ऐसा भी होता है - जिन्दगी मुर्दारो पे रहम नहीं खाती , घर बैठे मंजिल नहीं आती – भाग- 1
(सच्चे घटनाक्रमों पर आधारित सच्ची वृत्तान्त श्रंखला , ये भी जिन्दगी जीने का एक स्टाइल है )
नरेन्द्र सिंह तोमर '''आनन्द''
अभी चन्द रोज पहले मुझे पॉंच ई मेल मिले जो कुछ अलग हट कर थे और अलग राम कहानी बयां कर रहे थे । दो ई मेल दो लड़कियों के थे, एक ई मेल एक वृद्ध का और एक दिल्ली या हरियाणा के किसी सज्जन का था । पॉंचों ई मेल में मुझसे अर्जेण्ट सहायता की गुहार की गयी थी ।
मैं सभी ई मेल को गौर से पढ़कर , हर जवाब देने लायक ई मेल का उत्तर भी देता हूं , मैंने उनके भी उत्तर दिये, हालांकि अधिक बिजली कटौती के चलते पिछले कुछ दिनों से यह क्रम भंग हो गया है ।
नवयुवतियों ने लिखा कि वे कुछ बोल्ड कदम उठाना चाहतीं हैं लेकिन सामाजिक परिवेश और संस्कृति उनकी राह में आड़े आ रही है , यदि मैं उनकी मदद करूं तो वे अपने मकसद आसानी से पा सकेगीं , इसी प्रकार वृद्ध सज्जन का कहना था कि उनके केवल एक पुत्र था , जिसका विवाह हुआ उसकी पत्नी और उसकी एक लड़की है , उनके पुत्र का एक झगड़े में लगी अन्दरूनी चोट के चलते काफी पहले निधन हो गया , अब उन्हें बहू की और उसकी बेटी जो कि 18 या 19 साल की है, की बेहद चिन्ता है , वे वृद्ध पति पत्नी अबकाफी वृद्ध हो चुके हैं और अब उनके जीवन का कोई भरोसा नहीं है , उनके पास बीच शहर में एक मकान, एक लायसेसी बन्दूक, और कुछ जमा पूंजी है, वे जल्दी से जल्दी अपनी सारी सम्पत्ति और बन्दूक आदि मेरे नाम करके मुझे देना चाहते हैं , वे चल फिर पाने में असमर्थ हैं, उन्होंने मेरे द्वारा उनकी पिछले समय में की गयीं कुछ विशेष मददों का हवाला दिया और मुझ पर विश्वास करने की लम्बी चौड़ी वजहें लिख डालीं , एवज में वे चाहते थे कि मैं उनकी बहू को और नातिन को अपने संरक्षण में ले लूं , उनकी बहू युवा और खूबसूरत है , नातिन भी खूबसूरत है , जिनकी रक्षा मैं ही कर सकता हूं ... वगैरह वगैरह उनका पत्र लम्बा और बेहद मर्मस्पर्शी था । मैंने अपनी स्मृति पर जोर डाला तो कुछ साल पहले अपने रूटीन में मैंने उनकी मदद की थी , कुछ गुण्डे बदमाश उनकी संपत्ति पर कब्जा करना चाहते थे तो कुछ उनकी युवा बहू और नातिन के पीछे पड़े थे । मैंने उन्हें समस्या से छुटकारा दिलाया था , हालांकि तब भी शायद ऐसी ही बातें उन्होंने कीं थीं , लेकिन मैंने एक झटके में ही उनके आफर को ठुकरा दिया था, तब वे आये थे तो बेहद डरे ओर घबराये हुये थे , मेरे पास आते ही दोनों वृद्ध पति पत्नी सीधे ही मेरे पांवों में गिरकर बिलखने लगे, फूट फूट कर रोने लगे थे ।
मैं उस दिन अपने रूटीन में बेठा अपना कामकाज निबटा रहा था, शायद हल्की सर्दियां थीं लोग काफी मेरे पास बैठे थे , मैं सबकी समस्यायें सुन कर उन्हें निबटाता जा रहा था । अचानक मेरी नजर दरवाजे के बाहर खड़े उन वृद्धों पर पड़ी, जो शायद मेरे पास तक आने में मेरा दरवाजा पार करने में डर रहे थे या संकोच कर रहे थे, या शायद बाहर वी.आई.पी. यों की गाडि़यों को देख कर अंदर आने में हिचकिचा रहे थे, मेरी जैसे ही उन पर नजर पड़ी, मैंने आवाज देकर उन्हें भीतर आने को कहा , उस समय कुछ वी.आई.पी. भी मेरे पास बैठे थे जिनके कुछ अर्जेण्ट काम निबटाने थे, ऐसे में उन वृद्धों को आवाज देकर बुलाना और सबसे पहले उनकी समस्या परेशानी पूछना, वी.आई.पी. को शायद अजीब लगा , लेकिन वे चुप रहे और शायद मेरी हरकत से उन्होंने अपने अपमान का घूंट ही पिया होगा । लेकिन उस वक्त मौन रहना उनकी मजबूरी थी वरना मेरे स्वभाव से सब भली भांति वाकिफ थे कि हम फिर क्या निर्णय लेते ।
वृद्ध पति पत्नी आते ही सीधे मेरे पॉंवों में गिरकर फूट फूट कर रोने लगे , मुझे वृद्धों के चरण स्पर्श करने और उनका आशीर्वाद लेने की आदत है लेकिन अचानक करिश्माई ढंग से उल्टा पुल्टा हो गया और वे मेरे पॉंवो से इस कदर लिपटे थे कि छोड़ ही नहीं रहे थे , बुरी तरह बिलख रहे थे । मुझे लगा कि इन्हें कुछ समय रो ही लेने दिया जायेगा तो ठीक रहेगा , इन्हें पहले इनके दुख के बांध तोड़ लेने दो, रो लेने दो जब बांध खाली हो जायेगा तभी ये अपनी बात मुझसे कह पायेंगे ।
कुछ समय जब वे नॉर्मल होकर चुप हुये तो मैंनें उन्हें बेठने को कहा , मेरे पास कुर्सी सोफे कम ही रहते हैं, और अधिक लोग आ जायें तो उनमें से कुछ को कुद समय बाहर ही इंतजार करना पड़ेगा, उस समय वी.आई.पी. कुर्सी सोफे घेरे बैठे थे, वृद्ध पति पत्नी लपक कर जमीन पर यानि फर्श पर बैठ गये । मुझे अजीब लगा, वी.आईपी. में से किसी ने भी उनके लिये जगह खाली नहीं की, मैंने यह बात गंभीरता से नोट की, हालांकि चेहरे पर कोई भाव नहीं प्रकट किये लेकिन तय कर लिया कि इन सालों को भी इन वृद्धों जैसे हाल में ले जाकर लटकाऊंगा । खैर वृद्धों ने अपनी समस्या , परेशानी रोते रोते बताई वही जो मै ऊपर लिख चुका हूं , साथ ही पूरी कहानी विस्तार से मैंनें अपने तरीके से उनके अन्दर से निकलवा ली , पता चला कि वे वृद्ध उ.प्र. पुलिस से सेवा निवृत्त हैं, इस दरम्यान हमारे वी.आई.पी. गण जिनके पास वक्त बेहद सीमित हुआ करता है , बुरी तरह पक गये , मैं उनकी कहानी को जानबूझ कर लम्बी और लम्बी करवाता जा रहा था और वी.आई.पी.यों की बैचैनी और बेकरारी का भरपूर मन ही मन आनन्द ले रहा था, बीच बीच में कई बार वी.आई.पी. बोले कि हम बाद में दोबारा आ जायेंगे आप इस इमरजेन्सी केस को निबटा लीजिये, और मैं बार बार उन्हें बैठने को की देता साथ ही अन्दर चाय और बनवाने की कह देता , वे चाय पी पी कर और गरीब वृद्धों की दुख व लाचारी भरी ट्रेजेडी सुन सुन कर भारी व्याकुल हो रहे थे और मैं उन्हें जाने भी नहीं दे रहा था ।
वी.आई.पी. की व्याकुलता मुझे बहुत आनन्द दे रही थी और जाहिर में मैं उन्हें बार बार ढाढ़स बंधा रहा था बार बार जबरदस्ती बिठाल लेता था , जाने भी नहीं दे रहा था एवं उनकी बात भी नहीं सुन रहा था , ऊपर से कह देता कि जैसे तैसे तो वी.आई.पी. चल कर इस गरीब के गरीबखाने तक आये हैं कुछ देर तो रौनक रहने दो हमारी भी महफिल में , इन कुर्सियों व सोफों के भाग जगने दो, इन्हें अपना मुकद्दर कुछ देर तो सराहने दो, हमें भी तो कुछ देर आपके दीदार होते रहने दो, आपसे मिलने तो हम जा नहीं पाते क्या करें यहॉं से निकल ही नहीं पाते , आज आप आये हैं बहार चली आयी है , इस मौसम को कुछ देर तो बना रहने दो, लोगों पर मोहल्ले वालों पर हमारा रौबदाब जरा जमने दो । वी.आई.पी. कसमसा कसमसा कर बिलबिला बिलबिला कर रह जाते , और अंग्रेजी व्हिस्की में आनन्द मस्त रहने वाले आज लगातार चाय पी पी कर पगलाये जा रहे थे ।
क्रमश: जारी अगले अंक में ....