शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

यदि शाहरुख़ ख़ान पाक जेहादी एजेंट फिर राष्ट्रवादी मुसलमान कौन?

यदि शाहरुख़ ख़ान पाक जेहादी एजेंट फिर राष्ट्रवादी मुसलमान कौन?

तनवीर जांफरी ,  (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

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            प्रसिद्ध ंफिल्म अभिनेता शाहरुंख ंखान के विरोध में देश की कई अतिवादी शक्तियां एकजुट हो गई हैं। इन शक्तियों द्वारा शाहरुंख के विरोध का कारण यह बताया जा रहा है कि उन्होंने आई पी एल द्वारा आयोजित किए जाने वाले क्रिकेट टूर्नामेंट में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भी शामिल किए जाने की हिमायत की। जबकि शाहरुख द्वारा न तो अपनी टीम कोलकाता नाईट राईडर्स में किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी को शामिल किया गया न ही वास्तव में ऐसा कुछ विशेष कहा गया जिससे यह ंजाहिर हो कि वे पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी का इज़हार कर रहे हों। पाकिस्तानी खिलाड़ियों के सम्बंध में शाहरुंख के वक्तव्य के अगले ही दिन भारत सरकार के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तो स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि भारत में पाकिस्तान अथवा किसी भी अन्य देश का खिलाड़ी यदि खेलने आता है तो उसकी पूरी सुरक्षा की ंजिम्मेदारी भारत सरकार की है। परंतु गृह मंत्री पर किसी अतिवादी नेता या संगठन ने निशाना साधना उचित नहीं समझा और साफ्ट टारगेट समझ कर शाहरुंख ंखान के विरोध का परचम बुलंद कर दिया। निश्चित रूप से घटिया दर्जे की राजनीति करने वालों का यह भी एक शंगल होता है कि वे किसी सुप्रसिद्ध शख्सियत का महंज इस लिए विरोध करते हैं ताकि उस प्रसिद्ध हस्ती के साथ विरोध कर्ताओं का नाम भी जुड ज़ाए और उसे भी कुछ न कुछ प्रसिद्धि प्राप्त हो जाए। भले ही वह प्रसिद्धि नकारात्मक क्यों न हो।

                         शाहरुंख ख़ान की बड़े ही घटिया शब्दों में आलोचना करने का ंजिम्मा इन दिनों जिन तथाकथित  'राष्ट्रभक्त राजनीतिज्ञों' ने उठा रखा है उनमें अब तक जो चेहरे सामने आ रहे हैं वे हैं महाराष्ट्र शिवसेना के नेतागण,विश्वहिंदू परिषद् के महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया,श्री राम सेना के प्रमुख प्रमोद मुताली तथा इन्हीं ंफायर ब्रांड नेताओं के सुर से अपना सुर मिलाते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने भी शाहरुख़ ख़ान की आलोचना की है। डा. प्रवीण तोगड़िया ने तो शाहरुंख ख़ान को पाकिस्तानी जेहादियों का एजेंट तक कह डाला है। शिवसेना कहती है कि देखें वे मुंबई में कै से रहते हैं। और शाहरुंख का निवास मन्नत मुंबई में है कराची में नहीं। इस प्रकार की शब्दावली से जिस शाहरुख़ ख़ान को नवांजा जा रहा है आईए उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर एक नंजर डालने की कोशिश करते हैं और स्वयं इस निर्णय पर पहुंचने का प्रयास करते हैं कि जेहादी मानसिकता का शिकार कौन है और क्यों है?

            शाहरुख़ ख़ान का जन्म 1965 में नई दिल्ली में एक पठान परिवार में हुआ। इनके पिता ताज मोहम्मद ख़ान एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे तथा भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने ख़ूब संघर्ष किया। देश प्रेम उनमें ऐसा कूट-कूट कर भरा था कि वे भारत को विभाजित होते नहीं देखना चाहते थे। यही वजह थी कि वे 1947 के विभाजन से पूर्व ही पेशावर से भारत आ गए थे। उधर शाहरुख़ ख़ान की मां लतींफ ंफातमा मेजर जनरल शाहनवांज ख़ान की दत्तक पुत्री थीं। जनरल शाहनवांज ंखां का व्यक्तित्व परिचय का मोहताज नहीं है। वे सुभाष चंद्र बोस की आंजाद हिंद ंफौज में मेजर जनरल थे। जनरल ख़ान भी विभाजन से पूर्व पेशावर से भारत आए थे जबकि शाहरुख़ की मां का परिवार रावलपिंडी से भारत आया था। उपरोक्त परिवारों के देश प्रेम के बारे में ंजरा कल्पना कीजिए कि यह मुस्लिम घराने उन हालात में भारत आए जबकि सांप्रदायिकता के शोले धधकने को थे तथा भारत से लाखों मुसलमानों का पाकिस्तान की ओर पलायन करना तय था। इसी प्रकार हिंदू संप्रदाय के लोग पाकिस्तान से भारत आने की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में चंद मुस्लिम घरानों का हवा के विपरीत ंकदम उठाना आख़िर हमें क्या एहसास कराता है।

            इसके पश्चात शाहरुख़ ख़ान दिल्ली के राजेंद्र नगर क्षेत्र में पले-बढ़े तथा सेंट कोलंबस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हुए हंसराज कालेज से स्नातक किया। अपने अभिभावकों की मृत्यु के पश्चात 1991 में वे मुंबई चले गए। इसी वर्ष उन्होंने कश्मीरी मुंजाल ब्राह्मण परिवार की गौरी छिब्बर नामक कन्या से 25अक्तूबर 1991 को विवाह रचाया। यह विवाह हिंदू रीति रिवाज के साथ संपन्न हुआ। इस समय शाहरुख़ के दो बच्चे, पुत्र आर्यन तथा पुत्री सुहाना हैं। शाहरुख़ ख़ान का घर किसी संपूर्ण धर्म निरपेक्ष राष्ट्रवादी मुसलमान का घर कहा जा सकता है। उनके घर में ंकुरान,गीता,बाईबिल आदि सभी धर्म ग्रंथ मौजूद हैं तथा समय-समय पर वह इनका अध्ययन भी करते रहते हैं। शाहरुख़ को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मानों व पुरस्कारों से भी नवांजा जा चुका है। सन्2005 में उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च        राष्ट्रीय पुरस्कार पदम श्री से सम्मानित किया गया। उसके पश्चात अप्रैल 2007 में लंदन के विश्व प्रसिद्ध मैडम तुसाद वेक्स म्यूंजियम में उनका आदमक़द मोम का बुत स्थापित किया गया। उसी वर्ष पैरिस में भी उनका ऐसा ही बुत एक सुप्रसिद्ध म्यूंजियम में स्थापित हुआ। यह सम्मान उन्हें फ्रेंच सरकार द्वारा दिया गया। अक्तूबर 2008 में उन्हें मलेशिया के राष्ट्रप्रमुख द्वारा वहां के एक अति प्रतिष्ठित सम्मान से नवांजा गया। ब्रिटिश विश्वविद्यालय ब्रेडफोर्ड शायर ने उन्हें 2009 में डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। पूरी दुनिया में भारतीय सिनेमा के माध्यम से देश का नाम रौशन करने वाले शाहरुख़ ख़ान के व्यक्तित्व पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

            उपरोक्त संक्षिप्त जीवन परिचय उस सुप्रसिद्ध ंफिल्म अभिनेता का है जोकि जनरल शाहनवाज़ ख़ां की गोद में पला तथा जिसने देश भक्ति के न जाने कितने ंकिस्से-कहानियां जनरल ख़ान के मुंह से सुनी होंगी। आईए इसी आलेख के बहाने आज मेजर जनरल शाह नवाज़ ख़ां को भी श्रद्धांजलि देने की कोशिश की जाए। मेरा भी यह सौभाग्य रहा है कि मैंने जनरल शाहनवांज की संगत की है तथा उनकी सेवा में कुछ समय बिताने का सौभाग्य मिला है। 1979 में इलाहाबाद के प्रयाग होटल में जनरल ख़ान किसी राजनैतिक कार्यक्रम में भाग लेने हेतु आकर ठहरे थे। मैंने देखा कि वे पांचाें वक्त क़ी नमांज अदा करते थे। बिना दाढी वाले सच्चे राष्ट्रवादी मुसलमान थे। वे कैप्टन टिक्का ंखां की संतान थे तथा उन्होंने रायल इंडियन मिलिट्री कालेज देहरादून से कमीशन प्राप्त किया था। वे सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा पाकर भारतीय राष्ट्रीय सेना में शामिल हुए थे। 1956 में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच हेतु जो समिति गठित की गई थी जनरल ख़ान उसके प्रमुख थे।

            ऐसे ख़ानदान से संबंध रखने वाले शाहरुख़ ख़ान के संस्कार क्या पाकिस्तानी जेहादियों से मेल खा सकते हैं? क्या उसे इस प्रकार के 'अलंकरणों' से सम्मानित करना उचित है? इसका प्रभाव अन्य राष्ट्रभक्त उदारवादी तथा धर्मनिरपेक्ष भारतवासियों की सोच पर क्या पड़ सकता है? क्या आज के यह तथाकथित अतिवादी राष्ठ्रभक्त शाहरुंख ख़ान की पारिवारिक पृष्ठभूमि की  तुलना अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि से कर सकते हैं?आज शाहरुख़ ख़ान से यह उम्मीद की जा रही है कि वह बाल ठाकरे जैसे अलगावादी विचार रखने वाले नेता से जाकर मांफी मांगेंे कि उसने पाक टीम के प्रति हमदर्दी क्यों जताई? जबकि शाहरुख़ ख़ान से कहीं अधिक मुखरित स्वरों में गृहमंत्री सहित कई अन्य विशिष्ट व्यक्ति यह स्पष्ट कर चुके हैं कि खेल को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। स्वयं बाल ठाकरे की बहु स्मिता ठाकरे भी शाहरुख़ ख़ान का समर्थन करती देखी जा रही है। जबकि बाल ठाकरे के पुराने सहयोगी रहे नारायण राणे तो यहां तक कह रहे हैं कि बाल ठाकरे द्वारा यह सारा बवंडर केवल पैसे वसूलने की ंगरज़ से खड़ा किया जा रहा है। परंतु आज देश में किसी का विरोध नहीं हो रहा है। केवल शाहरुख़ ख़ान ही आख़िर निशाने पर क्यों हैं? उसे पाकिस्तानी जेहादी कहने वाले तथा धमकियां देने वालों को मांफी मांगने की तो कोई ंजरूरत ही नहीं होगी। चूंकि यह 'स्वयंभू राष्ट्रभक्त'  हैं अत: इनके मुंह से निकले अपशब्द भी गोया 'प्रसाद' समझे जाने चाहिए। जबकि मांफी मांगने की उम्मीद सिर्फ शाहरुख़ से ही की जा रही है।

            याद कीजिए 26-11 की बरसी पर आयोजित इंडिया गेट के मैदान पर हुआ वह कार्यक्रम जिसमें शाहरुख़ ख़ान ने ही इस बात पर चिंता जताई थी कि मुझसे ही लोग न जाने क्यों यह पूछते हैं कि आतंकवाद के बारे में आपकी क्या राय है। उसने आगे कहा था कि आतंकवाद के विषय में किसी की भी अलग-अलग राय तो हो ही नहीं सकती। परंतु शायद मुझसे इसलिए यह पूछा जाता है क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं। कहीं आज अतिवादी शक्तियों द्वारा शाहरुख़ पर साधा जाने वाला निशाना शाहरुख़ के उसी संदेह की पुष्टि तो नहीं कर रहा? यदि ऐसा है तो यह देश की एकता व धर्मनिरपेक्षता के लिए अत्यंत घातक है। एक ओर तो शाहरुख़ ख़ान उदारवादी तथा प्रगतिशील सोच रखने वाले भारतीय मुसलमानों के लिए एक आदर्श के रूप में अपना स्थान बना चुके हैं तो दूसरी ओर उन्हें पाकिस्तानी जेहादी एजेंट जैसी उपाधियों से 'सम्मानित'   किया जा रहा है। आज भारत सहित दुनिया के अन्य तमाम देशों में शाहरुख़ ख़ान के समर्थकों में मुसलमानों की संख्या तो कम जबकि हिंदू व अन्य समुदायों में शाहरुख़ ख़ान की स्वीकार्यता कहीं अधिक है। आख़िर इसके बावजूद उस पर अनावश्यक रूप से लांछन लगाने व बदनाम करने का औचित्य क्या है? दरअसल शाहरुख़ के विरोध का अर्थ उसका विरोध करना कम जबकि उसके विरुद्ध हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का असफल प्रयास अधिक है। जो भी हो यह कोशिश अति दुर्भाग्यपूर्ण तथा देश के सांझी तहंजीब व धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरनाक है। ऐसी मानसिकता रखने वालों को जनता को ही सबंक सिखाना होगा। शायद धर्मनिरपेक्षता,उदारवाद तथा प्रगतिशील सोच रखने वाले शाहरुख़ जैसे मुसलमानों के बारे में ही शायर ने कहा है कि-

ंजाहिदे तंग नज़र ने मुझे कांफिर जाना और कांफिर यह समझता है कि मुसलमान हूं मैं।          tanveerjafriamb@gmail.comतनवीर जांफरी               

 

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