखल और छेदों में रूके हुए पानी में, घास से घिरे तालाब या दलदली जगह में, नालियों के ठहरे हुए पानी में, नहरों में रूके हुए पानी में मच्छर पनपते हैं।

       मलेरिया से बचने का रामबाण उपाय यह है कि रात को सोते समय मच्छरदानी जरूर लगायें, अपने घरों में खिड़की और दरवाजों में मच्छरप्रूफ जालियां जरूर लगवायें, नारियल व सरसों के तेल में नीम का तेल मिलाकर या मच्छर भगाने वाले क्रीम को शरीर के खुले हिस्से में लेप करें, शरीर पर ऐसे कपड़े पहनें, जिससे पूरा शरीर ढक जाये। इसके अलावा मलेरिया से बचाव करने के लिये छत पर रखी पानी की टंकी को ढंक दें। टूटे-फूटे बर्तन पानी जमा  होने दें, कूलर का पानी हर सप्ताह बदलते रहें, घरों के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें, तालाबों में लार्वा भच्छी गम्बूशिया मछली डालें। यह मछली स्वास्थ्य विभाग मुफ्त में देता है।

       मलेरिया का बुखार आने पर खून की जांच अवश्य करायें। इसके अलावा एक साल के बच्चे को क्लोरोक्विन की आधी गोली दूध के साथ पिलायें, बड़े बच्चों को एक गोली तथा वयस्क को दो से 4 गोली प्रतिदिन खिलाने से मलेरिया ठीक हो सकता है। इसके अलावा आजकल दवायुक्त मच्छरदानी भी बाजार में मिलती है, जिससे मच्छर पास नहीं आते गर्भवती माताओं और बच्चों को मलेरिया से बचाने का विशेष उपाय करना चाहिए।

            मच्छरों से डेंगू बुखार और फाइलेरिया (हाथीपांव) की बीमारी भी हो सकती है। देश में हर साल सैकड़ों लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं। फायलेरिया या हाथी पांव की बीमारी क्यूलेक्स नामक मच्छर से होती है। ठीक ही कहा गया है कि ''इलाज से बचाव अच्छा होता है।''

 

सोमवार, 23 मार्च 2009

जनता की जेब कतरने के आधुनिक एवं नायाब तरींके

जनता की जेब कतरने के आधुनिक एवं नायाब तरींके

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-09729229728 

 

       दुनिया इस समय आर्थिक मंदी की भीषण चपेट में है। कहा जा रहा है कि विश्व को इस प्रकार की आर्थिक मंदी से पहले कभी रूबरू नहीं होना पड़ा। दुनिया के अनेक देशों को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाला तथा विश्व का सबसे समृद्ध समझा जाने वाला अमेरिका भी इन दिनों आर्थिक मंदी की सबसे अधिक मार झेल रहा है। अमेरिका में कई नामी-गिरामी बैंक तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना दम तोड़ चुकी हैं। विश्व के कई प्रसिद्ध उद्योगपति तथा पूंजीपति अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते देखे जा रहे हैं। इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ता नंजर आने लगा है। कहीं नौकरियों में छंटनी के समाचार प्राप्त हो रहे हैं तो कहीं तन्ख्वाहें घटाई जा रही हैं। आर्थिक मंदी की मार झेल रहे संस्थान किसी भी प्रकार से अपने ंखर्चों पर अंकुश लगाने की जुगत में लगे हैं। ंजाहिर है ऐसे वातावरण में प्रत्येक सरकारी व ंगैर सरकारी कंपनियों की यही कोशिश है कि किसी भी प्रकार अपने संस्थान को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने हेतु धन उगाही के अधिक से अधिक रास्ते तलाश किए जाएं। और इन्हीं रास्तों पर चलते हुए अनेक कम्पनियों द्वारा जनता से धन उगाही के कुछ ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जो ंकतई तौर पर अनैतिक, ंगैर ंजिम्मेदाराना तथा शरारतपूर्ण हैं। यह सरकार में बैठे ंजिम्मेदार लोगों का ंफंर्ज है कि उसके प्रतिनिधि आम जनता की जेबों पर डाका डालने के कुछ निजी कम्पनियों के प्रयासों से उन्हें बचाए।

              उदाहरण के तौर पर मोबाईल ंफोन के वर्तमान युग में उपभोक्ता को मोबाईल संबंधी अनेकों चक्रव्यूह में फंसाकर मोबाईल धारक से जबरन पैसे वसूलने की सफल कोशिशें की जाती हैं। जैसे कई कम्पनियों की ओर से अपने ही किसी प्रॉडक्ट को बेचने या उसके संबंध में रिझाने के लिए उपभोक्ता को अनचाही कॉल की जाती है। यदि आपने अपने संचार क्षेत्र के भीतर कंपनी द्वारा की गई उस कॉल को ग्रहण किया फिर तो आपका केवल ंकीमती समय ही गया। और यदि आप उस समय अपने मोबाईल के साथ रोमिंग में हैं फिर तो आपको कंपनी की किसी भी बकवास, लालच अथवा ऑंफर को सुनने के लिए कंपनी को अपने ंकीमती समय के साथ-साथ रोमिंग शुल्क के रूप में धन भी देना पड़ेगा। मात्र मोबाईल क्षेत्र में ही दी जाने वाली सुविधा के नाम पर ग्राहकों से धन उगाहने के सैकड़ों तरींके अपनाए जा रहे हैं। इनमें जहां कई तरींके शौंक पूरा करने वाले कहे जा सकते हैं, वहीं कई तरींके ऐसे भी हैं जो पूरी तरह से फूहड़पन तथा अनैतिकता से भरपूर हैं। जैसे रिंगटोन, हैलो टयून तथा कॉलर टोन आदि का बिकना तो शौंक पूरा करने की श्रेणी में गिना जा सकता है। परन्तु आशिंकी माशूंकी की बातें करने के ऑंफर देना या इसके लिए प्रोत्साहित करना, गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड ढूंढना, सोना जीतो या कार जीतो जैसे लालचपूर्ण ऑंफर दिखाकर उपभोक्तओं में जुआ खेलने की प्रवृत्ति को पैदा करना आदि तमाम ठगीपूर्ण योजनाओं को आंखिर किस नंजरिए से देखा जाना चाहिए। कभी यह निजी कम्पनियां धार्मिक त्यौहारों के अवसर पर अपने उपभोक्ताओं को अनचाही कॉल या अनचाहे संदेशों के माध्यम से उन्हें भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने का प्रयास करती हैं तो कभी वैलेंटाईन्ंज डे जैसे अवसरों को भुनाने की कोशिश की जाती है। कभी ज्योतिष के नाम पर उपभोक्ताओं की जेब खंगालने की कोशिश की जाती है तो कभी क्रिकेट के घंटे दो घंटे पहले के स्कोर बताकर क्रिकेट प्रेमी उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डाला जाता है। इस प्रकार के और न जाने कितने ऐसे प्रयास किए जाते हैं जिनके द्वारा कि साधारण अथवा ंगरीब उपभोक्ता की जेब से जबरन अथवा लालचवश पैसे वसूले जा सकें। ऐसी गुमराह करने वाली योजनाएं कमोबेश पूरे भारतवर्ष में अधिकांश निजी मोबाईल कम्पनियों द्वारा चलाई जा रही हैं जिससे उपभोक्ताओं को सचेत रहने की ंजरूरत है।

              आर्थिक मंदी के इस दौर में निजी कम्पनियों द्वारा और भी कई चौंकाने वाले ऑंफर उपभोक्ताओं को दिए जा रहे हैं। इनमें कई ऑंफर तो ऐसे हैं जिनसे कि उपभोक्ता चाहते हुए भी बच नहीं पाता। और आंखिरकार लालच में फंस ही जाता है। मिसाल के तौर पर अपने ही देश में सक्रिय ंफ्यूचर ग्रुप की एक   रिटेल दुकानदारी की प्रसिद्ध श्रृंखला बिग बांजार द्वारा उपभोक्ताओं को अपने घर का कोई भी कबाड़ घर से निकाल कर बिग बांजार तक पहुंचाने का लोकलुभावना ऑंफर दिया जा रहा है। ऑंफर के प्रचार का तरींका इसके योजनाकारों ने ऐसा बनाया है कि चतुर से चतुर उपभोक्ता भी बिग बांजार द्वारा रचे गए इस मायाजाल में फंसने को कम से कम एक बार तो ंजरूर मजबूर हो रहा है। उदाहरणतय: रद्दी कांगंज को ही ले लें। यदि आप बांजार में किसी कबाड़ी की दुकान पर रद्दी बेचने जाएं तो अधिक से अधिक 6, 7, या फिर 8 रुपए प्रति किलो के भाव से ही आप अपनी रद्दी, चाहे वे अंखबार हों अथवा कापी किताब, कुछ भी बेच सकेंगे। परन्तु बिग बांजार का प्रस्ताव है कि वे 25 रुपए प्रति किलो के दर से रद्दी का ंखरीददार है। ंजाहिर है कोई भी व्यक्ति 4 गुणा रेट पर ही अपनी रद्दी बेचना चाहेगा। इसी प्रकार पुराने कपड़े की ंकीमत सौ रुपए किलो से लेकर 200 रुपए किलो तक रखी गई है। यहां तक कि आपके घर का कोई ऐसा सामान जो कबाड़ी भी ंखरीदने से इन्कार कर दे, उसे भी अच्छे दामों पर ंखरीदने के लिए बिग बांजार तैयार बैठा है। ंफर्नीचर, फ्रिज, टीवी, बर्तन, लोहा, लकड़ी, गत्ता, टायर, रबड़, प्लास्टिक कुछ भी ले आईए बिग बांजार को सब कुछ स्वीकार्य है।

              देखा गया कि तथाकथित संभ्रान्त लोग अपने घर का तमाम कबाड़ गठरियों में बांधकर अपनी कारों में भरकर यहां तक कि कारों की छतों पर रखकर तथा डिग्गियों में भरकर बिग बांजार की ओर निकल पड़े। इस अंदांज में कि मानो पूरा का पूरा शहर बिग बांजार को ही लूट लेने पर उतारु हो गया हो। परन्तु आपका कबाड़ तौलने के बाद आपको उसकी ंकीमत के रूप में नंकद धनराशि नहीं दी जाती। इसके बदले आपको बिग बांजार की ओर से दिए जाते हैं, कबाड़ की ंकीमत के बराबर के कुछ कूपन। यानि यदि आपका कबाड़ एक हंजार रुपए ंकीमत का था तो आपको एक हंजार रुपए मूल्य के कूपन थमा दिए जाएंगे। यह कूपन सौ रुपए वाले दस, 50 रुपए ंकीमत वाले 20 अथवा 10 रुपए ंकीमत के 100 कूपन भी हो सकते हैं। उपभोक्ता अपना कबाड़ इन चतुर बुद्धि योजनाकारां के गुर्गों के हाथों में सौंपकर तथा उसके बदले में कांगंज के कूपन प्राप्त कर पूरी तरह से इनकी गिरंफ्त में आ जाता है। फिर उपभोक्तओं को उसी लेन-देन स्थल पर समझाया जाता है कि इस कूपन के बदले में आप बिग बांजार से शॉपिंग कर सकते हैं। मगर रुकिए जनाब। इतनी आसानी से बिग बांजार वाले आपको कूपन की ंकीमत के बदले उस ंकीमत का सामान कहां देने वाले हैं। आपके हाथों में जो कूपन दिए गए हैं, उसकी ंकीमत मात्र 25 प्रतिशत आंकी जाती है। उदाहरण के तौर पर यदि आपने एक हंजार मूल्य का सामान बिग बांजार से ंखरीदा है तो आपको सात सौ पचास रुपए तो अपनी जेब से भरने होंगे जबकि केवल ढाई सौ रुपए के ही कूपन स्वीकार किए जा सकते हैं।

              मगर अभी भी ठहरिए जनाब। उपभोक्ताओं को ठगने का तथा उसकी जेब पर जबरन डाका डालने का यह अभियान अभी भी पूरा नहीं हुआ है। बिग बांजार के योजनाकारों ने शॉपिंग मॉल में उपलब्ध सभी वस्तुओं की ंखरीद पर कूपन को अधिकृत नहीं किया है। केवल उनके द्वारा निर्धारित की गई वस्तुओं की ंखरीद पर ही आप कूपन का प्रयोग मात्र 25 प्रतिशत राशि के रूप में कर सकते हैं। यदि आप मॉल पहुंच गए हैं तथा उनकी सूची से अलग का कोई सामान ंखरीद रहे हैं तो जनाबेआली आपको शत् प्रतिशत भुगतान अपनी जेब से ही करना पड़ेगा। बात अगर यहीं ख़त्म हो जाती फिर भी कुछ ंगनीमत था। परन्तु ऐसा नहीं है। यह तथाकथित 25 प्रतिशत ंकीमत रखने वाले कूपन भी यदि आपने कूपन प्राप्त करने के मात्र 10 दिनों के भीतर प्रयोग नहीं किए तो इसकी वह ंकीमत भी जाती रहेगी जो आपको मिलने की संभावना थी। क्योंकि योजनाकारों ने इसकी समय सीमा भी निर्धारित कर रखी है। अर्थात् बिग बांजार को न केवल आपके घर का कबाड़ चाहिए बल्कि उसके साथ-साथ 75 प्रतिशत की नंकद धनराशि भी चाहिए और वह भी यथाशीघ्र।

              सोचने का विषय है कि मंदी व मंहगाई की मार झेल रहे उपभोक्ताओं को इस प्रकार की निजी कम्पनियों द्वारा कैसी-कैसी लोकलुभावनी तथा गुमराह करने वाली मक्कारीपूर्ण योजनाओं में फंसाया जा रहा है। सरकार आम जनता को निजी कम्पनियों के इन हथकंडों से बचाने के लिए कोई उपाय करेगी भी या नहीं यह भी संदेहपूर्ण है। क्योंकि हो सकता है सरकार की नंजरों में निजी कम्पनियों के हितों का ध्यान रखना आम उपभोक्ताओं के हितों का ध्यान रखने से कहीं अधिक ंजरूरी भी हो। अत: आम जनता को स्वयं जागना होगा, जागरूक होना होगा, दूसरों को जगाना व जागरूक करना होगा ताकि आम लोग लालचवश निजी कम्पनियों के इन या इन जैसे अन्य लुभावने ऑंफंर्ज के झांसे में न आने पाएं।   निर्मल रानी

 

रविवार, 22 मार्च 2009

सौर शहरों का विकास

सौर शहरों का विकास

श्रीमती कल्पना पालकीवाला*

भारत के कई शहरों और कस्बों में विद्युत मांग में 15 प्रतिशत की वृध्दि हो रही है। तेजी से बढती ऌस मांग के परिणामस्वरूप, ज्यादातर शहर और कस्बे भारी विद्युत कटौती का सामना कर रहे हैं। इसलिए, ऊर्जा मांग का प्रबंध करना स्थानीय सरकारों और नगर निगमों के लिए एक प्राथमिक कार्य बन गया है। इसलिए, एक ऐसी कार्य योजना को विकसित किए जाने की आवश्यकता है जिससे ऊर्जा संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण और प्रणाली के माध्यमों को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन की अत्यधिक मात्रा में कमी लाने के अतिरिक्त पारंपरिक ऊर्जा खपत में कमी लायी जा सकती है। इसके अनुसार, न्न सौर शहरों का विकास न्न पर एक कार्यक्रम तैयार किया जा चुका है जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग हेतु नगर निगमों को अपने शहरों को सौर शहरों के तौर पर विकसित करने की तैयारी और एक कार्ययोजना के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करना है।

उद्देश्य

       इस कार्यक्रम के उद्देश्यों में शहरी स्थानीय निकायों को शहर स्तर पर ऊर्जा चुनौतियों से निबटने में सक्षम बनाना, निकायों को ढांचागत योजना प्रदान करना और उसमें मदद करना, वर्तमान ऊर्जा स्थिति, भविष्यगत की मांग और कार्य योजनाओं के निर्धारण सहित प्रमुख योजना की तैयारी करना, निकायों की क्षमता को बढाना और नागरिक समाज के सभी वर्गो के बीच जागरूकता जगाना, योजना प्रक्रिया में विभिन्न पणधारकों को शामिल करना और सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से दीर्घकालीन ऊर्जा विकल्पों के कार्यान्वयन की देखभाल करना शामिल है।

भौतिक लक्ष्य-

       11वीं योजनावधि में, कुल 60 शहरों को न्न सौर शहरों न्न के तौर पर विकसित किये जाने का प्रस्ताव है। मंत्रालय द्वारा एक राज्य में कम से कम एक शहर से लेकर अधिकतम पाँच शहरों को मदद प्रदान की जाएगी। इस कार्यक्रम में शामिल शहरों की जनसंख्या 5 लाख से ज्यादा और 50 लाख से कम होगी।

प्रमुख गतिविधियां-

       इस कार्यक्रम को मंत्रालय द्वारा स्वीकृत तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर मुख्य योजना की तैयारी के माध्यम से शहर स्तर पर दीर्घकालीन ऊर्जा को प्रदान करने में सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने के आधार पर तैयार किया गया है। मुख्य योजना को संकेतात्मक दिशानिदेर्शो के अनुसार तैयार किया गया है जिससे अगले 10 वर्षो के लिए संपूर्ण और क्षेत्रवार ऊर्जा मांग और आपूर्ति प्रदान की जायेगी। इसके अलावा, यह शहर में ऊर्जा उपयोग और ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन के बारे में एक संपूर्ण क्षेत्रवार आधार व्यवस्था भी प्रदान करेगा। मुख्य योजना में ऊर्जा संरक्षण के वर्षवार लक्ष्य, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाऊस गैसों की कमी के साथ कार्य योजना के कार्यान्वयन को स्पष्ट रूप से सामने लाया जायेगा। वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों क्षेत्र के संदर्भ संगठनों से अनुदान के संभावित स्रोतों की पहचान की जाएगी। चयनित प्रतिनिधि, स्थानीय अनुसंधान और शैक्षिक संस्थान, निवासी कल्याण संस्थाएं, औद्योगिक और कॉरपोरेट संगठन, गैर सरकारी संगठन, एसएनए आदि की प्रस्तुति के साथ अंतिम रूप देने से पूर्व, मुख्य योजना पर पणधारक सलाहकार कार्यशाला में विचार विमर्श किया जाएगा। मुख्य योजना में वर्तमान स्तर से 10 प्रतिशत तक की ऊर्जा खपत और कार्बन उत्सर्जन में कमी का न्यूनतम लक्ष्य रखा जाएगा।

        इस कार्यक्रम के अंतर्गत शहर परिषद में  न्न सौर शहर प्रकोष्ठ न्न का गठन भी शामिल है जिसमें योजना और कार्यान्वयन के लिए वरिष्ठ प्रशासक और शहर अभियंता होगें। नगर निगम निकायों , स्थानीय अनुसंधान, शैक्षिक संस्थान, निवासी कल्याण संस्था, औद्योगिक और कॉरपोरेट संगठन, गैर सरकारी संगठन, राज्य क्षेत्रीय एजेन्सियां और अन्य संबंध्द पणधारकों की प्रस्तुति के साथ सलाहकार सहायता के लिए एक न्न सौर शहर पणधारक समिति का गठन किया जाएगा।

          विभिन्न पणधारकों जैसे नगर निगम निकायों , नगर निगम अधिकारियों, वास्तुकारोंअभियंताओं, भवननिर्माताओं, वित्तीय संस्थानों,गैर सरकारी संगठनों, तकनीकी संस्थानों, उत्पादक और आपूर्तिकर्ताओं, निवासी कल्याण संस्थाओं आदि के चयनित प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएं, व्यापारिक बैठकें,  जागरूकता शिविर आदि  और भारत में अध्ययन यात्राओं का आयोजन करना।

       कार्बन वित्तपोषण के लिए प्रस्ताव तैयार करना तथा प्रिंट इलेक्ट्रोनिक मीडिया के जरिए प्रचार प्रसार एवं जनजागरूकता अभियान चलाना भी इस कार्यक्रम का हिस्सा होगा।

वित्तीय प्रावधान

       हर नगर या शहर के लिए 50 लाख रुपये तक का वित्तीय प्रावधान होगा। यह राशि उस शहर की जनसंख्या तथा संबंधित नगर परिषदप्रशासन द्वारा उठाये गये कदमों पर निर्भर करेगी।

·                                 मास्टर प्लान बनाने हेतु एक साल के अंदर 10 लाख रुपये तक का अनुदान

·                                 पांच साल के दौरान क्रियान्वयन की निगरानी के लिए 10 लाख रुपये तक का अनुदान

·                                 सौर सेल की स्थापना तथा पांच वर्षों तक उसकी क्रियाशीलता के लिए 10 लाख रुपये तक का प्रावधान

·                                 शेष पांच लाख रुपये पांच साल के अन्य प्रोत्साहन कार्यों के लिए

       इस मंत्रालय की विभिन्न स्कीमों के प्रावधानों के मुताबिक विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण लगाने के लिए उपभोक्ता को पूंजीइंटरेस्ट सब्सिडी दी जाएगी। स्कीम प्रावधानों के अनुसार विभिन्न अन्य गतिविधियों के लिए भी सहायता दी जाएगी। सक्षमता वाले शहर के रूप में चिन्हित शहरों को सहायता में प्राथमिकता दी जाएगी। इन शहरों को इस मंत्रालय, आईआरईडीए तथा नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणोंप्रणालियों के इस्तेमाल को बढावा देने में जुटे अन्य संस्थानों द्वारा प्राथमिकता वाले माने जायेंगे। एसएनए भी अपने शहरों में विभिन्न नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणप्रणाली लगाने के लिए मंत्रालय से उनकी विभिन्न स्कीमों के तहत सब्सिडी के जरिए ऊंचे लक्ष्य आवंटित करने का अनुरोध कर सकती है।

शहरों के चयन की कसौटी

       इस कार्यक्रम के तहत उच्च स्तर की कटिबध्दता तथा नेतृत्व कौशल वाले शहरों को उत्साहवर्ध्दन किया जाता है। मंत्रालय शहरों को चयन करते वक्त निम्नलिखित बातों पर ध्यान देती है। शहर की जनसंख्या, क्षेत्रीय अवस्था एवं क्षेत्र में महत्त्व, नवीकरणीय ऊर्जाओं को अपनाने में राजनीतिक एवं प्रशासनिक कटिबध्दता (सौर शहर कार्यक्रम में वर्णित गतिविधियां को क्रियान्वित करने के लिए नगर परिषदप्रशासन द्वारा पारित किया जाने वाला प्रस्ताव), ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिए उठाये गये विनियामक कदम, शहरी गतिविधियों में ऊर्जा संरक्षण तथा नवीकरणीय ऊर्जा अपनाये जाने की क्षमता, नगर परिषदप्रशासननिजी विकार्सकत्ता, उद्योगआमलोगों द्वारा ऊर्जा संरक्षण एवं नवीकरणीय ऊर्जा को बढावा देने के लिए पहले ही उठाये कये गदम, आम लोगों को शामिल करने में तथा हितधारकों के साथ काम करने में शहरी स्थानीय निकाय का अनुभव तथा इस कार्यक्रम के तहत शुरू की गयी गतिविधियों को संसाधन तथा स्थायित्व प्रदान करने का इरादा।

प्रस्तावों की सुपुर्दगी तथा धनराशि जारी

       नगर परिषद द्वारा निर्धारित प्रपत्र में प्रस्ताव राज्य नोडल एजेंसी के जरिए जमा किये जायेंगे। प्रस्तावों की मंत्रालय में जांच की जायेगी और इसके आधार पर, योजना के क्रियान्वयन पर सलाह मशविरा के लिए गठित स्वतंत्र पैनल द्वारा अनुशंसित सीएफए का 50 प्रतिशत मंजूर परियोजनाओं के लिए जारी किया जाएगा तथा बाकी राशि काम के निष्पादन तथा धनराशि के इस्तेमाल के आधार पर जारी की जाएगी।

पुरस्कार व्यवस्था

       चिन्हित सौर शहरों को वार्षिक पुरस्कार स्वरूप वैजयंतीप्रमाणपत्र प्रदान किये जाते हैं। नगर परिषदप्रशासन शहर को सौर शहर के रूप में विकसित करने के लिए उठाये गये कदमों की जानकारी प्रदान करता है और इसी आधार पर पुरस्कार दिये जाते हैं।

माडल सौर शहर

       अन्य शहरों को सौर शहर के रूप में विकसित होने के लिए मंत्रालय उनके सम्मुख उदाहरण के तौर पर दो शहरों को सौर शहर के रूप में विकसित करेगा। इन मॉडल सौर शहरों में हरेक को इस स्कीम के तहत तैयार मास्टर प्लान कार्यान्वित करने के लिए मंत्रालय से अधिकतम साढे 9 क़रोड़ रुपये की वित्तीय मदद दी जाएगी। मंत्रालय तथा संबंधित नगर निगमनगर प्रशासनराज्य सरकार व्यय का आधा-आधा हिस्सा वहन करेगी। धनराशि तब जारी की जायेगी जब मॉडल सौर शहर के रूप में विकसित किये जाने के लिए चिन्हित शहर अपना मास्टर प्लान जमा करेगा, इसके लिए उपरोक्त नियमानुसार अलग से मदद दी जायेगी। यदि शहर को माडल सौर शहर के रूप में विकसित करने के लिए 19 करोड़ रुपये की धनराशि मंत्रालय से साढे 9 क़रोड़ रुपये तथा संबंधित नगर निगमनगर प्रशासनराज्य सरकार से भी साढे 9 क़रोड़ रुपये) प्रर्याप्त नहीं होती है तो उक्त शहर इस धनराशि के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली लगाने के लिए मंत्रालय की अन्य मौजूदा योजनाओं से मदद ले सकता है जहां नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली उपकरण की संख्याक्षमता पर मौजूदा सीमा लागू नहीं है।

# उप निदेशक, पसूका, नई दिल्ली

 

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

ग्वालियर-चंबल संभाग में सरसों की होती है 70 प्रतिशत पैदावार : कृषि उपज मण्डियों में सरसों की खरीदी-बिक्री तेज

ग्वालियर-चंबल संभाग में सरसों की होती है 70 प्रतिशत पैदावार : कृषि उपज मण्डियों में सरसों की खरीदी-बिक्री तेज

ग्वालियर 20 मार्च 09। ग्वालियर तथा चंबल संभाग की मण्डियों में सरसों की आवक तेज हो गई है। उल्लेखनीय है कि पूरे प्रदेश की 70 प्रतिशत सरसों ग्वालियर-चंबल संभाग में पैदा की जाती है। मध्य प्रदेश में 8 लाख हेक्टेयर में सरसों बोई जाती है। वर्तमान में ग्वालियर की मुरार मण्डी में प्रतिदिन औसतन दस हजार बोरी तथा लक्ष्मीगंज मण्डी में ढ़ाई हजार बोरी सरसों आ रही है। संभाग में सर्वाधिक आवक श्योपुर मण्डी में औसतन 20 हजार बोरी प्रतिदिन है। दूसरे स्थान पर मुरैना में 15 हजार बोरी प्रतिदिन की आवक है। गोहद में भी आठ हजार बोरी सरसों प्रति दिन आर रही है। इन मण्डियों में अधिकतर आयल मिल वाले अथवा स्टाकिट सरसों की खरीद   कर रहे  हैं। कई खरीददार सरसों को खरीदते समय उसकी नमी की मात्रा का आंकलन के लिये मॉश्चराइजर मीटर का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं वर्षों से इस कार्य से सम्बध्द खरीददार सरसों के दानों को मुंह में दबाकर उसकी आवाज और स्वाद से नमी का अपने तजुर्बे के आधार पर आंकलन कर दाम लगा देते हैं आमतौर पर दो हजार से कुछ ऊपर ही नीलामी छूट रही है।

शिवाजी उद्योग के लिये लक्ष्मीगंज मण्डी में सरसों खरीदने वाले मुनीम श्री मुरारी लाल ने बताया कि इस बार सरसों की अच्छी पैदावार हुई है। आवक गतवर्ष की तुलना में दुगुनी है और सरसों में तेल भी अच्छा है। गतवर्ष जहां एक क्विंटल से 36 किलो तेल ब-मुश्किल निकलता था वहीं इस बार 38 किलो से अधिक तेल मिल रहा है। अगर खली में बचने वाली तेल की मात्रा को भी शामिल करलें तो इसबार 41 प्रतिशत से अधिक तेल मिल रहा है। विगत दस सालों से सरसों की खरीदी में लगे हरीशंकर गुप्ता का भी कुछ ऐसा ही मानना था। उसने भी सरसों के कुछ दाने उठाकर चबाते हुए कहा कि खडंक सूखा माल है। अर्थात इसमें अधिकतम 6 प्रतिशत नमी होगी। श्री गुप्ता भी लक्ष्मीगंजी मण्डी में अपनी मिल के लिये खरीददारी करने आये थे।

       सरसों विक्रय करने आये ग्राम सुरैला के कृषक श्री जन्डेल सिंह ने बताया कि वह चौफरा सरसों बीज बोते हैं देशी खाद के साथ साथ डी ए पी. का प्रयोग करते हैं व जरूरत के अनुसार पानी देते हैं तब कहीं एक बीघे में 12 से 15 मन सरसों ले पाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बकरी की खाद गोबर की खाद से 3 गुना अधिक उपयोगी शिध्द होती है। ग्राम जखौदा थाना भंवरपुरा के कृषक श्री सुशील कुमार शर्मा ने बताया कि वह एक वर्ष सरसों लेते हैं तो अगले वर्ष गेहूं बोते हैं। बीज वो अपनी पैदावार से बचाकर उपयोग करते हैं। इस वर्ष सरसों की अच्छी पैदावार से वे प्रसन्न हैं उनके गांव में ज्वार बाजरा और चना भी बोया जाता है। कीटनाशकों का वे कम ही प्रयोग करते हैं। कीट व्याधि होने पर ही वह कृषि विशेषज्ञों के पास जाते हैं अन्यथा परम्परागत कृषि ज्ञान ही उनके अधिक काम आता है।

       स्थानीय कृषि महाविद्यालय के शस्य विज्ञान विशेषज्ञ प्रो. आर. एल.राजपूत ने बताया कि इस क्षेत्र में सरसों की फसल एक मुख्य फसल है। कुछ किसान साल भर में सिर्फ अपने खेत में सिर्फ सरसों की फसल लेते हैं जबकि फसल चक्र अपनाकर और साल भर में दो फसल लेकर किसान दुगुना लाभ कमा सकते हैं। किसान उन्नत नस्ल के बीज ऊषा बोल्ड, ऊषा जयकिसान, रोहड़ी, आर एच 30 बीज का उपयोग कर किसान अधिक लाभ कका सकते है। प्रो. राजपूत ने बताया कि इस क्षेत्र के किसानों को मृदा परीक्षण कराकर संतुलित खाद और जैविक खाद का इस्तेमाल करके उत्पादन दुगुना कर सकते हैं। मृदा परीक्षण के 80 प्रतिशत मामलों में यह देखने में आया कि इस क्षेत्र की जमीन में गन्धक और जस्ते की कमी है। इस कमी को जैविक खाद और पोटास खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होने किसानों को सलाह दी कि वे सरसों की खेती करने के लिये किसानों को प्रति हैक्टेयर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो पोटास, 30 किलोग्राम गंधक इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा हर तीन साल बाद जिन्क सल्फेट का भी इस्तेमाल करना चाहिए।

प्रो. राजपूत ने बताया कि सरसों की बोनी के लिये 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्‍टेयर की आवश्यकता होती है। इस बीज को फफूंदनाशक दवा एजेक्टोवेक्टर और पी एस बी. कल्चर 10 ग्राम प्रतिकिलो बीज के हिसाब उपचारित करने के बाद बीज बोना चाहिए। सरसों बोते समय जमीन में गंधक की कमी को पूरा करने के लिये सिंगर सुपर फास्फेट इस्तेमाल करना चाहिए। यदि सभव हो तो प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद भी इस्तेमाल करना चाहिए। इससे 25 प्रतिशत कम रासायनिक खाद की जरूरत पड़ेगी और कम लागत में ज्यादा उत्पादन होगा। उन्होंने बताया कि किसानों को सरसों बोने के 40 दिन बाद पहली सिंचाई और बीज आते समय दूसरी सिंचाई कर देना चाहिए।

      प्रो. राजपूत ने बताया कि सरसों की फसल में खरपतवारनाशी के रूप में फ्लू-क्लोरेलिन का इस्तेमाल करना चाहिए। यह दवा एक किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के मान से 600 लीटर पानी में घोलकर सरसों बोने से पूर्व खेत में छिड़काव करना चाहिए। सरसों माहूं नामक कीट से बचाव के लिये किसानों को मेटा सिस्टॉक अथवा डाय मिथोयेट नामक कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए। यह दवा प्रति हेक्टेयर 10 मिली. 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। यह छिडकाव हर 15 दिन बाद करना चाहिए, इससे फसल उत्पादन बढ़ता है।

       प्रो. राजपूत ने बताया कि ग्वालियर-चंबंल सभाग में सरसों की खेती लगभग 5.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती हैं। यहां पर मुख्य रूप से लाहा, तोरिया और हावला 400  सरसों की खेती होती हैं। इसमें हावला 400 शंकर नस्ल की सरसों हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसके तेल में कड़ुवापन नहीं होता। इसके तेल की विदेशों में ज्यादा मांग हैं। इसकी खोज ''महिको'' नामक एक निजी कंपनी ने की है। उन्होने बताया कि सरसों में ब्लूकोसिलीनेट और इरोसिकएसिड के कारण झारपन पाया जाता है। इस झारपन युक्त तेल की मांग अरब देशों में ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि अधिक उत्पादन के लिये इस क्षेत्रं के प्रगतिशील किसान सरसों की ''तारामीरा'' प्रजाति का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा किसान उत्पादन बढ़ाने के लिये सनई और ढ़ैंचा और केंचुआ खाद का इस्तेमाल करके किसान फसल उत्पादन बढ़ा सकते हैं।