रविवार, 13 जनवरी 2008

परिसीमन का जिन्‍न बाहर, बदलेगें राजनीतिक भूगोल और इतिहास

परिसीमन का जिन्‍न बाहर, बदलेगें राजनीतिक भूगोल और इतिहास

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

करवट 1 श्रंखलाबद्ध आलेख

 

अब लगभग साफ हो चुका है कि परिसीमन लागू और क्रियान्‍वयन चालू । यानि अंतत: लम्‍बे समय से प्रतीक्षारत एक दमघोंटू सियासती जंजाल से बाहर आ जाने का वक्‍त अब आ ही गया ।

इतना तो तय है कि नये परिसीमन के अस्तित्‍व में आकर मध्‍यप्रदेश की राजनीति में बड़ा भारी हेर फेर होगा और अनेक सियासती सत्‍तायें जहॉं पलटेंगीं वहीं नये राजनीतिक समीकरण उभरेंगें तो दूसरी ओर कुछ नये चेहरे भी राजनीति में पदार्पण करेंगें ।

एक मायने में कुछ हद तक वर्तमान में बदलते भारत के लिये यह एक शुभ संकेत है वहीं अभी भी इसमें आगे और चन्‍द परिवर्तनों व मुक्ति की दरकार कायम रहेगी ।

हम इस आलेख में मध्‍यप्रदेश के सन्‍दर्भ में और चम्‍बल घाटी के आसपास व राजपूताने में संकलित राजस्‍थान व उत्‍तरप्रदेश प्रक्षेत्र की चर्चा करेंगें ।

यूं तो कुछ इस प्रकार के परिसीमन की दरकार एक बड़े लम्‍बे अर्से से थी और अंचल के कई इलाके व समाज विशेष जो अपनी राजनीतिक पहचान व अस्तित्‍व लगभग खोकर राजनीतिक तौर पर समाप्‍तप्राय: से हो गये थे, नये परिसीमन के अस्तित्‍व व प्रभाव में होने वाले विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों पुनर्जीवित हो जायेंगे और नवीन भारत की विकास श्रंखला का भाग बन सकेगें ।

मुझे याद है कि मैंने कतिपय परिस्थितयों वश वर्ष 1996 में राजनीति में पुन:प्रवेश किया था और अपने पहले चुनाव में शिरकत करने के लिये या यूं कहें कि राजनीतिक वजूद सिद्ध करने के लिये वर्ष 1996 में भिण्‍ड-दतिया लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ा । जब मैं भिण्‍ड लोकसभा चुनाव लड़ रहा था तब कई मुश्किलों व सवालातों ने मुझे जहॉं झिंझोड़ा वहीं अपने गृह जिला यानि मुरैना जिला को छोड़ कर अन्‍य बाहरी जिले से चुनाव लड़ने पर मैंने हर आदमी को जब बताया कि हमारी लोकसभा और सभी विधानसभा सीटें रिजर्व हैं और मेरी मजबूरी है कि मैं यहॉं रिश्‍तेदारी में आकर चुनाव लड़ूं , वैसे मेरी प्राथमिक शिक्षा भी कक्षा 5 तक भिण्‍ड में ही हुयी । मेरी बात का असर भी हुआ और लोगों ने मेरे साथ पूरी सहानुभूति भी जताई और बहुत वोट भी दिये, और राजनीति में एक अव्‍वल मुकाम पर पहुंचाने की नींव भी धर दी ।

मुझे ज्‍यादा वोट मिलने का बाद में काफी फायदा भी हुआ, लेकिन जो राजनीतिक अभिशाप था कि मुझे अपने घर से बाहर कहीं भी चुनाव लड़ने के अधिकार थे किन्‍तु खुद अपनी सीट पर मैं चुनाव नहीं लड़ सकता था न लोकसभा का और न किसी विधानसभा का । दरअसल मेरे समाज की या मेरी निजी प्रभाव की मात्र तीन विधानसभा सीटें थीं और वे तीनों ही रिजर्व थीं एवं एक लोकसभा सीट थी वह भी रिजर्व थी । परिणामस्‍वरूप हारना तो लगभग लाजमी ही था इसके बावजूद अपनी कवायद जारी रखते हुये मैंने फिर एक बार बाहर से ही यानि मुरैना विधानसभा चुनाव लड़ा । हालांकि राजनीतिक स्‍तर पर मैं अपना सशक्‍त विरोध दर्ज कराने में अवश्‍य कामयाब हुआ और अंतत: नये परिसीमन में हमारी एक विधानसभा सीट और एक लोकसभा सीट आखिरकार सामान्‍य हो ही गयी ।

हालांकि मैंने अनेक राजनीतिक झंझावात देखे, राजनीति का घटिया और घिनौना चे‍हरा भी देखा, विधायको, मंत्रियों, सांसदों और अफसरों की ऑंखों की किरकिरी और भावी संकट बनकर फर्जी केसों में फंसकर मुसीबतें भी झेलीं, लेकिन बावजूद इसके लोकप्रियता बढ़ती गयी यह वरदान रहा ।

और मुझे दस साल के इस जीवन्‍त संघर्ष का सुखद परिणाम यह मिला कि आज मेरे समाज व क्षेत्र को राजनीति में शिरकत करने व चुनाव लड़ने के अख्त्यार हासिल हो गये, हालांकि अब मेरा चुनाव लड़ने का कोई इरादा फिलवक्‍त नहीं रहा और न मेरी कोई राजनीतिक महात्‍वाकांक्षायें कभी रहीं और न वर्तमान में हैं । इतना लाभ जरूर हो गया कि सीटें सामान्‍य होने की खबर के साथ सारे राजनीतिक दलों और भावी प्रत्‍याशीयों ने मुझे मिठाई भी खिलाई और मुझसे परामर्श भी जम कर लिया जा रहा है । चलो कुछ नहीं तो पूछ परख तो खूब बढ़ गयी ।

हालांकि कई नेता बीते दिसम्‍बर से ही अपनी राजनीतिक पहचान पैदा करने या भावी प्रत्‍याशी के रूप में स्‍वयं को अस्तित्‍वारूढ़ करने की इच्‍छा से भी मुझे अवगत कराने से नहीं चूके । लेकिन जब मैंने सबसे कहा कि थोड़ा थम कर खेलो, शान्ति से खेलो और जम कर खेलो, राजनीति की चाल देख कर चलो, अभी चुप रहो यदि वाकई चुनाव लड़ना चाहते हो, वरना नाम उजागर हुआ तो बेटा इससे राजनीति कहते हैं, अभी चुनाव में बहुत वक्‍त है, अभी से डिक्‍लेयर हुये तो मारे जाओगे, दो चार अर्जी फर्जी एफ.आई.आर. दर्ज करा कर फंसा दिये जाओगे और बर्बाद कर दिये जाओगे, न्‍यायालय तो बाद में फैसले करेगा लेकिन हाल फिलहाल राजनीति से बाहर हो जाओगे । बदनाम होगे सो अलग । मेरी बात का असर हुआ और लोग थम गये, कुछ सरकारी अफसर भी नौकरी से रिजाइन करके मैदान में कूदने के इच्‍छुक थे ।

हालांकि लगभग हर दल से आने वाले प्रत्‍याशीयों के नाम अभी से साफ हो चुके हैं, पर मुझे नहीं लगता कि जो हालात आज हैं वे कल या परसों तक भी कायम रहेंगे । अंदाजन कुछ नये चेहरे ही सामने आयेंगें ।

अब हम आलेख की मूल विषयवस्‍तु पर लौटते है और विचार करते हैं कि यदि म.प्र. का आगामी विधानसभा चुनाव नये परिसीमन में होता है तो संभावित भावी परिदृश्‍य क्‍या होगा और निकटस्‍थ राजस्‍थान और उत्‍तरप्रदेश में इस परिसीमन के असर होंगें तथा अगले लोकसभा चुनाव में क्‍या संभावनायें बनेंगीं । म.प्र. में अगली सरकार किसकी होगी और कौन बन सकता है अगला मुख्‍यमंत्री तथ भावी केन्‍द्र सरकार की संभावनायें क्‍या होंगीं इन बातों पर अगले अंक में .....

 

क्रमश: जारी अगले अंक में .........                  

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