शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

मतदान जागरूकता अभियान

मतदान जागरूकता अभियान

जे. वेकटेशन

       हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में मतदान ही एक ऐसा महत्वपूर्ण माध्यम है, जिससे सरकारी निर्णयों में व्यक्तिगत रूप से प्रभाव डाला जा सकता है । मतदान किसी विधानसभा अथवा लोक सभा चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक प्रत्याशी को वरीयता देने का एक औपचारिक माध्यम है ।

       हालांकि लोकतांत्रिक शासन के लिए आज व्यापक मताधिकार को अनिवार्य माना जाता है, पर क्या सभी मतदाता अपना मतदान करते हैं । राज्यों में मतदान का प्रतिशत अलग-अलग होता है लेकिन औसतन यह 60 प्रतिशत है । हालॉकि चुनाव में मतदान एक मौलिक अधिकार न होकर सांविधिक है लेकिन कितने लोग इस अधिकार का प्रयोग करते हैं । अनुपस्थित रहना यानि मतदान में भाग नहीं लेना है, लेकिन मतदान नहीं करने को अब संतुष्टि या उदासीनता कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है ।  हमारे राजनेताओं के व्यवहार के बारे में आम जनता में असंतोष बढ रहा है लेकिन मतदान न करना इस समस्या का हल नहीं कहा जा सकता ।

       भारत के उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों  के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे अपने नामांकन पत्रों  के साथ हलफनामे दाखिल करते हुए अपने खिलाफ लंबित अपराधिक मामलों, यदि कोई है तो, अपना,  अपने बच्चों की  सम्पत्ति, देनदारियों  और शैक्षिक जानकारी दें । हलफनामे को मतदान केन्द्रों के बाहर स्पष्ट रूप से दिखाया जाए । ये सब लोगों की जागरूकता के कारण ही संभव हुआ । लेकिन यह संदेश मतदाताओं तक कितना पहुंचा यह मुख्य बिन्दु है ।

       यहीं से जागरूकता अभियान सफल होगा । सफल अभियान अधिक मतदाताओं को मतदान प्रक्रिया में भाग लेने के लिए निश्चित रूप से प्रोत्साहित करेगा । अभियान 18 वर्ष और उससे अधिक आयु समूह के मतदाताओं पर लक्षित होना चाहिए जो उन्हें अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित करे ताकि उनका अपना भविष्य तय करने में उनकी भी सुनी जाए । मतदाता जागरूकता अभियान इश्तहारों के द्वारा, सिनेमाघरों में स्लाइड दिखा कर और एसएमएस द्वारा चलाया जा सकता है ताकि सभी मतदाताओं तक न्न कृपया वोट डालें न्न का संदेश पहुंच सके ।मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए कम्प्युटर एवं टच स्क्रीन के जरिए छद्म चुनाव भी कराए जा सकते हैं ।

        मतदान के प्रति उदासीन रहने वाले ऐसे मतदाता भी होते हैं जो हालांकि नागरिक सुविधाओं का इस्तेमाल तो करते हैं पर वे वोट डालने की अपनी जिम्मेदारी निभाते नहीं । उनमें से कुछ को आमतौर पर तटस्थ मतदाता की श्रेणी में रखा जा सकता है । वे पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने जैसे उद्देश्यों के लिए फोटो पहचानपत्र बना तो लेते हैं लेकिन वोट नहीं डालते । छद्म मतदान के दौरान ऐसे मतदाताओं को भी लक्षित किया जाना चाहिए और उनसे अपना वोट डालने का अनुरोध किया जाना चाहिए ताकि उन्हें अपने मताधिकार का प्रयोग करने की याद दिलाई जा सके ।

       1948 का संयुक्त राष्ट्र महासभा का मानवाधिकार संबंधी सार्वभौमिक घोषणापत्र ऐसी अभिन्न भूमिका पर बल देता है, जिसमें पारदर्शी और खुले चुनाव लोकतांत्रिक सरकार से मौलिक अधिकार को सुनिश्चित कराते हैं । मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र अनुच्छेद 21 में कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपने देश की सरकार के गठन में भाग लेने का अधिकार है फिर चाहे यह प्रत्यक्ष रूप से हो या स्वतंत्र से चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा हो । स्वतंत्र चुनाव किस तरह राजनैतिक अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करते हैं, उसका भी अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनैतिक अधिकार प्रतिपत्र में जिक्र है ।      

       किसी जागरूकता अभियान का उद्देश्य अल्पसंख्यकों, बेघर लोगों, विकलांगों और उन सब को वोट डालने के अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है, जो किन्ही कारणों से वोट नहीं डाल पाते । इन कारणों में गरीबी, निरक्षरता, डराना, धमकाना या अनुचित चुनाव प्रक्रिया शामिल हैं ।

       भारतीय निर्वाचन आयोग ने शेष विश्व को दिखा दिया है कि कैसे किसी प्रकार के हस्तक्षेप के बिना चुनाव स्वतंत्र रूप से कराये जा सकते हैं । आयोग प्रत्याशियों और प्रत्येक स्तर पर चुनावों पर नजर रखने के लिए सामान्य, व्यय और लघु स्तर पर पर्यवेक्षक करता है ।

       यह बात करीब-करीब सभी जानते हैं कि राजनीतिक दल चुनावों में अपने प्रत्याशियों को जीतने की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए धन बल और बाहु बल का अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं । सड़कों के किनारे, चौराहों, गलियों के नुक्कड़ों पर राजनीतिक नेताओं के बड़े-बड़े कट-आउट लगाने और प्रमुख स्थलों पर होर्डिंग लगाना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिनके जरिये राजनीतिक दल धन बल प्रदर्शित करते हैं। बहुत से मामलों में राजनीतिक दल समाचारपत्रों में बड़े पैमाने पर विज्ञापन भी देते हैं ।

       आयोग ने धन बल और बाहु बल दोनों के इस्तेमाल को खत्म करने के लिए कई कदम उठाये हैं । चुनावों के समय राज्यों को निर्देश दिये जाते हैं कि आदतन अपराधियों को बंद कर दिया जाए और अन्य अपराधियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंटों को अमल में लाया जाए । आयोग ने चुनाव में वोट डालने के लिए मतदाताओं की पहचान अनिवार्य बना दी है ।

       हालांकि फोटो पहचान पत्र काफी हद तक बना दिये गए हैं लेकिन कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़कर इस क्षेत्र में शत-प्रतिशत उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पाई है तथापि चुनावों में सटीकता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने और जाली मतदान रोकने के लिए कई निर्वाचन क्षेत्र में इस समय सचित्र मतदाता सूचियां भी उपलब्ध कराई जाती है । पहचान के अन्य स्रोत जैसे राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट आदि भी प्रयोग में लाये जा सकते हैं । लोगों को यह जानकारी होनी चाहिए कि मतदान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों से होता है । इसलिए मतदान में कोई झंझट नहीं होता । लेकिन यह बात सब लोगों को पता होनी चाहिए । इससे वे लोग भी वोट डालने के लिए आने को तैयार हो जाएंगे जिनके पास फोटो पहचान पत्र नहीं है । जागरूकता अभियान में इस पहलू को भी शामिल किया जाना चाहिए ।

       अन्य मुद्दा जिस पर काफी चर्चा हो रही है वह चुनावों में वोट डालने को अनिवार्य बना देने के बारे में है । कुछ देशों,जैसे आस्ट्रोलिया, वेलजियम और लक्षजमबर्ग में जहां दीघ्रकालिक लोकतंत्र हैं, में चुनावों में मतदान करना अनिवार्य है । लेकिन क्या यह भारत में भी संभव है । इसका उत्तर निश्चित रूप से नहीं में है । हमारे जैसे सामाजिक-आर्थिंक, धार्मिक और बहु-संस्कृति वाले समाज में इस को लागू नहीं किया जा सकता ।

       यदि मतदान अनिवार्य कर दिया जाए तो निस्संदेह बड़ी संख्या में मतदान होगा लेकिन उस सूरत में अवैध वोटों की संख्या बढ जाने की संभावना है । विकल्प के तौर पर मतदाताओं को निर्वाचन के बारे में अपनी राय व्यक्त करने की छूट दी जा सकती है, जिसमें एक राजनीतक संदेश होगा कि खड़े हुए प्रत्याशियों में से किसी के लिए वोट नहीं ताकि यदि वे प्रत्याशियों में से किसी को पसंद नहीं करें तब भी वे अपनी राय व्यक्त कर सकें । इस व्यवस्था को कार्यान्वित करने के लिए इलेक्ट्रानिक मतदान मशीन में एक अतिरिक्त बटन लगाना होगा । अनुपस्थित रहने की बजाए इस सुझाव को लागू करना, निश्चित रूप से अधिक आसान होगा क्योंकि इसमें सार्थ किया है । निर्वाचन आयोग ने पहले ही केन्द्र सरकार के सम्मुख यह मामला उठाया है लेकिन अभी कोई सफलता नहीं मिली है क्योंकि मुख्यधारा के अधिकांश राजनीतिक दल इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है ।

       यदि भारतीय लोकतंत्र इन सब त्रुटियों के बावजूद इन सब वर्षों में बचा रहा है तो इस का मुख्य कारण मतदाताओं में जागरूकता का होना है । इसलिए कोई भी अभियान मतदाताओं के विश्वास को मजबूत करने और उसे किसी चुनाव में प्रत्येक वोट के महत्व के समझने की धारणा पैदा करने का होना चाहिए ।

# लेखक दैनिक हिन्दू के विधि संवाददाता हैं।

 

 

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