रविवार, 24 जनवरी 2010

कहत कबीर सुनो भई साधू.....बात कहूँ मैं खरी____

कहत कबीर सुनो भई साधू.....बात कहूँ मैं खरी

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

 

कबिरा फँसे बाजार में, माँगें खुद की खैर ।
कापीराइट में ले गये सब रचनन के खैर ।।
पढे लिखेन की मंडी में
, कबिरा अपढ गंवार ।
कवियन मूरख नाम धर
, इज्जत रहे उतार ।।
इज्जत रहे उतार
, सुनावें नित नूतन कविता ।
कबिरा रोय पुकार
, कित गयी छंद की सविता ।।
ना दोहा ना चौपाई
, ना रोला ना मुक्तक ।
कहाँ सवैया
, सोरठा ना रची कुंडली अभी तक ।।
बडे बडे कविराय
, मण्डी के मठराज सलाह कबीरा दीनी ।
जाइन मठ कर
, लिख तारीफा जो आपुन हित चीन्ही ।।
वरना रहे फकीरा बन फिरे गरीबा गमछा टांगे फिरिहे ।
नहीं होय उद्धार ना बेडापार जो तारीफ हमारी ना करिहे ।।
पावै लाभ अपार यूनियन गर नूतन कविता की लेवे ।
हैल्मेट बिन बीमा के कोऊ कवि सम्मेलन में ठुकवे ।।
बस करता जा तारीफ
, पल्ले भले ना अधेला समझे ।
तुकबंदी बकवास की ये नूतन कविता समझे ।।
हैलमेट औ बीमा संग ट्रेनिंग कविता की देंगे ।
टैक्नालाजी औ मार्केटिंग संग कवि कबिरा नाम धरेंगे ।।
कहाँ फकीरी और गरीबी में लिये ताँत और बान ।
हुक्का बीडी और तमाखू
, कैसे मिटे थकान ।।
ऊँच सोसाइटी ऊँची संगत ऊँची बडी दुकान ।
कविता बिकती तारीफें बिकतीं बिकता है सम्मान ।।
चढी पसेरी हाट में तुलतीं
, कबिरा की पद बन्ध ।
कबिरा उलट बांसी ऐसी रची प्रस्तुत ये इक बंध ।।
ज्यों की त्यों धर दीनि चदरिया अब बोले संत कबीर ।
प्रिया फकीरी और गरीबी इनसों पैदा भयो कबीर ।।
ना नूतन पाखंड चहूँ
, ना चाहूँ बडी दूकान ।
मंडी तुम्हार चलती रहबे होय फरक पहचान ।।
कबिरा एम.ए. ना करी
, ना बन पाये अन जीनियर ।
पर पी.एच.डी. कर रहे कई कबिरा औ रहीमा पर ।।


.....जारी रहेगा क्रमश:

 

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

 

 

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