शनिवार, 29 सितंबर 2007

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

व्‍यंग्‍य

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

अपनी मध्‍यप्रदेश सरकार पंचायत सरकार

कौन कहे कि मध्‍यप्रदेश में पंचायती राज नहीं है, भले ही पंचायत प्रणाली चाहे त्रिस्‍तरीय हो या पंचम स्‍तरीय बोर्ड परीक्षा वाली भले ही ठप्‍प ठपा ठप ठप्‍प हो गयी है लेकिन पंचायती राज तो मध्‍यप्रदेश में चल रहा ही है, सी.एम. ने जितनी पंचायतें गये साल और चालू साल में निबटाईं हैं उतनी भारत की आजादी से लेकर अब तक नहीं निबटी होंगीं । कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार की पंचायत से लेकर दलित पिछड़ वर्ग तक की पंचायत सी.एम. हाउस में हो चुकी है, कुल जमा कितनी पंचायते बैठ चुकीं और उनके रिजल्‍टस क्‍या आये, भईया अपन को नहीं मालुम लेकिन इत्‍ता जरूर पता है कि खूब सारी हो चुकीं हैं और सरकार में कोई काम आजकल बगैर पंचायत किये हो ही नहीं रहा । ले बेटा अब कैसे कहोगे कि प्रदेश में पंचायती राज नहीं है ।

पहले केवल किसी जमाने में अकेली केबिनेट पंचायत हुआ करती थी अब मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा की पंचायत होती है । गोया मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा सी.एम. के पुराने टायटल हैं सो हर भाषण प्रवचन में इनका नाम आना जरूरी है वरना सी. एम. को लगता ही नहीं कि भाषण हुआ या समाचार छपा । अपना जनसम्‍पर्क संचालनालय सी.एम. पर खासा मेहरबान है कभी कभी सी.एम. जब भाजपा की निजी पार्टी बैठक में भी कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार बोल बैठते हैं तो पार्टी के निजी समाचार भी विभाग से बाकायदा सरकारी नंबर से रिलीज हो जाते हैं । शायद विभाग के सर्च इंजिन में सी.एम. या शिवराज फिट है जो भी कहीं भी बोले निजी या सरकारी, विभाग को रिलीज मारनी ही हैं ।

देखना भईया संचालनालय वालो अंधी भक्ति कबहूं कबहूं बड़ी गहरी चोट देती है सो 'कहीं ऐसा न हो लग जाये दिल में आग पानी से' कहीं सर्च फीड के चक्‍कर में पर्सनल बाथरूमिया रिलीज मत मार देना ।

डकैत पंचायत कब

सी.एम. की पंचायत में डकैतों की पंचायत का नंबर कब आयेगा, इसे लेकर चम्‍बल के डकैत खासे चिन्तित हैं, वे भी चाहते हैं कि कोई नीति बने तो पहले उनसे राय मशविरा हो । कोई तो फिक्‍सड आकलित नीति हो, चम्‍बल के डकैत इस बारे में पहिले क्‍लासिफेकेशन यानि वर्गीकरण चाहते हैं, आखिर जैसे पुलिस में रैंक आलाटमेण्‍ट सिस्‍टम है डकैतों में भी होना चाहिये और सरकार द्वारा घोषित की जाने वाली इनाम इकराम भी डकैतों के रैंक स्‍टेटस के अनुसार ही होना चाहिये इसके अलावा कम से कम छ: माह पहले घोषित इनामो इकराम ही वैध मान्‍य होना चाहिये अभी तो ये हो रहा है कि पहले डकैत पकड़ या मार लिया जाता है और उसके बाद इनाम इकराम बढ़ा बढ़ू कर उसे बाद में पकड़ा या मारा घोषित किया जाता है, अब भई ये तो डकैत पंचायत में ही तय हो सकेगा कि डकैतों के अधिकारों का उल्‍लंघन हो रहा है कि नहीं ।

चम्‍बल में एक और रिवाज है जैसे डकैत कह देते हैं कि मार देंगें, ठोक देंगें, जिन्‍दा नहीं रहने देंगें वगैरह वगैरह अब चम्‍बल की पुलिस भी इसी भाषा में बोलती है कि छोड़ेगे नहीं, आत्‍मसमर्पण नहीं करने देंगें, मार देंगें, ठोक देंगें वगैरह वगैरह गोया खाकी वर्दी किसी को पकड़ कर कानून के हवाले करने के लिये नहीं बल्कि हरेक को ठोक देने, मार देने के लिये पहनाई गई है, और मारने का उन्‍हें जन्‍मसिद्ध अधिकार मिल गया है । अब डकैत वर्दी वाले और बिना वर्दी वाले, जंगल बीहड़ वाले और सरकारी बंगलो वाले इनमें कोई फर्क तो कम से कम होना ही चाहिये अब भई ये फैसला तो डकैत पंचायत में ही हो सकेगा न ।

डकैतों को एक और नीति पर बात करनी है कि पुलिस किसी भी छिछोरे, चोर उचक्‍कों को डकैत कह देती है और इनामो इकराम के लिये ठोक देती है, आखिर यह तो तय होना ही चाहिये न कि डकैती आखिर कहॉं डाली और कितनी डाली, पुलिस तो चार आदमी से ज्‍यादा कहीं से भी पकड़ कर एक समाचार छपवा देती है कि 'डकैती की योजना बनाते पॉंच पकड़े' । अब भई पुलिस की डेफीनेशन में वे भी डकैत हैं चाहे कहीं डकैती नहीं ठोकी हो, और योजना बनाने का क्‍या कोई सबूत कभी होता है ।

डकैत मानव होते हैं कि नहीं, उनके मानव अधिकार होते हैं कि नहीं ये प्‍वाइण्‍ट भी डिस्‍कस होना है, फिलवक्‍त मुरैना की अदालत तो मानव अधिकार को मानती नहीं, जेल में किसी की पिटाई हुयी वह गंभीर रूप से घायल होकर अस्‍पताल में पहुंचा और मर गया या जेल ही मर गया, गोया अदालत को समझ ही नहीं आया कि कौनसा मानव अधिकार उल्‍लंघन हुआ ।

सो भईया शिवराज पंचायतों के इस अदद मौसम में लगे हाथ एक डकैत पंचायत बुलवा डालो, पाप्‍युलर भी हो जाओगे और डकैत चुनाव में काम भी आयेंगे ।                           

 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

व्‍यंग्‍य

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

अपनी मध्‍यप्रदेश सरकार पंचायत सरकार

कौन कहे कि मध्‍यप्रदेश में पंचायती राज नहीं है, भले ही पंचायत प्रणाली चाहे त्रिस्‍तरीय हो या पंचम स्‍तरीय बोर्ड परीक्षा वाली भले ही ठप्‍प ठपा ठप ठप्‍प हो गयी है लेकिन पंचायती राज तो मध्‍यप्रदेश में चल रहा ही है, सी.एम. ने जितनी पंचायतें गये साल और चालू साल में निबटाईं हैं उतनी भारत की आजादी से लेकर अब तक नहीं निबटी होंगीं । कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार की पंचायत से लेकर दलित पिछड़ वर्ग तक की पंचायत सी.एम. हाउस में हो चुकी है, कुल जमा कितनी पंचायते बैठ चुकीं और उनके रिजल्‍टस क्‍या आये, भईया अपन को नहीं मालुम लेकिन इत्‍ता जरूर पता है कि खूब सारी हो चुकीं हैं और सरकार में कोई काम आजकल बगैर पंचायत किये हो ही नहीं रहा । ले बेटा अब कैसे कहोगे कि प्रदेश में पंचायती राज नहीं है ।

पहले केवल किसी जमाने में अकेली केबिनेट पंचायत हुआ करती थी अब मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा की पंचायत होती है । गोया मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा सी.एम. के पुराने टायटल हैं सो हर भाषण प्रवचन में इनका नाम आना जरूरी है वरना सी. एम. को लगता ही नहीं कि भाषण हुआ या समाचार छपा । अपना जनसम्‍पर्क संचालनालय सी.एम. पर खासा मेहरबान है कभी कभी सी.एम. जब भाजपा की निजी पार्टी बैठक में भी कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार बोल बैठते हैं तो पार्टी के निजी समाचार भी विभाग से बाकायदा सरकारी नंबर से रिलीज हो जाते हैं । शायद विभाग के सर्च इंजिन में सी.एम. या शिवराज फिट है जो भी कहीं भी बोले निजी या सरकारी, विभाग को रिलीज मारनी ही हैं ।

देखना भईया संचालनालय वालो अंधी भक्ति कबहूं कबहूं बड़ी गहरी चोट देती है सो 'कहीं ऐसा न हो लग जाये दिल में आग पानी से' कहीं सर्च फीड के चक्‍कर में पर्सनल बाथरूमिया रिलीज मत मार देना ।

डकैत पंचायत कब

सी.एम. की पंचायत में डकैतों की पंचायत का नंबर कब आयेगा, इसे लेकर चम्‍बल के डकैत खासे चिन्तित हैं, वे भी चाहते हैं कि कोई नीति बने तो पहले उनसे राय मशविरा हो । कोई तो फिक्‍सड आकलित नीति हो, चम्‍बल के डकैत इस बारे में पहिले क्‍लासिफेकेशन यानि वर्गीकरण चाहते हैं, आखिर जैसे पुलिस में रैंक आलाटमेण्‍ट सिस्‍टम है डकैतों में भी होना चाहिये और सरकार द्वारा घोषित की जाने वाली इनाम इकराम भी डकैतों के रैंक स्‍टेटस के अनुसार ही होना चाहिये इसके अलावा कम से कम छ: माह पहले घोषित इनामो इकराम ही वैध मान्‍य होना चाहिये अभी तो ये हो रहा है कि पहले डकैत पकड़ या मार लिया जाता है और उसके बाद इनाम इकराम बढ़ा बढ़ू कर उसे बाद में पकड़ा या मारा घोषित किया जाता है, अब भई ये तो डकैत पंचायत में ही तय हो सकेगा कि डकैतों के अधिकारों का उल्‍लंघन हो रहा है कि नहीं ।

चम्‍बल में एक और रिवाज है जैसे डकैत कह देते हैं कि मार देंगें, ठोक देंगें, जिन्‍दा नहीं रहने देंगें वगैरह वगैरह अब चम्‍बल की पुलिस भी इसी भाषा में बोलती है कि छोड़ेगे नहीं, आत्‍मसमर्पण नहीं करने देंगें, मार देंगें, ठोक देंगें वगैरह वगैरह गोया खाकी वर्दी किसी को पकड़ कर कानून के हवाले करने के लिये नहीं बल्कि हरेक को ठोक देने, मार देने के लिये पहनाई गई है, और मारने का उन्‍हें जन्‍मसिद्ध अधिकार मिल गया है । अब डकैत वर्दी वाले और बिना वर्दी वाले, जंगल बीहड़ वाले और सरकारी बंगलो वाले इनमें कोई फर्क तो कम से कम होना ही चाहिये अब भई ये फैसला तो डकैत पंचायत में ही हो सकेगा न ।

डकैतों को एक और नीति पर बात करनी है कि पुलिस किसी भी छिछोरे, चोर उचक्‍कों को डकैत कह देती है और इनामो इकराम के लिये ठोक देती है, आखिर यह तो तय होना ही चाहिये न कि डकैती आखिर कहॉं डाली और कितनी डाली, पुलिस तो चार आदमी से ज्‍यादा कहीं से भी पकड़ कर एक समाचार छपवा देती है कि 'डकैती की योजना बनाते पॉंच पकड़े' । अब भई पुलिस की डेफीनेशन में वे भी डकैत हैं चाहे कहीं डकैती नहीं ठोकी हो, और योजना बनाने का क्‍या कोई सबूत कभी होता है ।

डकैत मानव होते हैं कि नहीं, उनके मानव अधिकार होते हैं कि नहीं ये प्‍वाइण्‍ट भी डिस्‍कस होना है, फिलवक्‍त मुरैना की अदालत तो मानव अधिकार को मानती नहीं, जेल में किसी की पिटाई हुयी वह गंभीर रूप से घायल होकर अस्‍पताल में पहुंचा और मर गया या जेल ही मर गया, गोया अदालत को समझ ही नहीं आया कि कौनसा मानव अधिकार उल्‍लंघन हुआ ।

सो भईया शिवराज पंचायतों के इस अदद मौसम में लगे हाथ एक डकैत पंचायत बुलवा डालो, पाप्‍युलर भी हो जाओगे और डकैत चुनाव में काम भी आयेंगे ।                           

 

सत्ता बड़ी या राम

सत्ता बड़ी या राम

तनवीर जांफरी (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी,शासी परिषद) anveerjafri1@gmail.com tanveerjafri58@gmail.com tanveerjafriamb@gmail.com  22402, नाहन हाऊस अम्बाला शहर। हरियाणा फोन : 0171-2535628  मो: 098962-19228

      भारत में धार्मिक भावनाओं को भड़का कर राजनीति करने में महारत रखने वाले लोग एक बार फिर अपने असली चेहरे के साथ सक्रिय हो उठे हैं। मंजे की बात तो यह है कि इस बार वे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप तो भारत की सत्तारूढ़ केन्द्र सरकार पर लगा रहे हैं जबकि अपने इसी आरोप के तहत जनता की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के ठेकेदार वे स्वयं बन बैठे हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में साझीदार रह चुकी है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि 542 सदस्यों की लोकसभा में 183 सीटें प्राप्त करने का उसका अब तक का सबसे बड़ा कीर्तिमान केवल रामनाम की राजनीति करने की बदौलत ही संभव हो सका है। ज्ञातव्य है कि रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में यह प्रचार किया था कि सत्ता में आने पर वह रामजन्म भूमि मन्दिर का निर्माण कराएंगे। देश के सीधे-सादे रामभक्तों ने इन्हें इसी आस में देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल का दर्जा भी दिला दिया।

             अंफसोस की बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्रीय सत्ता संभालने के बाद अपना भगवा रंग ही बदल डाला और कांग्रेस की राह पर चलते हुए तथाकथित धर्म निरपेक्षता की राजनीति करने लगी। उस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के अन्य सहयोगी दलों ने सरकार बनाने में भारतीय जनता पार्टी का साथ इसी शर्त पर दिया कि वह रामजन्म भूमि, समान आचार संहिता और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने जैसे अपने प्रथम व अग्रणी मुद्दों को त्याग देगी। भाजपा के 'रामभक्तों' ने ऐसा ही किया। उस समय इनके समक्ष दो विकल्प थे। या तो यह राम को चुनते या सत्ता को। इन धर्म के ठेकेदारों ने उस समय सत्ता का स्वाद लेना अधिक ंजरूरी समझा। क्या इन तथाकथित रामभक्तों को उस समय सत्ता को ठोकर मारकर अन्य राजग सहयोगी दलों के समक्ष यह बात पूरी ंजोर-शोर से नहीं रखनी चाहिए थी कि हम रामभक्तों के लिए पहले हमारे वे एजेन्डे हैं जिनके नाम पर हमें सबसे बड़े राजनैतिक दल की हैसियत हासिल हुई है न कि सत्ता। यदि भाजपा उस समय राम मन्दिर के मुद्दे पर सत्ता को ठुकरा देती तो कांफी हद तक यह बात स्वीकार की जा सकती थी कि उनमें राम के प्रति लगाव का वास्तविक जंज्बा है परन्तु मन्दिर निर्माण के बजाए सत्ता से चिपकने में दिलचस्पी दिखाकर इन्होंने यह साबित कर दिया कि इनकी नंजर में सत्ता बड़ी है राम नहीं।

             एक बार फिर राम के नाम पर यही लोग वोट मांगने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार मुद्दा रामजन्म भूमि को नहीं बल्कि रामसेतु को बनाया जा रहा है। भारत-श्रीलंका के बीच बहने वाले समुद्री जल के मध्य ढाई हंजार करोड़ रुपए की लागत से सेतु समुद्रम शिपिंग चैनल परियोजना का निर्माण कार्य किया जाना प्रस्तावित है। 1860 में भारत में कार्यरत ब्रिटिश कमांडर एडी टेलर द्वारा सर्वप्रथम प्रस्तावित की गई इस परियोजना को 135 वर्षों बाद रचनात्मक रूप देने का प्रयास किया जा रहा है। 12 मीटर गहरे और 300 मीटर चौड़े इस समुद्री मार्ग का निर्माण स्वेंज नहर प्राधिकरण द्वारा किया जाना है। यही प्राधिकरण इसे संचालित भी करेगा तथा इसका रख-रखाव भी करेगा।  भारतीय जनता पार्टी इस परियोजना का विरोध कर रही है। भाजपा का यह विरोध इस बात को लेकर है कि चूंकि सेतु समुद्रम परियोजना में उस सेतु को तोड़ा जाना है जिसे कि रामसेतु के नाम से जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुद्र के मध्य पुल के रूप में नंजर आने वाली यह आकृति उसी पुल के अवशेष हैं जिसका निर्माण हनुमान जी की वानर सेना द्वारा भगवान राम की मौजूदगी में श्रीलंका पर विजय पाने हेतु किया गया था। नि:सन्देह ऐसी किसी भी विषय वस्तु पर जहां कि किसी भी धर्म विशेष की भावनाओं के आहत होने की संभावना हो, किसी ंकदम को उठाने से पूर्व उस विषय पर गंभीर चिंतन किया जाना चाहिए। ऐसी पूरी कोशिश होनी चाहिए कि किसी भी धर्म विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत न होने पाएं। परन्तु भारतीय जनता पार्टी जैसे राजनैतिक दल पर तो ंकतई यह बात शोभा नहीं देती कि वह रामसेतु मुद्दे पर आम हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं की संरक्षक, हिमायती अथवा पैरोकार स्वयंभू रूप से बन बैठे।

              आज भाजपा द्वारा रामसेतु मुद्दे पर हिन्दुओं की भावनाओं को भड़काने तथा इस परियोजना का ठीकरा वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार विशेषकर कांग्रेस, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सिर पर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि वह भारतीय जनता पार्टी ऐसे आरोप लगा रही है जिसके अपने शासनकाल में केन्द्र सरकार के 4 मंत्रियों अरुण जेटली, शत्रुघ् सिन्हा, वेद प्रकाश गोयल व एस त्रिवुनवक्कारासू द्वारा सन् 2002 में सेतु समुद्रम परियोजना को प्रारम्भिक दौर में ही पहली मंजूरी दी गई थी। उसके पश्चात जब परियोजना से सम्बद्ध सभी मंत्रालयों से हरी झंडी मिल गई तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2 जुलाई 2005 को इस परियोजना की शुरुआत की गई। यहां भाजपा के विरोध को लेकर एक सवाल और यह उठता है कि उसका यह विरोध 2005 से ही अर्थात् परियोजना पर काम शुरु होने के साथ ही क्यों नहीं शुरु हुआ? आज ही इस विरोध की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है और वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि गत् दिनों भोपाल में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी को यह घोषणा तक करनी पड़ी कि राम के नाम पर भावनाओं से खिलवाड़ भरतीय जनता पार्टी का चुनावी मुद्दा होगा। क्या दो वर्षों की ंखामोशी इस बात का सुबूत नहीं है कि भाजपा चुनावों के नंजदीक आने की प्रतीक्षा कर रही थी? इसलिए उसे पिछले दो वर्षों तक इस मुद्दे को हवा देकर अपनी उर्जा नष्ट करने की ंजरूरत नहीं महसूस हुई। भाजपा द्वारा सेतु समुद्रम परियोजना का अब विरोध किए जाने से सांफ ंजाहिर हो रहा है कि विपक्षी पार्टी के नाते भाजपा इस समय इस परियोजना के काम में न केवल बाधा उत्पन्न करना चाहती है बल्कि इसे अपनी चुनावी रणनीति का एक हिस्सा भी बनाना चाहती है।

              आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी को उर्जा प्रदान करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा दक्षिणपंथी विचारधारा के इनके अन्य कई सहयोगी संगठन इस मुद्दे पर राजनीति करने का प्रयास करेंगे। परियोजना को प्राथमिक मंजूरी देने वाली भाजपा इस परियोजना के नाम पर स्वयं को तो रामभक्त तथा रामसेतु का रखवाला प्रमाणित करने का प्रयास कर रही है जबकि परम्परानुसार सत्तारूढ़ दल विशेषकर कांग्रेस व वामपंथी दलों को भगवान राम का विरोधी बताने की कोशिश में लगी है।

              उपरोक्त परिस्थितियां यह समझ पाने के लिए कांफी हैं कि भाजपा कितनी बड़ी रामभक्त है और कितनी सत्ताभक्त। राम के नाम पर वोट मांगने की ंकवायद भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। हां इतना ंजरूर है कि राम के नाम पर वोट मांगने के बाद राम मन्दिर निर्माण के बजाए सत्ता के पांच वर्ष पूरे कर चुकी भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय मतदाताओं के समक्ष अपनी साख को अवश्य समाप्त कर दिया है। लिहांजा सेतु समुद्रम परियोजना को लेकर भाजपा भारतीय मतदाताओं की भावनाओं को पुन: भड़का पाने में कितनी सफलता प्राप्त कर सकेगी और कितनी असफलता यह तो आने वाला समय ही बता सकेगा। तनवीर जांफरी

वैज्ञानिक प्रमाण का मोहताज नहीं है राम का अस्तित्व

वैज्ञानिक प्रमाण का मोहताज नहीं है राम का अस्तित्व

163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-98962-93341 nirmalrani@gmail.com nirmalrani2000@yahoo.co.in

तमिलनाडू के मुख्यमंत्री तथा डी एम के प्रमुख एम करुणानिधि ने पिछले दिनों राम के अस्तित्व को चुनौती देकर देश की राजनीति में कोहराम बरपा कर दिया है। अभी इस विषय पर बहस व मंथन चल ही रहा है कि रामसेतु को खंडित कर सेतु समुद्रम परियोजना पूरी की जानी चाहिए अथवा नहीं, इस परियोजना को लागू किए जाने का ंजिम्मेदार कौन है और कौन नहीं तथा इस परियोजना के लागू करने में किसी ऐसे नए मार्ग का चुनाव किया जा सकता है जोकि रामसेतु को खंडित किए बिना सेतु समुद्रम परियोजना को पूरा करने में सहायक सिद्ध हो सके। कि इसी बीच आम भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला राम के अस्तित्व संबंधी बयान देकर बुंजुर्ग द्रविड़ नेता करुणानिधि ने गोया ठहरे हुए पानी में पत्थर मारने जैसा काम कर दिखाया है। यदि करुणानिधि अपने सबसे पहले दिए गए इस बयान पर भी ंखामोश रह जाते कि रामसेतु के मानव निर्मित होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यदि वे अपने इस बयान को वापस ले लेते अथवा इससे आगे बढ़ते हुए जलती हुई आग में घी डालने जैसा काम न करते तो भी कांफी हद तक मामला सुलझ सकता था। परन्तु करुणानिधि ने न केवल उक्त बयान दिया बल्कि इसके बाद उन्होंने भगवान राम के अस्तित्व में आने को भी यह कहकर चुनौती दे डाली कि भगवान राम के होने के कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। करुणानिधि के इस बयान ने भारतीय रामभक्तों की भावनाओं को तो ठेस पहुंचाई ही है, साथ-साथ उन्होंने भगवान राम को रजनीति का मोहरा बनाने वालों को भी इसी बहाने अपना नाम चमकाने का अवसर प्रदान कर दिया है।

             जिस प्रकार मुस्लिम समुदाय की ओर से कई बार ऐसे ंफतवे सुनाई देते थे कि ईश निंदा किए जाने के कारण अथवा हंजरत मोहम्मद का अपमान किए जाने के कारण जो भी अमुक व्यक्ति का सिर क़लम करेगा, उसे भारी भरकम पुरस्कार से नवांजा जाएगा। ठीक उसी प्रकार पहली बार हिन्दू समाज की ओर से एक राजनैतिक संत द्वारा करुणानिधि का सिर कलम करने वाले व्यक्ति को सोने से तोले जाने का ंफतवा जारी किया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि करुणानिधि ने भगवान राम के अस्तित्व को चुनौती देकर अति निंदनीय कार्य किया है। उनके इस वक्तव्य के चलते कई प्रमुख लोगों द्वारा उन्हें दक्षिण भारत में रहने वाला रावण का वंशज तक कहकर सम्बोधित किया जा रहा है। यह सब कुछ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किया जा रहा है। जैसा कि वामपंथी नेता प्रकाश करात का मानना है कि 'इस देश में कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी धार्मिक आस्थाएं हैं। वहीं कुछ लोग हमारी तरह भी हैं, अर्थात् जो धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है। ऐसे लोगों को अपनी राय प्रकट करने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।' निश्चित रूप से करात का यह कथन भी बिल्कुल सही प्रतीत होता है। परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विषय को यदि हम इस कथन के साथ तोलें तो मामला सांफ हो जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी एक उदाहरण के अनुसार किसी भी व्यक्ति को हवा में अपनी छड़ी घुमाने की इजांजत तो ंजरूर है परन्तु उसी सीमा के भीतर जहां से कि उसकी अपनी हद समाप्त होती है तथा दूसरे की हद शुरु होती है। इस कथन से यह बात सांफ हो जाती है कि किसी व्यक्ति को अपने विचार रखने का अधिकार तो है परन्तु किसी के दिल दुखाने का या किसी की आस्था या विश्वास को ठेस पहुंचाने का अधिकार हरगिंज नहीं है।

             भगवान राम के अस्तित्व की बात लाखों वर्ष पुरानी है। हंजारों वर्षों से शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रन्थों के माध्यम से राम कथा के बारे में न केवल भारतवर्ष बल्कि पूरे विश्व में चर्चा होती  रही है। दीपावली, दशहरा व राम नवमी जैसे भारत में मनाए जाने वाले कई त्यौहार भगवान राम के अस्तित्व से जुड़े हैं तथा हंजारों वर्षों से भारत में मनाए जा रहे हैं। वैसे तो हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं का ंजिक्र किया गया है परन्तु इन सभी में भगवान राम को ही मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यदि राम का अस्तित्व नहीं था तो सहस्त्राब्दियों से भगवान राम संबंधी उल्लेख शास्त्रों में क्योंकर दर्ज हैं? हिन्दू समाज आंखिर क्योंकर दीपावली व दशहरा जैसे त्यौहार मनाकर राम की पूजा व अराधना करता चला आ रहा है।

              रहा प्रश्‍न वैज्ञानिक प्रमाण होने या न होने का तो करुणानिधि जी तो लाखों वर्ष प्राचीन उस घटना के प्रमाण पूछ रहे हैं जोकि सीधे तौर पर भारतवासियों विशेषकर हिन्दू समाज की भावनाओं तथा विश्वास से जुड़ चुकी है। देश की सबसे बड़ी तीर्थनगरी अयोध्या आज भी राम के नाम से ही जोड़कर देखी जाती है। यदि यह प्रमाण भी करुणानिधि को अपर्याप्त महसूस होते हों तो भी उन्हें विचलित होने की अधिक आवश्यकता इसलिए नहीं होनी चाहिए कि आज के वैज्ञानिक एवं आधुनिक दौर में तमाम ऐसी घटनाएं घटित होती हैं जिनके कि कोई प्रमाण नहीं होते। इसका अर्थ यह तो ंकतई नहीं हुआ कि अमुक घटना घटी ही नहीं। उदाहरण के तौर पर आज भी अनेक लोगों की हत्याएं होती हैं। मामले पुलिस और अदालत तक जाते हैं। मुंकद्दमा भी चलता है तथा सभी आरोपी बरी भी हो जाते हैं। अर्थात् आज की अति आधुनिक समझी जाने वाली प्रशासनिक व न्यायिक व्यवस्था इस बात को प्रमाणित करने में असहाय नंजर आती है कि अमुक व्यक्ति की हत्या किसने की। तो क्या इससे यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि जब कोई हत्यारा प्रमाणित ही नहीं हो सका तो गोया अमुक व्यक्ति की हत्या ही नहीं हुई। तात्पर्य यह है कि आधुनिकता का दम भरने वाले इस दौर में आज भी जब हम ऐसी तमाम बातों को प्रमाणित नहीं कर सकते तो ऐसे में लाखों वर्ष पुरानी घटना के विषय में प्रमाण की तलाश करना वैज्ञानिक सोच तो नहीं हास्यास्पद एवं नकारात्मक सोच का लक्षण अवश्य कहा जा सकता है।

              करुणानिधि के बयान को सीधे-सीधे केवल राम के अस्तित्व के प्रश् तक ही सीमित रखकर नहीं सोचना चाहिए। उनके इस बयान के पीछे दक्षिण भारत व उत्तर भारत के बीच की वह पारंपरिक नकारात्मक सोच भी परिलक्षित होती है जो अन्य कई स्वरों के रूप में भी विभिन्न दक्षिण भारतीय नेताओं के मुंह से कभी-कभार सुनाई देती है। परन्तु हमें उन विवादों में जाने से कोई लाभ नहीं। मोटे तौर पर हमें यही समझना होगा कि हमारी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा का सबसे अधिक विरोध सदैव इन्हीं द्रविड़ व तमिल भाषी क्षेत्रों में किया जाता रहा है। ऐसा भी सुना जाता है कि दक्षिण भारत के इन्हीं राज्यों में कहीं-कहीं रावण की भी पूजा की जाती है। इस क्षेत्र के कुछ इतिहासकार यह भी लिखते हैं कि भगवान राम द्वारा स्रूपनखा की नाक काटने की घटना उत्तर भारत के उच्च जाति के एक राजा द्वारा दक्षिण की एक महिला का किया गया अपमान मात्र था।

              बहरहाल इस विशाल धर्म निरपेक्ष भारत में जबकि हम सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों को साथ लेकर चलने का दम भरते हैं तथा दुनिया को यह बताते हुए हम नहीं थकते कि अनेकता में एकता की जो मिसाल हमारे देश में देखी जा सकती है वह और कहीं नहीं मिलती। ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अस्तित्व को लेकर हिन्दू धर्म के भीतर छिड़ा आपसी घमासान ही धर्म निरपेक्षता के सभी दावों को मुंह चिढ़ाता है। अत: बेशक करुणानिधि या किसी भी धर्म एवं सम्प्रदाय का कोई अन्य व्यक्ति किसी समुदाय के ईष्ट के प्रति अपनी आस्था रखे या न रखे नि:सन्देह यह उसका अत्यन्त निजी मामला है व उसका अपना अधिकार भी, परन्तु किसी समुदाय के ईष्ट के अस्तित्व को ही चुनौती दे डालने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए। बेहतर होगा कि करुणानिधि भारतीय समाज से अपने विवादित वक्तव्य के लिए क्षमा मांग कर इस मामले पर यहीं विराम लगा दें।

 

गुरुवार, 27 सितंबर 2007

राजनीति का शिवपुरी अखाड़ा बनाम ए न्‍यू लेसन फार बिगनर्स

राजनीति का शिवपुरी अखाड़ा बनाम ए न्‍यू लेसन फार बिगनर्स

ऐलानिया मैदाने जंग प्रधानमंत्री ग्राम सड़क किसके बाप की

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

राजनीति जो करवा दे सो सब फेयर है, कहावत है कि 'एवरीथिंग इज फेयर इन लव एण्‍ड पॉलिटिक्‍स' शिवपुरी में विगत दो दिनों से चल रही मैदानी रस्‍साकशी ने अब जंग का रूप धारण कर लिया है और कल तक पोहरी विधायक हरिवल्‍लभ शुक्‍ला के खिलाफ दर्ज मामलों की टक्‍कर में गुना शिवपुरी सांसद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के खिलाफ भी मामला दर्ज कर दिया गया है । आरोप है कि सिंधिया ने मंच से शुक्‍ला को जान से मारने की धमकी दी और हवाई फायर किये वगैरह वगैरह, शुक्‍ला ने सिंधिया पर कल बकौल दैनिक भास्‍कर लूट का आरोप भी लगाया था ।

उललेखनीय है कि सिंधिया यानि ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया कोई मामूली शख्सियत नहीं है, और हाल ही में कॉंग्रेस की राष्‍ट्रीय कार्यसमिति में भी सिंधिया को जिम्‍मेवारी और वजनदारी दी गयी है, और सबसे बड़ी बात है कि वे ग्‍वालियर रियासत के आधुनिक परिभाषा के मुतल्लिक पूर्व युवराज या महाराजा हैं और ग्‍वालियर चम्‍बल संभाग वासीयों की नजर में आज भी महाराजा हैं । ऊपर से सांसद वर्तमान तो है हीं, सिंधिया की बुआ राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री और दूसरी बुआ भाजपा सांसद हैं, नेपाल नरेश के यहॉं ननसार और कांग्रेस के प्रमुख नेता डॉं. कर्ण सिंह प्रमुख रिश्‍तेदार हैं ।

सिंधिया के पिता स्‍व. माधवराव सिंधिया पर भी पूर्व में अपने ही घर में डकैती डालने का मामला दर्ज किया गया था ।

शिवपुरी में घटे इस राजनीतिक घटनाक्रम का सिंहावलोकन अगर किया जाये तो चन्‍द हास्‍यास्‍पद तथ्‍यों के अलावा जो महत्‍वपूर्ण बात उभर कर सामने आती है कि देश में राजनीति अपने घटिया और निम्‍नतम स्‍तर तक आकर देश के कानून के खोखलेपन और हास्‍यास्‍पद होने की कहानी खुद बयॉं करती है ।

अव्‍वल तो यह कि सिंधिया परिवार एक राजपरिवार है, यह दीगर बात है कि लोकतंत्र को आत्‍मसात कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया तले यह परिवार चुनाव आदि लड़ कर ही राजनीतिक अस्तित्‍व को बनाये सहेजे है । वैसे इस परिवार से कोई चुनाव न भी लड़े तो अनुमानत: उनके वर्चस्‍व में कोई कमी नहीं हो जाने वाली, यह अलग बात है कि राजनीतिक परेशानीयां काफी बढ़ जायेंगीं । वैसे ताजा दर्ज मामले को देखें तो यह विशुद्ध राजनीतिक मामला ही है ।

ज्‍योतिरादित्‍य के पिता स्‍व. माधवराव पर भी ऐसे राजनीतिक मामले दर्ज हुये जिसमें हवाला काण्‍ड तक में सिंधिया को घसीट लिया गया था । और बाद में मामला टॉंय टॉंय फिस्‍स हो गया ।

मजे की बात यह है कि देश में भले ही विधि का शासन हो, कई बातें ऐसी हैं जहॉं आज भी विधि असफल शासन का दम्‍भ भरती है, मसलन जितने भी देश में पुराने राजा महाराजा और जागीरदार व जमीन्‍दार ठिकाने हैं इनका वजूद, अस्तित्‍व, प्रभाव, रूतबा एवं वर्चस्‍व लोगों के दिलों में माकूल कायम है, जिसे खत्‍म नहीं किया जा सका और न खत्‍म किया जा सकता है, लोग श्रद्धा और श्रेष्‍ठता से अभिभूत और नवनत होकर आज भी इनके वर्चस्‍व के प्रभाव में हैं । यह कटु सत्‍य है ।

ऐसी अवस्‍था में सिंधिया किसी को धमकी दें, या हवाई फायर करें या किसी को लूटें यह बातें कुछ हास्‍यास्‍पद सी ही हैं । क्‍योंकि सिंधिया पर इतना पैसा है कि, भारत की स्‍वतंत्रता पश्‍चात रियासतों के भारत में विलय वक्‍त सबसे अधिक धन सिंधिया राजघराने ने ही 54 करोड़ रूपये उस वक्‍त भारत सरकार को दिया था ।

सिंधिया की हुक्‍मफरमानी यह है कि उन्‍हें न हवाई फायर की जरूरत है न धमकियाने की, उनके ऊपर ऑंच आने या उनका इशारा मात्र से अंचल में तबाही का मंजर नजर आ सकता है, स्‍व. माधवराव सिंधिया के काल में ठाकुरों यानि राजपूतों ने सिंधिया से दूरी बनाये रखी थी लेकिन ज्‍योतिरादित्‍य के साथ तो ठाकुर भी हैं और राजपूतों को अहमियत देकर काफी बलवान भी हो गये हैं, ऐसे में क्‍या हो सकता है किसी से छिपा नहीं है ।

सिंधिया ने जेल जाने को सौभाग्‍य माना है और जेल जाने को उद्यत वक्‍तव्‍य देकर सरकारी मुसीबत में इजाफा कर दिया है, कौन उन्‍हें अरेस्‍ट करेगा और करेगा तो कम से कम ग्‍वालियर चम्‍बल में तो ऊधम तय ही है । यदि सिंधिया अरेस्‍ट होने के लिये जानबूझ कर आमंत्रण दे रहे हैं तो इसमें सिंधिया की मंशा साफ है ' कि बहुत हुआ चलो एक बार शक्ति प्रदर्शन हो ही जाये'

हरिबल्‍लभ शुक्‍ला जो कि सिंधिया के विरूद्ध उठ खड़े हुये हैं, आखिर किस दम पर इतनी तगड़ी तोप उठा बैठे हैं यह समझ से परे है, क्‍योंकि उनकी खुद की राजनीतिक पार्टी भाजपा भी चन्‍द कदम साथ रह कर उनका साथ आखिर छोड़ ही देगी और फिर मुकाबला केवल आमने सामने का ही रह जायेगा । इस युद्ध में किसके हाथ क्‍या रहेगा यह सबको पता है । हालॉंकि सिंधिया को लोकतंत्र और कानून के सामने समानता और भीतर घातीयों से मिल कर ही उन्‍हें उलझाया मात्र जा सकता है, लेकिन सिंधिया को तो उल्‍टे इससे बल ही मिलेगा और प्रभाववृद्धि ही होनी है यह किससे छिपा है ।

अब जबकि अगले साल म.प्र. में चुनाव होने हैं, और ताजा परिदृश्‍य के मुताबिक कॉंग्रेस सत्‍ता में प्रवेश की दहलीज पर खड़ी है, इससे (ऐसी घटनाओं से) कॉंग्रेस को तो बेशुमार ताकत हासिल होगी । और यह भी किसी से छिपा नहीं कि अगली सरकार के गठन में सिंधिया बहुत बड़ी भूमिका निभा कर बहुत शक्तिशाली होकर उभरेंगें ।

जहॉं अजय सिंह राहुल को म.प्र. का अगला मुख्‍यमंत्री बनाया जाना या प्रोजेक्‍ट किया जाना तय है वहीं अजय सिंह राहुल और सिंधिया की जुगल जोड़ी पूरे मध्‍यप्रदेश में राजनीति का एक नया अध्‍याय लिखेगी यह भी किसी से नहीं छिपा । जहॉं सिंधिया का लगभग आधा मंत्रिमण्‍डल होगा वहीं खुद सिंधिया भी केन्‍द्र में मंत्रालय तक पहुँचेंगे इसमें भी शक नहीं ।

ऐसी अवस्‍थाओं में यह ऊल जलूल हरकत कर स्‍थानीय नेता आखिर किस मकसद से ऐसा कर रहे हैं यह समझ से परे बात है, जहॉं भाजपा के मुख्‍यमंत्री दनादन लागों के नजदीक पहुँचने और जनता को रेवडि़यॉं बॉट बॉंट कर भाजपा को सत्‍ता में दोबारा लाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं और अभी उनके पास वक्‍त भी है संभवत: ला भी सकते हैं । लेकिन भाजपा के नेता कार्यकर्ता ऐसी हरकतें कर भाजपा की जड़ों को मठठा ही पिला रहे हैं ।

भईया भाजपा वालो एक बात बताओ यार आखिर कब तक अपनी बोतल में दूसरे की शराब भरते रहोगे । आखिर सबको पता है कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना केन्‍द्र सरकार की योजना है और इसमें बनने वाली सड़कें केन्‍द्र सरकार के पैसे बनती हैं, और मजे की बात यह है कि इसके शिलान्‍यासों, पूजनों और लोकार्पणों में केन्‍द्र सरकार का नाम कहीं नहीं आता, अगर हालात देखें तो हर जगह यही खुदा मिलता है कि इस फिल्‍म के प्रोडयूसर, डायरेक्‍टर, फायनेन्‍सर, एक्‍टर, सिंगर म.प्र. के अलां फलां हैं, और केवल सड़क ही क्‍यों केन्‍द्र सरकार की हर योजना के हर निर्माण की यही हालत है, पैसा केन्‍द्र का और केन्‍द्र लापता । आखिर अपने लेबल चिपका कर विकास दिखाना कम से कम मेरे गले तो नहीं उतरी ।

मैंने आपकी विकास शिविरों में बंटी सामग्री का गहन अध्‍ययन किया, उसमें सरासर झूठ और खोखलेपन के सिवा कुछ नहीं, आखिर आप किससे झूठ बोल रहे हैं, अपनी पार्टी से या अपने नेताओं से, इससे तो जनता उल्‍टा आपका उपहास ही उड़ा रही है, जिसने भी इन किताबों और पेम्‍पलेटस को पढ़ा वही ठठा कर हँस पड़ा । मैं आपको मुरैना का एक जोरदार किस्‍सा बताता हूँ, एक कहावत है कि आजकल मुरैना में पॉंच महाभ्रष्‍ट अधिकारी हैं, कुछ समय पहले नौ थे, पहले एक चटका, फिर राम राम कह कर दूसरा, फिर बड़ी मुश्किलों से तीसरा विकेट चटका और रामभरोसे चौथा भी निबटा, अब पॉंच बचे हैं जो थोड़ा कर्रे पड़ रहे हैं, ऊपर वाले की मेहरबानी के चलते इनका भी तिया पॉंचा हो ही जायेगा, और अगर नहीं हुआ तो अगर सरकार बदली तो कुनबा का कुनबा ही सूपड़ा साफ होगा और साले जेल जायेंगें । भईया भाजपा सरकार ये मेरे शब्‍द या वाक्‍य नहीं बल्कि आम जनता के हैं । आप समझ सकते हैं कि पानी सिर के ऊपर है या नीचे । खैर ये आपकी सरकार है, आपको जनता ने चुना है, अपने हिसाब से चलाईये फिर सो नौ कर दीजिये, क्‍या फर्क पड़ता है, हॉं उनमें से एक भ्रष्‍ट का फोटो हमने वेबसाइट पर चला दिया था वह भी उनके विदाई समारोह का, वह चिपकू जैसे सीट से चिपका था हमारी वेबसाइट पर ही चिपक गया था और पठठा पॉंच छह दिन तक हटा ही नहीं, हमने ढेर सारे यानि लगभग 15-20 फोटो अपडेट कर डाले लेकिन वह फोटो हमारे वेबसाइट से फिर भी नहीं हटा, लोगों ने ठहाका मारा और बोले चिपकू यहॉं भी चिपक गया और उस चिपकू को हटाने के लिये पूरी वेबसाइट के रिसोर्स कोड ही बदलने पड़े ।

खैर केन्‍द्र की योजनाओं पर अपना विकास प्रदर्शन न केवल शर्मनाक ही है चाहे वो कोई भी सरकार क्‍यों न करे, कॉंग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार के वक्‍त केन्‍द्र राज्‍य को कोई मदद भी नहीं करता था और उल्‍टे हाथ खींच खींच कर तंग करता था, आप कम से कम इस मामले में भाग्‍यवान हैं जो केन्‍द्र सरकार आपको सौतेली नजर से नहीं देखती और जरा ज्‍यादा ही इमदाद दे रही है । इन योजनाओं निर्माणों और शिलान्‍यास पर अपने पत्‍थर गाड़ने से या लेबल चिपकाने से कुछ नहीं होना जाना, जनता पढ़ी लिखी है, बाबू ये पब्लिक है, सब जानती है ।

बुधवार, 26 सितंबर 2007

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी-आयुष शिक्षा का विकास

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी-आयुष शिक्षा का विकास

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी, जिसे आजकल आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिध्द और होम्योपैथी का परिवर्णी शब्द) चिकित्सा पध्दतियां कहा जाता है, के अंतर्गत भारत में उत्पन्न और विदेश में उत्पन्न, दोनों ही तरह की वे चिकित्सा पध्दतियां शामिल हैं, जिन्हें कालांतर में आधिकारिक मान्यता प्राप्त हुई। भारत में प्रारंभ हुई प्रणालियों में आयुर्वेद, सिध्द, योग और प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हैं। होम्योपैथी का सूत्रपात जर्मनी में हुआ, और यह 18वीं सदी के प्रारंभ में भारत में आयी। यूनानी चिकित्सा पध्दति मूल रूप से ग्रीस में प्रारंभ हुई और अरब देशों में विकसित हुई। यह 9वीं सदी के आसपास उस समय भारत आयी, जब चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय और फारसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ। कालांतर में यूनानी पध्दति भारतीय पध्दति में समाहित हो गयी, और आज यह किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक लोकप्रिय है।

नीति समर्थन

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी को नीतिगत समर्थन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही मिल रहा है। तत्संबंधी नीति के लक्ष्यों में आयुष के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का विस्तार, तत्संबंधी सुविधाओं को मुख्य धारा में लाना, गुणवत्ता नियंत्रण और शिक्षा एवं औषधियों का मानकीकरण, उभरती हुई स्वास्थ्य जरूरतों से संबध्द अनुसंधान एवं विकास और आयुष प्रणालियों की सक्षमता और संभावनाओं के प्रति जागरूकता पैदा करना शामिल है। इस नीति का लक्ष्य आयुष प्रणालियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल विरतण व्यवस्था के साथ एकीकृत करना भी है।

       आयुष के प्रोत्साहन और विकास के लिए आयुष विभाग द्वारा संभावना वाले निम्नांकित क्षेत्रों की पहचान की गयी है :

; शिक्षा के स्तर में सुधार और उन्नयन;

; गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण;

; कच्चे माल की निरंतर उपलब्धता;

; प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता के बारे में अनुसंधान एवं विकास;

; राष्ट्रीय स्वास्थ्य, देखभाल, वितरण प्रणाली में अयूश को मुख्य धारा में लाना और

; जागरूकता एवं सूचना।

1995 में आयुष यानी भारतीय चिकित्सा पध्दति एवं होम्योपैथी नाम के अलग विभाग की स्थापना के बाद से आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी एवं सिध्द प्रणालियों सहित देशी चिकित्सा प्रणाली के संवर्ध्दन एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं। नौंवी पंचवर्षीय योजना की प्रारंभिक अवधि का इस्तेमाल अंतरालों की पहचान करने, उन अंतरालों को दूर करने के लिए कार्यनीति विकसित करने, उपयुक्त स्टाफ की नियुक्ति#भर्ती आदि के लिए किया गया। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, गुणवत्ता पूर्ण औषधियों के विकास, अनुसंधान प्रोत्साहन और प्रणालियों को मुख्य धारा में लाने के प्रयासों और विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन की शुरूआत का संकेत इस बात से मिलता है कि दसवीं पंचवर्षीय योजना, विशेषकर 2004-05 की अवधि से आयुष योजना कार्यक्रमों के अंतर्गत परिव्यय में भारी वृध्दि की गयी। योजना परिव्यय 2002-03 में 89.78 करोड़ रुपये था, जिसे 2005-06 में 290.96 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2006-07 में यह खर्च बढ़कर 320 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इन प्रयासों को आगे जारी रखते हुए भारतीय चिकित्सा पध्दतियों एवं होम्योपैथी के बारे में 2002 में राष्ट्रीय नीति तय की गयी। इसमें यह प्रावधान किया गया कि भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी के संवर्ध्दन एवं विकास के लिए योजना कार्यक्रमों के वास्ते धन आवंटन में बढ़ोतरी की जाए। तदनुरूप, आयुष विभाग के लिए योजना परिव्यय की हिस्सेदारी (10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कुल स्वास्थ्य परिव्यय के 2.5 प्रतिशत से) बढ़ाकर स्वास्थ्य संबंधी कुल योजना बजट का 10 प्रतिशत की गयी। इसी तरह कुल स्वास्थ्य परिव्यय में भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी से संबंधित योजना कार्यक्रमों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अतिरिक्त#नई योजनाएं प्रस्तावित की गयी हैं, ताकि गैर सरकारी#निजी क्षेत्र में मान्यता प्राप्त आयुष उत्कृष्टता केन्द्रों का विकास किया जा सके, आयुष औद्योगिक समूहों के लिए सामान्य सुविधाएं प्रदान की जा सकें, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मजबूत किया जा सके और अस्पतालों में विशेषज्ञता क्लिनिकों की स्थापना के लिए सरकारी-निजी भागीदारी प्रोत्साहित की जा सके। साथ ही दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कार्यान्वयन के जरिए प्राप्त अनुभवों के संदर्भ में मौजूदा केंद्र प्रायोजित योजनाओं में संशोधन करने पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि उन्हें अधिक संकेन्द्रित और कारगर ढंग से अमल में लाया जा सके। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कच्चे माल की जरूरत पूरी करने के लिए औषधीय पौधों के संरक्षण और खेती की योजनाओं पर 11वीं पंचवर्षीय योजना के प्रस्तावों में पर्याप्त ध्यान दिया गया है, ताकि उनकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए तत्संबंधी आवंटन दसवीं पंचवर्षीय योजना के 134.21 करोड़ रुपये के आवंटन की तलना में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1000 करोड़ रुपये से अधिक आवंटन किया गया है। इन उपायों#परिवर्तनों को देखते हुए विभाग की योजनाओं के परिव्यय में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारी बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव है। लाभार्थियों को केन्द्रीय सहायता के हस्तांतरण में होने वाले विलंम्ब में कमी लाने के लिए आयुष विभाग की केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत धन का आवंटन वर्ष 2007-08 से राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समितियों के जरिए प्रारंभ किया गया है।

      तेजी से बदलते माहौल में विभाग ने अपने को एक गतिशील और लचीले संगठन के रूप में विकसित करने की आवश्यकता महसूस की है। इसके लिए प्राथमिकता क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के नीतिगत उपाय किए जा रहे हैं। इनमें शैक्षिक मानकों का उन्नयन, गुणवत्ता नियंत्रण और औषधियों का मानकीकरण, कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार, समयबध्द अनुसंधान और प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा भारत से बाहर आयुष का प्रचार करना, जैसे उपाय शामिल हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली में आयुष को शामिल करने पर भी बल दिया जा रहा है।

      विभाग शिक्षा का स्तर बनाये रखने को वरीयता देता है। विभिन्न प्रणालियों की शिक्षण और क्लिनिकल पध्दतियां कायम करने के लिए मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को सुदृढ़ बनाने के प्रयास किए गए हैं। विभाग इस बात पर भी जोर दे रहा है कि कुकुरमुत्तो की तरह बढ़ रहे घटिया कालेजों की संख्या पर रोक लगायी जाये और यह लक्ष्य हासिल करने के लिए नियामक परिषदों एवं राज्य सरकारों का सक्रिय सहयोग लिया जाए। नियामक अधिनियमों में संशोधन किया गया है, ताकि नए कालेजों की स्थापना की अनुमति प्रदान करने, प्रवेश क्षमता में वृध्दि और अध्ययन के नए तथा उच्चतर पाठयक्रमों में बढ़ोतरी करने के अधिकार केंद्र सरकार को सौंपे जा सकेें।

केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद

      केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद एक सांविधिक निकाय है, जिसका गठन केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1970 के अंतर्गत किया गया है। इस केंद्रीय परिषद के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं :

त्) भारतीय चिकित्सा पध्दतियों यानी आयुर्वेद,सिध्द और यूनानी तिब्ब. में न्यूनतम शैक्षिक मानक निर्धारित करना।

त्त्) आईएमसीसी अधिनियम, 1970 की दूसरी अनुसूची में वर्णित चिकित्सा योग्यताओं को मान्यता प्रदान करने तथा मान्यता समाप्त करने संबंधी मामलों में सरकार को परामर्श देना।

त्त्त्) भारतीय चिकित्सा के बारे में केन्द्रीय रजिस्टर बनाना और उसे समय समय पर संशोधित करना।

त्ध्) चिकित्सकों द्वारा अपनाए जाने के लिए व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और आचार संहिता के मानक निर्धारित करना।

ध्त्) केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद आयुर्वेद, सिध्द और यूनानी में शिक्षा के एक समान मानदंड बनाए रखने और इन प्रणालियों में प्रैक्टिस को नियमित करने के प्रति जिम्मेदार है। इन प्रणालियों में स्नातक और स्नातकोत्तार शिक्षा के लिए समान पाठयक्रम और अध्ययन सामग्री पहले ही तय की जा चुकी है।

आयुर्वेद में शिक्षण और प्रशिक्षण में सुधार के पिछले 50 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में 22 विशेषज्ञता क्षेत्रों का विकास किया जा चुका है।

इसी प्रकार यूनानी चिकित्सा पध्दति (यूएसएम) में सुधार के पिछले 50 वर्षों के दौरान आठ स्नातकोत्तर विभागों की स्थापना की जा चुकी है। केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लेकर विभिन्न प्रकार के नियम भी बनाए गए हैं। जरूरत के मुताबिक समय समय पर इन नियमों में संशोधन भी किया गया है। परिषद ने व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और भारतीय पध्दतियों की प्रैक्टिस के लिए आचार संहिता भी निर्धारित की है। परिषद ने विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली चिकित्सा योग्यताओं को आईएमसीसी अधिनियम, 1970 की दूसरी अनुसूची में शामिल करने के मुद्दे पर विचार किया है और अपनी उपयुक्त सिफारिशें केंद्र सरकार को भेजी हैं।

भारतीय चिकित्सा पध्दतियों का केन्द्रीय रजिस्टर तैयार करना और उसका रखरखाव केन्द्रीय परिषद के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। आईएमसीसी अधिनियम, 1970 के प्रावधान के अनुसार केन्द्रीय परिषद भारतीय चिकित्सा पध्दतियों के केन्द्रीय रजिस्टर का रखरखाव करती है।

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद का गठन केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के अंतगर्त किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य देश में होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा का नियमन, होम्योपैथी के केन्द्रीय रजिस्टर का रखरखाव और तत्संबंधी अन्य कार्य तथा होम्योपैथी के चिकित्सकों के व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और आचार संहिता के मानकीकरण की व्यवस्था करना है। केन्द्रीय परिषद ने होम्योपैथी में शिक्षा के न्यूनतम मानक निर्धारित किए हैं, जिनके आधार पर भारत में विश्वविद्यालय, संस्थान या बोर्ड मान्यताप्राप्त चिकित्सा योग्यता प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं।

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान की स्थापना 7 फरवरी 1976 को भारत सरकार द्वारा जयपुर में की गई थी। यह देश में आयुर्वेद का शीर्ष संस्थान है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति के सभी पहलुओं में शिक्षण, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान गतिविधियों में संलग्न है और साथ ही आयुर्वेद में पीएच.डी करने वाले बाहरी शोधार्थियों का मार्ग-दर्शन भी करता है।

राष्ट्रीय सिध्द संस्थान

राष्ट्रीय सिध्द संस्थान, चेन्नई आयुष विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन है। संस्थान का उद्देश्य सिध्द प्रणाली के विद्यार्थियों के लिए चिकित्सा देखभाल प्रदान करना, इसके विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान का संचालन करना, और इस पध्दति का विकास, संवर्ध्दन एवं प्रचार करना है।

      संस्थान ने छह विशेषज्ञता क्षेत्रों में स्नातकोत्तार पाठयक्रम प्रारंभ किया है। प्रत्येक विशेषज्ञता क्षेत्र में पांच विद्याथियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था है।

राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान

राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान, कोलकाता, की स्थापना दिसम्बर 1975 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन के रूप में की गई। यह देश में होम्योपैथी का एक आदर्श संस्थान है।

      संस्थान के मुख्य उद्देश्यों में होम्योपैथी में बढ़ोतरी एवं विकास को प्रोत्साहित करना; स्नातक एवं स्नातकोत्तार तैयार करना; विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान संचालित करना; रोगियों को होम्योपैथी के जरिए चिकित्सा देखभाल प्रदान करना और अनुसंधान, मूल्यांकन, प्रशिक्षण, परामर्श और मार्गदर्शन के लिए सेवाएं एवं सुविधाएं प्रदान करना तथा होम्योपैथी के विभिन्न पहलुओं में स्नातक एवं स्नातकोत्तार शिक्षा में शिक्षण पध्दतियां विकसित करना शामिल है।

राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान

राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान, पुणे, का पंजीकरण 1984 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत किया गया और यह 1986 में बापू भवन में अस्तित्तव में आया। इसका नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर किया गया। इसके उद्देश्यों में देश भर में प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देना और प्रचारित करना, उसे एक पध्दति एवं जीवन शैली के रूप में विकसित करने के लिए अनुसंधान संचालित एवं प्रोत्साहित करना, तत्संबधी सुविधाएं मुहैया करना और इस पध्दति में सभी प्रकार के उपचार, बीमारियों की रोकथाम और बेहतर स्वास्थ्य के लक्ष्य हासिल करने की सुविधाएं प्रदान करना शामिल हैं। यह संस्थान पूरे भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का संवर्ध्दन और प्रचार करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को सहायता अनुदान भी प्रदान करता है।

राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान

राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान, बंगलौर, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन है। यह भारत सरकार और कर्नाटक सरकार का संयुक्त उपक्रम है, जिसकी स्थापना 1984 में की गयी थी। इसके उद्देश्यों में यूनानी चिकित्सा के पुरातन सिध्दांतों की संभावनाओं को खंगालना, इस पध्दति का वैज्ञानिक आधार पर निर्माण करना, यूनानी पध्दति में स्नातकोत्तार विद्यार्थियों और अनुसंधान-कर्ताओं को बढ़ावा देना तथा संस्थान को एक उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में विकसित करना शामिल है।

आयुर्वेद स्नातकोत्तर शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय

आयुर्वेद स्नातकोत्तार शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जामनगर का अभिन्न अंग है। यह आयुर्वेद के स्नातकोत्तार केन्द्रों में सबसे पुराना है, जिसकी स्थापना सरकार द्वारा की गयी और जिसके रखरखाव एवं विकास के लिए सरकार अनुदान के माध्यम से पूर्ण वित्ता-व्यवस्था करती है।

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ (आरएवी), नई दिल्ली स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्ता निकाय है जिसकी स्थापना फरवरी 1988 में की गयी थी। इसका लक्ष्य जाने-माने विशेषज्ञों के माध्यमों से युवा पीढ़ी को आयुर्वेद का ज्ञान हस्तांतरित करना है। विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के मौजूदा आयुर्वेद शिक्षण और प्रशिक्षण पाठयक्रमों में मूल आयुर्वेद ग्रंथो जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट की जानकारी और परम्परागत कौशल, जैसे नाड़ी विज्ञान, नेत्र विज्ञान, अस्थि चिकित्सा आदि का अभाव है। ये सभी कौशल वैद्य कुल परम्परा के माध्यम से सीखे जा सकते हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ कार्यक्रम के जरिए इस अंतराल को दूर करने के प्रयास किए जा रहें हैं।

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ 45 वर्ष से कम आयु के आयुर्वेद स्नातकों और स्नातकोत्तारों को गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।

मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान

मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई), नई दिल्ली, का पंजीकरण 1860 के सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत किया गया और इसने अप्रैल 1998 से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अयूश विभाग के अंतर्गत काम करना शुरू किया।

संस्थान के उद्देश्यों में योग के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में काम करना, योग विज्ञान का विकास, संवर्ध्दन और प्रचार करना तथा उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण, शिक्षण और अनुसंधान की सुविधाएं प्रदान करना और उन्हें प्रोत्साहित करना।

आयुष प्रणालियां देश में कई राज्यों में लोकप्रिय हैं। 18 राज्यों में भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी के लिए अलग निदेशालय हैं। इसी प्रकार राज्यों में एएसयू औषधि लाइसेंसिंग प्राधिकरण, चिकित्सकों के पंजीकरण के लिए बोर्ड#परिषद और राज्य औषधीय पादप बोर्ड काम कर रहे हैं। हालांकि आयुर्वेद इन सभी राज्यों में लोकप्रिय हैं, फिर भी केरल, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, और उड़ीसा में यह पध्दति अधिक प्रचलित है। यूनानी पध्दति विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु,, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में लोकप्रिय है। होम्पयोपैथी का प्रचलन देश के सभी भागों में है, परंतु उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडू, बिहार, गुजरात और पूर्वोत्तर राज्यों में इसका प्रयोग व्यापक रूप में किया जाता है, जहां यह अधिक लोकप्रिय है। यह भी प्रणालियां हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा बन गयी हैं।