रविवार, 21 मार्च 2010

नवदुर्गा – नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

नवदुर्गा नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

भारत में शक्ति उपासना आराधना एवं पूजा विशेष रूप से प्रचलित एवं सर्व मान्‍यता प्राप्‍त है । केवल भारत ही नहीं अपितु सम्‍पूर्ण विश्‍व में ही शक्ति की उपासना किसी न किसी प्रकार से हर धर्म हर जाति हर समुदाय में की जाती है ।

बहुधा लोग शक्ति उपासना आराधना के भेद जाने बगैर आराधना और उपासना करते हैं । हालांकि विधि जाने बगैर पूजा उपासना करना कोई अपराध नहीं हैं और बहुधा अनिष्‍टकारी भी नहीं होता । लेकिन कई बार अनिष्‍टकारी भी होता है । यदि विधिपूर्वक शक्ति उपासना की जायेगा तो कहना ही क्‍या है और इसका फल भी सुनिश्चित एवं सुफलित होता है ।

अव्‍वल तो यह जान लेना बेहद जरूरी है कि भारतीय समाज में शक्ति उपासना का अर्थ एवं भेद क्‍या हैं इसके बाद हर समाज हर धर्म समुदाय एवं हर देश में की जाने वाली शक्ति पूजा उपासना व आराधना का भेद भलीभांति स्‍वत: ही समझ आ जायेगा ।

नारी, प्रकृति, शक्ति, दुर्गा, आद्यशक्ति एवं कुण्‍डलिनी

शक्ति से सीधा तात्‍पर्य नारी से है, नारी का सीधा तात्‍पर्य प्रकृति से व प्रकृति का सीधा संबंध शक्ति से, शक्ति का ताल्‍लुक दुर्गा से व दुर्गा का आद्यशक्ति से और इन सबका सीधा संबंध कुण्‍डलिनी से है ।

शक्ति विहीन मनुष्‍य सिर्फ केवल एक शव मात्र है और उसमें शक्ति का स्‍पर्श होते ही वह सजीव, सचेतन और सक्रिय हो उठता है । शिव में से शक्ति मात्रा इ (इकार मात्रा) हटाते ही वह शव हो जाता है और शक्ति की इ मात्रा लगाते ही वह शिव हो जाता है तथा शवों का भक्षण करने वाला महाकाल हो जाता है ।

ठीक इसी का विपरीत क्रम है बिना शव के शक्ति केवल प्रवाह मात्र है और यूं ही यत्र तत्र विचरण करती रहती है वह स्‍वयं कुछ कर पाने में असमर्थ एवं प्रभावहीन होती है , लेकिन जब उसे माध्‍यम मिल जाता है यानि की एक शव प्राप्‍त होता है तो वह उसे शिव बना कर सदैव सदैव उसकी शक्ति बन कर न केवल सृष्टि रचना का स्‍त्रोत बन जाती है अपितु सृष्टि कर नियामक, पालक, संहारक भी बन जाती है । शक्ति और शव के इसी समुचित व सम्‍यक सम्मिलन एवं संयुक्‍तीकरण से प्रकृति का सूचित सुचारू संचालन होता है । इस योग में किंचित भी विकार या रोग पैदा होने पर न्रकृति का संतुलन गड़बड़ा कर प्रकृति चक्र असंतुलित व विनाशकारी हो उठता है ।

विज्ञान यानि साइन्‍स में शक्ति को पावर और पॉवर के पीछे ऊर्जा को संवाहक व नियामक माना जाता है । इस सम्‍बन्‍ध में आइन्‍सटीन ने ऊर्जा का संरक्षण सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया "Energy can not be produce nor be destroyed, that can only transform in various forms (it may only can change in one form to another form) '' यह सिद्धान्‍त विज्ञान यानि साइन्‍स का प्रसिद्ध सिद्धान्‍त है और भारतीय शक्ति पूजा उपासना और शक्ति अवस्थिति को बेहद सटीक रूप से व्‍याख्‍या कर देता है, वे लोग जो नास्तिक हैं या शक्ति पूजा उपासना में विश्‍वास नहीं करते उन्‍हें आइन्‍सटीन के इस सिद्धान्‍त पर तो गुरेज ही नहीं होगा । फिर आइन्‍सटीन ने तो आखिर में स्‍वयं को ईश्‍वरवादी और आस्तिक ही घोषित कर स्‍वयं को उस अलौकिक ईश्‍वरीय शक्ति का अनन्‍य भक्‍त कह कर नतमस्‍तकता जाहिर की थी । इस सिद्धान्‍त के अनुसार ऊर्जा को न तो पैदा किया जा सकता है, न उसे नष्‍ट किया जा सकता है केवल उसे रूपा‍न्‍तरित मात्र किया जा सकता है ।

भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त भी इसी बात को कहता है और इसी सिद्धान्‍त पर पूरी शाक्‍त साधना, पूजा उपासना अर्चना टिकी हुयी है । आइन्‍सटीन ने ऊर्जा सिद्धान्‍त पर कार्य करते हुये ऊर्जा समीकरण एवं ऊर्जा शक्ति की प्रचण्‍ड ताकत का सूत्र निष्‍पादित कर दिया यह समीकरण ही विश्‍व भर में परमाणु बम, परमाणु ऊर्जा और परमाणु शक्ति की जनक एवं कारण बन गई आइन्‍सटीन की ऊर्जा शक्ति की प्रचण्‍ड ताकत को नापने वाली प्रसिद्ध समीकरण E = mc2  है । यही ताकत भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त में शक्ति उपासना के लिये वर्णित है लेकिन बेहद विस्‍तार से ।

भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त के अनुसार जब शक्ति यानि महाऊर्जा ब्रह्माण्‍ड में स्‍वतंत्र एवं अकेली विचरणशील थी जिसे आद्यशक्ति कहा गया है तो उसे सृष्टि , प्रकृति एवं सक्रिय संरचना के सुन्‍दर एवं अदभुत संसार की लालसा हुयी तब शक्ति ने पुरूष को प्रकट किया और आदि देवों त्रिदेवों की उत्‍पत्ति हुयी , आद्य शक्ति ने उन्‍हें त्रिशक्तियां अर्पित व समर्पित कीं तब प्रकृति व सृष्टि रचना आगे बढ़ी और सुन्‍दर संसार का निर्माण हुआ ।

शक्ति के रूप व भेदान्‍तर

शक्ति के असल में कितने भेद हैं यह काफी गूढ़ व रहस्‍यात्‍मक है विज्ञान भी अभी इस मामले में काफी पीछे चल रहा है और एक खोज नई हो पाती है तब तक दूसरी नई रहस्‍य श्रंखला समाने आ जाती है । भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त ने इसके भेद शाक्‍त सिद्धान्‍त में वर्णन किये हैं जिसमें केन्‍द्र बिन्‍दु में नारी यानि स्‍त्री और प्रकृति एवं शक्ति नियमों को रखा गया है तथा सिद्धांत प्रतिपादन हुये हैं ।

बहुधा अधिक न जानने वाले लोग चकरा जाते हैं कि आखिर दुर्गा यानि शक्ति के असल में कितने रूप हैं और आखिर किस रूप की साधना उपासना से उनका वाछित कल्‍याण संभव है । इस प्रश्‍न का उत्‍तर बेहद आसान है आद्य शक्ति जगत्जननी मॉं जगदम्‍बा की उपासना जब आप करते हैं तो शक्ति के मूल रूप यानि मॉं की उपासना करते हैं और मातृ शक्ति मूल आराधना का विषय आप अपने समक्ष रखते हैं ।

जैसे ही आप शक्ति भेद से रूपान्‍तरित शक्ति उपासनाओं की ओर बढ़ते हैं वैसे ही या तो अपनी कामनाओं के अनुरूप शक्ति उपासना करते हैं या फिर अनजाने में या अकारण ही निर्लिप्‍त व निष्‍काम भाव से शक्ति के किसी रूप की साधना में जुट बैठते हैं । लेकिन फल सबका ही प्राप्‍त होता है । शक्ति के रूप भेद से फल भी बदल जाता है , साधना पद्धति एवं विधि क्रम भी बदल जाते हैं ।

नवदुर्गा एवं दस महाविद्यायें तथा क्षुद्र साधनायें  

हालांकि तन्‍त्र शास्‍त्र एवं नारी शास्‍त्र में कतिपय कई शक्ति भेद वर्णित हैं जिसमें क्षुद्र से लेकर आद्य शक्ति स्‍तर तक की शक्ति भेद व नारीयों का वर्णन आता है , लेकिन यह व्‍याख्‍या या वर्णन इस आलेख का उद्देश्‍य नहीं हैं बस इतना समझना पर्याप्‍त होगा कि शक्ति के क्षुद्र रूपों में सामान्‍य नारी, भूतनी , पिशाचनी, यक्षणी, किन्‍नरी, जिन्‍न, गंधर्व एवं अप्‍सरा, निशाचनी, राक्षसी जैसी साधनाओं से क्षुद्र सिद्धिदायक साधनाओं के फल क्षुद्र एवं विनाशकारी ही होते हैं इनसे दूरी रखना चाहिये । और उच्‍च स्‍तर की साधना पूजा उपासना देवी साधना, पूजा, अर्चना उपासना जिसके भेद वर्णन हम आगे करेंगें ही करना श्रेष्‍ठ रहता है । इस सम्‍बन्‍ध में तन्‍त्र शास्‍त्र भी पर्याप्‍त सावधान करता है और श्रीमदभगवद गीता में श्रीकृष्‍ण भी स्‍पष्‍ट कहते हैं ''भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्‍त होते हैं, यक्षों को पूजने वाले यक्षों को प्राप्‍त होते हैं देवों को पूजने वाले देवों को प्राप्‍त होते हैं और जो मेरा पूजन करते हैं वे मुझ ही को प्राप्‍त होते हैं '' आगे श्रीकृष्‍ण ने यह भी कहा कि ''जो जिसका पूजन करता है उसका स्‍वयं का स्‍वरूप भी वैसा ही बन जाता है''  गीता के इन श्‍लोकों में तंत्र व पूजा का भारी भेद एवं रहस्‍य वर्णित है । यही भारतीय तन्‍त्र शास्‍त्र भी कहता है और इसकी अधिक व्‍याख्‍या करता है, तन्‍त्र शास्‍त्र साफ कहता है कि जिसको पूजोगे वैसे ही हो जाओगे और वैसे ही फल प्राप्‍त होंगें तथा जीवन के अंत में उसी के साथ चले जाओगे यानि वही बन जाओगे ।

क्रमश: जारी अगले अंक में ...         

 

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