शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

ब्रिज कोर्स से बिखरे बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग

ब्रिज कोर्स से बिखरे बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग

तीतर-बटेर को फंसाने के फंदों की बिदाई, अब सभ्य जीवन की पढाई

बहेलियों को समाज की मुख्यधारा में लौटाने के प्रयास

पन्ना 18 जनवरी- वन्य जीवों के शिकार की प्रवृत्ति और लडाकू स्वभाव के लिए कुख्यात पन्ना की बहेलिया जाति के लोगों में समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की ललक दिखाई देने लगी है, और अब तो उनके बच्चे तीतर-बटेर फंसाने के फंदों को त्यागकर शाला में पढने लगे हैं। शाला अप्रवेशी बच्चों के लिए राज्य सरकार के महत्वाकांक्षी आवासीय ब्रिजकोर्स ने सिर्फ दो माह में इन बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग भरकर उनके जीवन की तस्वीर बदल दी है। यह पहला मौका है, जब बहेलिया कबीले की इस पीढी के बच्चों को शाला का मुंह देखने का सौभाग्य मिला।        बहेलिया अपने बच्चों को पढने के लिए स्कूल नहीं भेजते।

          घुमक्कड प्रवृति के अलग-अलग डेरों में रहने वाले बहेलिया जाति के ये लोग किसी भी स्थान पर स्थाई रूप से ठहर नहीं पाते और इन खानाबदोश लोगों का मुख्य पेशा आज भी तीतर-बटेर पकडना और वन्य जीवों का शिकार करना और जंगली जडी-बूटी बेचना है। लेकिन वन्य जीव संरक्षण कानून के नियमों के तहत वन्य जीवों के शिकार पर लगी रोक एवं जिला प्रशासन तथा जंगल विभाग के राष्ट्रीय उद्यान की समझाईश के कारण इनका वन्य प्राणियों के शिकार व वन्य प्राणियों के मांस की बिक्री का धंधा बंद हो गया है।

       बहेलिया मुख्य रूप से जंगल से जीवकोपार्जन करते थे और खानाबदोश की जिन्दगी बिताते थे। वन्य जीवों का शिकार करके उनका मांस खाना और उनके मांस की बिक्री करके उनके बदले जो भी अनाज या पैसा मिलता था, उसी से अपनी जीविका चलाना उनका मुख्य धंधा था। शिकार के काम में बच्चे भी अपने बा (पिता) का हाथ बंटाते थे। इन बच्चों को आवासीय ब्रिजकोर्स के माध्यम से शिक्षित करने के पीछे जिला प्रशासन और जंगल विभाग के राष्ट्रीय उद्यान की यही सोच थी कि यदि बच्चों की इस पीढी को शिक्षा से जोड दिया जाएगा, तो इस पीढी से वन्य जीवों के शिकार की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी और उनके संस्कारों से प्रोत्साहित होकर उनके बडे-बुजुर्ग भी शिकार की प्रवृत्ति त्याग देंगे।

      अपने काम को अंजाम देने के लिए पन्ना राष्ट्रीय उद्यान टाईगर रिजर्व के संचालक श्री जी0 कृष्णमूर्ति ने बच्चों के रहने के लिए आवासीय भवन उपलब्ध कराया और सर्वशिक्षा अभियान की जिला मिशन संचालक एवं कलेक्टर श्रीमती दीपाली रस्तोगी ने बच्चों को शिक्षक, ड्रेस, किताबें उपलब्ध कराते हुए भोजन की व्यवस्था कराई। बहेलियों को उनके डेरों पर जाकर प्रेरित करने में कर्मचारियों को भारी मशक्कत करनी पडी, तब कहीं जाकर ब-मुशिकल वे अपने बच्चे आवासीय ब्रिजकोर्स के लिए भेजने को राजी हुए। इस कोर्स की शुरूआत 22 लडकों और 12 लडकियों से की गई। जो बच्चे कभी जंगल में रहकर तीतर-बटेर फंसाने का काम इसलिए चाहते थे कि उनका और उनके माता-पिता का भरण पोषण हो सके, अब वह शाकाहार के योद्वा बन चुके हैं। ब्रिजकोर्स के शिक्षण-प्रशिक्षण के बाद जंगली जीवन से जुडे रहे बच्चे एकदम बदल गए हैं। जो कभी जंगल में वन्य जीवों की दावत उडाते थे, वही आज मांस का नाम सुनकर बुरा सा मुंह बनाने लगते हैं। जो महीनों नहीं नहाते थे और कपडे नहीं बदलते थे, अब रोजाना नहाते हैं और साफ-सुथरे कपडे पहनते हैं।

       शिक्षा प्रसार के लिए प्रशासन के आवासीय ब्रिजकोर्स का पांच सूत्रीय कार्यक्रम है। शिक्षण, सही व्यवहार, अच्छी आदतें, रहन-सहन का योग्य तरीका और उपयुक्त जीवनचर्या। आवासीय ब्रिज कोर्स में अब बहेलिया जाति के पढने वाले बच्चों की संख्या बढकर 56 लडके और 34 लडकियों के साथ कुल 90 हो गई है। इन बच्चों की दिनचर्या प्रात: 6 बजे से शुरू हो जाती है। पहले वे घूमने जाते हैं, फिर परेड, उसके बाद पी0टी0 करते हैं। योगा, प्राणायाम भी करते हैं। जंगली गतिविधियों के लिए पहचाने जाने वाले बहेलिया बच्चों को शिक्षा के पाठ ने इतना बदल दिया है कि इन बच्चों को देखकर नहीं लगता कि कभी इनका जंगली जीवन से पाला पडा होगा। इनको पढाने का जिम्मा भी कुशल शिक्षकों पर है तथा बच्चों को अनुशासन का पाठ पढाने के लिए एक रिटायर्ड फौजी को रखा गया हैं।

       कल तक जो बहेलिया अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे, आज उनके बच्चे सबसे अच्छे माहौल में पढ रहे है और अब वे अपनी वर्तमान पीढी को स्कूल में भेजने के बारे में सोचने लगे हैं। इस ब्रिजकोर्स में पढने वाली 9 वर्षीया गप्पीबाई यहां के माहौल में रम जाने पर कहती है कि पहले मुझे जंगल में रहना अच्छा लगता था। लेकिन यहां आने के बाद मैं वहां लौटना नहीं चाहती। एक दूसरे छात्र दुर्जन का कहना है कि पहले तीतर, सुअर का शिकार करते थे और पढने को बिलकुल मन नहीं करता था। अब पढना अच्छा लगता है और मुझे अपने गुरूजनों से प्रेरणा मिलती है। ये बच्चे अब तक बहुत कुछ सीख चुके हैं। कलेक्टर श्रीमती रस्तोगी ने बहेलियों के पुर्नवास के लिए जमीन, शासकीय योजनाओं के तहत रोजगार के साधन और अन्य मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने का आश्वासन दिया है।

 

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