शुक्रवार, 26 मार्च 2010

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राह पर उत्तर प्रदेश?

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राह पर उत्तर प्रदेश?

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा।  फोन-0171- 2535628 email: nnirmalrani@gmail.com

                  देश का सबसे बड़ा राय उत्तर प्रदेश हालांकि कांफी पहले से ही सांप्रदायिक एवं जाति आधारित राजनीति का एक गढ़ रहा है। पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने का केंद्र अर्थात् अयोध्या का विवादित राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद स्थल भी इत्तेंफाक़ से इसी राय में स्थित है। लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई विवादित रथ यात्रा के परिणाम स्वरूप सबसे अधिक सांप्रदायिक मंथन भी इसी राय में देखने को मिला था। इसके पश्चात ही प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की वह सरकार बनी थी जिसने भारतीय संविधान की मर्यादाओं,शपथ, सभी ंकायदे-ंकानून और नैतिकता की धाियां उड़ाते हुए 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में अपनी वह भूमिका अदा की जोकि आज तक किसी राष्ट्रभक्त तथा भारतीय संविधान एवं न्यायपालिका के प्रति आस्था रखने वाले किसी राजनेता ने नहीं निभाई।

              बहरहाल उस समय से लेकर अब तक यह प्रदेश तमाम उतार-चढ़ाव व कभी- कभी तनावपूर्ण हालात से भी रूबरू होेता चला आ रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के लगभग शांत पड़े वातावरण में वरुण गांधी द्वारा सांप्रदायिकता का एक पत्थर फेंकने की उस समय कोशिश की गई थी जबकि वह अपना पहला संसदीय चुनाव अपनी माता मेनका गांधी द्वारा उनके लिए ख़ाली की गई पीलीभीत संसदीय  सीट से लड़ने की तैयारी कर रहे थे। जैसी असंसदीय, अशोभनीय व घटिया ंकिस्म की टिप्पणीयां वरुण गांधी द्वारा एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर सार्वजनिक सभा में की गई थीं उसका दुष्प्रभाव भले ही उस समय प्रदेश में कहीं पड़ता न दिखाई दिया हो परंतु उनके भाषण से कम से कम इतना तो तत्काल रूप से ारूर हुआ कि वरुण गांधी चुनाव जीतकर स्वयं को पहली बार में ही विजेता सांसद की श्रेणी में पहुंचाने में सफल हो गये। परंतु वरुण के भाषण का एक दूसरा दुष्प्रभाव यह भी पड़ा कि पीलीभीत के आस पास के शहरों तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक आधार पर कानांफूसी तथा वातावरण में सांप्रदायिकता का ाहर घुलने की भनक अवश्य सुनाई देने लगी।

              गत् दिनों उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक समझे जाने वाले बरेली जैसे शहर में हुआ सांप्रदायिक दंगा इसी सिलसिले की एक कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि बरेली शहर का कांफी बड़ा इलाक़ा लगभग 20 दिनों तक कर्फ्यू ,लूटपाट तथा आगानी की चपेट में रहा। फिर भी शुक्र इस बात का है कि इन दंगों के दौरान किसी भी समुदाय के किसी व्यक्ति के मारे जाने का कोई समाचार नहीं मिला है। बरेली दंगे के तरीकों व उसके कारणों आदि को लेकर बरेली वासी न केवल आश्चर्य में हैं बल्कि वहां का वह निष्पक्ष हिंदु व मुसलमान जो आज भी बरेली को हिंदु- मुस्लिम सांझी तहाीब का शहर मानता  है इस बात की तह में जाने क ा इच्छुक है कि आख़िर यह कथित दंगा किन परिस्थितियों में हुआ,दंगे में शरीक होने वाले दंगाई किस माहब के थे? यह कहां से आए थे तथा इनका केंद्रीय लक्ष्य आंखिर क्या था?

              दंगा प्रभावित वे लोग जिनकी दुकानों में आग लगाई गई तथा करोड़ों की संपत्तियां स्वाहा कर दी गईं उनमें हिंदु दुकानदार भी शामिल थे और मुसलमान दुकानदार भी। चश्मदीद दुकानदारों (हिंदु व मुसलमान) दोनों का कहना था कि उन्हीं दंगाईयों की भीड़ जब हिंदुओं की दुकानों में आग लगाती तो अल्लाह हो अकबर का नारा बुलंद करती और दंगाईयों की वही भीड़ जब किसी मुस्लिम दुकानदार की दुकान को अगि् की भेंट चढ़ाती तो जय श्री राम का उद्धोष करने लग जाती। दंगाईयों की इन हरकतों ने बरेली वासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि दंगाईयों के यह अंजाने व अपरिचित चेहरे आंखिर कहां से संबंध रखते हैं और इनकी हरकतें हमें क्या संदेश दे रही हैं। दंगे शुरु होते ही सांप्रदायिक दलों के नेताओं ने अपनी राजनैतिक रोटियां सेकनी शुरु कर दीं। वरुण गांधी की मां तथा बरेली व पीलीभीत के मध्य पड़ने वाले संसदीय क्षेत्र आंवला से भाजपा सांसद मेनका गांधी    बरेली शहर में चल रहे कर्फ्यू के दौरान वहां जाने का प्रयास करने लगीं। उधर पूर्वांचल में सांप्रदायिक राजनीति को धार देने वाले एक और भाजपा सांसद योगी आदित्य नाथ भी बरेली आने के लिए उतावले हो उठे। इन दोनों ही नेताओं को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बरेली पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया। मेनका गांधी जिन्हें संसद में कम ही बोलते हुए देखा जाता है,को एक अच्छा मौंका हाथ लग गया। वह संसद में बरेली मुद्दे को उठाने लगीं। उनका यह ंकदम भी पूर्णतया राजनीति से प्रेरित था। मेनका ने अतीत में वरुण गांधी द्वारा बरेली में सार्वजनिक रूप से एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर की गई बदंजुबानी की भी निंदा या आलोचना नहीं की थी। बजाए इसके उसे जेल में डाले जाने पर मायावती सरकार को ही कोसा था। प्रश् यह है कि वरुण गांधी द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ंफिंजा बिगाड़ने के प्रयासों के बाद मेनका गांधी बरेली आख़िर क्या करने जा रही थी? जलती आग में घी डालने या उसे शांत करने? उनके सुपुत्र के भावी राजनैतिक अंदांज स्वयं इस बात के गवाह हैं कि मेनका गांधी से उसे क्या शिक्षा मिल रही है तथा राजनीति के कौन से गुण वह अपनी इस मां से सीख रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है कि अपने पारिवारिक वातावरण को सामान्य न रख पाने वाली मेनका गांधी आज न जाने किस आधार पर हिंदुओं की मसीहा बनने की तैयारी कर रही है। यहां यह भी ंगौर तलब है कि नेहरु-गांधी परिवार के इस सदस्य को भाजपा किस सामग्री के रूप में प्रयोग करना चाह रही है।

              बेशक सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले दल तथा नेता तो इस ताक में रहते ही हैं कि किसी प्रकार उन्हें सांप्रदायिकता की आग पर राजनैतिक रोटियां सेकने का मौंका मिले। परंतु बरेली दंगों को लेकर कई प्रशासनिक निर्णय तथा शासकीय कारगुंजारियां भी संदेह के घेरे में हैं। सबसे अहम सवाल जो बरेली प्रशासन के गले की हड्डी बना हुआ है वह यह कि बरेली में हंजरत मोहम्मद के जन्म दिवस अर्थात् बारह वंफात के दिन निकलने वाले जुलूस की अनुमति अलग-अलग तिथियों पर दो बार क्यों दी गई? जबकि हंजरत मोहम्मद का जन्म दिन एक ही दिन यानि रबीउलअव्वल माह की 12 तारीख़ को पूरे देश में सुन्नी मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। और दूसरा सवाल प्रशासन से यह किया जा रहा है कि यह जुलूस-ए- मोहम्मदी अपने पारंपरिक रास्ते से भटक कर दूसरे विवादित मार्ग पर क्यों और कैसे चला गया? जिसके बाद दंगे भड़क उठे। यहां दो ही बातें हो सकती हैं या तो प्रशासन की रंजामंदी से यह नया रास्ता आयोजकों द्वारा चुना गया और यदि जुलूस की भीड़ ंजबरदस्ती इस मार्ग पर चली गई तो भी पुलिस बल इसे रोक पाने में क्यों असफल रहा? दोनों ही परिस्थितियां शासन व प्रशासन के लिए सवालिया निशान खड़ा करती हैं।

              बहरहाल लगभग बीस दिनों तक दंगे की आग और धुएं में लिपटे बरेली शहर की ंफिंजा में एक बार फिर अमन व शांति के संदेश गूंजने लगे हैं। पारंपरिक भाईचारा भी इस शहर में वापस आने लगा है। परंतु बरेली से दूर बैठे उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक राजनीति का मंथन करने वाले विशेषज्ञों को इस शहर के प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर की उस बुनियादी हंकींकत को नंजर अदांज नहीं करना चाहिए जो हमें यह बताती है कि प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद द्वारा उद्धाटित किए गए इस मंदिर के निर्माण में सात दशक पूर्व बरेली के एक मुस्लिम रईस चुन्ने मियां ने उस समय न केवल सबसे बड़ी धनराशि अर्थात् एक लाख रुपये चंदा देकर इस मंदिर का निर्माण शुरु कराया था बल्कि इसके निर्माण से लेकर उद्धाटन तक तथा उसके पश्चात अपने पूरे जीवन भर इसके संचालन में भी उन्होंने अपनी अहम भूमिका अदा की थी। और यह बरेली के ही उदारवादी तथा सांप्रदायिक सदभाव की धरातलीय वास्तविकता को अहमियत देने वाले हिंदु समुदाय के लोग हैं जिन्होंने आज भी उस विशाल मंदिर में चुन्ने मियां की ंफोटो भगवान लक्ष्मी नारायण के साथ ही लगा रखी है तथा चुन्ने मियां की उस ंफोटो पर नियमित रूप से धूप,माला भी की जाती है। बेहतर होगा कि सांप्रदायिक सद्भाव के इस शहर में मेनका गांधी व आदित्य नाथ जैसे नेता सांप्रदायिक सद्भाव की ही मशाल लेकर जाएं ताकि बरेली  की सांझी गंगा जमुनी तहंजीब अपनी प्राचीन परंपराओं को ंकायम रख सके। बजाए इसके कि इन जैसे नेता बरेली व दूसरे अन्य शांतिप्रिय स्थानों पर जाकर किसी समुदाय विशेष को भड़काने तथा वहां की शुद्ध व सांफ फिंजा को ंजहरीला बनाने का यत्न करें।                                                            निर्मल रानी                                   

 

मंगलवार, 23 मार्च 2010

नवदुर्गा – नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना- 2

नवदुर्गा नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना- 2

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

 

नवदुर्गा नौ हैं - देवी की नौ मूर्तियां हैं जिन्‍हें नवदुर्गा कहा जाता है

 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्‍द्रघण्‍टेति कूष्‍माण्‍डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्‍कन्‍द मातेति षष्‍ठं कात्‍यायनीति च । सप्‍तमं कालरात्रीति महागौरी चाष्‍टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता: । उक्‍तान्‍येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्‍मना ।।

उपरोक्‍तानुसार 1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चन्‍द्रघण्‍टा 4. कूष्‍माण्‍डा 5. स्‍कन्‍दमाता 6. कात्‍यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री ये नव दुर्गा की नौ मूर्तियां हैं ।

इस सम्‍बन्‍ध में पूजा अर्चना उपासना हेतु प्रमाणिक ग्रंथ व साहित्‍य गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गा सप्‍तशती, मार्कण्‍डेय पुराण, श्रीमद्देवीभागवत आदि ग्रंथ हैं , और इनके अध्‍ययन मनन चिन्‍तन उपरान्‍त यथा साध्‍य विधिपूर्वक पंचोपचार या दशोपचार या षोडशोपचार पूजा या साधना करना चाहिये ।

नवरात्रि काल में रात्रि का विशेष महत्‍व होता है और दन दिनों रात्रि जागरण अवश्‍य करना चाहिये एवं यथा संभव रात्रिकाल में ही पूजा हवन आदि करना चाहिये । श्रीमद्देवी भागवत में नवदुर्गा पूजन का विशेष विषय पिस्‍तार है । नवदुर्गा में कुमारिका यानि कुमारी पूजन का विशेष अर्थ एवं महत्‍व है । गॉंवों में इन्‍हें कन्‍या पूजन कहते हैं । जिसमें कन्‍या पूजन कर उन्‍हें भोज प्रसाद दान उपहार आदि से उनकी सेवा की जाती है । यह विषय भी श्रीमद्देवीभागवत में विस्‍तार से मिल जाता है । कुमारिका तंत्रम पर चर्चा हम आगे करेंगें ।

दस महाविद्यायें एवं कुमारी तन्‍त्र

दस महाविद्यायें एवं कुमारी तंत्र आदि देवी के विशिष्‍ट अवतारों व रूपों की साधनायें हैं हालांकि इन दसों महाविद्याओं के साधारण पूजा पाठ को हरेक प्राणी कर सकता है लेकिन इनकी तांत्रिक साधना व पूजा की विशेष महत्‍ता है । केवल एक महाविद्या से सुहागिन स्‍त्रीयों को पूर्णत: वर्जित किया गया है और इस महाविद्या के दर्शन पूजा उपासना साधना आदि कृत्‍य सुहागिन स्त्रियों हेतु प्रतिबंधित हैं । इसका कारण हम आगे लिखेंगे ।

विषय विस्‍तार पर आने से पूर्व हमें साधारण पूजा और तंत्र साधना में फर्क जान लेना चाहिये । साधारण पूजा पंचोपचार से लेकर षोडशोपचार तक हो सकती है जबकि तंत्र साधना के अनेक एवं भिन्‍न रूप आवश्‍यकतानुसार होते हैं । हम यहॉं विषय में केवल देवी की तंत्र साधनाओं का ही जिक्र करेंगें अन्‍यथा आलेख की जगह ग्रंथ तैयार हो जायेगा ।

तन्‍त्र मन्‍त्र व यन्‍त्र क्‍या हैं व इनमें फर्क क्‍या हैं   

 तन्‍त्र शब्‍द तनु तथा त्रय धातु से बना है जिन्‍हें मिलाने पर वर्ण तन्‍त्र प्राप्‍त होता है जिसका अर्थ है तनु अर्थात शरीर त्र अर्थात त्राण करने वाला , जो शरीर को सुखी, निरोगी बना कर सुरक्षित, संरक्षित प्रचण्‍ड तेज और प्रभावी बनाये उसे कष्‍टों से बाहर निकाल कर निर्मुक्‍त करे उसे तन्‍त्र कहते हैं । अँग्रेजी में तंत्र को सिस्‍टम कहा जाता है , शाब्दिक तात्‍पर्य यह कि यह जो शरीर है एक सिस्‍टम है एक तंत्र है इसे विधिपूर्वक सुविधा सेवित कर तेज पुष्टि स्‍वास्‍थ्‍य व सौन्‍दर्य प्रदान करने की विधा ही तंत्र है । इसमें चिकित्‍सा पद्धति से लेकर रोजमर्रा में उपयोग किया जाने वाला सौन्‍दर्य शास्‍त्र व सामुद्रिक शास्‍त्र (बॉडी लैंग्‍वेज), योग आदि भी इस तंत्र के अधीन आता है । हर वह विधि, क्रिया प्रक्रिया जो सिस्‍टम को या संरचना को या शरीर को दुरूस्‍त स्‍वच्‍छ सुन्‍दर व स्‍वस्‍थ बनाती है तंत्र कहलाती है । कुल मतलब ये कि तंत्र को ठीक करने या रखने के लिये जिस सिस्‍टम का उपयोग होता है वह तंत्र ही है ।

मन्‍त्र का अर्थ मन एवं त्रय धातु से बना है जिसका उपरोक्‍त तंत्र की व्‍याख्‍या से ही शाब्दिक अर्थ मन का त्राण करने वाला है । जो मन को ठीक करे या रखे वह ही मंत्र है । मंत्र के लिये जिस आवृत्ति ध्‍वनि, उच्‍चारण, आयाम, तारत्‍व आदि का प्रयोग होता है वही मंत्र सुमंत्र या कुमंत्र हो जाता है । यदि किसी गीत विशेष को सुनने से या किसी व्‍यक्ति विशेष की वाणी या वाक्‍य सुनने से मन को स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा एवं आयाम व विकास प्राप्‍त हो तो वही मंत्र है । लेकिन तंत्र शास्‍त्र कुछ मंत्रों की सीमायें बांध देता है और कई मंत्रों तक सामान्‍य व्‍यक्ति की पहुँच को रोक देता है इसमें सीधा तात्‍पर्य अपात्र व कुपात्र से मंत्र शक्ति को बचाना है , कई मंत्रों में चुम्‍बकीय आकर्षण होता है वे बड़ी तेजी से असर करते हैं उनके ध्‍वनि तारत्‍व आवृत्ति आयाम आदि इस प्रकार के होते हैं कि वे किसी भी तंत्र या संरचना को पल भर में ढहा सकते हैं या रच कर खड़ा कर सकते हैं ।

यन्‍त्र शब्‍द की व्‍युत्‍पत्ति यन तथा त्रय धातु के संयोग से हुयी है जिसका अर्थ है बेसिक स्‍ट्रक्‍चर यानि आधारभूत संरचना इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर जिसमें भरकर एक संरचना तैयार की जा सके या गलत संरचना को जो मरम्‍मत या रिपेयर कर सुधार सके । या एक ज्‍यामिति या एक निर्देशांक ज्‍यामिति जिसमें कुछ कार्डिनेटस या निर्देशांक एक आधारभूत संरचना का खाका तैयार करते हैं । मसलन यन्‍त्रों में शक्ति यानि स्‍त्री यंत्रों को अधोमुखी त्रिकोण व बिन्‍दु आदि से व्‍यक्‍त करते हैं और पुरूष या शिवरूपी यंत्रों में ऊर्ध्‍वमुखी त्रि‍कोण आदि के प्रतीक प्रयोग किये जाते हैं , कुछ विशिष्‍ट यंत्रों में जिनमें कि दोनों को सम्मिलित रूप से दर्शाना हो जैसे श्री यंत्र तो दोनों प्रकार के त्रिकोण व बिन्‍दु अणु आदि लिखे व व्‍यक्‍त किये जाते हैं, ऊर्ध्‍वमुखी व अधोमुखी त्रिकोण संख्‍या भेद से श्रीयंत्र का रूप व प्रकार बदल जाता है ।

तंत्र एवं देवी साधनायें

तंत्र साधनाओं में में सामान्‍यत: दो पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है एक तो वाम मार्गी और दूसरी दक्षिणमार्गी । वाममार्गी साधनायें पंचमकारी होती हैं लेकिन शीघ्र सिद्धिदायक या विनाशकारक होतीं हैं , दक्षिणमार्गी साधनायें पूर्णत: शुद्ध सात्विक एवं साचारित्रिक होतीं हैं । देवी की साधनाओं में दोनों ही पद्धतियों का जम कर प्रयोग किया जाता है जिसको जो सुभीता प्रतीत हो वह उसी साधना पद्धति को अंगीकार करता है । दक्षिणमार्गी में सिद्धि में समय अधिक लगता है तो विनाशक भी कम और देर से होतीं हैं ।

हम यहॉं दक्षिणमार्गी साधनाओं का ही जिक्र करेंगे ।

शिव के विभिन्‍न दस अवतार शिव पुराण में उल्‍लेखित हैं इन अवतारों की दसों शक्तियों को दस महाविद्या कहा जाता है । ये इस प्रकार हैं -

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्‍वरी । भैरवी छिन्‍नमस्‍ता च विद्या धूमावती तथा ।।

बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका । एता विद्या महेशानि महाविद्या प्रकीर्तिता ।।

इसके अनुसार दस महाविद्यायें हैं , देवी की दस महाविद्याओं के नाम 1. काली यानि महाकाली  2. तारा 3. षोडशी यानि श्रीविद्या यानि त्रिपुर सुन्‍दरी 4. भुवनेश्‍वरी 5. भैरवी 6. छिन्‍न मस्‍ता 7. धूमावती 8. बगला यानि बगलामुखी 9. मातंगी यानि सरस्‍वती 10. कमला यानि महालक्ष्‍मी हैं

शाक्‍त साधनाओं में या देवी की साधनाओं में दस महाविद्या साधना सबसे उच्‍चकोटि की तंत्र साधनायें हैं , हरेक को सिद्ध भी नहीं होतीं और जिसको सिद्ध हो जायें उसे फिर कोई लगता नहीं ।

क्रमश: जारी अगले अंक में  

 

शहीदे आजम भगत सिंह : यूं महज कुर्बानीयां याद करने से कुछ न होगा...नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’

शहीदे आजम भगत सिंह : यूं महज कुर्बानीयां याद करने से कुछ न होगा...

गर होगा तो फिर एक शहीद पैदा करने से ही कुछ होगा

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'

23 मार्च शहीदे आजम भगत सिंह की शहादत का दिन हो या 19 दिसम्‍बर रामप्रसाद विस्मिल का या 28 फरवरी चन्‍द्र शेखर आजाद का या... आज भारत में जब मैं इन तारीखों पर चन्‍द जुमलों के साथ चन्‍द लमहों के लिये सियासती ऑसूं बहाने वालों को देखता हूं तो कई बार लगता है कि ... बस बन्‍द करों शहीदों का यूं अपमान करना , हमारे सियासतदारों के करम ऐसे हैं कि उन्‍हें शहीदों को याद करने का तो छोडि़ये नाम लेने तक का हक नहीं हैं ।

वो शुक्र है उस परवरदिगार का उसने अच्‍छे फूल चमन से चुन लिये !

गर आज चमन में होते तो बिन चुने ही कुम्‍हलाते उजड़ते चमन को देख कर ।।

ओ बिस्मिल ओ भगत सिंह ओ आजाद ए मेरे वतन आ के देखो तुम जरा ।

अपनी जॉं औ खून से बोये आजादी के जो बीज यहॉं आ के देखो तुम जरा ।।

आजादी औ आजाद हिन्‍द दोनों मुकर्रर हो गये अब आ के देखो तुम जरा ।

तुमने जवानी ,जान औ खून की परवाह किये बगैर अब आ के देखो तुम जरा ।।

अँग्रेजी रियासत गोरी सियासत को ललकार मौत को पुकारने वालो आ के देखे तुम जरा ।

अभी भी तुम्‍हारा वतन उन्‍हीं तेवरों में कैद है आ के देखो तुम जरा ।।

भ्रष्टाचार, रिश्‍वत, ना सुनी औ ऐयाशीयों का दौर है आ के देखो तुम जरा ।

चन्‍द सिक्‍को चन्‍द बोतलों चन्‍द औरतों पर निछावर भरतीय आ के देखो तुम जरा ।।

जीत कर नेता हराते पांच सालों तक तुम्‍हारे इस देश को आ के देखो तुम जरा ।

चन्‍द अरबपतियों के हाथ साथ चलती सरकारें यहॉं आ के देखो तुम जरा ।।

पैसे वालों और गरीबों के बीच लम्‍बी एक खाई को आ के देखो तुम जरा ।

रोज पिटते देशभक्‍त को, लातें खाते ईमानदार को आ के देखो तुम जरा ।।

रोज लुटती गरीब की बेटी औ कटती जेब को आओ वतन के लाड़लो आ के देखो तुम जरा ।

अमीरों ऐयाशों के दिल बहलाने के साधन गरीबों के कच्‍चे झोंपड़े आ के देखो तुम जरा ।।

चन्‍द सिक्‍कों की नौकरी वतन के दुश्‍मनों की नौकरी की खतिर बिकते भारत को आ के देखो तुम जरा ।

नौकरी की लाइन में, दो रोटी की आस में अनपढ़ मालिक के यहॉं प्रतिभायें तरसतीं आ के देखो तुम जरा ।।

अब हर देशभक्‍त घोषित पागल यहॉं हर सुन्‍दर कन्‍या कालगर्ल बनती यहॉं आ के देखो तुम जरा ।

वतन में बनते औ छपते नोट सिक्‍कों पर लग रहे अब दाग हैं आ के देखो तुम जरा ।।

वह तुम्‍हारा लाहौर सिंध औ कराची के बाजार गुम हैं वतन से तुम्‍हारे आ के देखो तुम जरा ।

एक नाजायज औलाद हिन्‍दुस्‍तान की रोज धमकाती अपने मॉं बाप को आ के देखो तुम जरा ।।

हर कंस के संग सोती राधिकायें, रावण के घर खुद पहुँचती सीतायें अब आ के देखो तुम जरा ।

कभी हवाला कभी दिवाला देश को बेच तिजारत कर रहे देश के संचालकों को आ के देखो तुम जरा ।।

हर नौजवां तरस रहा इक आस को इक विश्‍वास को रोज लड़ता खुद से कभी औ कभी अपनी सरकार से आ के देखो तुम जरा ।

भारत में यूं घुन लगा, धर्म जाति की धुन बजा औ कभी भाषा कभी लिंग पर बटते देश को आ के देखो तुम जरा ।।

जिन्‍हें जूते मार कर पीटने के कूटने के वक्‍त है, उनके जूतों तले दबे हिन्‍दुस्‍तान को आ के देखो तुम जरा ।

क्‍या लहू अपना तुमने इस देश के लिये बहाया आज उस देश को नजदीक से आ के देखो तुम जरा ।।

हॉं कर लेते हैं पापी भी तुम्‍हें याद चन्‍द लम्‍हों के लिये, तैयार अगले गुनाहों के लिये आ के देखो तुम जरा ।

गुनगुना कर चंद गीत, चंद मालायें डाल कर ए.सी. गाड़ी में बैठ शराब के घूंटों में कलाम बांचते शहीदों के आ के देखो तुम जरा ।।

क्‍या क्‍या देखोगे ओ भगत सिंह, ओ सुभाष ओ चन्‍द्रशेखर ओ बिस्मिल यहॉं ।

कि हर शाख पे अँग्रेजी सियासत औ वो खूनी रियासत देख कर शहादत नहीं आत्‍महत्‍या कर लोगे यहॉं ।।

तुमने चन्‍द सियासत अँग्रेजों की इक अल्‍प रियासत अँग्रेजी की देख शहादत दे डाली ।

ओ वीरो तुमने वीरता की दास्‍तायें देशभक्ति के अफसाने जिस कम उमर में लिख डालीं ।। 

ओ मेरे देश के पावन रक्‍त अब कौन सा वो रक्‍त है जो तुम्‍हारी रक्‍त गंगा में मिले ।

मेरे पास बस चंद ऑंसू है कुछ तुम्‍हारे लिये औ कुछ देश के लिये जो विरासत में मिले ।।

मैं कल दैनिक भस्‍कर में रस्किन बाण्‍ड का कलकत्‍ता के अँग्रेजों के बारे में और आज वेद प्रताप वैदिक का डॉ. राम मनोहर लोहिया और एक रिटायर्ड डिप्‍टी कलेक्‍टर कस आलेख ''अब तो निलंबन एक मजाक है '' पढ़ रहा था , मुझे जहॉं एक ओर बेहद तकलीफ भी हुयी और दूसरी ओर कुछ हैरत भी । कुल मिला कर मैं अपनी पढ़ने लायक सामग्री का चयन में भी बेहद सावधानी और सतर्कता बरतता हूं । मुझे क्‍या पढ़ना है मुझे पता रहता है , लेकिन जब आज देश की दुर्गत और शहीदों की शहादत के लिये उन लोगों के मगरमच्‍छी ऑंसू देखता हूं जिनके कारण समूचे देश की ऑंखों में ऑंसू हैं तो फिर लिखता भी अपनी ही पसन्‍द का हूं और इसका चयन भी मैं खुद ही करता हूं । जिनमें शहीदों के प्रति प्रतिउपकार का जज्‍बा हो या न हो लेकिन देश के लिये चन्‍द काम भी ऐसा किया है कि उन्‍होंने भगत सिंह, चन्‍द्र शेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल, सुभाष चन्‍द्र बोस ..... के इस देश की ऑंखों में ऑंसू पैदा किये हैं उनके लहू से सींचे इस चमन में उस अँग्रेजी सियासत और रियासत की फसल को हजार गुना बढ़ा कर अब हर पत्‍ते पत्‍ते पर फैला दिया है उन्‍हें या तो खुद ही शर्म होना चाहिये वरना मैं कहता हूं कि प्रलाप तत्‍काल बन्‍द करें उन्‍हें शहीदों के नाम स्‍मरण तक का हक नहीं हैं , वे पावन रक्‍त हैं , उनके कर्म वाणी सब पावन हैं और अपावन उनके नाम का उच्‍चारण न ही करें तो बेहतर हैं... कभी सोच के देखना ठण्‍डे दिमाग से वे देश के लिये क्‍या कर गये और तुमने क्‍या किया .. क्‍या कर रहे हो.... जय हिन्‍द       

सोमवार, 22 मार्च 2010

एयरटेल की नेटवर्क फिर ध्‍वस्‍त, शिकायतें न दर्ज हो रहीं न सुनवाई हो रही है, बड़े बड़े दावों के पीछे ढोल की पोल

एयरटेल की नेटवर्क फिर ध्‍वस्‍त, शिकायतें न दर्ज हो रहीं न सुनवाई हो रही है, बड़े बड़े दावों के पीछे ढोल की पोल  

क्‍या आप भी किसी मोबाइल सेवा प्रदाता कम्‍पनी की ठगी का शिकार हैं तो इसे ध्‍यान से पढ़ें

हर तीसरे दिन लुप्‍त हो जाता है एयरटेल का नेटवर्क

यूं ही नहीं चलते लाखों के इनामी टी.वी. कार्यक्रम कम्‍पनीयों के , इस तरह करोड़ो अरबों बटोरतीं हैं कम्‍पनीयॉं, और चलाती हैं देश की आवाज और क्रेजी किया रे जैसे लुभावने कार्यक्रम

मुरैना 22 मार्च 10 , विगत 8 फरवरी से गड़बड़ाया एयरटेल (भारती एयरटेल) का नेटवर्क पिछले दिनों की तरह आज फिर ध्‍वस्‍त हो गया ।

विगत 8 फरवरी से ठप्‍प हुये एयरटेल संचार प्रणाली में मजे की बात यह भी है कि उपभोक्‍ताओं को जम कर कम्‍पनी द्वारा चूना भी लगाया जा रहा है । जहॉं कम्‍पनी द्वारा घोषित टोल फ्री शिकायत नंबर 198 कभी भी नहीं लगता वही कम्‍पनी जबरन बाध्‍य कर शिकायतें पहले खुद ही पैदा करती है और उसके बाद शिकायत दर्ज कराने के पैसे वसूलती है ।

जहॉं कम्‍पनी कुछ नंबरों पर एस.एम.एस. से शिकायत भेजने के लिये शुल्‍क नहीं लेती थी मसलन 121, अब इस नंबर पर भी एस.एम.एस. भेजने के पैसे काटे जाते हैं वह भी 1 रू. प्रति एस.एम.एस. की दर से शुल्‍क वसूलती है , आज हमने जब 198 , 121 सभी नंबरों के फेल होने पर 121 पर एस.एम.एस. भेजे तो पूरे 6 रू. काट लिये गये ।

उल्‍लेखनीय है कि कम्‍पनी के नेटवर्क टावर विगत 8 फरवरी से चम्‍बल में उपलब्‍ध नहीं हो रहे हैं । सैकड़ों उपभोक्‍ता कम्‍पनी के पास शिकायत दर्ज कराने को झकमारी करते फिर रहे हैं , अव्‍वल तो कम्‍पनी शिकायत ही दर्ज नहीं करती और कोई उपभोक्‍ता पैसे खर्च कर शिकायत दर्ज भी करवा दे तो फिर उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती । उपभोक्‍ता पैसे खर्च करता रहता है और ठगा जा कर कम्‍पनी की चालबाजी और धोखाधड़ी का शिकार होता रहता है ।

कम्‍पनी के तमाम उपभोक्‍ता मोबाइल आफिस के नाम से इण्‍टरनेट सेवायें प्रयोग करते हैं , उनके साथ कम्‍पनी न केवल धोखाधड़ी कर रही है बल्कि जम कर ठगी भी कर रही है । कुछ उपभोक्‍ताओं से मासिक शुल्‍क एकमुश्‍त काट कर कम्‍पनी महीने भर इण्‍टरनेट सेवायें प्रदान करने का वायदा करके साधारण संचार नेटवर्क तक उपलब्‍ध नहीं करा पाई वही कुछ उपभोक्‍ता 10 रू प्रति दिवस का भुगतान करके भी इण्‍टरनेट छोडि़ये साधारण फोन पर बात भी नहीं कर पाये । और विगत 8 फरवरी से तकरीबन हर दूसरे दिन अपने गांठ से पैसे खर्च करके शिकायतें भी करते रहे और रोजाना 10 रू भी कटाते रहे फिर भी वही ढाक के तीन पात ही रहे ।

इससे भी आगे बढ़ कर कम्‍पनी और भी कई करिश्‍मे दिखाती है , मसलन इस कम्‍पनी की मोगाइल सेवाओं पर बिना चालू किये ही अपने आप ही अश्‍लील गानों की कालर टयून नामक सेवा प्रारंभ हो जाती है और जबरन रातों रात आपके मोबाइल फोन से 60- 70 रूपये गायब हो जायेंगें ।

और भी तमाशा ये हैं कि आप के फोन पर कोई भी सुविधा आप प्राप्‍त करें या न करें यदि आपने अपना बैलेन्‍स 100 रूपये से ऊपर मोबाइल में रखा है तो रातों रात सैकड़ों रूपये गायब होकर चन्‍द पैसे का बैलेन्‍स मात्र शेष रह जायेगा । कई उपभोक्‍ताओं के इस तरह सैकड़ो हजारों रूपये साफ हो चुके हैं । जिसकी शिकायतें जागो ग्राहक जागो और ट्राई तक हो चुकीं हैं , ज्‍यादा पीछे पड़ने वाले ग्राहक के पैसे तो कम्‍पनी लौटा देती है लेकिन लापरवाह , सुस्‍त या शिकायत न करने वाले या पीछे न पड़ने वालों के पैसे कम्‍पनी हजम कर जाती है । हमने इस समाचार के सम्‍बन्‍ध में सभी साक्ष्‍य प्राप्‍त कर लिये हैं और हमारे पास सुरक्षित हैं । जनहित में सूचित करते हैं कि ऐसी किसी भी कम्‍पनी से पीडि़त होने पर बी.एस.एन.एल. के फोन से टोल फ्री नंबर 1800-11-4000 पर शिकायत तुरन्‍त दर्ज करायें ।     

 

रविवार, 21 मार्च 2010

नवदुर्गा – नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

नवदुर्गा नवरात्रि विशेष : दसमहाविद्या और शक्ति उपासना

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

भारत में शक्ति उपासना आराधना एवं पूजा विशेष रूप से प्रचलित एवं सर्व मान्‍यता प्राप्‍त है । केवल भारत ही नहीं अपितु सम्‍पूर्ण विश्‍व में ही शक्ति की उपासना किसी न किसी प्रकार से हर धर्म हर जाति हर समुदाय में की जाती है ।

बहुधा लोग शक्ति उपासना आराधना के भेद जाने बगैर आराधना और उपासना करते हैं । हालांकि विधि जाने बगैर पूजा उपासना करना कोई अपराध नहीं हैं और बहुधा अनिष्‍टकारी भी नहीं होता । लेकिन कई बार अनिष्‍टकारी भी होता है । यदि विधिपूर्वक शक्ति उपासना की जायेगा तो कहना ही क्‍या है और इसका फल भी सुनिश्चित एवं सुफलित होता है ।

अव्‍वल तो यह जान लेना बेहद जरूरी है कि भारतीय समाज में शक्ति उपासना का अर्थ एवं भेद क्‍या हैं इसके बाद हर समाज हर धर्म समुदाय एवं हर देश में की जाने वाली शक्ति पूजा उपासना व आराधना का भेद भलीभांति स्‍वत: ही समझ आ जायेगा ।

नारी, प्रकृति, शक्ति, दुर्गा, आद्यशक्ति एवं कुण्‍डलिनी

शक्ति से सीधा तात्‍पर्य नारी से है, नारी का सीधा तात्‍पर्य प्रकृति से व प्रकृति का सीधा संबंध शक्ति से, शक्ति का ताल्‍लुक दुर्गा से व दुर्गा का आद्यशक्ति से और इन सबका सीधा संबंध कुण्‍डलिनी से है ।

शक्ति विहीन मनुष्‍य सिर्फ केवल एक शव मात्र है और उसमें शक्ति का स्‍पर्श होते ही वह सजीव, सचेतन और सक्रिय हो उठता है । शिव में से शक्ति मात्रा इ (इकार मात्रा) हटाते ही वह शव हो जाता है और शक्ति की इ मात्रा लगाते ही वह शिव हो जाता है तथा शवों का भक्षण करने वाला महाकाल हो जाता है ।

ठीक इसी का विपरीत क्रम है बिना शव के शक्ति केवल प्रवाह मात्र है और यूं ही यत्र तत्र विचरण करती रहती है वह स्‍वयं कुछ कर पाने में असमर्थ एवं प्रभावहीन होती है , लेकिन जब उसे माध्‍यम मिल जाता है यानि की एक शव प्राप्‍त होता है तो वह उसे शिव बना कर सदैव सदैव उसकी शक्ति बन कर न केवल सृष्टि रचना का स्‍त्रोत बन जाती है अपितु सृष्टि कर नियामक, पालक, संहारक भी बन जाती है । शक्ति और शव के इसी समुचित व सम्‍यक सम्मिलन एवं संयुक्‍तीकरण से प्रकृति का सूचित सुचारू संचालन होता है । इस योग में किंचित भी विकार या रोग पैदा होने पर न्रकृति का संतुलन गड़बड़ा कर प्रकृति चक्र असंतुलित व विनाशकारी हो उठता है ।

विज्ञान यानि साइन्‍स में शक्ति को पावर और पॉवर के पीछे ऊर्जा को संवाहक व नियामक माना जाता है । इस सम्‍बन्‍ध में आइन्‍सटीन ने ऊर्जा का संरक्षण सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया "Energy can not be produce nor be destroyed, that can only transform in various forms (it may only can change in one form to another form) '' यह सिद्धान्‍त विज्ञान यानि साइन्‍स का प्रसिद्ध सिद्धान्‍त है और भारतीय शक्ति पूजा उपासना और शक्ति अवस्थिति को बेहद सटीक रूप से व्‍याख्‍या कर देता है, वे लोग जो नास्तिक हैं या शक्ति पूजा उपासना में विश्‍वास नहीं करते उन्‍हें आइन्‍सटीन के इस सिद्धान्‍त पर तो गुरेज ही नहीं होगा । फिर आइन्‍सटीन ने तो आखिर में स्‍वयं को ईश्‍वरवादी और आस्तिक ही घोषित कर स्‍वयं को उस अलौकिक ईश्‍वरीय शक्ति का अनन्‍य भक्‍त कह कर नतमस्‍तकता जाहिर की थी । इस सिद्धान्‍त के अनुसार ऊर्जा को न तो पैदा किया जा सकता है, न उसे नष्‍ट किया जा सकता है केवल उसे रूपा‍न्‍तरित मात्र किया जा सकता है ।

भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त भी इसी बात को कहता है और इसी सिद्धान्‍त पर पूरी शाक्‍त साधना, पूजा उपासना अर्चना टिकी हुयी है । आइन्‍सटीन ने ऊर्जा सिद्धान्‍त पर कार्य करते हुये ऊर्जा समीकरण एवं ऊर्जा शक्ति की प्रचण्‍ड ताकत का सूत्र निष्‍पादित कर दिया यह समीकरण ही विश्‍व भर में परमाणु बम, परमाणु ऊर्जा और परमाणु शक्ति की जनक एवं कारण बन गई आइन्‍सटीन की ऊर्जा शक्ति की प्रचण्‍ड ताकत को नापने वाली प्रसिद्ध समीकरण E = mc2  है । यही ताकत भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त में शक्ति उपासना के लिये वर्णित है लेकिन बेहद विस्‍तार से ।

भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त के अनुसार जब शक्ति यानि महाऊर्जा ब्रह्माण्‍ड में स्‍वतंत्र एवं अकेली विचरणशील थी जिसे आद्यशक्ति कहा गया है तो उसे सृष्टि , प्रकृति एवं सक्रिय संरचना के सुन्‍दर एवं अदभुत संसार की लालसा हुयी तब शक्ति ने पुरूष को प्रकट किया और आदि देवों त्रिदेवों की उत्‍पत्ति हुयी , आद्य शक्ति ने उन्‍हें त्रिशक्तियां अर्पित व समर्पित कीं तब प्रकृति व सृष्टि रचना आगे बढ़ी और सुन्‍दर संसार का निर्माण हुआ ।

शक्ति के रूप व भेदान्‍तर

शक्ति के असल में कितने भेद हैं यह काफी गूढ़ व रहस्‍यात्‍मक है विज्ञान भी अभी इस मामले में काफी पीछे चल रहा है और एक खोज नई हो पाती है तब तक दूसरी नई रहस्‍य श्रंखला समाने आ जाती है । भारतीय शाक्‍त सिद्धान्‍त ने इसके भेद शाक्‍त सिद्धान्‍त में वर्णन किये हैं जिसमें केन्‍द्र बिन्‍दु में नारी यानि स्‍त्री और प्रकृति एवं शक्ति नियमों को रखा गया है तथा सिद्धांत प्रतिपादन हुये हैं ।

बहुधा अधिक न जानने वाले लोग चकरा जाते हैं कि आखिर दुर्गा यानि शक्ति के असल में कितने रूप हैं और आखिर किस रूप की साधना उपासना से उनका वाछित कल्‍याण संभव है । इस प्रश्‍न का उत्‍तर बेहद आसान है आद्य शक्ति जगत्जननी मॉं जगदम्‍बा की उपासना जब आप करते हैं तो शक्ति के मूल रूप यानि मॉं की उपासना करते हैं और मातृ शक्ति मूल आराधना का विषय आप अपने समक्ष रखते हैं ।

जैसे ही आप शक्ति भेद से रूपान्‍तरित शक्ति उपासनाओं की ओर बढ़ते हैं वैसे ही या तो अपनी कामनाओं के अनुरूप शक्ति उपासना करते हैं या फिर अनजाने में या अकारण ही निर्लिप्‍त व निष्‍काम भाव से शक्ति के किसी रूप की साधना में जुट बैठते हैं । लेकिन फल सबका ही प्राप्‍त होता है । शक्ति के रूप भेद से फल भी बदल जाता है , साधना पद्धति एवं विधि क्रम भी बदल जाते हैं ।

नवदुर्गा एवं दस महाविद्यायें तथा क्षुद्र साधनायें  

हालांकि तन्‍त्र शास्‍त्र एवं नारी शास्‍त्र में कतिपय कई शक्ति भेद वर्णित हैं जिसमें क्षुद्र से लेकर आद्य शक्ति स्‍तर तक की शक्ति भेद व नारीयों का वर्णन आता है , लेकिन यह व्‍याख्‍या या वर्णन इस आलेख का उद्देश्‍य नहीं हैं बस इतना समझना पर्याप्‍त होगा कि शक्ति के क्षुद्र रूपों में सामान्‍य नारी, भूतनी , पिशाचनी, यक्षणी, किन्‍नरी, जिन्‍न, गंधर्व एवं अप्‍सरा, निशाचनी, राक्षसी जैसी साधनाओं से क्षुद्र सिद्धिदायक साधनाओं के फल क्षुद्र एवं विनाशकारी ही होते हैं इनसे दूरी रखना चाहिये । और उच्‍च स्‍तर की साधना पूजा उपासना देवी साधना, पूजा, अर्चना उपासना जिसके भेद वर्णन हम आगे करेंगें ही करना श्रेष्‍ठ रहता है । इस सम्‍बन्‍ध में तन्‍त्र शास्‍त्र भी पर्याप्‍त सावधान करता है और श्रीमदभगवद गीता में श्रीकृष्‍ण भी स्‍पष्‍ट कहते हैं ''भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्‍त होते हैं, यक्षों को पूजने वाले यक्षों को प्राप्‍त होते हैं देवों को पूजने वाले देवों को प्राप्‍त होते हैं और जो मेरा पूजन करते हैं वे मुझ ही को प्राप्‍त होते हैं '' आगे श्रीकृष्‍ण ने यह भी कहा कि ''जो जिसका पूजन करता है उसका स्‍वयं का स्‍वरूप भी वैसा ही बन जाता है''  गीता के इन श्‍लोकों में तंत्र व पूजा का भारी भेद एवं रहस्‍य वर्णित है । यही भारतीय तन्‍त्र शास्‍त्र भी कहता है और इसकी अधिक व्‍याख्‍या करता है, तन्‍त्र शास्‍त्र साफ कहता है कि जिसको पूजोगे वैसे ही हो जाओगे और वैसे ही फल प्राप्‍त होंगें तथा जीवन के अंत में उसी के साथ चले जाओगे यानि वही बन जाओगे ।

क्रमश: जारी अगले अंक में ...