मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

पूरी तरह ध्‍वस्‍त हुआ सूचना का अधिकार कानून, खामियों ने किया कमजोर और प्रभावहीन

पूरी तरह ध्‍वस्‍त हुआ सूचना का अधिकार कानून, खामियों ने किया कमजोर और प्रभावहीन

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

सूचना का अधिकार 2005- एक सिंहावलोकन भाग -7 (वर्ष सन 2005 से जारी आलेख)

  • नहीं मिलती आवेदकों को सूचना, तमाम विसंगतियां और सूराखों से मनमाने होते हैं निराकरण
  • धारा 4 का तीन साल बाद आज तक पालन नहीं किया किसी ने, सरकारी कार्यालयों के अलावा स्‍वयंसेवी संस्‍थाओं ने बलाए ताक धरा कानून

पिछले अंक से आगे .......

अक्‍टूबर 2005 में जब भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तो स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भ्रष्‍टाचार, अनसुनेपन, मनमानेपन से त्रस्‍त लोगों को इससे काफी उम्‍मीद और आशा की किरणें जागीं, और जैसा कि इस कानून की मंशा को इसी कानून में लिखा गया कि यह पारदर्शिता लाने और भारत को भ्रष्‍टाचारमुक्‍त बनाने का ब्रह्मास्‍त्र साधन हो ।

कानून को सफलतापूर्वक सॅपादित करने हेतु इसके कुछ प्रारंभिक एवं कुछ प्रक्रियात्‍मक उपाय भी इस कानून में निर्धारित किये गये थे । कुल मिला कर कानून को क्रियान्वित व लागू किये जाने के लिये विशिष्‍ट व सकारात्‍मक प्रक्रिया अवधारित की गयी थी । जहॉं यह भारत का पहला ऐसा अधिनियम था जो जनता को सीधे सीधे सूचना प्राप्ति तथा उसके उपयोग किये जाने की केवल स्‍वतंत्रता ही नहीं देता था बल्कि इसके पश्‍चात अन्‍य कानूनी व प्रशासनिक तथा सार्वजनिक उपायों के जरिये हस्‍तक्षेप का पश्‍चातवर्ती अधिकार भी मुहैया कराता था ।

भारत में लम्‍बे अर्से से भ्रष्‍टाचार व अंधेरगर्दी की मलाई मार रहे अफसर इतना अधिक काला पीला नीला हरा किये बैठे हैं कि वे इस कानून के लागू होने के दिनांक 12 अक्‍टूबर 2005 से ही इससे अन्‍दरूनी दुश्‍मनी मान बैठे थे और हर हाल में शुरू से ही ठान कर बैठे थे कि इस कानून की न केवल धज्जियां ही उड़ानी हैं बल्कि इसे पूरी तरह असफल भी करना है । कानून लागू होने के दिन से ही उनका पुरजोर विरोध स्‍वत: ही चालू हो गया था, ठीक बिल्‍कुल उसी तरह जैसे इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में लेन्‍ज का नियम होता है या न्‍यूटन का भौतिक शास्‍त्र का तीसरा नियम जिसे प्रतिक्रिया का नियम कहते हैं ।

इन राष्‍ट्र विरोधी तत्‍वों या अफसर वर्ग ने और उनके बाबू वर्गीय चेलों ने शुरू से ही न केवल हरेक को बरगलाना शुरू किया बल्कि अफवाह भी जम कर फैलायीं कि कुछ नहीं यह कानून तो पूरी तरह फेल हो चुका है और जल्‍दी ही इसे वापस लिया जा रहा है, या इसमें संशोधन किया जा रहा है वगैरह वगैरह .... मैंने इस प्रकार की कई अनर्गल बातें स्‍वयं कई जगह सुनीं । मुझे बड़ी कोफ्त होती थी और तकलीफ भी कि कल संभव है इन्‍हें खुद ही इसी कानून का सहारा लेना पड़ जाये और यही जो इस कानून को अवमंदित या भोंथरा करने की कोशिश जी तोड़ कर रहे हैं, खुद ही इसका इस्‍तेमाल करने लायक नहीं रहेंगे ।

इस कानून को ऐन दशहरे के दिन लागू किया गया था सो हिन्‍दू मान्‍यता के अनुसार इस त्‍यौहार के दिन दसों दिशायें चौकस खुलतीं हैं और इस दिन हुआ कार्य प्रत्‍येक दशा में पूर्ण सफल होता ही है ।

मैंने अब तक सूचना का अधिकार सम्‍बन्‍धी करीब डेढ़ दो हजार मामले हैण्‍डल किये और हर मामले का गहराई से अध्‍ययन करने का भी सुअवसर मुझे मिला ।

 

मुझे यह लिखने में कोई संकोच नहीं कि जनता का यह अमोध अस्‍त्र या अचूक हथियार आज न केवल दिशा से भटक कर दिशाहीन हो गया बल्कि इस कानून की शुरूआती ढांचागत खामियां इस अधिनियम के अवलंघन कारीयों के लिये न केवल वरदान सिद्ध हुयीं अपितु इस कानून की मंशा को पूरी तरह खत्‍म कर राष्‍ट्र विरोधी अवलंघनकारीयों की मंशा की गुलाम मात्र बनकर रह गयीं ।

शुरूआत में जब किसी महात्‍वाकांक्षी और दीर्घकालीय प्रभावक कानून की अवधारणा स्‍थापित की जाती है तो उसमें ढांचागत व अनुभवगत प्रक्रियात्‍मक दोषों का होना स्‍वा‍भाविक है किन्‍तु लम्‍बे अनुभव के बाद उन्‍हें निरन्‍तर रखा जाना तो त्रुटि नहीं बल्कि जानबूझ कर किया गया अपराध बन जाती है । इस कानून को स्‍थापित किये जाने और प्रचलन में लाये जाने तक जो विसंगतियां और खामियां थीं, यदि वक्‍त वक्‍त पर उनका सिंहावलोकन कर उन्‍हें ठीक किया जाता रहता तो इतने ताकतवर कानून की यह दुर्दशा और दुर्गति नहीं होती ।

 

अभी हाल ही में शीर्ष न्‍यायालय तक ने इस कमजोर अधिनियम का तीखा उपहास बना दिया, मामले ने एकसी विसंगतियों की स्थिति उत्‍पन्‍न कर दी कि गोया अब अधिनियम नहीं अल्कि अधिनियम से शासित व्‍यक्ति तय करेगा कि अधिनियम उस पर लागू है कि नहीं । खैर इसमें शीर्ष अदालत का अहम्‍मन्‍यतापूर्ण व्‍यवहार रहा हो या अधिनियम की अपने हिसाब से व्‍याख्‍या करने की कवायद, जो भी रहा हो देश में इसका संदेश कतई अच्‍छा नहीं गया । और इस अधिनियम की बची खुची दुर्गति हो गयी सो अलग । ऐसी अपमान जनक परिस्थितियों में जनता का कानून कहे जाने वाले इस अधिनियम को तो वापस ले लिया जायेगा तो बेहतर होगा, कम से कम जनता का झूठा भ्रम या आस तो टूटेंगे ।

 

क्रमश: जारी अगले अंक में ..............

रविवार, 27 अप्रैल 2008

तेजी मन्‍दी सहित राजनीतिक द्वंद्ध बढ़ेगा, पूरी तरह बदलेगी गोचर की तस्‍वीर आने वाले दिन लायेंगे जन्‍म कुण्‍डलियों में तूफान

ग्रहों की उलटफेरी का तगड़ा खेल चालू हुआ, होगी भारी उथल पुथल

तेजी मन्‍दी सहित राजनीतिक द्वंद्ध बढ़ेगा, पूरी तरह बदलेगी गोचर की तस्‍वीर आने वाले दिन लायेंगे जन्‍म कुण्‍डलियों में तूफान

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

भाग-1

कुछ अर्से से परेशान चल रहे लोगों को जहॉं अब राहत मिल सकती है वहीं चन्‍द अर्से से मजे मार रहे लोगों के लिये परेशानी का दौर शुरू हो सकता है । तकदीरी आसमान में भारी उलटफेरी शुरू हो चुकी है और लगभग सारे ही ग्रह आने वाले चन्‍द रोज के भीतर अपने अपने ठीये यानि स्‍थान परिवर्तन करेंगे या उनकी स्थिति परिवर्तन होगा । कुल मिला कर सारे ग्रह किसी न किसी बदलाव पर चल रहे हैं और इस भारी उलटफेर का हेर फेर भी आम आदमी और सांसारिक परिदृश्‍य पर भी व्‍यापक प्रभाव डालने वाला होगा ।

मजे की बात ये है कि यह बदलाव 25 अप्रेल से ही चालू हो चुका है और आने वाले लगभग 20-25 दिनों तक यह लगातार चलेगा । जिस श्‍ानि ने वक्री होकर तेल और लोहे को आसमान की ऊंचाईयों पर ले जाकर मंहगाई बढ़ा कर आम आदमी की पहुँच से बाहर कर दिया था, ज्‍योतिषीय विवेचना के अनुसार यही शनि आने वाली 3 मई को वापस मार्गी गति पर आ रहे हैं, इनकी वक्री गति समाप्‍त होकर मार्गी होते ही तेल और लोहे को वापस जमीन का रूख करना पड़ेगा वहीं अन्‍य ग्रहों की मार के चलते इन्‍हें भारी मन्‍दी के दौर से भी गुजरना पड़ सकता है ।

कौन कब कैसे बदलेगा

शुक्र 25 अप्रेल को मीन राशि से मेष में प्रवेश कर चुके हैं

बुध अतिचारी गति से चल रहे हैं, 14 अप्रेल को मेष राशि में प्रवेश किया था, अस्‍त चल रहे थे, 27 अप्रेल को बुधोदय हो चुका है, और 29 अप्रेल को मेष राशि छोड़कर वृष राशि में प्रवेश करेंगे । 6 जुलाई तक वृष राशि में ही अस्‍त उदय वक्री मार्गी होकर डटे रहेंगे ।

मंगल 28 अप्रेल को मिथुन राशि छोड़कर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे । 21 जून तक कर्क में ही टिके रहेंगे ।

सूर्य वर्तमान में मेष राशि में गोचर है, 14 मई से वृष राशि में चले जायेंगे ।

राहू वर्तमान में कुंभ राशि में हैं 30 अप्रेल से मकर राशि में आ जायेंगे ।

केतु वर्तमान में सिंह राशि में हैं 30 अप्रेल से कर्क राशि में आ जायेंगे ।

गुरू वर्तमान में मार्गी गति से धनु राशि में गतिशील हैं, 9 मई से धनु राशि में ही वक्री हो जायेंगे और 10 डिग्री से अधिक तक पीछे जाकर लगभग एक तिहाई चाल पलटेंगे ।

शनि वर्तमान में सिंह राशि में होकर, वक्री गति से 7 डिग्री तक पीछे आ गये हैं, 3 मई से मार्गी हो जायेंगे और आगे बढ़ना दोबारा शुरू करेंगे । 17 अगस्‍त से अस्‍त होकर 21 सितम्‍बर को पुन: उदित होंगे, और 31 दिसम्‍बर 2008 तक मार्गी गति में ही बने रह कर 27 डिग्री तक ऊपर चढ़ जायेंगे ।

चन्‍द्र विशद व बड़ी विवेचनाओं में गण्‍यमान्‍य नहीं । हर सवा दो दिन में राशि परिवर्तन स्‍वाभाविक चाल है ।

पूरे के पूरे नौ ग्रहों के इस भारी फेर बदल का विहंगम दृष्टिपात और सिंहावलोकन जिस भारी उथल पुथल और उलटफेरी की ओर इशारा करता है, वह काफी चौंकाने वाली और व्‍यापक रूप से प्रभावकारी है । जहॉं सस्‍ते मन्‍दे, मंहगाई और सस्‍ताई का खेल अब उल्‍टा पुल्‍टा होगा वहीं, ग्रहों की स्थिति गोचरवश जो प्रबल व प्रभावकारी स्थिति में चल रहे थे या चल रहे हैं, यदि उनकी जन्‍म कुण्‍डली में ग्रहों की स्थिति ठीक ठाक नहीं तो उन्‍हें पराभव या कष्‍टकारी स्थितियों से गुजरना पड़ सकता है । बिल्‍कुल ऐसा ही उन लोगों के लिये भी है जिनका वर्तमान समय गोचर के अनुसार ठीक नहीं है, यदि उनकी जन्‍म कुण्‍डली में ग्रहों की स्थिति ठीक ठाक है तो उनके उत्‍थान का वक्‍त आ गया है अन्‍यथा और भी अधिक बुरी स्थिति हो सकती है ।

क्रमश : अगले अंक में जारी ....

शनिवार, 26 अप्रैल 2008

ग्रहों की उलटफेरी का तगड़ा खेल चालू हुआ, होगी भारी उथल पुथल

ग्रहों की उलटफेरी का तगड़ा खेल चालू हुआ, होगी भारी उथल पुथल

तेजी मन्‍दी सहित राजनीतिक द्वंद्ध बढ़ेगा, पूरी तरह बदलेगी गोचर की तस्‍वीर आने वाले दिन लायेंगे जन्‍म कुण्‍डलियों में तूफान

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

भाग-1

कुछ अर्से से परेशान चल रहे लोगों को जहॉं अब राहत मिल सकती है वहीं चन्‍द अर्से से मजे मार रहे लोगों के लिये परेशानी का दौर शुरू हो सकता है । तकदीरी आसमान में भारी उलटफेरी शुरू हो चुकी है और लगभग सारे ही ग्रह आने वाले चन्‍द रोज के भीतर अपने अपने ठीये यानि स्‍थान परिवर्तन करेंगे या उनकी स्थिति परिवर्तन होगा । कुल मिला कर सारे ग्रह किसी न किसी बदलाव पर चल रहे हैं और इस भारी उलटफेर का हेर फेर भी आम आदमी और सांसारिक परिदृश्‍य पर भी व्‍यापक प्रभाव डालने वाला होगा ।

मजे की बात ये है कि यह बदलाव 25 अप्रेल से ही चालू हो चुका है और आने वाले लगभग 20-25 दिनों तक यह लगातार चलेगा । जिस श्‍ानि ने वक्री होकर तेल और लोहे को आसमान की ऊंचाईयों पर ले जाकर मंहगाई बढ़ा कर आम आदमी की पहुँच से बाहर कर दिया था, ज्‍योतिषीय विवेचना के अनुसार यही शनि आने वाली 3 मई को वापस मार्गी गति पर आ रहे हैं, इनकी वक्री गति समाप्‍त होकर मार्गी होते ही तेल और लोहे को वापस जमीन का रूख करना पड़ेगा वहीं अन्‍य ग्रहों की मार के चलते इन्‍हें भारी मन्‍दी के दौर से भी गुजरना पड़ सकता है ।

 

कौन कब कैसे बदलेगा

शुक्र 25 अप्रेल को मीन राशि से मेष में प्रवेश कर चुके हैं

बुध अतिचारी गति से चल रहे हैं, 14 अप्रेल को मेष राशि में प्रवेश किया था, अस्‍त चल रहे थे, 27 अप्रेल को बुधोदय हो चुका है, और 29 अप्रेल को मेष राशि छोड़कर वृष राशि में प्रवेश करेंगे । 6 जुलाई तक वृष राशि में ही अस्‍त उदय वक्री मार्गी होकर डटे रहेंगे ।

मंगल 28 अप्रेल को मिथुन राशि छोड़कर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे । 21 जून तक कर्क में ही टिके रहेंगे ।

सूर्य वर्तमान में मेष राशि में गोचर है, 14 मई से वृष राशि में चले जायेंगे ।

राहू वर्तमान में कुंभ राशि में हैं 30 अप्रेल से मकर राशि में आ जायेंगे ।

केतु वर्तमान में सिंह राशि में हैं 30 अप्रेल से कर्क राशि में आ जायेंगे ।

गुरू वर्तमान में मार्गी गति से धनु राशि में गतिशील हैं, 9 मई से धनु राशि में ही वक्री हो जायेंगे और 10 डिग्री से अधिक तक पीछे जाकर लगभग एक तिहाई चाल पलटेंगे ।

शनि वर्तमान में सिंह राशि में होकर, वक्री गति से 7 डिग्री तक पीछे आ गये हैं, 3 मई से मार्गी हो जायेंगे और आगे बढ़ना दोबारा शुरू करेंगे । 17 अगस्‍त से अस्‍त होकर 21 सितम्‍बर को पुन: उदित होंगे, और 31 दिसम्‍बर 2008 तक मार्गी गति में ही बने रह कर 27 डिग्री तक ऊपर चढ़ जायेंगे ।

चन्‍द्र विशद व बड़ी विवेचनाओं में गण्‍यमान्‍य नहीं । हर सवा दो दिन में राशि परिवर्तन स्‍वाभाविक चाल है ।

पूरे के पूरे नौ ग्रहों के इस भारी फेर बदल का विहंगम दृष्टिपात और सिंहावलोकन जिस भारी उथल पुथल और उलटफेरी की ओर इशारा करता है, वह काफी चौंकाने वाली और व्‍यापक रूप से प्रभावकारी है । जहॉं सस्‍ते मन्‍दे, मंहगाई और सस्‍ताई का खेल अब उल्‍टा पुल्‍टा होगा वहीं, ग्रहों की स्थिति गोचरवश जो प्रबल व प्रभावकारी स्थिति में चल रहे थे या चल रहे हैं, यदि उनकी जन्‍म कुण्‍डली में ग्रहों की स्थिति ठीक ठाक नहीं तो उन्‍हें पराभव या कष्‍टकारी स्थितियों से गुजरना पड़ सकता है । बिल्‍कुल ऐसा ही उन लोगों के लिये भी है जिनका वर्तमान समय गोचर के अनुसार ठीक नहीं है, यदि उनकी जन्‍म कुण्‍डली में ग्रहों की स्थिति ठीक ठाक है तो उनके उत्‍थान का वक्‍त आ गया है अन्‍यथा और भी अधिक बुरी स्थिति हो सकती है ।

 

क्रमश : अगले अंक में जारी ....

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

क्रिकेट के ये नये सिलसिले

क्रिकेट के ये नये सिलसिले

मनीष कुमार जोषी, सीताराम गेट के सामने, बीकानेर (राज) 9413769053

जी समूह के सुभाष चंद्रा ने जब एक ख्वाब  देखा तो क्रिकेट के ये नये सिलसिले शुरू हुए। क्रिकेट अपने परंपरागत रूप  से बाहर आई। क्रिकेट इस सिलसिले में जिस ने भी निगाह डाली उसे दूर दूर तक गुल ही गुल नजर आये। सुभाष चंद्रा ने क्रिकेट का एक अलग साम्राज्य स्थापित  कर उसका सम्राट बनने का सपना देखा तो कई और ख्वाब उससे जुड गयें। कपिल देव, ललित मोदी और शाहरूख खान के ख्वाब भी क्रिकेट के इस नये सिलसिले से जुड़ गये। सभी जुट गये गन्ने रूपी क्रिकेट को मषीन में डाल कर मिठास निचाड़ने की कोषिष में । हर एक ख्वाब क्रिकेट से जुड़ गया और क्रिकेट के नये सिलसिले शुरू हो गये। हर एक कासे क्रिकेट में दूर तक बहार ही बहार नजर आ रही है।

 

       सुभाष चंद्रा ने आईसीएल की शुरूआत कर अपने ख्वाब हो हकीकत में बदलने की कोषिष की तो कपिलदेव को भी एक बार फिर क्रिकैट में लहलहाती फसल नजर आने लगी। क्रिकेट की काल्पनिक नई सल्तनत में वो अपने आपको सुभाष चंद्रा जैसे सम्राट के प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगे। सुभाष चंद्रा और कपिलदेव का ख्वाब हकीकत का रूप लेता उससे पहले ही बीसीसीआई के उपाध्यक्ष ललित मोदी का ख्वाब भी क्रिकेट नये सिलसिले से जुड़ गया। मोदी की निगाह सुभाष चंद्रा से भी आगे गई और उन्हे तो क्रिकेट में बहुत दूर तक बहार की लहलहाती फसल नजर आने लगी। मोदी ने जब इस फसल को काटने की योजना बनाई तो फिल्म स्टार शाहरूख खान के मन में भी क्रिकेट की इस लहलहाती फसल को काटने की चाहत हुई। शाहरूख खान की आंखे भी क्रिकेट के सपने देखने लगी। ललित मोदी और शाहरूख  का ख्वाब हकीकत में बदलता नजर आने लगा तो इस कड़ी में विजय माल्या और प्रीती जिंटा के ख्वाब भी इससे जुड़ गये। चाहतो और ख्वाबो के इसी सिलसिले की कड़ी है आईपीएल।

 

      एक ख्वाब से क्रिकेट का यह नया सिलसिला शुरू हुआ। नये क्रिकेट के हर मोड़ नया गुल खिला रहा है। एक ख्वाब से शुरू हुए इस सिलसिले से सैकड़ो ख्वाब जुड़ चुके है। जहां सुभाष चंद्रा का ख्वाब हकीकत पर टूटता नजर आ रहा है वहीं ललित मोदी का ख्वाब हकीकत में तब्दील नजर होता आ रहा है। क्रिकेट से मनोरंजन रूपी जैसे का ज्यूस निकालने के इस ख्वाब ने खेलो की दुनिया को हिलाकर रख दिया।  क्रिकेट के इस नये सिलसिले ने क्रिकेट की परिभाषा को बदल दिया है।

 

       ख्वाबो के इस सिलसिले में सभी को क्रिकेट माषूका की तरह नजर आ रही है। लेकिन वह तो बेचारी निरीह रूप  से खड़ी मूक दर्षक बनी हुई है। गन्ने जैसी मिठास भरी क्रिकेट को मषीन से बार बार निकालकर  उसके मिठास को निचोड़ने की पूरी कोषिष की जा रही है। अब गेंद और बल्ले का संघर्ष नहीं है। थिरकती सिने बालाओ के बीच चौको और छक्को का क्रिकेट हें। क्रिकेट का स्वयं  का ख्वाब टूट गया है। क्रिकेट में फुटबाल और हॉकी की प्रतिकृति बनती जा रही है। अब मैदाने में मैच बचाने के लिए संघर्ष नहीं होता है बल्कि क्रिकेट को पीटने का संघर्ष होता है । क्रिकेट पिटती जा रही हेै। क्रिकेट का समृध्द होने का ख्वाब टूट रहा है परन्तु क्रिकेट से जुड़े लोगो का ख्वाब बुलंदिया छु रहा है। दूर तक निगाह में खिले हुए गुल में हर कोई खो जाना चाहता है। क्रिकेट के इस सिलसिले के अभी कुछ ही मोड़ देखे है परन्तु आगे इस सिलसिले को कड़वे मोड़ देखने पड़ सकते है।

सीताराम गेट के सामने, बीकानेर (राज)

9413769053

 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

बाकी कुछ बचा सो मँहगाई मार गई ....आधी हकीकत आधा फसाना

बाकी कुछ बचा सो मँहगाई मार गई ....आधी हकीकत आधा फसाना

कड़वा सच

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

 

आज चारों ओर मंहगाई का हल्‍ला है, जिधर देखो उधर चिल्‍लपों मची है, सारे के सारे नेता गला फाड़ के नर्रा रहे हैं । नर्रा क्‍या डकरा रहे हैं, रोटी कपड़ा और मकान का गाना बजा रहे हैं बजा क्‍या जनता को सुना रहे हैं , देश का समूचा मीडिया महज भोंपू बन कर रह गया है, अरे भोंपू क्‍या सार्वजनिक मूत्रालय बन कर रह गया है, जो आता है टायलट कर जाता है, नेता छोटा हो चाहे बड़ा मीडिया भोंपू की तुरही में हल्‍की सी फूंक मार जाते हैं और मीडिया भनभना कर उनकी फूंक को सुर में बदल कर एम्‍पलीफाई कर देता है ।

धन्‍य है जगत नरायन, तुमसे तो नारद अच्‍छे थे, कम से कम खुद की कारीगरी तो दिखाते थे, अच्‍छे भले चलते फिरते मीडिया थे । अरे भईया माना विज्ञापन मजबूरी है लेकिन चारण भाट बन जाना तो मजबूरी नहीं हो सकती । जो सरकारों की सेवाओं में यस राजाओं (नेताओं) की चाटुकारिता में सवैये और कवित्‍त बॉंचने लगे ।

मंहगाई मंहगाई मंहगाई, कहॉं से आयी मंहगायी, बजट में तो कुछ नहीं बढ़ाया गया फिर ये मंहगाई कहॉं से आयी । जब बजट आने से तीन दिन पहले सारे बाजार का माल अण्‍डरग्राउण्‍ड हो गया था और सिगरेट माचिस जैसी चीजें ब्‍लैक में बिक रहीं थीं, तब कोई क्‍यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई ।

पिछले दस साल में जब सोने के दाम पॉंच हजार से पन्‍द्रह हजार तक आये तब कोई क्‍यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई । जब सरकारी अफसरों और नेताओं के वेतन भत्‍ते पिछले दस साल में दस दफे बढ़े तब कोई क्‍यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई ।

चम्‍बल घाटी का मुरैना जिला सरसों का सबसे बड़ा उत्‍पादक है, यहॉं सरसों के अखण्‍ड भण्‍डार हैं, सरसों से सरसब्‍ज इस जिले में जब सरसों का तेल 88 रूपये किलो बिका तो कोई क्‍यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई । सरसों के भण्‍डार तो आज भी इस जिले में किलो टनों में हैं, मगर किसान के यहॉं नहीं सेठजी के यहॉं, बावजूद इसके किसान के हाथ तो मुरैना जिला में अभी भी इतनी सरसों हैं कि कम से कम ग्‍वालियर चम्‍बल में तेल के दाम चौथाई पर ले आये । लेकिन सेठजी के गोदाम में तो सरसों के इतने अकूत भण्‍डार है ( किसे नहीं पता) कि सारे देश में तेल के दाम चौथाई करा दें ।

मुरैना से प्रतिदिन बाहर जाने वाले हजारों टन तेल को रूकवा क्‍यों नहीं देते नेता जी, अभी हाल पता चल जायेगा कि मंहगाई के पीछे असल राज क्‍या है । फिर नर्राना मंहगाई मंहगाई मंहगाई । पर कैसे रूकवाओगे नेताजी सेठ जी तो आपकी रिजर्व बैंक भी हैं और वोट बैंक भी । वही सेठजी तेल और सरसों दोनों को ब्‍लॉक कर के बैठे हैं महाराज ।

ये वही सेठ जी हैं गरीब के दुश्‍मन सेठों के मसीहा और नेताओं के रिजर्व बैंक, जिन्‍होंने चन्‍द साल पहले केन्‍द्र सरकार से खुले तेल की बिक्री पर रोक लगवा के अपने पाउचों में तेल बेचने की मंजूरी दिला ली थी, तब हम नर्राये थे खूब भभ्‍भर मचाया था और चम्‍बल के किसानों को उनके द्वारा ही पैदा की गयी सरसों का तेल खुद पिरवा कर खाने से रोकने और अपनी सरसों का तेल सेठ जी से पिरवा कर पाउच में तीन गुने जादा दामों पर खरीद कर खाने से हमने जैसे तैसे बचाया था । इसके चन्‍द सालों बाद सेठ जी ने फिर ड्राप्‍सी शिवपुरी जिले में फैलवायी थी और मुरैना के कलेक्‍टर से ऊपर ही ऊपर आर्डर निकलवा कर मुरैना जिला में खुले तेल की बिक्री बन्‍द करवाई थी तथा फिर पाउचों में तेल खपाया था, उस समय खुले बाजार में खुले तेल के दाम थे 28 रूपये किलो और सेठजी के पाउच का तेल था 70 रूपये  प्रति किलो, लोगों ने उस भ्रष्‍ट कलेक्‍टर के रहते मजबूरी में सेठ जी का तेल झेला, हमने फिर ऊधम भभ्‍भर मचाया और कलेक्‍टर बदलते ही सेठजी का आर्डर निरस्‍त कराया ।

सेठ जी के किसी जमाने में अर्जुन सिंह ( वर्तमान केन्‍द्रीय मंत्री) जीजा हुआ करते थे, उसके बाद दिग्विजय सिंह भी कुछ समय सेठ जी के जीजा बने रहे, आजकल रूस्‍तम सिंह (म.प्र. के पंचायत मंत्री ) उनके जीजा हैं या क्‍या हैं पता नहीं, मगर दोनों की जोड़ी धरम वीर जैसी जोड़ी है, इत्‍ता पता है ।

सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं इनकी जोड़ी, तोड़े से भई टूटे ना ये धरमवीर की जोड़ी । मुझे ये गाना बहुत पसन्‍द है । और इस जोड़ी पर फिट भी है ।

सेठजी के गोदाम तेल और सरसों से लबालब हैं नेता जी, सेठजी किलो टनों में तेल रोजाना बाहर भी भेज रहे हैं, उससे ज्‍यादा अण्‍डरग्राउण्‍ड दबाये भी बैठे हैं । दम है तो रोको मंहगाई, सेठ जी का तेल म.प्र. में भी बंटवा दोगे तो प्‍यारे म.प्र. की मंहगाई गारण्‍टी से खत्‍म हो जायेगी । गारण्‍टी क्‍या चैलेन्‍ज से खत्‍म हो जायेगी । लो एक पता तो बता दिया करो कार्यवाही, इसके बाद फिर और कई पते बतायेंगे और भी माल बतायेंगे, हम घटवायेंगे मंहगाई करो कार्रवाई , फिर उसके बाद नर्राना मंहगाई मंहगाई मंहमाई ।  

शनिवार, 12 अप्रैल 2008

गायों के लिये मौत का फरमान, विनाशकारी पॉलीथिन

गायों के लिये मौत का फरमान, विनाशकारी पॉलीथिन

मनों पॉलीथिन लील जाती हैं हजारों गायें रोज इस जहर को

अनीता मिश्रा, तहसील संवाददाता मुरैना   

मुरैना/ भिण्‍ड/श्‍योपुर/ धौलपुर 13 अप्रेल 08, इन दिनों शादी विवाहों को मौसम में, विवाहों के दौरान भारी संख्‍या में विनाशकारी पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है । इस पॉलीथिन को उपयोग के बाद कचरे के ढेरों में फेंक दिया जाता है, जिसे बाद में भारी मात्रा में पशुओं द्वारा भोजन व स्‍वाद की चाह में लील लिया जाता है । जिसमें गायों तथा अन्‍य चौपायों की संख्‍या काफी अधिक है ।

ज्ञातव्‍य है कि चम्‍बल क्षेत्र भगवान श्री कृष्‍ण की लीला स्‍थली एवं पाण्‍डवों की ननसार रही है अत: चम्‍बल में गौ पालन व संरक्षण का विशेष महत्‍व है । इसके अलावा लगभग 70 प्रतिशत गायें यहॉं या तो महज सेवा करने के लिये पाली जातीं हैं या वैसे ही आवारा ढील दी जातीं हैं । जो यत्र तत्र सर्वत्र यूं ही मुक्‍त विचरण करतीं रहतीं हैं, और भोजन पानी तलाशती फिरती हैं ।

भूख और प्‍यास से व्‍याकुल गायों को इन दिनों शहर और गॉंवों में होने वाले विवाह समारोहों के पश्‍चात फेंकी जाने वाली झूठन और कचरे से काफी भोजन प्राप्‍त हो जाता है जिससे गायों व अन्‍य चौपायों की मौज हो जाती है । लेकिन आधुनिक विवाहों में भारी मात्रा में पॉलीथिन जैसी विषैली और विनाशकारी उपयोग की जातीं हैं जिन्‍हें भोजन की झूठन के साथ ही मिश्रित रूप में फेंक दिया जाता है, कई बार तो भोजन की झूठन ही इन पॉलीथिनों में कैद रहती है । इसके अलावा पॉलीथिन चबाने में नरम होने से पशुओं को चबाने में सुखद अनुभूति कराती है । सो लालच व भूख में गाय तथा अन्‍य चौपाये इन्‍हें निगल जाते हैं ।

प्रतिवर्ष अकेले चम्‍बल में पिछलें सात साल के दौरान पॉलीथिन के लीलने से औसतन 700 गायों और अन्‍य चौपायों सहित 1900 पशु अनजाने व अकाल मारे गये । इसमें हमने वे आंकड़े भी शामिल किये हैं जिनमें पशुओ की मृत्‍यु पीने का पानी न मिलने से प्‍यास से भी मरे हैं ।

जब कई मरी हुयी गायों को ढो ढो कर पशु चिकित्‍सकों ने उनका पोस्‍ट मार्टम किया तो 93 फीसदी के अंदर पॉलीथिन के भण्‍डार मिले । जिसमें गायों की मौत के आंकड़े और भी भयावह हैं, मरने वाली गायों के पेट से 40 किलो से लेकर 65 किलो तक पालीथिन पायी गयी ।

पॉलीथिन धरती को बंजर कर रही है, इसका परिणाम भुगतने में तो हमें अभी दस पन्‍द्रह साल लगेंगे लेकिन पशुओं को अकाल मौत के घाट तो पिछले पन्‍द्रह साल से उतार रही है, इससे हम वाकिफ होकर या तो मौन हैं या नावाकिफ ।

 

पृथक चम्‍बल राज्‍य की मांग का आज पारित हुआ था प्रस्‍ताव

चम्‍बल राज्‍य की मांग का आज पारित हुआ था प्रस्‍ताव

आठ साल पहले राष्‍ट्रीय जनता दल ने उठाई थी मांग, अब चम्‍बल के हर बच्‍चे की ख्‍वाहिश

असलम खान, ब्‍यूरो चीफ ग्‍वालियर   

मुरैना 13 अप्रेल 08, आज से आठ साल पहले सन 2000 में आज के दिन यानि 13 अप्रेल को पहली बार पृथक चम्‍बल राज्‍य की मांग उठी थी । उल्‍लेखनीय है कि उस समय पृथक झारखण्‍ड और छत्‍तीसगढ़ की मांग को लेकर राजनीतिक उथल पुथल मची थी तथा कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही छोटे राज्‍य बनाये जाने के पक्षधर होकर विध्‍धनसभाओं में प्रस्‍ताव पारित करने में लगे थे तथा विकास के लिये छोटे राज्‍यों का होना जरूरी जैसे अहम तर्क दे रहे थे ।

ऐसे समय में स्‍वतंत्रता प्राप्ति से ही हैरान परेशान और दुखी चम्‍बल वासीयों ने चम्‍बल की राजनीतिक व आर्थिक उपेक्षाओं को लेकर राष्‍ट्रीय जनता दल के मध्‍यप्रदेश के महासचिव श्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' से सम्‍पर्क किया था, अंचल के लोगों की और चम्‍बल की लगातार उपेक्षा के इस मुद्दे को राजद प्रदेश महासचिव ने गंभीरता से लेकर, 13 अप्रेल 2000 को चम्‍बल के राजद नेताओं और किसानों, विद्यार्थियों तथा नागरिकों के साथ एक विशेष सभा आयोजित की थी, जिसमें सर्वसम्‍मति से प्रस्‍ताव पारित किया गया था कि उपेक्षा, पिछड़ेपन और नाकारापन तथा अनसुनवाई जैसी समस्‍याओं से निपटने तथा अपना विकास और विकास की दिशा खुद तय करने के लिये पृथक चम्‍बल राज्‍य बनाया जाना जरूरी है ।

राजद की इस बैठक में नवीन चम्‍बल राज्‍य का एक नक्‍शा भी पारित किया गया जिसमें म.प्र., उ.प्र. और राजस्‍थान के चम्‍बल के आसपास के भू भाग सम्मिलित किये गये ।

प्रस्‍ताव में यह भी कहा गया कि दिल्‍ली और भोपाल में बैठकर हमारी तकदीरें तय करने का अधिकार उन लोगों को नहीं होना चाहिये जो चम्‍बल के बारे में सरासर निक्षर हैं, वे हमारी योजनायें बनाते हैं और हमारे विकास की रूपरेखा तय करते हैं जो हमारे लिये विदेशी हैं । प्रस्‍ताव में राजनीतिक दलों द्वारा किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अपना प्रदेश व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष चम्‍बल के किसी बेटे को न बनाये जाने की भी निन्‍दा कर प्रश्‍न उठाया गया था कि अब तक मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री या राज्‍यपाल चम्‍बल के किसी बेटे को क्‍यों नहीं बनाया गया ।

13 अप्रेल 2000 को चम्‍बलवासीयों द्वारा राष्‍ट्रीय जनता दल के तत्‍वाधान में पारित इस प्रस्‍ताव में अपना विकास खुद करने और अपनी नीतियां स्‍वयं बनाने तथा प्रचुर खनिज एवं पर्यटन सम्‍पदा की बात कही गयी थी ।

आज आठ साल बाद इस प्रस्‍ताव के जन्‍म दिवस पर चम्‍बल के लाेग न तो इस प्रस्‍ताव को भूले हैं और न प्रस्‍ताव की मूल भावनाओं को । आठ साल तक यह आन्‍दोलन निरन्‍तर चलता रहा जो आज तक जारी है । हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने जरूर चम्‍बल के एक बेटे को अपनी पार्टी का मध्‍यप्रदेश का प्रदेश अध्‍यक्ष बना दिया लेकिन चम्‍बलवासी इससे संतुष्‍ट नहीं हैं ।

आज चम्‍बल में इस पृथक चम्‍बल राज्‍य की मांग पर श्री हनुमान प्रसाद चौबे के नेतृत्‍व में लम्‍बी लड़ाई लड़ी जा रही है । राष्‍ट्रीय जनता दल के प्रदेश महासचिव द्वारा ग्‍वालियर टाइम्‍स से चर्चा करते हुये कहा कि हम अपनी मांग पर अटल हैं और पृथक चम्‍बल राज्‍य बनवा कर ही दम लेंगे, चाहे संघर्ष कितना भी लम्‍बा क्‍यों न हो ।

सोमवार, 7 अप्रैल 2008

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आक्रामक मुद्रा

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की आक्रामक मुद्रा

तनवीर जांफरी, (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

email: tanveerjafri1@gmail.com, tanveerjafri58@gmail.com, tanveerjafriamb@gmail.com, 22402, नाहन हाऊस, अम्बाला शहर। हरियाणा, फोन : 0171-2535628, मो: 098962-19228

       लोकसभा के चुनावों का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, देश के सभी राजनैतिक दलों द्वारा चुनावी बिगुल फूंकने का काम भी शुरु कर दिया गया है। इस बार फिर सबसे अधिक मशक्कत उत्तर प्रदेश राज्य में की जा रही है जोकि लोकसभा में सबसे अधिक अर्थात् 80 सीटों का प्रतिनिधित्व करने वाला देश का ंफिलहाल सबसे बड़ा राज्य है। गत् 30-31 मार्च को कानपुर के फूलबांग मैदान से सटे नानाराव पार्क में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने 26 वर्षों के बाद उसी स्थान पर अपना दो दिवसीय खुला अधिवेशन आयोजित किया। इस अधिवेशन के पहले दिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लगभग दो हंजार सदस्यों ने शिरकत की जबकि समापन दिवस पर पूरे प्रदेश से आए लगभग साठ हंजार सक्रिय सदस्यों ने भाग लेकर एक बड़ी एवं उत्साहवर्धक उपस्थिति दर्ज कराई। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा इतने बड़े पैमाने पर कांग्रेस का खुला अधिवेशन बुलाया जाना तथा इसके समापन में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी तथा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का शिरकत करना जहां उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के जनाधार की वापसी का प्रयास है, वहीं यह आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी भी है।

              इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान समय में कांग्रेस का केंद्रीय सत्तारूढ़ दल, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल होना तथा पार्टी का सत्ता में होना यह महंज सोनिया गांधी के कुशल नेतृत्व, उनके घोर परिश्रम तथा पार्टी को एकजुट रखने की उनकी क्षमता की ही बदौलत सम्भव हो सका है। परन्तु सोनिया गांधी इस सच्चाई से भी भली भांति परिचित हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति जब तक बेहतर नहीं होती तब तक कांग्रेस केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार के बारे में सोच भी नहीं सकती। यही वजह है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में वर्तमान लोकसभा में कांग्रेस को प्राप्त हुई मात्र 10 सीटों की संख्या में अभूतपूर्व इंजांफा करना चाह रही है। अपने इसी उद्देश्य के तहत सोनिया गांधी ने रीटा बहुगुणा जोशी को कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर उन्हें यह विशाल अधिवेशन आयोजित करने का ंजिम्मा सौंपा। याद रहे कि श्रीमती रीटा बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी की प्रतिभाशाली पुत्री हैं तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोंफेसर भी हैं। जोशी को अध्यक्ष बनाकर जहां सोनिया ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस में गुटबांजी को नंजरअंदांज करने का प्रयास किया है, वहीं कांग्रेस की ओर से एक महिला को आगे लाने की कोशिश के रूप में भी इसे देखा जा रहा है।

              प्रश्‍न यह है कि क्या रीटा बहुगुणा जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने खिसकते जनाधार को वापस पाने में सफल हो सकेगी? सलमान ंखुर्शीद, महावीर प्रसाद, श्रीप्रकाश जयसवाल, प्रमोदी तिवारी, संजय सिंह तथा जगदम्बिका पाल जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता उत्तर प्रदेश में डा. जोशी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए बिना किसी गुटबांजी के एकजुट होकर, पार्टी को आगे ले जा सकेंगे? इसका उत्तर और किसी नेता द्वारा कानपुर अधिवेशन में तो शायद न ही दिया गया हो परन्तु सोनिया गांधी ने इस विषय पर ंजरूर सांफ-सांफ कह डाला। सोनिया ने अपने भाषण में उन नेताओं को कड़ी चेतावनी दी जो गुटबांजी की राजनीति पर विश्वास करते हैं तथा संगठन के हितों की अनदेखी करते हुए अपने हितों का अधिक ध्यान रखते हैं। ऐसे पार्टी नेताओं को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि- 'हम सब एक ही नाव पर सवार हैं', नाव बचेगी तो बचेंगे नहीं तो सभी डूब जाएंगे।' सोनिया गांधी ने पार्टी कार्यकर्ताओं में संघर्षशीलता व जुझारुपन लाने का भी ंजबरदस्त प्रयास किया। कहा तो यह जा रहा है कि सोनिया गांधी ने कानपुर में अपने दस वर्षों के राजनैतिक जीवन का सबसे आक्रामक भाषण दे डाला। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि आप (कांग्रेसजन) जेल जाने को तैयार नहीं हैं तो उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापस नहीं आ सकते। कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए उन्होंने राहुल गांधी को भी कार्यकर्ताओं के साथ जेल भेजने का आश्वासन दिया।       दरअसल देश में बढ़ती जा रही साम्प्रदायिकतावादी तथा क्षेत्रवादी राजनीति के चलते कांग्रेस अपना कांफी बड़ा जनाधार गंवा चुकी है। कांग्रेस का परम्परागत समझा जाने वाला दलित, मुस्लिम, पिछड़ा वर्ग तथा ब्राह्मण मतदाता कांग्रेस से मुंह मोड़कर अन्य दलों में चला गया है। 1989 के बाद उत्तर प्रदेश में ंखासतौर पर पार्टी का यह पारम्परिक वोट बैंक कांग्रेस के हाथों से खिसकता जा रहा है। कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में कुछ विशिष्ट नेताओं के, जिनमें स्वयं सोनिया गांधी व राहुल गांधी भी शामिल हैं, कुछ ही क्षेत्र ऐसे हैं जहां कि कांग्रेस अपना परचम बुलन्द किए हुए है। अन्यथा कुल मिलाकर प्रदेश में कांग्रेस को तीसरे अथवा चौथे नम्बर की पार्टी के रूप में ही देखा जा रहा है। क्या सोनिया गांधी की यह नई ंकवायद पार्टी को उत्तर प्रदेश में मंजबूत कर सकेगी? कार्यकर्ताओं को जेल भरो आंदोलन छेड़ने का आह्वान करना क्या पार्टी में नई जान फूंकने का एक ब्रह्मास्त्र साबित हो सकेगा? मायावती सरकार के विरुद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी बात को पूरी मंजबूती के साथ मतदाताओं तक पहुंचा पाने में सफल हो सकेंगे? सोनिया गांधी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने किसानों के ंकंर्ज की मांफी के लिए, रोंजगार गारंटी योजना के लिए व अन्य कई कल्याणकारी योजनाओं हेतु उत्तर प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपए दिए हैं। परन्तु उस धन का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। अत: कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मायावती सरकार से उन पैसों का हिसाब मांगना चाहिए।

              यहां यह बताना भी जरूरी है कि हालांकि 26 वर्ष पूर्व 1982 में यू पी कांग्रेस कमेटी का एक विशाल अधिवेशन इसी स्थान पर आयोजित किया गया था जिसमें श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में तथा राजीव गांधी कांग्रेस महासचिव के रूप में शरीक हुए थे। परन्तु इससे भी चार वर्ष पूर्व तीन व चार ंफरवरी 1978 को भी कानपुर के इसी फूलबांग मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक ऐतिहासिक अधिवेशन बुलाया गया था। इस अधिवेशन का महत्व इसलिए 1982 के अधिवेशन से अलग था क्योंकि एक तो यह पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन था तथा दूसरा यह कि यह अधिवेशन उस दौर में आयोजित हुआ था जबकि केंद्र में जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की वह सरकार थी, जोकि इंदिरा गांधी को नियंत्रित रखने के लिए, उनपर कानूनी शिकंजा कसने के लिए तथा उन्हें सताने व परेशान करने के लिए सब कुछ करने को तैयार थी। मैं स्वयं 1978 के उस अधिवेशन का साक्षी रहा हूं जिसमें कि डा. शंकर दयाल शर्मा, प. कमलापति त्रिपाठी व इंदिरा गांधी जैसे बड़े नेताओं ने अपने क्रांतिकारी भाषणों द्वारा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में वह जोश फूंक दिया था कि कांग्रेस पार्टी मात्र एक वर्ष के बाद ही पुन: केंद्रीय सत्ता में वापस आ गई थी।

              कानपुर के 1978 के इस सम्मेलन की याद दिलाना यहां इसीलिए ंजरूरी था क्योंकि एक बार फिर सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के ही लहजे में पार्टी के कार्यकर्ताओं का संघर्ष करने, जेल भरने तथा अपने हितों से ऊपर उठकर पार्टी के हितों के लिए काम करने का आह्वान किया है। कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश की इस संघर्षपूर्ण राजनीति में राहुल गांधी को भी एक प्रखर एवं तेंज तर्रार युवा नेता के रूप में आंजमा रही है। कर्नाटक, उड़ीसा व झारखंड राज्यों का दौरा कर चुके राहुल गांधी का सबसे अधिक समय उत्तर प्रदेश के दौरों में ही बीत रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की राहुल गांधी की यात्रा बहुत चर्चित रही। वे बुंदेलखंड के उन क्षेत्रों में गए जहां किसानों ने ंगरीबी व भुखमरी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। वे उस क्षेत्र के किसानों तथा बिना सिंचाई के पड़ी बंजर ंजमीनों को देखकर अत्यन्त भावुक हो गए थे। यहां तक कि राहुल गांधी के बुंदेलखंड के दौरे ने मायावती के भी कान खड़े कर दिए थे तथा उन्होंने भी अपना जनाधार खिसकने के डर से राहुल की बुंदेलखंड यात्रा से एक दिन पहले ही प्रभावित किसानों व दलित परिवार के लोगों से मुलांकात कर उन्हें अनेकों तोहंफों से भी नवांजा था। परन्तु राहुल ने तो एक प्रभावित अनाथ परिवार की 4 लड़कियों को गोद लेकर मायावती की बोलती ही बंद कर दी थी।

              बहरहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मंजबूती के लिए जहां सोनिया गांधी व राहुल गांधी की व्यक्तिगत् रूप से दिलचस्पी लिए जाने की ंजरूरत है, वहीं कार्यकर्ताओं को भी बिना किसी गुटबांजी के संगठित होना पड़ेगा। पार्टी के सभी सहयोगी संगठनों, महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, राष्ट्रीय छात्र संगठन तथा कांग्रेस सेवादल सभी को अपने-अपने स्तर पर पूर्णतय: संगठित होकर पार्टी हाई कमान के नेतृत्व में एकजुट होकर कार्य करना होगा। सोनिया व राहुल गांधी का आकर्षण निश्चित रूप से भारी भीड़ को तो अवश्य आकर्षित कर सकता है परन्तु अन्ततोगत्व द्वार-द्वार जाकर मतदाताओं से मिलने तथा उन्हें कांग्रेस के मतदाता के रूप में परिवर्तित करने व मतदान केंद्र तक लाने का कार्य तो पार्टी कार्यकर्ताओं को ही करना होगा।        तनवीर जांफरी

 

उत्तर प्रदेश पुन: जाति आधारित ध्रुवीकरण की ओर

उत्तर प्रदेश पुन: जाति आधारित ध्रुवीकरण की ओर

निर्मल रानी  email: nirmalrani@gmail.com,  163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-09729229728  

       भारतवर्ष, धर्म व जाति की राजनीति में दुर्भाग्यवश संभवत: अन्य देशों की तुलना में सबसे आगे है। ऐसी आशा की जा रही थी कि प्रगतिशील संसार तथा खुले दिमांग के लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने के साथ-साथ जाति व सम्प्रदाय आधारित विद्वेष भी सम्भवत: धीरे-धीरे समाप्त नहीं तो कम तो ंजरूर हो जाएगा। परन्तु ऐसा होने के बजाए यह देखा जा रहा है कि यह विद्वेष तमाम कोशिशों के बावजूद निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। आधुनिकता की खोखली ढोल पीटने वाला समाज अपने आपको इस अंधकारपूर्ण बुराई से स्वयं को दूर नहीं रख पा रहा है। परिणामस्वरूप समाज में विघटन पैदा हो रहा है, परस्पर सहयोग का वातावरण बनने के बजाए जातिगत विद्वेषों के चलते असहयोग के परिणाम सामने आ रहे हैं। नतीजतन हमारा देश पीछे की ओर जा रहा है। सुरक्षा बलों, संसद व विधानसभाओं, प्रशासनिक अधिकारियों तथा अदालतों का वह बहुमूल्य समय जो अच्छे कामों में लगना चाहिए था वह जातिगत् एवं सम्प्रदायिक दुर्भावनाओं से उत्पन्न समस्याओं से निपटने व उन्हें शान्त कराने में लग रहा है।

              वैसे तो लगभग पूरा देश ही इस 'महामारी' का शिकार है। परन्तु देश के तुलनात्मक दृष्टि से पिछड़े समझे जाने वाले दो राज्य उत्तर प्रदेश व बिहार इस त्रासदी के कुछ ज्यादा ही शिकार हैं। इसी साम्प्रदायिक एवं जातिवादी वातावरण ने इन राज्यों का राजनैतिक समीकरण भी बदलकर रख दिया है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का उदय से लेकर वर्तमान वर्चस्व तक का संफर जाति आधारित समीकरण की ही देन है। और यह नासूर अब लगता है समाज के प्रत्येक साधारण व असाधारण व्यक्ति के भीतर इस हद तक अपनी जगह बना चुका है कि समय, स्थान तथा मौंके को देखे बिना समाज का एक अति ंजिम्मेदार व्यक्ति भी अपने मुंह से वह कुछ निकाल देता है जोकि ंकतई शोभायमान नहीं कहा जा सकता। इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान दौर से पीछे के दौर में तथा आज भी देहाती अथवा दूरदरांज के क्षेत्रों में किसी व्यक्ति को उसकी जाति के नाम से सम्बोधित किया जाता है। तथाकथित उच्च जाति के लोग तो इस सम्बोधन में शायद गर्व ही महसूस करते हैं अथवा ऐसे सम्बोधनों को बुरा नहीं मानते। परन्तु दलित समाज के लोगों को उनकी जाति के नाम से सम्बोधित करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। सभ्य समाज तो शुरु से ही इस बात का विरोधी था कि किसी भी व्यक्ति को उसके जातिसूचक नाम के साथ न पुकारा जाए। परन्तु अब भी कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटित होती हैं तथा इसका परिणाम प्राय: अच्छा भी नहीं होता।

              महेन्द्र सिंह टिकैत निश्चित रूप से उस बुंजुर्ग किसान नेता का नाम है जो गत् तीन दशकों से नि:स्वार्थ रूप से किसानों के अधिकारों के लिए निर्णायक संघर्ष करते चले आ रहे हैं। कभी भी और किसी भी सरकार से चाहे वह उत्तर प्रदेश की हो अथवा केंद्र में क्यों न हो टिकैत किसी भी सरकार से लोहा लेने से नहीं डरते। टिकैत के जनाधार का कारण किसी धर्म अथवा जाति पर आधारित राजनीति नहीं है। वे किसानों के हितों की लड़ाई नि:स्वार्थ रूप से लड़ते हैं। इसमें वे किसी जाति विशेष के किसानों को शामिल नहीं करते बल्कि सभी अन्नदाता किसान उनकी भारतीय किसान यूनियन के झण्डे के नीचे बिना किसी साम्प्रदायिक विद्वेष आ खड़ा होता है। उत्तर प्रदेश अथवा केंद्र में मंत्री बनना, राज्यसभा का सदस्य होना, लोकसभा व विधानसभा का टिकट लेने जैसी बातें उनके बाएं हाथ का खेल है। टिकैत एक ऐसे लोकप्रिय नेता का नाम है जिसे कि प्रत्येक राजनैतिक दल अपने साथ जोड़ना चाहता है। परन्तु वे स्वयं अपने आपको राजनैतिक दलों के दलदल से दूर रखते हुए केवल और केवल किसानों के हितों के लिए ही संघर्ष करना चाहते हैं।   परन्तु इतने महान नेता द्वारा भी गत् दिनों उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक जनसभा में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के विरुद्ध जातिसूचक टिप्पणी कर दी गई। बेशक टिकैत को बाद में अपने मुंह से निकाले गए शब्दों के लिए शर्मिन्दगी भी हुई तथा उन्होंने मीडिया के समक्ष इसका इंजहार भी किया परन्तु मुंह से निकला शब्द वापस नहीं आ सकता था। अत: टिकैत द्वारा की गई इस जातिसूचक टिप्पणी पर मुख्यमंत्री मायावती ने कार्रवाई किए जाने के आदेश दिए। इस घटनाक्रम को लेकर राज्य सरकार तथा किसानों के मध्य एक बड़ा टकराव होते-होते टल गया। टिकैत ने भी प्रशासन के साथ पूर्ण सहयोग की भूमिका निभाते हुए बिजनौर की अदालत से इस मामले में अपनी ंजमानत करवा ली।

              यहां गौरतलब यह है कि क्या टिकैत अकेले ऐसे नेता है जिन्होंने जातिसूचक टिप्पणी कर कोई बड़ा अपराध कर डाला? या फिर चूंकि वह टिकैत जैसी कद्दावर शख्सियत द्वारा की गई टिप्पणी थी इसलिए उन्हें नीचा दिखाने के लिए मुख्यमंत्री मायावती ने उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई किए जाने का ंफैसला किया? बात केवल इतनी ही नहीं रही कि टिकैत ने मायावती के विरुद्ध जातिसूचक टिप्पणी की हो और मायावती ने उन्हें अदालत में अपनी जमानत कराने तक के लिए बाध्य कर दिया हो। बल्कि टिकैत की टिप्पणी से लेकर उनकी ंजमानत होने तक के चार दिनों तक जाति आधारति राजनीति के विशेषज्ञों द्वारा जमकर राजनैतिक रोटियां सेकने के प्रयास किए गए। परन्तु दूरदर्शी टिकैत ने स्वयं को किसी राजनैतिक दल का मोहरा बनने देने के बजाए स्वयं अति विवेकपूर्ण एवं सूझबूझ भरा निर्णय लेते हुए किसी बड़े टकराव को टालने में सफलता हासिल की।

              बेशक तथाकथित उच्च जाति के लोगों द्वारा विशेषकर इन समुदायों के बाहुबलियों द्वारा दलित समाज के लोगों को नीचा दिखाने का हमेशा प्रयास किया जाता रहा है। मायावती इसे 'मनुवादी' व्यवस्था का नाम देती हैं। और यह एक कड़वा सत्य भी है कि हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों ने जात-पात की जो खाई खोदी थी वह आज इतनी गहरी हो चुकी है कि इसे पाटना आज असम्भव सा प्रतीत होता है। अब तो हालत यह है कि राजनैतिक लोग इसी जातिवादी राजनीति पर स्वयं को पूरी तरह आश्रित कर चुके हैं। यहां तक कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी का तो वजूद ही जातिगत राजनीति पर आधारित है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में दलितों के नाम पर खड़ा होने वाला यह पहला राजनैतिक संगठन था तथा इसकी सोच बहुजन समाज पार्टी संस्थापक स्व. कांशीराम की थी।

              बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आने तथा मायावती के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद क्या यह माना जा सकता है कि अब उत्तर प्रदेश में दलितों का राज हो चुका है तथा मायावती उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य की शक्तिशाली मुख्यमंत्री हैं? नहीं, अब उनकी मंजिल इसी रास्ते पर चलते हुए अथवा अवसरवादिता का परिचय देते हुए ब्राह्मण समाज जैसी कथित स्वर्ण जाति को जिन्हें कभी मायावती मनुवादी कहा करती थीं, को साथ लेकर दिल्ली के सिंहासन तक का संफर तय करना है। इसके लिए वे पूरे प्रयास में जुटी हैं। उत्तर प्रदेश में कई जिलों व नगरों के नाम दलितों के प्रेरणास्रोत नेताओं अथवा महापुरुषों के नाम पर रखकर वे स्वयं को देश के दलितों का सबसे बड़ा नेता व शुभचिंतक बताना चाह रही हैं। वे कई बार बातों-बातों में अपनी तुलना बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर व कांशीराम से भी करती रहती हैं। अपने ंजिन्दा देवी होने की बात तो वह कई वर्ष पहले ही कह चुकी हैं।

              अभी एक तांजातरीन घटनाक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मायावती की सैकड़ों करोड़ रुपए की एक ऐसी ही परियोजना पर रोक लगा दी है जिसके द्वारा वे दलित समाज में अपने आपको और अधिक मंजबूती से पेश करना चाहती थीं। कुल मिलाकर चाहे वह दलित विरोधी विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित उच्चजाति के राजनीतिज्ञों के दलित विरोधी हथकंडे हों या फिर दलितों के उत्थान व विकास के नाम पर की जाने वाली मायावती जैसे नेताओं की राजनीति हो। दोनों ही ओर से जातिगत भावनात्मक मुद्दों का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। जाति आधारित राजनीति करने वाले अपनी-अपनी जाति के लोगों के कल्याण हेतु शायद ही कुछ कर पाने की क्षमता रखते हों। प्रश्‍न तो यह है कि ऐसी तंग नंजर सोच रखने वाले नेताओं से आंखिर सम्पूर्ण भारत के सभी धर्मों व जातियों के वह लोग जो स्वयं को केवल भारतीय कहलाने में ही गर्व महसूस करते हैं, आंखिर वे क्या उम्मीद रखें?         निर्मल रानी     

भगवान शिव का विरूपाक्ष मंदिर हंपी

भगवान शिव का विरूपाक्ष मंदिर हंपी

राधा कांत भारती*    लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।)

हंपी, भगवान शिव का विरूपाक्ष मंदिर अथवा पंपापति का स्थान है जोकि विजयनगर के राजाओं के पारंपरिक एवं पारिवारिक भगवान थे। यह मंदिर बेलारी जिले में तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है और यह कर्नाटक में होसपेट शहर से नौ मील की दूरी पर है। यह विजयनगर का सबसे पुराना और पवित्र मंदिर है। यह मंदिर 1565 ईसवी में तालीकोटा के युद्व में विनाश से अद्भुत तरीके से बच गया था।

       आरंभ में इस महान एवं प्राचीन मंदिर के आसपास एक छोटा सा गांव हुआ करता था। विजयनगर साम्राज्य स्थापित होने से पहले यहां प्रकृति ने अपनी विस्तृत चादर बिछा रखी थी। यहां पर एक तरफ तो एक विशाल चट्टान एवं विस्तृत पहाड़ियां थी तो दूसरी तरफ हरे भरे पेड़ और पौधे थे। पास ही से तुंगभद्रा नदी बहती थी।

यहां की विशाल चट्टानों, नदी, एकांत और प्रकृति ने अनेक बुद्विमानों एवं ऋषि-मुनियों को यहां आने के लिए आकर्षित किया है। विद्यारण्य ने इस स्थान को अपनी तपस्या के लिए चुना था। तुगंभद्रा नदी का दूसरा नाम पंपा भी है। पंपादेवी को ब्रहमा की पुत्री माना गया है और उसने हैमकूट पहाड़ी पर तपस्या की थी। भगवान विश्वेश्वर उसके सामने प्रकट हो गये और उसे अपनी संगनी बना लिया। विद्वानों और दार्शनिकों से प्रभावित हो कर 1336 ईसवीं में माधव, हरिहर, और बुक्का ने इस शहर की नींव ड़ाली और इसका नाम विजयनगर हरिहर और बुक्का ने अपने गुरू विद्यारण्य के नाम पर रखा। हरिहर और बुक्का संगम के पांच पुत्रों में से दो थे। इन्होंने पंपापति अथवा विरूपाक्ष को अपना कुल देवता माना। नदी के उत्तरी छोर पर अनेगुंडी का किला था और दक्षिणाी छोर पर विजयनगर को बसाया गया था। लगभग तीन सौ वर्षों तक विजयनगर बाहरी संस्कृति एवं विचारों से बचा रहा और देश की पारंपरिक संस्कृति तथा धर्म के समर्थन में खड़ा रहा। अब विजयनगर दक्षिण की कांशी बन गया था और विरूपाक्ष भारत के 108 दिव्य क्षेत्रों में से एक हो गया। विजयनगर साम्राज्य का पहला वंश संगम के नाम पर पड़ा था। संगम हरिहर और बुक्का का पिता था। बुक्का प्रथम के बाद हरिहर द्वितीय ने यहां की सत्ता संभाली। करनूल से लेकर कुंबाकोणम के बीच स्थित मंदिरों को इसने सोलह बड़े उपहार दिये थे जिसके लिए इसकी प्रशंसा की जाती है। इसने पूरे दक्षिण में अपने राज्य का विस्तार कर लिया। हांलाकि वह भगवान विरूपाक्ष का अनुयायी था परंतु वह अन्य धर्मों के प्रति भी उदार था। विजयनगर साम्राज्य और बादामी साम्राज्य के बीच लगातार युद्व होते रहते थे। संगम वंश में नौ राजा हुए थे जो यादवों और होयसेलों के पतन के बाद सत्ता में आये थे और ये 1336 ईसवीं से 1486 ईसवीे तक सत्ता में रहे।

सालुव वंश के अंतिम राजा को तालुव वंश के वीर नरसिंह ने सत्ता से हटा दिया। वीर नरसिंह के बाद उसके रिश्ते के छोटे भाई कृष्णदेव राय ने सत्ता संभाली जो विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान एवं भारत का अनूठा राजा हुआ।

कृष्णदेव राय के राज में विजयनगर साम्राज्य अपने वैभव और खुशहाली के चरम उत्कर्ष पर पहुंच गया था। वह संस्कृत और तेलगु साहित्य का महान संरक्षक था। उसने स्वयं भी तेलगु में ''अमुक्तमल्यद'' नाम का एक ग्रंथ लिखा था जिसमें उसने स्वयं के द्वारा संस्कृत में लिखे पांच साहित्यों का वर्णन किया है। इसके दरबार में आठ मशहूर कवि आश्रय पाते थे जिन्हें '' अष्टदिग्गज'' कहा जाता था और इनमें सबसे अधिक पेद्दना मशहूर था। धुर्जती कवि भी मशहूर था। ऐसा कहा जाता है कि कृष्णदेव राय धुर्जती कवि के बारे में यह जानना चाहते थे कि उनकी कविताओं में इतनी मीठास कैसे आती है तो तेनालीराम जोकि एक प्रतिभाशली विद्वान एवं हंसौड़ा था और उसने ''पंडुरंग महात्यम'' नामक ग्रंथ की रचना की थी, उसने बताया कि इसका कारण धर्जती की संगनी के सुंदर होंठ है। कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई अच्युत राय गद्दी पर बैठा। इसके बाद वैंकट राय प्रथम और इसके बाद सदाशिव राय ने गद्दी संभाली। परंतु सारी शक्ति उसके मंत्री रामराय के हाथों में थी। वह वास्तविक शासक तो था ही साथ ही उसमें अपार क्षमता भी थी। परंतु अब वह दंभी और अति आत्मविश्वासी हो गया और उसने अपना गठबंधन भी बदल लिया जिसके कारण उसके पडौसी राज्य की प्रजा का वह घृणा पात्र बन गया। चार मुस्लिम राज्यों बीजापुर, गोलकुंडा, अहमद नगर और बीदर ने अपना एक अलग गठबंधन बनाया और इसने मिलकर विजयनगर पर हमला कर दिया। 23 जनवरी, 1665 ईसवीं में राक्षस और तगडी गांव के पास तालीकोटा में एक भयंकर युद्व हुआ जिसमें विजयनगर की पराजय हुई और हुसैन निज़ाम शाह ने रामराय की हत्या कर दी। विजयी सेना ने नगर में लूट मचा दी। बेहतरीन तरीके से बसे नगर को हमलावर सेना ने बर्बाद कर दिया। युद्व के तीन बाद से लेकर अगले पांच महीनों के दौरान लगातार विनाश चलता रहा और यह नगर पूरी तरह से नष्ट हो गया। ऐसा विश्व इतिहास में कभी नहीं हुआ जो एक दिन पहले शानदार और वैभवशाली राज्य था और अचानक ही अगले ही दिन उसका इस तरह से पतन हो जाये।

यूनेस्को की रिपोर्ट में भारतीय प्राचीन स्थापत्य, महलों मंदिरों, सुरक्षा मचानों, स्नानगृहाें और जगह-जगह फैले पडे बड़ी संख्या पत्थरों को स्थान दिया है। इसकी पूरी तस्वीर तुंगभद्रा नदी है जो यह महसूस कराती है कि लंबे समय से इसने बहुत कुछ छिपा रखा है। विजयनगर की राजधानी के रूप में हंपी में वो सारे तत्व मौजूद है जो उसे किसी भी राज परिवार के रहने के लिए गौरव दिलाते है। यहां हाथी, घोड़े, नृतकियां, पर्वत गुफाएं संगीतमय स्तंभ, कमल की आकृति के फव्वारे, सीढ़िदार तालाब आदि दृष्टिगोचर होते है। लगभग 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में जगह-जगह दबे अवशेष अद्भुत दिखाई देते है। विरूपाक्ष मंदिर का गोपुरम् पचास मीटर लंबा-चौड़ा और नौ मंजिला है। विट्ठल मंदिर में पत्थर से बने हुए छप्पन स्तंभ है जो एक क्रम में देखने पर संगीतमय आभास उत्पन्न करते है। यहीं पर  6.7 मीटर की एक विशाल शिला है जिसको नरसिंह कहते है। बेशक विजयनगर के हीरे-जवाहरात को लूट लिया गया हो और नगर पूरी तरह से खाली हो गया हो परंतु आज भी इस अंतिम नगर की महानता, महत्ता और वैभवता को महसूस किया जा सकता है।

¹ लेखक स्वतंत्र पत्रकार है।

 

न नहाना ना धोना, मगन रहना, पूजो माता, बिजली पानी बिना, हिन्‍दू नवसंवत्‍सर पर हिन्‍दूओं को राज्‍य सरकार का तोहफा

न नहाना ना धोना, मगन रहना, पूजो माता, बिजली पानी बिना, हिन्‍दू नवसंवत्‍सर पर हिन्‍दूओं को राज्‍य सरकार का तोहफा

विद्युत राक्षस का माता के भक्‍तों पर हमला, लाखों चपेट में, राज्‍य संकट में या देवी सर्वभूतेषु विद्युत रूपेण संस्थिता, नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमो नम :

मुरैना 7 अप्रेल 08, राज्‍य सरकार ने चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा हिन्‍दू नवसंवत्‍सर पर हिन्‍दूओं को तोहफा देते हुये सोमवार को सबेरे बिजली काट कर न केवल हिन्‍दूओं को ही उपकृत कर दिया बल्कि माता के भक्‍तों को बिना नहाये धोये और बिना जल भरे खाली कलशों के साथ माता की पूजा के लिये भी विवश कर दिया ।

उल्‍लेखनीय है कि कल रविवार से नवरात्र महोत्‍सव प्रारंभ हो चुका है और माता की प्रतिष्‍ठा स्‍थापना के साथ ही जवारे बो कर तथा जल घट स्‍थापना आदि करके, नियमित रूप से स्‍नान आदि से निवृत्‍त हो माला को जल स्‍नान, जल अर्पण एवं तर्पण आदि कर्म करते हैं । इसके साथ ही नौ रात्रि तक माता का निरन्‍तर जप अनुष्‍ठान, भजन पूजन आदि नियमित रूप से किया जाता है ।

अधिकांश लोगों द्वारा रविवार को ही माता की प्रतिष्‍ठा कर अर्चना अनुष्‍ठान प्रारंभ कर दिया गया था, कुछ लोग कतिपय समाचारपत्रीय भ्रम स्‍थापना के कारण इसका प्रारंभ आज सोमवार से कर रहे थे ।

खैर जो भी हो आज की बिजली दुर्गत सुबह सात बज कार 17 मिनिट से शुरू हुयी यानि सबेरे कटी बिजली ने अभी समाचार लिखे जाने के वक्‍त तक कुछ ऐसा कोहराम मचाया कि अब इसे ''विद्युत राक्षस'' की संज्ञा दी जाये तो कुछ भी अनुचित नहीं होगा ।

कुल मिला कर समाचार लिखे जाने और प्रकाशित किये जाने के वक्‍त तक बिजली बन्‍द थी, हॉं हर एक या दो घण्‍टे बाद जरूर महज 3 या 4 मिनिट के लिये अपनी झलक दिखलाती रही । यानि यूजलेस बिजली, बट बिजली वाज अवेलेबल, अब 3 या 4 मिनिट को आने वाली बिजली का कब कैसा कितना इस्‍तेमाल कर सकते हो कर लो बेटा, पूज लो माता, दे दिया राज्‍य सरकार ने नवसंवत्‍सर को तोहफा । यानि पहले ही दिन मस्‍त व शुभ आरम्‍भ । जय माता की ।।

''दुर्गा दुर्गत दूर कर '' यह पुराना भजन है, बत्‍तीस नाम माला में भी यह उल्‍लेखित है । केवल सिद्ध कुंजिका में संशोधन कर लिया जायेगा तो बात कुछ यूं बनेगी कि ''देवी के लिये ''विद्युत राक्षस'' का संहार परम अनिवार्य हो जायेगा ।

केन्‍द्र सरकार ने हिन्‍दू नव संवत्‍सर पर, सिंधिया जी को अंचल में मंत्री के रूप में जहॉं एक तोहफा दिया वहीं राज्‍य सरकार का तोहफा भी अंचल में खूब सराहा गया ।

जय भवानी, या देवी सर्वभूतेषु विद्युत रूपेण संस्थिता, नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमो नम :