काहे शान्ति के लिये अशान्ति पर मची क्रान्ति....
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
एक बहुत पुरानी कहावत है कि आप किसी प्रसिद्ध और बड़े आदमी की महबूबा हैं या फिर उसके दुश्मन तो आपको मशहूरियत फोकट ही अपने आप मिल जाती है । दुश्मनों और महबूबा लड़कियों की खास चाहत होती है कि वे ऐसे आदमी के आसपास भंवरों के मानिन्द मंडराते रहें ।
मंडराना बुरा नहीं हैं , गुनगुनाना भी बुरा नहीं हैं लेकिन फूल पर बैठ जाना और उसका रस चूसना गुनाह है , उसके पत्ते पत्तियों को तोड़ना खाना गुनाह है । कली देखना गुनाह नहीं उसकी खूबसूरती का तारीफ भी गुनाह नहीं लेकिन उसे तोड़ कर कोट के कॉलर में लगाना गुनाह है ।
कहते हैं कि आदमी दुश्मन हो सकता है लेकिन महबूबा नहीं हो सकता लेकिन यह दुनियॉ बड़ी गोल मोल है यहॉं आदमी राधा बन जाता है, महबूबा बन जाता है, कभी कभी हाव भाव और रूप श्रंगार कर स्त्रियोचित वेषभूषा धारण कर लेता है और अपना महबूब खोज लेता है । विपरीत क्रम में लड़कियॉं महबूब का वेष धारण कर महबूबा तलाशतीं हैं ।
गोया तमाशा ये कि न महबूब बन के चैन पाया न महबूबा बन के ।
भटकता है इंसान, मिली शान्ति न चैन कभी ये बन के न कभी वो बन के ।
छोड़ा जब जब मन को आजाद बेखयाल इसकी उड़ान ऊँची हुयी और आसमां को पार कर समन्दर को चीर ये गोल गोल घूम गया पर ठीया न मिला इसे कहीं ।
शान्ति और चैन ये हरेक की ख्वाहिशें हैं ताउम्र न मिलेंगीं तुझे जो मन आजाद हुआ ।
शान्ति ऐसी महबूबा है जो जितना हो मन आजाद , दूर होती जाती है ।
मन काबू आता जायेगा चैन आता जायेगा , चैन वो बंसी है जब भी बजेगी शान्ति राधा की तरह दौड़ती आयेगी ।
शान्ति तो आयेगी संग कई गोपियां लायेगी, साधना, आराधना, तपस्या और सिद्धि रिद्धि भी आयेगी ।
आओ जरा गौर करें बड़े बड़े सन्त महात्मा इस शान्ति के आवागमन के बारे में क्या कहते हैं –
ईसा मसीह – सबकी सेवा करो, सबके प्रति करूण रहो, सबके दुख में अपनी ऑंखें भी आसूओं के सागर में भिगोओ, दूसरे की तकलीफें आत्मसात करो, तुम शान्त होते जाओगे । कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम फौरन दूसरा गाल भी उसकी ओर घुमा दो ।
महात्मा गांधी – बिल्कुल ईसा मसीह की वाणी और साथ में जोड़ा कि हरिजन की सेवा और उसके ऑसू पोंछने से दीन दुखियों की सेवा सुश्रूषा से मनुष्य मोक्ष और मुक्ति का अधिकारी हो जाता है ।
महात्मा बुद्ध – मेरी शरण में आओ मै तुम्हे शान्ति दूंगा, बौद्ध धर्म में कई क्रियायें , साधनायें , उपसनायें इस हेतु वर्णित व अभ्यासित हैं जो बौद्ध मठों और बौद्ध साधनाओं एवं बौद्ध तंत्र में व्यापक रूप से वर्णित है और लामाओं द्वारा नियमित अभ्यास की जातीं हैं । महात्मा बुद्ध का संदेश है मोह त्यागो, लोभ त्यागो, अहंकार त्यागो सन्यास और शान्ति का पथ पकड़ों । (बुद्ध ने नहीं कहा कि मन को आजाद और बेखयाल छोड़ दो)
ओशो रजनीश – ओशो रजनीश को इससे पहले आचार्य रजनीश और भगवान रजनीश कहा जाता था , ओशो का अर्थ है पूर्ण मनुष्य, यह संज्ञा बाद में रजनीश ने अपनाई, रजनीश मनोविज्ञान के विद्वान थे और जबलपुर म.प्र. के थे वे वहॉं एक महाविद्यालय में प्रोफेसर थे । रजनीश ने कहा कि – मन को स्वतंत्र छोड़ दो, उसे आजादी और बेखयाली में उड़ान भरने दो उसे आसमान में उन्मुक्त परिन्दे की तरह स्वच्छन्द विचरण करने दो । शान्ति की ओर अपने आप बढ़ते जाओगे और एक दिन पूर्णत: शान्त हो जाओगे । भोग में योग करो भोग को पूर्णता प्रदान करो, पूर्ण भोग और उसकी पूर्णता ही असीम आनन्द एवं पूर्ण शान्ति के चरम की ओर ले जाता है ।
स्वामी विवेकानन्द – ईसा ने कहा कि सबकी सेवा करो सेवा में ही ईश्वर और शान्ति है , यदि तुम्हारे कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुरन्त दूसरा गाल उसकी ओर घुमा दो । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि दुनियॉं का भोग करो, पुरूषार्थ करो, दुनियॉं पर राज करो, कोई तुम्हारे एकगाल पर तमाचा मारे तो तुम उसके मुह पर तुरन्त घूंसा जड़ दो और दुष्ट को केवल जैसे का तैसा नहीं बल्कि ब्याज सहित जैसे का तैसा जवाब दो ।
मगर अफसोस जनक और दुखद है कि श्रीकृष्ण के वंशजों ने कृष्ण की बात नहीं मानी, ईसा के वंशजों ने ईसा की बात नहीं मानी । कृष्ण के वंशजों ने ईसा की बात मानी और ईसा के वंशजों ने कृष्ण की बात मानी, आज परिणाम ये है कि ईसा के वंशज कृष्ण के वंशजों पर राज कर रहे हैं और कृष्ण के वंशज उनकी सेवा कर रहे हैं । ( देखें स्वामी विवेकानन्द लिखित पुस्तक – प्राच्य और पाश्चात्य)
महावीर स्वामी- क्षमा से बड़ा कोई न अस्त्र है न शस्त्र है, जीव हिंसा का त्याग करो, सभी प्रकार के मानसिक, वाचिक व कायिक पापों का त्याग करो, मधुर वाणी, सदा चितत प्रसन्न रखने के उपाय करो किसी की निन्दा से स्वयं को दूर रखो । दूसरे व्यक्ति की हर भूल क्षमा करिये और वष्र में क्षमावाणी पर्व मनईये अपनी हर भूल के प्रत्येक प्राणी से क्षमा मांगिये । शान्ति ओर समृद्धि का यह उत्तम मार्ग है ।
भगवान श्रीकृष्ण – आसक्ति व मोह का त्याग, क्रोध, अहंकार, लोभ, मद व काम का त्याग शान्ति के खेत की जुताई हैं, कर्म में निष्काम प्रवृ्त्ति, कर्म एवं उसके फलों का त्याग, बंधन त्याग, योग एवं त्रय गुण संयम व नियंत्रण शान्ति के आधार हें । मनुष्य का मन अतिवेग वाला अश्व है इसकी लगाम में ढील देते ही यह मनुष्य को प्रमथन स्वभाव वाली इंद्रियों के साथ लेकर उड़ा ले जाता है और न करने योग्य कर्म में फंसा देता है । आगे श्रीकृष्ण ने कहा कि –
तीन गुणों की प्रकृति सत रज तम हैं इनके नाम । जो जीता जिस गुण प्रधान होता वैसा उसका ध्यान । जैसा होता जिसका ध्यान होते वैसे उसके कर्म । जिसके जैसे होते कर्म वैसे ही फल होते, यही कर्म का मर्म । भोजन जप तप दान सब होते तीन प्रकार । जो इनको हैं सेवते भली भांति विचार । नहीं कर्म बंधन फिर बांधते यही है उच्च आचार । जिसकी जैसी प्रकृति मैं वैसी श्रद्धा उसमें रखूं यही मेरा आधार । जो जैसा भोजन है करता वैसी बुद्धि उसमें रचे यह बुद्धि का प्रकार । बुद्धि जैसी जिसकी होती होता उसमें वैसा ज्ञान । ज्ञान जैसा जिसमें होता वैसा करता कर्म । जैसा कर्म करे जो जीव फल का वैसा होता मर्म ।
आगे श्रीकृष्ण ने कहा कि – ज्ञान के बैल लगाईये अपनी गाड़ी महिं सुजान । बुद्धि बनाओ सारथी चाबुक हो विवेक का यही कहे विज्ञान । जिन गाड़ी हांकी महा सुजन जोत ज्ञान के बैल । सिर्फ वहीं हैं सुखी यहॉं शान्ति उनकी छैल ।