सोमवार, 7 अप्रैल 2008

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आक्रामक मुद्रा

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आक्रामक मुद्रा

तनवीर जांफरी, (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

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       लोकसभा के चुनावों का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, देश के सभी राजनैतिक दलों द्वारा चुनावी बिगुल फूंकने का काम भी शुरु कर दिया गया है। इस बार फिर सबसे अधिक मशक्कत उत्तर प्रदेश राज्य में की जा रही है जोकि लोकसभा में सबसे अधिक अर्थात् 80 सीटों का प्रतिनिधित्व करने वाला देश का ंफिलहाल सबसे बड़ा राज्य है। गत् 30-31 मार्च को कानपुर के फूलबांग मैदान से सटे नानाराव पार्क में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने 26 वर्षों के बाद उसी स्थान पर अपना दो दिवसीय खुला अधिवेशन आयोजित किया। इस अधिवेशन के पहले दिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लगभग दो हंजार सदस्यों ने शिरकत की जबकि समापन दिवस पर पूरे प्रदेश से आए लगभग साठ हंजार सक्रिय सदस्यों ने भाग लेकर एक बड़ी एवं उत्साहवर्धक उपस्थिति दर्ज कराई। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा इतने बड़े पैमाने पर कांग्रेस का खुला अधिवेशन बुलाया जाना तथा इसके समापन में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी तथा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का शिरकत करना जहां उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के जनाधार की वापसी का प्रयास है, वहीं यह आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी भी है।

              इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान समय में कांग्रेस का केंद्रीय सत्तारूढ़ दल, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल होना तथा पार्टी का सत्ता में होना यह महंज सोनिया गांधी के कुशल नेतृत्व, उनके घोर परिश्रम तथा पार्टी को एकजुट रखने की उनकी क्षमता की ही बदौलत सम्भव हो सका है। परन्तु सोनिया गांधी इस सच्चाई से भी भली भांति परिचित हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति जब तक बेहतर नहीं होती तब तक कांग्रेस केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार के बारे में सोच भी नहीं सकती। यही वजह है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में वर्तमान लोकसभा में कांग्रेस को प्राप्त हुई मात्र 10 सीटों की संख्या में अभूतपूर्व इंजांफा करना चाह रही है। अपने इसी उद्देश्य के तहत सोनिया गांधी ने रीटा बहुगुणा जोशी को कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर उन्हें यह विशाल अधिवेशन आयोजित करने का ंजिम्मा सौंपा। याद रहे कि श्रीमती रीटा बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी की प्रतिभाशाली पुत्री हैं तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोंफेसर भी हैं। जोशी को अध्यक्ष बनाकर जहां सोनिया ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस में गुटबांजी को नंजरअंदांज करने का प्रयास किया है, वहीं कांग्रेस की ओर से एक महिला को आगे लाने की कोशिश के रूप में भी इसे देखा जा रहा है।

              प्रश्‍न यह है कि क्या रीटा बहुगुणा जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने खिसकते जनाधार को वापस पाने में सफल हो सकेगी? सलमान ंखुर्शीद, महावीर प्रसाद, श्रीप्रकाश जयसवाल, प्रमोदी तिवारी, संजय सिंह तथा जगदम्बिका पाल जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता उत्तर प्रदेश में डा. जोशी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए बिना किसी गुटबांजी के एकजुट होकर, पार्टी को आगे ले जा सकेंगे? इसका उत्तर और किसी नेता द्वारा कानपुर अधिवेशन में तो शायद न ही दिया गया हो परन्तु सोनिया गांधी ने इस विषय पर ंजरूर सांफ-सांफ कह डाला। सोनिया ने अपने भाषण में उन नेताओं को कड़ी चेतावनी दी जो गुटबांजी की राजनीति पर विश्वास करते हैं तथा संगठन के हितों की अनदेखी करते हुए अपने हितों का अधिक ध्यान रखते हैं। ऐसे पार्टी नेताओं को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि- 'हम सब एक ही नाव पर सवार हैं', नाव बचेगी तो बचेंगे नहीं तो सभी डूब जाएंगे।' सोनिया गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं में संघर्षशीलता व जुझारुपन लाने का भी ंजबरदस्त प्रयास किया। कहा तो यह जा रहा है कि सोनिया गांधी ने कानपुर में अपने दस वर्षों के राजनैतिक जीवन का सबसे आक्रामक भाषण दे डाला। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि आप (कांग्रेसजन) जेल जाने को तैयार नहीं हैं तो उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापस नहीं आ सकते। कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए उन्होंने राहुल गांधी को भी कार्यकर्ताओं के साथ जेल भेजने का आश्वासन दिया।       दरअसल देश में बढ़ती जा रही साम्प्रदायिकतावादी तथा क्षेत्रवादी राजनीति के चलते कांग्रेस अपना कांफी बड़ा जनाधार गंवा चुकी है। कांग्रेस का परम्परागत समझा जाने वाला दलित, मुस्लिम, पिछड़ा वर्ग तथा ब्राह्मण मतदाता कांग्रेस से मुंह मोड़कर अन्य दलों में चला गया है। 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में ंखासतौर पर पार्टी का यह पारम्परिक वोट बैंक कांग्रेस के हाथों से खिसकता जा रहा है। कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में कुछ विशिष्ट नेताओं के, जिनमें स्वयं सोनिया गांधी व राहुल गांधी भी शामिल हैं, कुछ ही क्षेत्र ऐसे हैं जहां कि कांग्रेस अपना परचम बुलन्द किए हुए है। अन्यथा कुल मिलाकर प्रदेश में कांग्रेस को तीसरे अथवा चौथे नम्बर की पार्टी के रूप में ही देखा जा रहा है। क्या सोनिया गांधी की यह नई ंकवायद पार्टी को उत्तर प्रदेश में मंजबूत कर सकेगी? कार्यकर्ताओं को जेल भरो आंदोलन छेड़ने का आह्वान करना क्या पार्टी में नई जान फूंकने का एक ब्रह्मास्त्र साबित हो सकेगा? मायावती सरकार के विरुद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी बात को पूरी मंजबूती के साथ मतदाताओं तक पहुंचा पाने में सफल हो सकेंगे? सोनिया गांधी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने किसानों के ंकंर्ज की मांफी के लिए, रोंजगार गारंटी योजना के लिए व अन्य कई कल्याणकारी योजनाओं हेतु उत्तर प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपए दिए हैं। परन्तु उस धन का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। अत: कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मायावती सरकार से उन पैसों का हिसाब मांगना चाहिए।

              यहां यह बताना भी जरूरी है कि हालांकि 26 वर्ष पूर्व 1982 में यू पी कांग्रेस कमेटी का एक विशाल अधिवेशन इसी स्थान पर आयोजित किया गया था जिसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में तथा राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव के रूप में शरीक हुए थे। परन्तु इससे भी चार वर्ष पूर्व तीन व चार ंफरवरी 1978 को भी कानपुर के इसी फूलबांग मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक ऐतिहासिक अधिवेशन बुलाया गया था। इस अधिवेशन का महत्व इसलिए 1982 के अधिवेशन से अलग था क्योंकि एक तो यह पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन था तथा दूसरा यह कि यह अधिवेशन उस दौर में आयोजित हुआ था जबकि केंद्र में जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की वह सरकार थी, जोकि इंदिरा गांधी को नियंत्रित रखने के लिए, उनपर कानूनी शिकंजा कसने के लिए तथा उन्हें सताने व परेशान करने के लिए सब कुछ करने को तैयार थी। मैं स्वयं 1978 के उस अधिवेशन का साक्षी रहा हूं जिसमें कि डा. शंकर दयाल शर्मा, प. कमलापति त्रिपाठी व इंदिरा गांधी जैसे बड़े नेताओं ने अपने क्रांतिकारी भाषणों द्वारा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में वह जोश फूंक दिया था कि कांग्रेस पार्टी मात्र एक वर्ष के बाद ही पुन: केंद्रीय सत्ता में वापस आ गई थी।

              कानपुर के 1978 के इस सम्मेलन की याद दिलाना यहां इसीलिए ंजरूरी था क्योंकि एक बार फिर सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के ही लहजे में पार्टी के कार्यकर्ताओं का संघर्ष करने, जेल भरने तथा अपने हितों से ऊपर उठकर पार्टी के हितों के लिए काम करने का आह्वान किया है। कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश की इस संघर्षपूर्ण राजनीति में राहुल गांधी को भी एक प्रखर एवं तेंज तर्रार युवा नेता के रूप में आंजमा रही है। कर्नाटक, उड़ीसा व झारखंड राज्यों का दौरा कर चुके राहुल गांधी का सबसे अधिक समय उत्तर प्रदेश के दौरों में ही बीत रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की राहुल गांधी की यात्रा बहुत चर्चित रही। वे बुंदेलखंड के उन क्षेत्रों में गए जहां किसानों ने ंगरीबी व भुखमरी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। वे उस क्षेत्र के किसानों तथा बिना सिंचाई के पड़ी बंजर ंजमीनों को देखकर अत्यन्त भावुक हो गए थे। यहां तक कि राहुल गांधी के बुंदेलखंड के दौरे ने मायावती के भी कान खड़े कर दिए थे तथा उन्होंने भी अपना जनाधार खिसकने के डर से राहुल की बुंदेलखंड यात्रा से एक दिन पहले ही प्रभावित किसानों व दलित परिवार के लोगों से मुलांकात कर उन्हें अनेकों तोहंफों से भी नवांजा था। परन्तु राहुल ने तो एक प्रभावित अनाथ परिवार की 4 लड़कियों को गोद लेकर मायावती की बोलती ही बंद कर दी थी।

              बहरहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मंजबूती के लिए जहां सोनिया गांधी व राहुल गांधी की व्यक्तिगत् रूप से दिलचस्पी लिए जाने की ंजरूरत है, वहीं कार्यकर्ताओं को भी बिना किसी गुटबांजी के संगठित होना पड़ेगा। पार्टी के सभी सहयोगी संगठनों, महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, राष्ट्रीय छात्र संगठन तथा कांग्रेस सेवादल सभी को अपने-अपने स्तर पर पूर्णतय: संगठित होकर पार्टी हाई कमान के नेतृत्व में एकजुट होकर कार्य करना होगा। सोनिया व राहुल गांधी का आकर्षण निश्चित रूप से भारी भीड़ को तो अवश्य आकर्षित कर सकता है परन्तु अन्ततोगत्व द्वार-द्वार जाकर मतदाताओं से मिलने तथा उन्हें कांग्रेस के मतदाता के रूप में परिवर्तित करने व मतदान केंद्र तक लाने का कार्य तो पार्टी कार्यकर्ताओं को ही करना होगा।        तनवीर जांफरी

 

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