नवदुर्गा – नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना- 2
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
नवदुर्गा नौ हैं - देवी की नौ मूर्तियां हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्द मातेति षष्ठं कात्यायनीति च । सप्तमं कालरात्रीति महागौरी चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता: । उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
उपरोक्तानुसार 1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चन्द्रघण्टा 4. कूष्माण्डा 5. स्कन्दमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री ये नव दुर्गा की नौ मूर्तियां हैं ।
इस सम्बन्ध में पूजा अर्चना उपासना हेतु प्रमाणिक ग्रंथ व साहित्य गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गा सप्तशती, मार्कण्डेय पुराण, श्रीमद्देवीभागवत आदि ग्रंथ हैं , और इनके अध्ययन मनन चिन्तन उपरान्त यथा साध्य विधिपूर्वक पंचोपचार या दशोपचार या षोडशोपचार पूजा या साधना करना चाहिये ।
नवरात्रि काल में रात्रि का विशेष महत्व होता है और दन दिनों रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिये एवं यथा संभव रात्रिकाल में ही पूजा हवन आदि करना चाहिये । श्रीमद्देवी भागवत में नवदुर्गा पूजन का विशेष विषय पिस्तार है । नवदुर्गा में कुमारिका यानि कुमारी पूजन का विशेष अर्थ एवं महत्व है । गॉंवों में इन्हें कन्या पूजन कहते हैं । जिसमें कन्या पूजन कर उन्हें भोज प्रसाद दान उपहार आदि से उनकी सेवा की जाती है । यह विषय भी श्रीमद्देवीभागवत में विस्तार से मिल जाता है । कुमारिका तंत्रम पर चर्चा हम आगे करेंगें ।
दस महाविद्यायें एवं कुमारी तन्त्र
दस महाविद्यायें एवं कुमारी तंत्र आदि देवी के विशिष्ट अवतारों व रूपों की साधनायें हैं हालांकि इन दसों महाविद्याओं के साधारण पूजा पाठ को हरेक प्राणी कर सकता है लेकिन इनकी तांत्रिक साधना व पूजा की विशेष महत्ता है । केवल एक महाविद्या से सुहागिन स्त्रीयों को पूर्णत: वर्जित किया गया है और इस महाविद्या के दर्शन पूजा उपासना साधना आदि कृत्य सुहागिन स्त्रियों हेतु प्रतिबंधित हैं । इसका कारण हम आगे लिखेंगे ।
विषय विस्तार पर आने से पूर्व हमें साधारण पूजा और तंत्र साधना में फर्क जान लेना चाहिये । साधारण पूजा पंचोपचार से लेकर षोडशोपचार तक हो सकती है जबकि तंत्र साधना के अनेक एवं भिन्न रूप आवश्यकतानुसार होते हैं । हम यहॉं विषय में केवल देवी की तंत्र साधनाओं का ही जिक्र करेंगें अन्यथा आलेख की जगह ग्रंथ तैयार हो जायेगा ।
तन्त्र मन्त्र व यन्त्र क्या हैं व इनमें फर्क क्या हैं
तन्त्र शब्द तनु तथा त्रय धातु से बना है जिन्हें मिलाने पर वर्ण तन्त्र प्राप्त होता है जिसका अर्थ है तनु अर्थात शरीर त्र अर्थात त्राण करने वाला , जो शरीर को सुखी, निरोगी बना कर सुरक्षित, संरक्षित प्रचण्ड तेज और प्रभावी बनाये उसे कष्टों से बाहर निकाल कर निर्मुक्त करे उसे तन्त्र कहते हैं । अँग्रेजी में तंत्र को सिस्टम कहा जाता है , शाब्दिक तात्पर्य यह कि यह जो शरीर है एक सिस्टम है एक तंत्र है इसे विधिपूर्वक सुविधा सेवित कर तेज पुष्टि स्वास्थ्य व सौन्दर्य प्रदान करने की विधा ही तंत्र है । इसमें चिकित्सा पद्धति से लेकर रोजमर्रा में उपयोग किया जाने वाला सौन्दर्य शास्त्र व सामुद्रिक शास्त्र (बॉडी लैंग्वेज), योग आदि भी इस तंत्र के अधीन आता है । हर वह विधि, क्रिया प्रक्रिया जो सिस्टम को या संरचना को या शरीर को दुरूस्त स्वच्छ सुन्दर व स्वस्थ बनाती है तंत्र कहलाती है । कुल मतलब ये कि तंत्र को ठीक करने या रखने के लिये जिस सिस्टम का उपयोग होता है वह तंत्र ही है ।
मन्त्र का अर्थ मन एवं त्रय धातु से बना है जिसका उपरोक्त तंत्र की व्याख्या से ही शाब्दिक अर्थ मन का त्राण करने वाला है । जो मन को ठीक करे या रखे वह ही मंत्र है । मंत्र के लिये जिस आवृत्ति ध्वनि, उच्चारण, आयाम, तारत्व आदि का प्रयोग होता है वही मंत्र सुमंत्र या कुमंत्र हो जाता है । यदि किसी गीत विशेष को सुनने से या किसी व्यक्ति विशेष की वाणी या वाक्य सुनने से मन को स्वास्थ्य सुरक्षा एवं आयाम व विकास प्राप्त हो तो वही मंत्र है । लेकिन तंत्र शास्त्र कुछ मंत्रों की सीमायें बांध देता है और कई मंत्रों तक सामान्य व्यक्ति की पहुँच को रोक देता है इसमें सीधा तात्पर्य अपात्र व कुपात्र से मंत्र शक्ति को बचाना है , कई मंत्रों में चुम्बकीय आकर्षण होता है वे बड़ी तेजी से असर करते हैं उनके ध्वनि तारत्व आवृत्ति आयाम आदि इस प्रकार के होते हैं कि वे किसी भी तंत्र या संरचना को पल भर में ढहा सकते हैं या रच कर खड़ा कर सकते हैं ।
यन्त्र शब्द की व्युत्पत्ति यन तथा त्रय धातु के संयोग से हुयी है जिसका अर्थ है बेसिक स्ट्रक्चर यानि आधारभूत संरचना इन्फ्रास्ट्रक्चर जिसमें भरकर एक संरचना तैयार की जा सके या गलत संरचना को जो मरम्मत या रिपेयर कर सुधार सके । या एक ज्यामिति या एक निर्देशांक ज्यामिति जिसमें कुछ कार्डिनेटस या निर्देशांक एक आधारभूत संरचना का खाका तैयार करते हैं । मसलन यन्त्रों में शक्ति यानि स्त्री यंत्रों को अधोमुखी त्रिकोण व बिन्दु आदि से व्यक्त करते हैं और पुरूष या शिवरूपी यंत्रों में ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण आदि के प्रतीक प्रयोग किये जाते हैं , कुछ विशिष्ट यंत्रों में जिनमें कि दोनों को सम्मिलित रूप से दर्शाना हो जैसे श्री यंत्र तो दोनों प्रकार के त्रिकोण व बिन्दु अणु आदि लिखे व व्यक्त किये जाते हैं, ऊर्ध्वमुखी व अधोमुखी त्रिकोण संख्या भेद से श्रीयंत्र का रूप व प्रकार बदल जाता है ।
तंत्र एवं देवी साधनायें
तंत्र साधनाओं में में सामान्यत: दो पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है एक तो वाम मार्गी और दूसरी दक्षिणमार्गी । वाममार्गी साधनायें पंचमकारी होती हैं लेकिन शीघ्र सिद्धिदायक या विनाशकारक होतीं हैं , दक्षिणमार्गी साधनायें पूर्णत: शुद्ध सात्विक एवं साचारित्रिक होतीं हैं । देवी की साधनाओं में दोनों ही पद्धतियों का जम कर प्रयोग किया जाता है जिसको जो सुभीता प्रतीत हो वह उसी साधना पद्धति को अंगीकार करता है । दक्षिणमार्गी में सिद्धि में समय अधिक लगता है तो विनाशक भी कम और देर से होतीं हैं ।
हम यहॉं दक्षिणमार्गी साधनाओं का ही जिक्र करेंगे ।
शिव के विभिन्न दस अवतार शिव पुराण में उल्लेखित हैं इन अवतारों की दसों शक्तियों को दस महाविद्या कहा जाता है । ये इस प्रकार हैं -
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी । भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ।।
बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका । एता विद्या महेशानि महाविद्या प्रकीर्तिता ।।
इसके अनुसार दस महाविद्यायें हैं , देवी की दस महाविद्याओं के नाम 1. काली यानि महाकाली 2. तारा 3. षोडशी यानि श्रीविद्या यानि त्रिपुर सुन्दरी 4. भुवनेश्वरी 5. भैरवी 6. छिन्न मस्ता 7. धूमावती 8. बगला यानि बगलामुखी 9. मातंगी यानि सरस्वती 10. कमला यानि महालक्ष्मी हैं
शाक्त साधनाओं में या देवी की साधनाओं में दस महाविद्या साधना सबसे उच्चकोटि की तंत्र साधनायें हैं , हरेक को सिद्ध भी नहीं होतीं और जिसको सिद्ध हो जायें उसे फिर कोई लगता नहीं ।
क्रमश: जारी अगले अंक में
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